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लेखक : नामालूम प्रस्तुतकर्ता : जूजा जी यह कहानी मेरी नहीं है मुझे पकिस्तान से किसी शख्स ने भेजी है जो उनकी जिन्दगी की एक हकीक़त है और वे इस हकीक़त को मेरे माध्यम से अन्तर्वासना पर जाहिर करना चाहते हैं। अब आप उनकी जुबानी ही उनकी दास्तान को जानिए।
ख़ान साहब ने मुझे नंगा किया हुआ था, मुझसे सेक्स करना चाह रहे थे, मैं सख़्त शर्मिंदा था, कल तक जिस काम से मुझे नफ़रत थी, आज वही मेरे साथ हो रहा था।
मैं जानता था इस तरह के समलिंगी यौन सम्बन्ध सिंध में आम हैं। मेरे साथ इस तरह का यौन सम्बन्ध चाहने वालों की तादाद बहुत बड़ी थी लेकिन मुझे ऐसा सेक्स करने का और ना करवाने का कोई चाहत थी।
मैं एक निहायत ही हसीन-तरीन गोरा-चिट्टा लड़का था। जब मैं स्कूल में था, तब हमारे टीचर ख़ान साहब ने मुझसे सेक्स करना चाहा था। मैं चाहता तो उनको बेइज्जत कर सकता था लेकिन वो मेरे टीचर थे तो मैं कुछ कह न सका।
वो मुझसे उम्र में भी काफी बड़े थे, मैं उनसे मुफ़्त में छुट्टियाँ भी पाता था। पहली बार जब उन्होंने मुझे अपने पास बुलाया था तो मुझे नहीं मालूम था ये भी वही सब करेंगे जो कि सिंध में आम है।
उन्होंने मुझे नंगा कर दिया और वे खुद भी नंगे हो गए थे। वो मेरे बदन को चूमने लगे। मुझे बहुत ही बुरा लग रहा था, मैं सोच रहा था कि अब मेरा दैहिक शोषण होकर ही रहेगा।
वो मुझे काफ़ी देर तक चूमते रहे, पर उन्होंने मेरी गाण्ड नहीं मारी उल्टे मुझसे कपड़े पहन लेने का फरमान सुना दिया। मैं मन ही मन बहुत खुश था कि जान बची तो लाखों पाए।
तभी मेरी नज़र उनके लंड पर पड़ी। बिल्कुल मुरझाया हुआ था और ऐसा लग रहा था कि लण्ड के नाम पर बस एक गोश्त का छोटा सा टुकड़ा लटक रहा हो। खैर, मैं बहुत खुश था कि जान छूटी।
उन्होंने मेरी जेब में दो रूपए डाल दिए। मैं बहुत खुश था कि चलो इन पैसों से कोई चीज खरीद कर खाऊँगा।
ख़ान साहब इसी तरह अक्सर मुझे बुलाते, चूमते चाटते और पैसे देकर छोड़ देते थे। मैं भी खुश था कि पैसे मिल जाते हैं और गाण्ड भी नहीं मरवानी पड़ी। मुझे तो बहुत बाद में मालूम हुआ कि ऐसे लोगों को नामर्द यानी इंपोटेंट कहते हैं।
ख़ान साहब एक तन्हा शख़्स थे। मुझे नहीं मालूम कि उनका कोई आगे-पीछे वाला था भी या नहीं। बावर्ची और मुलाज़िम उनके घर पर काम करते थे और उनकी शराफ़त की वजह से शोहरत भी बहुत थी।
यह अलग बात है मुझे मालूम था कि वे कितने बड़े मादरचोद इन्सान थे। मैंने कभी किसी से (उनके एहतराम की वजह से) ज़िक्र भी नहीं किया। कह भी देता तो शायद, लोग यक़ीन ना करते और ज़रूरत भी नहीं थी।
उनसे मेरे ताल्लुकात का ये एक सबब था और मैं उनका ख्याल भी रखता था। उनकी बीमारी में, मैंने तीमारदारी की और मैं क्या, हमारे इलाके के सभी लोग उनका ख्याल रखते थे।
उनका हैदराबाद में बड़ी पोस्ट पर तबादला हो गया, मैं फिर भी उनके पास जाता रहा। उन्होंने काफ़ी अरसे से वो गंदी हरकत भी बंद कर दी थी।
दिन गुजरते गए। मैं कॉलेज में चला गया और उनसे कभी-कभार मिलता था। मैं कॉलेज में सेकेंड इयर में था, उन्होंने मुझे एक आदमी के जरिए बुलवाया।
मैं उनके बुलावे पर शाम को उनके दफ्तर गया। वे मुझसे बहुत अदब से मिले और घर चलने को कहा। मैंने सोचा शायद फिर वही चूमा-चाटी करेगा साला..!
पर अब मुझे पैसों की ज़रूरत नहीं थी। मुझे कॉलेज की तरफ से स्कॉलर-शिप मिलती थी और मेरा कोई विशेष खर्चा भी नहीं था। उनका घर भी दफ्तर के अहाते में ही था, हम वहाँ चले गए, उन्होंने दरवाज़ा खटखटाया तो एक ख़ातून ने दरवाज़ा खोला।
मैंने पहली बार उनके घर में ख़ातून देखी थी, बल्कि कभी किसी ख़ातून का नाम भी उनके हवाले से नहीं सुना था। उन्होंने कहा- ये मेरी बेगम हैं। मैं खुश हुआ कि उन्होंने शादी कर ली और शायद इसी वजह से उन्होंने मुझे काफ़ी अरसे से बुलाया भी नहीं।
उन्होंने अपनी बेगम फ़रज़ाना से मेरा परिचय कराया। फ़रज़ाना से कहा- यही असद हैं, मेरे सबसे अज़ीज़-तरीन स्टूडेंट, जिनका ज़िक्र मैंने आपसे किया था। इसका मतलब था कि उन्होंने अपनी बेगम से मेरे बारे में पहले कभी चर्चा की होगी।
फ़रज़ाना ख़ातून उम्र में मुझ से बड़ी थीं और ख़ान साहब से बहुत ही छोटी थीं। ख़ान साहब से क़द में लंबी और खूब गोरी और बेहद आम सी ख़ातून, उनके चेहरे पर कोई कशिश भी नहीं थी।
काफ़ी देर के बाद ख़ान साहब ने कहा- असद, मुझे और फ़रज़ाना को तुम्हारी मदद की ज़रूरत है।
मैं कुछ नहीं बोला, वो चाय बगैरह पीकर वापिस दफ्तर चले गए, जाते-जाते खान साहब कह गए कि हम दोनों बातें करें, वे कुछ जरूरी काम निबटा कर आते हैं, तब सब मिल कर खाना खायेंगे।
उनके जाने के बाद फ़रज़ाना साहिबा ने मुझे अपना घर दिखाना शुरू कर दिया। सरकारी घर था, मगर बहुत बड़ा था। फ़रज़ाना ने मुझे एक-एक कमरे को दिखाया और उस कमरे में ले गईं जिसमें टीवी था। उस ज़माने में ब्लॅक एंड व्हाइट टीवी भी बहुत ही कम लोगों के घर में होता था।
वो मेरे साथ बैठ गईं। उन्होंने मेरे बारे मैं पूछा और कहा- ख़ान साहब सिर्फ आपको याद करते हैं। उन्होंने आपके बारे में मुझे बताया है कि आप ही उनके सबसे करीब के स्टूडेंट थे।
मैंने मन ही मन सोच मादरचोद ने कहीं मेरे साथ चूमा-चाटी के किस्से तो नहीं सुना दिए। लेकिन फिर सोचा कि ऐसी बातें अपनी बीवी को क्यों बतायेगा!
वो फ़रज़ाना मेरे क़रीब आ गईं और बिल्कुल चिपक कर बैठ गईं।
उन्होंने मेरे कंधे पर हाथ रख कर कहा- मैं आपको प्यार कर सकती हूँ?
मैंने उनकी तरफ देखा और घबरा गया कि यह सब क्या हो रहा है।
उन्होंने मेरे जवाब का इंतज़ार भी नहीं किया और मुझे गले लगा कर प्यार करने लगीं। मेरी ज़िंदगी में माँ के अलावा पहली बार किसी ने प्यार किया था और मैं एक शर्मीला लड़का हूँ, मैं घबरा गया था।
उन्होंने मुझे प्यार करते हुए मेरे होंठों चुम्बन लिया। मैं उनके गले लगा हुआ था और वो मुझे बेतहाशा प्यार कर रहीं थीं। लेकिन सिवाय घबराहट के मेरे अन्दर कोई फीलिंग नहीं थी।
अब उनका हाथ मेरे लंड पर था जो बिल्कुल बैठा हुआ था। मैं कुछ नहीं कर रहा था मेरा लण्ड उनके हाथों में था और मेरे होंठों पर उनके होंठ थे। जो कुछ भी हो रहा था सब उनकी मर्जी से हो रहा था। उन्होंने कहा- आओ मेरे साथ लेट जाओ..! उन्होंने खुद ही मुझे बिस्तर पर अपने साथ लेटा लिया। वो मुझ से चिपट गईं और अब जाकर मेरे अन्दर कुछ होना शुरू हुआ यानि लंड भी खड़ा होने लगा और सब कुछ अच्छा लगने लगा।
वो मेरे ऊपर आ गईं और खूब चूमने लगीं, जिसके जवाब मैं भी उनको चूमने लगा, मेरा लंड पूरी तरह सख़्त हो चुका था। उन्होंने अपने कपड़े उतारते हुए कहा- तुम भी अपने कपड़े उतार दो। हम दोनों नंगे हो गए और फिर से चिपक गए।
मैं कमरे के खुले दरवाज़े की तरफ देख रहा था, जो उन्होंने महसूस कर लिया और कहा- फिकर ना करो ख़ान साहब देर से आऐंगे और घर में हम दोनों के अलावा कोई नहीं है।
हम दोनों एक-दूसरे के साथ चिपके हुए थे और खूब पसंदिगी से चूमा-चाटी कर रहे थे, वो मेरी आँखों में देख रहीं थीं।
उन्होंने कहा- तुम बहुत ही अच्छे और खूबसूरत जवान हो… काश..! मैं उनकी तरफ़ा देखता रहा और उन्होंने फिर ‘काश’ के बाद कुछ ना कहा। उन्होंने कहा- मैं खुशनसीब हूँ कि तुमसे ‘करूँगीं’..! और यह कह कर फिर से मेरे जिस्म के ऊपर आकर जगह-जगह से चूसने लगीं और लंड को हाथों में लेकर सहलाने लगीं और कहा कुछ भी नहीं। मेरे सीने पर जगह-जगह काट रही थीं और बार-बार मेरी आँखों में झाँक रही थीं। वो फिर मेरे बाजू में लेट गईं और बोलीं- अब आ जाओ।
मैं समझ गया कि उनका मतलब चुदाई से ही था। मैंने आज तक कभी चुदाई नहीं की थी। बस जानता था और पढ़ा था। पहले न कभी ब्लू-फ़िल्म देखी थी और कंप्यूटर तो ईजाद ही नहीं हुआ था। मैं उनकी टाँगों के दरमियान आ गया। वो यूँ तो मामूली शक्ल-सूरत की थीं लेकिन जिस्म बड़ा गदराया हुआ था।
खूब गोरा और बिल्कुल चिकना और उनके दुद्दू भी नुकीले और भरे हुए और तने हुए थे। लंबे से बाल और लंबी गर्दन, बड़ी-बड़ी आँखें..! बस बाक़ी सब कुछ आम सा था।
मैं उन्हें देख रहा था। उन्होंने पूछा- क्या यह तुम्हारा पहली बार है? मैंने कहा- जी।
फिर वो कुछ ना बोलीं। मैं उनके ऊपर था। मेरा लंड खूब सख़्त और लोहे की तरह तना हुआ था। उन्होंने कहा- परेशान ना हो, ख़ान साहब ने मुझे तुमसे चुदने की इज़ाज़त दे दी है, क्योंकि वो इस क़ाबिल नहीं हैं। उन्होंने मेरी खातिर और अपनी आबरू बचाने के लिए तुम को मुन्तखिब किया है। मेरा यक़ीन करो कि शादी से पहले और बाद में यह मेरा भी पहला ही है और तुम्हारे बाद कोई नहीं होगा!
यह कहते हुए वे उदास हो गईं और मुझे भी वो दिन याद आने लगे। जब खान साहब मुझ से नाकाम सेक्स करते थे।
फ़रज़ाना की उदासी का सबब जाना तो मैं उनके मम्मे चूसने लगा और मेरा लंड अपनी मंज़िल तलाश करने लगा। उनकी चूत कुछ गीली सी महसूस हो रही थी और मेरा लंड उनकी चूत के मुहाने पर था। मेरे जरा से धक्के में मेरा लण्ड उनकी चूत में दाखिल होने लगा। मुझे सेक्स का तजुर्बा तो नहीं था, लेकिन अब सब कुछ खुद ही मालूम होने लगा।
फ़रज़ाना के चेहरे पर अब खुशी और सुकून तो था, उनको कुछ दर्द भी हो रहा था, उनकी एक ‘आह’ सी निकली।
मेरे अगले हमले के लिए वे तैयार तो थीं, पर मैंने हमला कुछ बेदर्दी से किया क्योंकि मुझे चुदाई का कोई कोई अनुभव तो था नहीं।
पूरा लवड़ा उनकी चूत में पेवस्त हो चुका था।
उनके गले से एक चीख निकल गई- आआऐईईईई ईईई..! मैं डर गया। मैंने अपना लण्ड बाहर खींचने की सोची ही थी कि उन्होंने दर्द से तड़फते हुए भी मुझे जकड़ लिया और मुझसे बोलीं- तुम हटना नहीं… यह दर्द कुछ ही धक्कों में चला जाएगा।
फिर मैंने उनके बोबे अपने होंठों से चूसने शुरू किये उनकी चूत ने कुछ राहत महसूस की और एक बार मैंने फिर महसूस किया कि उनकी कमर नीचे से उचक रही है। मैंने उनकी आँखों में देखा तो वे बोली- अब चोदिए..!
मैंने फिर से धक्के लगाने शुरू कर दिए। कुछ धक्कों के बाद वे बहुत ही मस्ती से मेरे लण्ड को अपनी चूत में ले रहीं थीं। मस्ती का आलम था। मालूम हुआ कि यह वही अमल है जिससे जिस्म और रूह दोनों को सुकून मिलता है और शायद ऐसा मज़ा कह सिर्फ़ महसूस हो सकता है। अल्फाज़ों में बयान नहीं हो सकता।
मुझे नहीं मालूम कि यह मस्ती थी या मज़ा था। लौड़े को अन्दर गरम-गरम महसूस हो रहा था, जो कि और भी लज्जत दे रहा था। लंड को उनकी चूत खूब गीली लग रही थी और पूरे बदन में नशा सा था।
वो मेरे और मैं उनके होंठों को चूस रहे थे और पहली बार उनके चेहरे पर मुस्कुराहट देखी।
लंड को अन्दर-बाहर करने में तेज़ी आ गई थी और अब उनकी भी मस्ती में डूबी हुई आवाजें आ रही थीं, जो कि सिर्फ़ लुत्फ़ ही लुत्फ़ की अलामत थी।
भरा हुआ उनका बदन मेरे नीचे था और दिल चाहता था कि कभी उनसे जुदा ना होऊँ।
चुदाई की रफ़्तार तेज़ होती जा रही थी। उन्होंने भी मुझे पूरी ताक़त से जकड़ा हुआ था और लंड भी अपने गिर्द यही कैफियत महसूस कर रहा था।
चुदाई की इंतेहा हो रही थी और मैंने अपने दोनों हाथों को उनके बाजुओं में से निकाल कर उनके दोनों कंधों को अपनी सीने की तरफ खींचा हुआ था।
मैं अपने लण्ड को रफ़्तार से अन्दर-बाहर कर रहा था।
चुदाई की इस स्थिति में उन्होंने कहा- आह.. कुछ आराम से करो..!
उनकी जुबान से हल्की-हल्की मादक आवाजें आ रहीं थीं। उनकी इस तकलीफ़ को मैं अपनी उन पर फ़तह होने की लज्ज़त में डूब रहा था।
मैंने एक ना सुनी और खूब ज़ोर-ज़ोर से झटके लगाने लगा, जो कि मेरे लंड का फितरी तक़ाज़ा था और मैं सब कुछ भूल कर कि वो मुझसे बड़ी हैं और ख़ान साहब की बेगम हैं, सिर्फ़ और सिर्फ़ लंड का साथ दे रहा था।
मुझे चुदाई इतनी ज्यादा पसन्द आ रही थी कि मेरे लौड़े को लग रहा था कि दाखिल तो हुआ चूत से मगर निकलना चाह रहा है शायद उनके हलक़ से…!
उनकी भी मंज़िल आ चुकी थी। मैं खौफ़नाक झटके लगा रहा था कि जैसे खुद भी उनके अन्दर जाने की कोशिश कर रहा होऊँ। उन्होंने मुझे बहुत ताक़त से जकड़ लिया था कि वो मेरे धक्कों को कुछ हद तक रोक सकें, लेकिन कहाँ वो शहरी ख़ातून और कहाँ मैं देहाती नौजवान, खूब ज़ोर लगा रहा था।
इतना कि मेरी भी आवाज़ निकल रही थी और आख़िर में, मैं जब झड़ा होऊँगा तो शायद वे काफ़ी पहले झड़ चुकी थीं।
उन्होंने मेरे झड़ने पर मुझे चूम लिया और कहा- शुक्रिया असद!
उस वक़्त तक उनके ऊपर लेटे-लेटे उनको चूमता रहा। जब तक कि लंड अपनी मर्ज़ी से बाहर नहीं निकल गया।
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