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शाम सात बजे के क़रीब अनु रानी ने फोन करके पूछा कि हम तैयार है या नहीं। हम तो तैयार ही थे, दोनों उठकर साथ वाले अनु रानी के रूम में चले गये।
अनु रानी और विक्रम दोनों नंगे थे, शायद उन्होंने कपड़े पहने ही नहीं दोपहर की चुदाई के बाद, विक्रम आराम से पसरा हुआ था बेड पर, शायद वो दोनों लिपटे हुए पड़े थे, अलग होना पड़ा क्योंकि अनु रानी को दरवाज़ा खोलने उठ के आना पड़ा।
विक्रम बोला- चलिये अब आप दोनों भी फटाफट कपड़े उतर दीजिये… मेरा पहला काम तो सर ने दिन में कर दिया अनु को मेरे सामने चोद के… अब दूसरा करें… हम दोनों चोदें अनु को ! नीलम रानी ने कहा- मैं नहीं उतारूंगी… मेरी तबियत ठीक नहीं है… मैं सिर्फ केमरामैन का काम करूँगी। इतना कह कर उसने तो कैमरा संभाल लिया और मैं अपने सारे कपड़े उतार डाले, अब मैं भी मादरजात नंगा था।
अनु रानी सोफे पर जा बैठी और फिर उसने इतराते हुए कहा- पहले मैं तुम दोनों को एक बार झाड़ूँगी… नहीं तो ठरक से भरे हुए दोनों मुझे बहुत तंग करोगे… चलो दोनों मेरे पास आ जाओ अच्छे बच्चों की तरह… अपने अपने लण्ड मेरे मुंह के पास ले आओ.. सुपारे होंठों के पास !
हम अनु रानी के एक इस तरफ़ और दूसरा उस तरफ़ खड़े हो गये, दोनों के लण्ड पूरे अकड़ चुके थे और आसमान की तरफ सुपारे निशाना साधे थे। अनु रानी ने कहा- हाँ ठीक है… जो पहले झाड़ेगा वो मेरी गाण्ड लेगा और देर वाला मेरी बुर… फिर जो बुर लेने वाला मेरी गाण्ड मारेगा और गाण्ड लेने वाला चूत लेगा… मंज़ूर है ये दोनों गुलामों को?
मैं बोला- हाँ रानी तुम्हारा हर फैसला मंज़ूर ! विक्रम ने भी हामी में सिर हिलाया। और फिर अनु रानी ने पहले तो दोनों लौड़ों के टोपों को चमड़ी पीछे खींच कर नंगा किया फिर जीभ निकाल कर एक एक करके दोनों टोपे चाटे। काफी देर तक उसने सुपारियाँ खूब जीभ गीली कर कर के चाटीं और फिर जल्दी जल्दी बारी बारी से एक लण्ड और फिर दूसरा लण्ड मुंह में लेकर चूसना शुरू कर दिया। वो विक्रम का नौ इंच लम्बा लौड़ा भी पूरा का पूरा मुँह के भीतर ले लेती थी, बड़ी आश्चर्यजनक बात थी !
यह कहानी आप अन्तर्वासना डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं ! उसने दोनों में से किसी को भी ज़्यादा देर तक बिना चूसे नहीं रहने दिया। पहले मेरा फिर विक्रम का… मेरा… विक्रम का। क्या ज़बरदस्त चुसाई की है अनु रानी ने दो दो लौड़ों की। हम दोनों आहें भर रहे थे।
फिर विक्रम की बस हो गई और वो एक ऊँची आवाज़ में सी सी करता हुआ झड़ गया, ढेर सारा वीर्य उसने निकाला, उसका वीर्य मेरे से पतला था और एक बौछार के रूप में निकाला, उसने अनु रानी का पूरा चेहरा अपनी धार से सान दिया।
जब निकालना बंद हो गया तो अनु रानी ने उंगली से अपना चेहरे पर पड़ा हुआ सारा वीर्य इकट्ठा किया और मुंह में डाल लिया। फिर अनु रानी ने मेरे लण्ड पर ध्यान देकर उसे बड़े अच्छे से चूसा, थोड़ी देर के बाद मैं भी झड़ गया। मेरा मक्खन एक धार के रूप में नहीं बल्कि मोटे मोटे गाढ़े गाढ़े थक्कों में निकलता है, मेरा सारा लावा अनु रानी के मुंह में गया।
अनु रानी सब पी गई और बोली- मज़ा आ गया… दोनों की मलाई बड़ी स्वाद है… दोनों का टेस्ट भी अलग अलग है… लेकिन हैं दोनों ही अच्छे स्वाद के… चलो गुलामों अब आधे घंटे आराम करो… फिर विक्रम मेरी गाण्ड लेगा और राजे मेरी चूत ! अनु रानी को नंगी देख कर किसी भी मर्द का लण्ड फौरन खड़ा होना तो स्वभाविक था ही।
जैसे ही बाथरूम से तारो ताज़ा वापस आई उसके बड़े बड़े तने हुए मम्मे, उसके लहराते हुए बाल, उसकी सुडौल टांगें देखते ही लौड़े ने सलामी ठोकी। विक्रम का भी लण्ड अकड़ चुका था और वो अपने अंडे सहला रहा था। मैंने कहा- विक्रम तुम अनु रानी के बदन का पीछे का भाग चाटो और मैं आगे का। जब तक यह गर्म होकर बेहाल ना हो जाये लण्ड घुसाना नहीं है। विक्रम बोला- ठीक है।
मैंने अनु रानी के पैरों से शुरू किया, उसके पैर बहुत सुन्दर थे, नाखून भी खूबसूरत और बस ज़रा ज़रा से बढ़ाये हुए। कोई नेल पोलिश नहीं लगाई हुई थी। मैंने पहले तो दोनों पैर चाटे, फिर दसों उंगलियाँ मुंह में लेकर मज़े से चूसी। विक्रम शायद पैर चाटने में ज़्यादा दिलचस्पी नहीं रखता था क्योंकि वो सीधा उसकी जाँघों के पिछले भाग पर पहुंच गया था।
अनु रानी का आगे का सारा शरीर चाट चाट के मज़ा देता हुआ और मज़ा लेता हुआ मैं उसकी छाती तक आ गया। बड़े प्यार से कुछ देर तो मैंने दोनों चूचियों को सहलाया, दबाया व निचोड़ा, और उसकी बड़ी बड़ी सख्ताई हुई निप्प्लों को भींचा मसला।
जब देखा अनु रानी मचलने लगी है तो मैंने चूची चूसनी शुरू कर दी, बारी बारी से दोनों उरोज चूसे और चुचूकों को चूसा भी चाटा भी और काटा भी। अनु रानी चिंहुक चिंहुक के आहें भर रही थी और सी सी कर रही थी। उसके आगे पीछे दोनों तरफ़ से इतनी उत्तेजना मिल रही थी कि वो संभल ही नहीं पा रही थी।
मैंने अनु रानी की बुर में उंगली डाली, उंगली भीग के तर हो गई क्यूंकि चूत रस से पूरी भर चुकी थी। मैंने उंगली ऊपर को टेढ़ी करते हुए उसकी भगनासा को धीरे से कुरेदा तो एकदम वो उछल पड़ी और घुटी घुटी आवाज़ में बोली- हरामज़ादों अब घुसाओगे भी या तड़पाते ही जाओगे रात भर? राजे तू पहले बैठ बेड पर, टांगें चौड़ी कर के बैठ और घुसा दे।
मैं टांगें फैला के बैठ गया। मेरे पैर ज़मीन पर थे और मैं पीछे को अपने हाथों पर टिका हुआ था। अनु रानी ने अपने घुटने मेरे आज़ू बाज़ू जमाये, अपने हाथ मेरे कंधों पर जमाये और चूत को सही पोज़ीशन में लण्ड के सुपारी पर सेट कर के नीचे को होती चली गई। जब लण्ड पूरा घुस गया तो उसने विक्रम से कहा- मैं चूतड़ ऊपर को उठाती हूँ… तू पहले खूब सारा तेल चुपड़ लण्ड पर और फिर ठूंस दे मेरी गाण्ड में !
विक्रम ने ओलिव आयिल की शीशी तैयार रख छोड़ी थी, उसने खूब ढेर सारा तेल अपने लण्ड पर लबेड़ लिया और फिर उसने दो मोटे मोटे तकिये फर्श पर रखे। वो घुटनों के बल उन पर बैठ गया, उसका लम्बा लण्ड अनु रानी की गाण्ड के सामने था। विक्रम ने अनु रानी की गाण्ड थोड़ी सी और ऊपर उठाई और जब उसकी तसल्ली हो गई तो उसने लण्ड घुसाना शुरू किया।
मुझे पता है गाण्ड में लौड़ा घुसाना थोड़ा कठिन है क्योंकि गाण्ड बहुत टाइट होती है और चूत की भांति लचीली भी नहीं होती। विक्रम ने लण्ड अनुरानी की गाण्ड में जैसे ही लण्ड पेलना शुरू किया, चूत तंग महसूस होने लगी क्योंकि एक तो मेरा मोटा लौड़ा जड़ तक ठुका हुआ था और विक्रम के लण्ड घुसने से बुर के पीछे की तरफ से ज़ोर का दबाव पड़ने लगा।
ज्यों ही विक्रम का मूसल पूरा गाण्ड में घुस गया तो चूत एक कुंवारी लड़की की बुर से भी अधिक टाइट हो गई। लण्ड अब उसमें फंसा हुआ लग रहा था, लौड़े को सब तरफ से भिंच के बहुत आनन्द आ रहा था, अनु रानी ने ज़ोरों से ‘आ… आ… आ… हहह..’ की जब नौ इंच का लौड़ा गाण्ड में पूरा का पूरा अंदर तक समा गया।
अब वो दो लण्डों के बीच में लटकी हुई थी। हाय हाय करके अनु रानी ने मज़े में आकर सीत्कार पर सीत्कार भरी। हमने धीरे धीरे से धक्के मारने शुरू किये। जब विक्रम लण्ड बाहर खींचता तो मैं अपना अंदर घुसाता और जब मैं लण्ड को पीछे लेता तो विक्रम लण्ड को ठा करके अनु रानी की गाण्ड में गाड़ देता। हम दोनों भी इतना मज़ा पा रहे थे जिसका कोई वर्णन करना असंभव है। ऐसा मज़ा तो अनुभव करके ही जाना जा सकता है।
मेरे लिये यह पहला मौका था जब मैं और एक और मर्द एक लड़की को एक साथ चोदे जा रहे थे। मैंने अनु रानी की चूचियाँ जकड़ रखी थीं जबकि विक्रम ने उसके मुलायम मुलायम चूतड़ थाम रखे थे, जिन्हें वो खूब निचोड़ रहा था।
कुछ देर ऐसे चलने के बाद विक्रम ने अपनी धक्के तेज़ कर दिया जबकि मैं अभी भी धीरे धीरे ही धकेल रहा था। इससे मज़ा एकदम से कई गुना बढ़ गया, हमारे लिये भी और अनु रानी के किये भी। हमारे दोनों के धक्कों की स्पीड अलग अलग होने से यह हुआ कि कभी तो दोनों लण्ड एक साथ पूरी तेज़ी से एक साथ घुस जाते या बाहर को आते। चूत अचानक से पूरी फ़ैल जाती या एकदम संकरी हो जाती। कभी ऐसा होता कि मेरा लण्ड अंदर होता और उसका बाहर या मेरा बाहर उसका अंदर, तब चूत व गाण्ड कुछ काम संकरी हो जाती।
अनु रानी ने मस्ती में मतवाली होकर बकना शुरू कर दिया- हाय हाय… सालों… चूतियों… और ज़ोर से पेलो… हाँ हाँ राजे अब तू तेज़ धक्के मार… हाँ हाँ… और तेज़ राजे और तेज़… विक्की तेरी स्पीड भी तेज़ कर… दोनों पूरे ज़ोर से ठोको… हाय राम… आज तो मज़े के मारे मैं मर ही जाऊंगी… हरामियों… बस चोदे जाओ मशीन गन की तरह… चोद चोद चोद… हाँ हाँ हाँ हाँ… हाय… उई मां..आज क्या होगा मेरा… साथ साथ अनु रानी ने भी बड़ी तेज़ रफ़्तार से अपने चूतड़ उछालने शुरू कर दिये, धक धक… धक धक… धक धक… धक धक।
अनु रानी की चूत रस यूं बहा रही थी जैसे कि कोई झरना, उसकी सुरंग का पानी रिस रिस कर उसकी जाँघों से होता हुआ नीचे गिरने लगा था। तभी विक्रम ने एक ज़ोर से ए..ए..ए..ए..ए..एह की आवाज निकाली और वो झड़ गया, उसने पांच सात धक्के बड़े ज़ोर के मारे और फिर ढीला हो गया।
उसके लण्ड के बैठते ही चूत एकदम से थोड़ी सी खुल गई क्योंकि विक्रम के लण्ड का दबाब घट गया था। जैसे ही अनु रानी ने मज़ा लेते हुए चूत में लपलप की, तुरंत ही उसका लण्ड पिच्च से बाहर फिसल गया अपने ही वीर्य में लिबड़ा हुआ। अनु रानी ने अब बिजली की तेज़ी से धक्के लगने शुरू कर दिये, वो अब बस स्खलित होने ही वाली थी, फच्च फच्च की ज़ोर की आवाज़ें ने कमरे को गूंजा दिया।
मैं भी झड़ने के क़रीब ही था, एक सुरसुरी मेरी रीढ़ में ऊपर से नीचे लहरानी चालू हो गई थी। यह लहर फिर एकदम से रीढ़ से लण्ड में आ गई और एक ज़ोर की आह भरते हुए मेरा लण्ड दनादन लावा छोड़ने लगा। पहला शॉट पड़ते ही अनु रानी भी चरम सीमा के पार हो गई। चूत के अंदर रस की फुहार छूटने लगीं और राजे राजे राजे पुकारती अनुरानी एकदम निढाल हो कर मेरे गोद में ढह गई।
लगता था कि वो कई बार धड़ाधड़ झड़ी है। थोड़ी देर के बाद उसे थोड़ा होश सा आया तो लण्ड बाहर फिसल के आ चुका था और चूतिये सा लटका पड़ा था, अनु रानी के चूतरस और मेरी मलाई में सराबोर।
अनु रानी ने दोनों लुल्लों को चाट चाट कर साफ कर दिया और फिर वो बोली- चलो दोनों अब मेरे को भी अच्छे से साफ करो अपनी जीभ से ! विक्रम ने अनु रानी की गाण्ड और मैंने उसकी चूत खूब भली प्रकार चाट के साफ की। फिर हम तीनों बेड पर लेट गये थोड़ा सा आराम करने के लिये।
नीलम रानी ने चेक कर के बताया कि फिल्म एकदम फर्स्ट क्लास आई है। हमने क़रीब एक घंटा आराम किया और फिर विक्रम ने वाइन की एक बोतल फ्रिज से निकाल कर खोली। उसने अनु रानी से कहा कि वो सीधे लेट जाये और अपनी टांगें एक के ऊपर एक कर ले।
जब उसने ऐसा किया तो जो एक गहरी से जगह अनु रानी के घुटनों और जाँघों के बीच बन गई थी उसमें वाइन डाल दी। क़रीब एक चौथाई बोतल की वाइन उस छोटी सी दिखने वाली जगह में समा गई। फिर हम दोनों ने कुत्ते की तरह मुंह डाल डाल के वो वाइन पी और अनु रानी को भी पिलाई, मैं अपने मुंह में एक बड़ा सा घूंट वाइन का भरता और उसे अनु रानी के मुंह में डाल देता।
इसी तरह विक्रम एक घूंट खुद पीता और एक घूंट अनु रानी के मुंह में डालता। इस प्रकार हम तीनों ने पूरी बोतल वाइन खत्म कर दी। हमको वाइन थोड़ी थोड़ी चढ़ भी गई थी। अब मेरा नंबर था अनुरानी की गाण्ड मारने का, बड़े मज़े से मैंने उसकी गाण्ड ली और विक्रम ने उसकी चूत मारी। यह वाला सेशन भी बड़ा मस्त गया पहले की भांति। अनु रानी कई कई बार चरम आनन्द को भोग पाई।
मुझे और विक्रम को भी बेतहाशा मज़ा आया एक ही लड़की को साथ साथ चोदने में। रात को डिनर के बाद अनु रानी ने फिर से एक बार दोनों को लण्ड चूस कर झाड़ा। इसके बाद मैं और नीलम रानी अपने रूम में आ गये। नीलम रानी की तबियत ठीक ना होने के कारण हमने चुपचाप सो जाना ही ठीक समझा, वैसे भी दोपहर के बाद से छह बार झड़ कर मैं भी पस्त हो चुका था और सोने के ही मूड में था।
पाठको, यदि कभी एक ही लड़की को इस प्रकार किसी और मर्द के साथ चोदने का मौक़ा मिले तो भूल से भी खोना नहीं, बेहद आनन्द आता है। अगले दिन मैं नीलम रानी के हिसाब से कैसे चुदा, इसका ब्यान मैं अगले अंक में करूंगा।
चूत निवास
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