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यारों, गत अंक में आपने पढ़ा कि नीलम रानी के जीजा ने होटल में दो कमरे बुक करवा दिये थे ताकि मैं उसकी बीवी अनुजा को उसके सामने चोद सकूँ। जीजे की यह भी मर्ज़ी थी कि मैं और वो दोनों एक साथ अनु को चोदें, इसके साथ साथ नीलम रानी भी अपने खास स्टाइल में तीन बार मुझे चोदना चाहती थी।
मैंने घर में अपनी बीवी जूसी रानी को उसी दिन बता दिया था कि मुझे दो दिन के लिये मुम्बई जाना है दफ्तर के काम से। मैंने उसे भी कहने का ड्रामा किया कि वो भी साथ चले। जैसा मुझे पता था, बीवी ने कहा- तुम तो काम में बिज़ी हो जाओगे और मैं होटल में बोर होती रहूंगी। सुनो राजे… दोनों दिन तुम मुठ ज़रूर मार लेना… वर्ना वापिस आकर तो तुम इतना तोड़ते हो मेरे को कि मेरी आधी जान निकल जाती है। दो बार झाड़ लोगे तो गर्मी काबू से बाहर नहीं होगी।
मैंने जूसी रानी को बाहों में भर कर उसके होंठ चूमे, उसकी चूचियाँ दबाईँ और कहा- रानी… उतावला कौन हुआ था? तू या मैं? घर में घुसा ही था तो ना चाय ना पानी… बस वहीं ड्राईंग रूम में ही तू चढ़ गई थी मेरे ऊपर… कितने ज़ोर से नाखून मार मार कर तूने मेरी पीठ पर खरोंचें मार दीं थीं। सब भूल गई क्या? जूसी रानी इतरा कर बोली- चलो रहने दो… तुमने ही तो आदत खराब की है मेरी रोज़ चोद चोद के… मैं तो कितनी सीधी सादी लड़की थी तुम जैसे चोदू से मिलने से पहले ! फिर उसने मुझे चूमा और धीरे से फुसफुसाई- राजे तुम मज़ा भी तो कितना देते हो… अच्छा अब निकलो, वर्ना ट्रेन छूट जायेगी।
मैंने सूरत स्टेशन पर अपनी कार छोड़ दी और ड्राइवर से कहा- मैं दो दिन बाहर रहूँगा और तीसरे दिन मुझे लेने स्टेशन पर शाम सात बजे आ जाना। ड्राइवर गाड़ी घर ले गया और मैं स्टेशन पर आधा घंटा खड़ा रहा। फिर मैं एक टैक्सी लेकर होटल गेटवे पहुँचा और अपने रूम में जाकर नीलम रानी की बाट देखने लगा। नीलम रानी उसकी बहन और जीजा क़रीब दो घंटे के बाद आने वाले थे। वे राजकोट से कार से आ रहे थे और नीलम रानी अपने घर से।
खैर मैंने दो घंटे आराम से लेट लगाई, दो दिन जम कर चुदाई का कार्यक्रम चलने वाला था, जितना आराम अभी कर लो सो ठीक है, बाद में पता नहीं आराम करने को मिले या नहीं। लेटे लेटे आँख लग गई। मेरी नींद तब खुली जब मेरे रूम के दरवाज़े पर खटखट हुई। दरवाज़ा खोल कर देखा तो सामने नीलम रानी खड़ी मुस्करा रही थी।
काले रंग के शलवार सूट में नीलम रानी क़यामत बरसा रही थी। मैंने उसे ऊपर से नीचे तक निहारा और अपनी आँखें ठंडी की, उसकी बांह पकड़ के उसे कमरे के भीतर घसीट लिया और ज़ोर से लिपटा के मैं उसके गर्म गर्म, भरे भरे होंठों को चूमने लगा। एक लम्बी चुम्मी के बाद वो थोड़ी सी दूर हटी और बोली- राजे… चलें साथ के कमरे में? अनु और जीजाजी आ गये हैं… जीजाजी बहुत बेताब हो रहे हैं… !
इससे पहले कि मैं उसे फिर से दबोचता, नीलम रानी झट से सरक कर भाग गई। मैं नीलम रानी के पीछे पीछे साथ वाले रूम में चला गया। अनुजा और जीजा वहाँ आ चुके थे और सामान सेट कर रहे थे। नीलम रानी ने मेरा परिचय करवाया, अनुजा एक सुन्दर स्त्री थी और नीलम रानी की जुड़वां होने के कारण उसकी शक्ल भी नीलम रानी से बहुत मिलती थी। परंतु काफी समय से रोज़, तीन तीन चार चार बार, चुद चुद के उसके चेहरे और उसकी त्वचा पर एक निखार आ गया था, एक चमक आ गई थी।
नीलम रानी भी जब खूब चुदेगी तो ऐसी ही लगने लगेगी। यह अब मेरा काम था कि मैं उसे इतना चोदूँ कि वह भी अनु रानी की तरह चमकने दमकने लगे। जीजा का नाम विक्रम था और वो एक 5 फुट 9 इंच का हट्टा कट्टा युवक था, देखने में सुन्दर भी था, उसकी और अनु रानी की जोड़ी खूब जमती थी।
मैं बोला- विक्रम, क्या प्लान है तुम्हारा? कैसे शुरू करना चाहते हो? क्या चाहते हो?
विक्रम ने कहा- सर, मैं दो बातें चाहता हूँ… एक यह कि आप अनुजा की चुदाई करें और मैं देखूँ अनुजा दूसरे आदमी से चुदवाती है तो कैसी लगती है… दूसरी यह कि आप और हम दोनों मिल के अनुजा को चोदें, यानि एक जना चूत में लंड दे और दूसरा गाण्ड में… गाण्ड और चूत में हम बदल बदल के लौड़ा पेल के अनुजा को सातवें आसमान की सैर कराएँ। एक तीसरा मर्द और मिल जाता तो बेहतर था। एक लंड मुंह में, एक गाण्ड में और एक चूत में चला जाता… पर चलो दो से ही तसल्ली करनी पड़ेगी।
मैंने कहा- ठीक है… पहले क्या चाहते हो? मैं अनुजा की चूत मारूँ या पहले हम दोनों उसे भोगें? ‘नहीं, पहले आप चोद लो। एक बार मैं अनु को चुदवाते हुए देख लूं, फिर आप और नीलम अपने रूम में मज़ा करना। शाम को हम दोनों अनु को एक साथ चोदेंगे और रात में फिर आप और नीलम… मैं और अनुजा… आपकी कुछ और मर्ज़ी हो तो बताईये।’
मैं बोला- नहीं, जैसा तुम कहो, मेरे लिये ठीक है… लेकिन पहले अनुजा से तो पूछ लें वो मुझसे चुदाई करवाने को तैयार है या नहीं… उसकी मर्ज़ी होगी तभी मैं उसकी चूत पेलूंगा। विक्रम ने कहा- हम लोग सब सलाह करके ही आये हैं… फिर भी आप ख़ुद ही पूछ के तसल्ली कर लीजिये।
मैंने अनुजा से पूछा- क्यों अनु, तुम मेरे साथ सम्भोग खुशी से चाहती हो या किसी दबाव में ज़बरदस्ती करना पड़ रहा है? अनुजा ने धीरे से सिर हिला के दर्शाया कि हाँ वो भी चुदाई चाहती है। मैं बोला- चलो अच्छा है, अब तुम अपनी इच्छा के अनुसार मुझे चोद दो। मैं ख़ुद कुछ भी नहीं करूंगा, जो तुम मुझ से करवाओगी मैं वही करूँगा। इस पर अनु बहुत खुश हुई, मेरे पास आकर बोली- मैं आपके हाथ बांध दूं और आँखों पर पट्टी बांध दूं तो कोई प्राब्लम तो नहीं है आपको? मैं बोला- अनु रानी, कोई प्राब्लम नहीं है… तुम जैसे दिल चाहे मुझे चोद डालो।
विक्रम ने हंस के कहा- सर इसे बड़ा मज़ा आता है ऐसी चुदावट में… कई बार मुझे भी इसने इसी प्रकार चोदा है… बहुत मज़ा आयेगा आपको। मैंने अनु से कहा- ठीक है… लेकिन अब तुम मुझे आप कह कर नहीं बुलाओगी… तुम या तू ही कहना है… मैं तो तू ही कह कर पुकारूंगा… दूसरे मैं तुझे अनु रानी कहूंगा क्योंकि मैं अपनी हर गर्ल फ्रेंड को रानी ही कहता हूँ।
अनु रानी ने अपने बैग में से दो स्कार्फ निकाले, एक से उसने मेरे हाथ पीठ के पीछे बांध दिये और दूसरे को उसने मेरी आँखों पर बांध दिया, फिर वो मेरे कान में फुसफुसाई- अब ध्यान से सुन… अब तू मेरा ग़ुलाम है और मैं तेरी मालकिन… अब जो मैं कहूँगी तुझे वही करना है… समझ गया या नहीं? ‘समझ गया अनु रानी… मैं हूँ तेरा ग़ुलाम !’ मैंने कहा।
चट से अनु रानी का एक मुक्का, जो उसके मुलायम हाथों से फूल जैसा महसूस हुआ, मेरी छाती पर पड़ा- ऐसे जवाब देते हैं अपनी मालकिन को? बोल कि हाँ हाँ मैडम मैं आपका ग़ुलाम हूँ और आपका हुकम का ताबेदार हूँ। ज़रा गलती करूँ तो मैडम मुझे सख्त सज़ा दें।
मैंने खुश हो गया कि ऐसी ज़ोरदार लौंडिया आज चोदने को मिल रही है। आज तो कुछ कमाल ही होगा ऐसा मुझे दिखना शुरू हो गया था। मैंने मस्ता के जवाब दिया- हाँ हाँ मॅडम रानी… आप मेरी मालकिन हैं… आप मेरी सब कुछ हैं… आपका हुकम मैं बिना शर्त मानूंगा… कभी पलट के जवाब नहीं दूंगा… आप ही मेरी ज़िंदगी और मौत का फैसला करेंगी… मेरा पूरा शरीर और मेरी जान अब से आपके हवाले है।
‘हाँ अब ठीक है… तू होशियार ग़ुलाम है… जल्दी समझ गया बात को… इसलिये खुश होकर तुझे यह हक़ देती हूँ कि तू अपनी मालकिन को तू या तुम कह सकता है… कभी देखी है ऐसी मालकिन जो अपने दास को तू कहने कि इजाज़त दे दे? और हाँ तू मुझे रानी भी कह सकता है।’
इसके बाद अनु रानी ने एक एक करके मेरे सभी कपड़े उतार दिये और मेरा अकड़ा हुआ लंड देख कर बोली- लोला तो खासा लम्बा मोटा है मेरे ग़ुलाम का… अच्छा मज़ा रहेगा… एक बात सुन ले कान खोल के… अगर मेरे से पहले तू खलास हो गया तो तेरे टट्टे मसल मसल कर उनका कीमा बना दूँगी।’ इतना कह कर अनु रानी मेरे लंड को पकड़ के खींचती हुई मुझे कहीं ले गई।
जब उसने मुझे लेट जाने को कहा और ठंडा ठंडा फर्श मेरे बदन को लगा तो मेरी समझ में आया कि वो मुझे बाथरूम में ले गई थी। जब मैं लेट गया तो मेरी नाक पर अनु रानी ने अपनी झांटें सटा दीं, एक बड़ा घना गुच्छा था बालों का। उसकी बहन नीलम रानी का भी एक बहुत घना घुँघराली झांटों का गुच्छा था जिसमें मुंह रगड़ के बड़ी उत्तेजना बढ़ जाती थी।
अनु रानी झांटें मेरे मुंह और नथुनों से घुमा घुमा के रगड़ने लगी और साथ ही साथ उसकी चूत की सुहावनी गंध भी मेरे नाक में बस गई, मैं तो दीवाना हो चला था। तभी अनु रानी ने कहा- सुन राजे… थोड़ी देर तू मेरी झांटों के जंगल की हवा खा… फिर मैं तेरे को अपनी चूत का अमृत नंबर एक पिलाऊँगी… तुझे पता है अमृत नंबर एक क्या है?
‘मैडम रानी जब तू गरम हो जाती है तो बुर से जो रस निकलता है उसे अमृत नंबर एक कहते हैं।’ तपाक से फूल जैसे कोमल हाथों का एक मुक्का मेरे कंधे पर पड़ा। ‘अगर पता नहीं है तो बोलता क्यों नहीं? गलत सलत जवाब तेरी मालकिन को ज़रा भी पसनद नहीं हैं।’ अनु रानी ने डांटा।
‘मैडम रानी, माफी दो… आगे से नहीं गलत बोलूँगा… अगर पता नहीं तो पूछ लूंगा।’
‘देख मेरे बेवकूफ दास… चूत का अमृत तीन प्रकार का होता है… चल तुझे एक और हिंट देती हूँ… शायद तेरी गधे जैसी अक़्ल में आ जाये… रस नंबर दो चूत के भीतर फफक फफक कर निकलता है… ले चख के देख।’ इतना कह के अनु रानी ने अपनी बुर मेरे मुंह से चिपका दी। बुर बिल्कुल भीगी हुई थी, तुरंत रस मेरे मुंह मे आ गया जिसे मैंने खूब मुंह के अंदर घुमा घुमा के मज़े से पिया। लंड अब अकड़ अकड़ कर दुखने लगा था।
‘अच्छा अब बता, अमृत नंबर एक क्या है?’ ‘माहवारी का खून?’ मैंने उत्तर दिया। फौरन दो फूल जैसे मुक्के फिर मेरी छाती पर पड़े।
‘ओ… ओ… ओ… मेरे महा मूर्ख गुलाम… वो अमृत नंबर तीन होता है।’ ‘अब मैडम रानी पिलाओ तो बताऊँ !’ मैं चूत रस नंबर दो का लुत्फ उठता हुआ बोला।
मेरी नथनों में उसकी रसरसाती हुई चूत की मतवाली गंध समाये जा रही थी, जो मेरे तन बदन में भड़की हुई वासना की आग को और हवा दे रही थी। यह लौंडिया जो वो मेरे साथ खेल खेल रही थी उसमें मुझे बड़ा मज़ा आ रहा था, ऐसा खेल पहली बार किसी चुदक्कड़ लड़की ने मेरे साथ खेला था।
अनु रानी ने हंसते हुए कहा- साले हरामी… बहुत चालू है मेरा ये ग़ुलाम… भोसड़ी का… बहुत ज़्यादा चालू है… पिला दूँगी तो बता ही देगा। बिन पिये बताये तो जानूँ?’
मैंने कहा- मैडम रानी जी… तेरा अमृत नंबर एक मेरे खयाल से तेरा स्वर्ण रस ही है… ये वो रस है जो चूत के भीतर से नहीं बल्कि उसके बाहर ऊपर की तरफ एक छेद से एक धारा के रूप में निकलता है… जबकि अमृत नंबर दो फफक फफक के निकलता है और अमृत नंबर तीन सिर्फ हर महीने पांच दिन ही निकलता है… ठीक जवाब दिया ना रानीजी?’
‘वेरी गुड !’ अनु रानी ने प्रसन्न होकर कहा- बिल्कुल सही जवाब… इसके इनाम में मैं तुझे अपने पैर चाटने की इजाज़त दे दूंगी… पर पहले तू अपनी मालकिन का अमृत नंबर एक या कह लो स्वर्ण रस चख… बहनचोद सुबह से रोक के रखा हुआ है… पेट फटने को हो रहा है। इसके साथ ही अनु रानी के स्वर्ण रस की एक तेज़ धार मेरे मुंह पर पड़ने लगी।
मैंने मुंह पूरा खोल दिया और जितना हो सकता था उतना मैं अमृत का पान करता गया। अनु रानी हिला हिला कर धारा मेरे पूरे चेहरे और छाती पर फैला रही थी। काफी कुछ मेरे मुंह में भी जा रहा था परंतु सारा नहीं। अपने बदन पर, अपने चेहरे पर स्वर्ण रस की बौछार पहली बार पड़ी थी।
पिया तो मैंने हर उस लड़की का है जिसे चोदा है, मगर मुझे कभी अपने शरीर पर बरसवाने का आइडिया नहीं आया। उसका आठ दस घंटों से रोके गये रस का ज़ायका… क्या कहने… उस गर्म गर्म गाढ़े रस ने मेरी आत्मा तक को मस्त कर दिया। लंड तो हुमक हुमक कर पागल हुआ जा रहा था। उत्तेजना की पराकाष्ठा हो गई थी। उस मस्त कर देने वाले रस में भीग कर लगता था मेरा जीवन सफल हो गया।
काफी देर धार मारने के बाद आखिर उसका रस का लोटा खाली हो गया। फिर अनु रानी ने अपनी चूत मेरे मुंह से रगड़ रगड़ कर पोंछी। ‘क्यों… मज़ा आया मेरे इस हरामी गुलाम को?’ अनु रानी ने पूछा।
‘रानीजी मैं आपका बड़ा शुक्रगुज़ार हूँ कि अपने इस नाचीज़ को इस लायक समझा कि आपका अमृत नंबर एक का स्वाद चख सके… वाकयी में बेहद मज़ा आया… रानीजी आप तो जब तक यहाँ हैं, बाथरूम जाओ ही नहीं… जितनी दफा भी ज़रूरत हो, आपका गुलाम आपकी सेवा में हाज़िर है।’ मैंने सच्चे दिल से कहा।
तभी मेरे होठों पर एक पैर फिराया गया। रेशम सा चिकना, स्पंज सा मुलायम वो पैर जैसे ही मेरे मुंह और नाक के बीच में रखा, मेरी नाक में अनु रानी के सैण्डल के चमड़े की हल्की हल्की सी गंध आई।
मदमस्त होकर मैंने जीभ निकाल के अनु रानी के पंजे को खूब चाटा। बीच बीच में वो पूरा पंजा मुंह के अंदर घुसा देती थी, तो उस समय मैं पंजा चूसता, एक एक करके अंगूठे और उंगलियों पर जीभ फिराता, उंगलियों के बीच के स्थान को चाटता, मेरा मुंह पानी से भरे जा रहा था। अनु रानी ने इसी प्रकार अपने दोनों पैर चटवाये।
मैंने उसके मुलायम मुलायम तलवे चूसे, उतने ही मुलायम एड़ी पूरी मुंह में लेकर चूसी। जब जब अनु रानी ने मौक़ा दिया मैंने उसके टखने भी चाट लिये। अब अनु रानी के मुंह से भी उत्तेजना से भरी हुई सीत्कार आने लगी थी, लगता था कि यह लड़की अपने पैर चटवा कर और स्वर्ण रस पिला के बेहद उत्तेजित होती है।
हर लड़की का गरम होने का अलग अलग सिस्टम होता है। शायद उसका पति यह सब नहीं करता होगा। शायद इसीलिये अनु रानी अपनी ख्वाहिशें मेरे साथ पूरी करना चाहती थी। उसकी बहन नीलम रानी ने उसे ज़रूर बता ही दिया होगा कि मैं कितना चोदू हूँ और मैं कितना ज़्यादा अपनी गर्ल फ्रेंड को मज़ा देता हूँ।
‘राजे राजे राजे… पता नहीं तू मेरा गुलाम है या मैं तेरी गुलाम बनने वाली हूँ। इतना मज़ा !!! हाय… हाय… बस बदन जल के स्वाहा हो जायेगा मेरा !’ अनु रानी इतनी गर्म हो चुकी थी कि उस से बोला भी नहीं जा रहा था।
वो भी मेरे ऊपर आ गई और उसकी नर्म नर्म गर्म गर्म गोल गोल फ़ूली हुई चूचियाँ मेरे लंड को बीच म़ें लेकर लंड को मसलने लगीं। फूल सी नाज़ुक चूचियों अपने इधर उधर पाकर लौड़े की तो ऐश लग गई। वो बार बार तुनक तुनक के अनु रानी को सलामी देने लगा।
कहानी जारी रहेगी।
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