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लेखक : विवेक सम्पादन : तृष्णा प्रिय अन्तर्वासना के पाठकों कृपया मेरा अभिनन्दन स्वीकार करें! मेरी पिछली रचना ‘बुआ का कृत्रिम लिंग’ और ‘बुआ को मिला असली लिंग’ को पढ़ने और उसे पसंद करने तथा उन पर अपनी प्रतिक्रिया अथवा टिप्पणी भेजने के लिए बहुत धन्यवाद! कई पाठकों ने उस रचना के लिए मेरी प्रशंसा की थी जिसका मैं बिल्कुल भी हक़दार नहीं हूँ! मैं उन पाठकों को बताना चाहूँगा की उस प्रशंषा की असली हकदार मेरी गुरु ‘लेखिका श्रीमती तृष्णा जी’ है जिनके सहारे ही मैंने वह रचना लिखने की हिम्मत जुटा पाया था! आज भी जो रचना मैं लिख कर अन्तर्वासना पर प्रकाशित कर रहा हूँ उसे भी मेरी गुरु श्रीमती तृष्णा जी ने ही सम्पादन और सुधार कर के त्रुटि-रहित किया है। आपका और अधिक समय व्यर्थ नहीं करते हुए अब मैं अपनी इस नई रचना का विवरण प्रारंभ करता हूँ। अपने बारे में तो मैं आप सबको अपनी पहली रचना में बता ही चुका हूँ। मैंने पिछले दो वर्षों से अपनी बुआ के साथ अभी भी यौन सम्बन्ध बना कर रखे हुए हैं और हम दोनों अधिकतर हर दूसरे दिन संध्या अथवा रात के समय यौन संसर्ग कर लेते हैं! लेकिन जब से मैं पिछले वर्ष की ग्रीष्म ऋतु की छुट्टियों के कुछ दिन अपने गाँव में बिता कर आया हूँ तब से मुझे बुआ में दिलचस्पी कुछ कम होने लगी है! मैं अब सिर्फ बुआ का दिल रखने के लिए और उसकी संतुष्टि के लिए तथा अपने पजामे को खराब होने से बचाने के लिए ही मैं उसका साथ देता हूँ! बुआ में मेरी दिलचस्पी की कमी और पजामे को खराब होने से बचाने का कारण थी गाँव में घटी वह घटना जिस का विवरण मैं अपनी नीचे लिखी इस रचना में कर रहा हूँ! पिछले वर्ष मई के माह में मेरे दादा जी और दादी जी दो सप्ताह के लिए हमारे पास रहने के लिए आये थे! जब वे गाँव वापिस जा रहे थे तब माँ और पापा ने मुझे भी उनके साथ गाँव भेज दिया। उन्होंने कहा कि गाँव में मेरे दो चाचा दादा जी के साथ एक संयुक्त परिवार में रहते हैं इसलिए ग्रीष्म ऋतु की छुट्टियों में मुझे भी कुछ दिन गाँव में रह कर उस संयुक्त परिवार का अनुभव लेना चाहिए। इच्छा न होते हुए भी मैं दादा जी और दादी जी के साथ एक माह के लिए गाँव में रहने के लिए चला गया। गाँव में हमारा पारिवारिक घर एक बहुत बड़ी दो मंजिला इमारत में है। नीचे की मंजिल में एक बड़ी बैठक, एक छोटी बैठक, एक भोजन कक्ष, दो शयन-कक्ष थे जिनके साथ दो स्नानगृह एवं शौचालय संलग्न हैं। एक रसोई घर और एक बड़ा सा आँगन भी है। ऊपर की मंजिल में एक बड़ा हाल कमरा और चार शयन-कक्ष थे और हर एक कमरे के साथ स्नानगृह एवं शौचालय संलग्न हैं। नीचे वाले दो शयन-कक्ष में से एक में दादा जी और दादी जी सोते थे और दूसरा शयन-कक्ष मेहमानों के लिए है। ऊपर की मंजिल के चार शयन-कक्ष तीनों भाइयों के लिए हैं जिन में से दो शयन-कक्ष में मेरे दोनों चाचा-चाची सोते हैं। तीसरा शयन-कक्ष मेरे पापा और माँ के रहने के लिए तथा चौथे-शयन-कक्ष में मेरी दो चचेरी बहनें सोती थी। घर में निवास करने वाले मेरे दो चचेरे भाई बड़े हाल कमरे के एक तरफ बिछे हुए दो सिंगल बैड पर सोते थे। उन्हीं के बैड के साथ ही एक डबल बैड बिछे बिस्तर पर मेरे सोने की व्यवस्था की गई थी। मेरे गाँव पहुँचने पर घर के सभी सदस्यों ने मेरी बहुत आव-भगत करी और दादा जी के निर्देश पर बड़ी चाची ने मेरी हर आवश्यकता की व्यवस्था खुद ही की और सुनिश्चित भी किया कि मुझे कोई असुविधा नहीं हो। मेरी बड़ी चाची थोड़ी कठोर स्वभाव की हैं क्योंकि घर की सारी व्यवस्था का उत्तरदायित्व उन्ही परखै। घर में बड़ी चाची की किसी भी बात का कोई विरोध नहीं करता और जो वे कहती थी उसे नियम अनुसार किया जाता है, उस कठोरता के अन्दर छिपी कोमलता का एहसास मुझे तब हुआ जब उन्होंने मुझे अपने गले लगा कर मेरा स्वागत एवं अभिनन्दन किया था! मेरी बड़ी चाची दिखने में किसी अप्सरा से कम नहीं हैं और उनका कद पांच फुट पांच इंच है, भरा हुआ बदन गोरा है। उनके नैन-नक्श बहुत ही आकर्षक हैं और लम्बी सुराहीदार गर्दन उनकी जिस्मानी सुन्दरता को चार चाँद लगाती है। उनके उभरे हुए बड़े बड़े उरोज, उनको देख कर उन्हें छूने तथा चूसने को दिल करता है। वे जब चलती हैं तो उनके मटकते नितम्ब को देख कर ऐसा लगता है कि जैसे कोई तराजू में कोई सामान तोल रहा हो ! वे बहुत ही सादगी से रहती हैं और अधिकतर साड़ी या सलवार कमीज़ ही पहनती है। मेरी बड़ी चाची की उम्र पैंतीस वर्ष है और उनके दो बच्चे हैं, एक लड़का और एक लड़की ! मुझे याद है कि उनकी शादी लगभग सत्रह वर्ष पहले हुई थी और तब उनकी आयु शायद अठारह वर्ष की थी। क्योंकि चाची ने शादी के पहले वर्ष में ही के बेटे को जन्म दिया था और दूसरे वर्ष में लड़की को इसलिए उन दोनों की आयु 16 वर्ष और 15 वर्ष है। मुझे गाँव में आये हुए अभी तीन दिन ही हुए थे कि मुझे पता चला कि मेरी बड़ी चाची के लड़के की अचानक तबियत खराब हो गई। जब डॉक्टर को दिखाया तो पता चला की उनकी गुर्दे में संक्रमण की तकलीफ थी और अगर उसका शीध्र ही सही उपचार नहीं हुआ तो गुर्दे के खराब होने का अंदेशा भी था। डॉक्टर ने जो उपचार और दवाइयाँ बताई उस से उसकी तबियत ठीक होने में दो से तीन माह का समय लग सकता था। बड़ी चाची बेटे के स्वास्थ को ले कर बहुत ही चिंतित थी क्योंकि डॉक्टर ने तीन सप्ताह के लिए उनके बेटे को चलने फिरने के लिए बिल्कुल मना कर दिया था और बिस्तर पर लेटे रहने के लिए ही कह दिया था। यहाँ तक की उसे गुसलखाने और शौचालय जाने के लिए भी मना कर दिया गया था। डॉक्टर ने चाची को विशिष्ट निर्देश दिया था कि उसकी साफ़ सफाई और उनकी शौच आदि के लिए बिस्तर पर ही व्यवस्था की जाये नहीं तो उसे अस्पताल में भरती करना पड़ेगा ! बड़ी चाची नहीं चाहती थी कि उसका बेटा हस्पताल में भरती हो इसलिए उन्होंने अपने बेटे के लेटने एवं सोने की व्यवस्था मेरे डबल बैड के साथ वाले सिंगल बैड पर कर दी और सारा दिन तथा रात उसकी सेवा में हाज़िर रहती थी। दिन में जब कभी वे बहुत थकी महसूस करती थी तब वे मेरे बिस्तर पर लेट कर विश्राम कर लेती थी लेकिन रात के समय तो उन्हें विवशतावश मेरे बगल वाली जगह पर ही सोना पड़ता था। एक सप्ताह तक चाची की निरंतर देख-रेख और सेवा से उनके बेटे की हालात में कुछ सुधार आना तो शुरू हो गया था लेकिन चाची की चिंता उसी प्रकार ही रही, वे हर रोज़ की तरह सुबह चार बजे उठ जाती और नहा धोकर पूजा करती, फिर रसोई साफ़ करती, गाय का दूध निकाल कर उबालती, बड़े चाचा को चाय बना कर देती और सब के लिए नाश्ते की तैयारी करती ! इस बीच में वे बराबर अपने बेटे को देखभाल के लिए कमरे में आती रहती और जब बेटा जाग जाता तो उसकी नित्य-कर्म की ज़रूरतों को पूरा करने में उसकी मदद करती ! जब सभी नाश्ता कर लेते तब चाची दिन भर के लिए रसोई की ज़िम्मेदारी छोटी चाची को दे देती और वे खुद बड़े चाचा और अपनी बेटी की ज़रूरतों को पूरा करती। बड़े चाचा के काम पर जाने के बाद वे अपने बेटे के पास आ जाती और उसके बदन को गीले कपड़े से पोंछती तथा उसके कपड़े बदलती। फिर वे बेटे के उतारे हुए उन कपड़ों को आंगन में लेजा कर डेटोल के पानी में अच्छी तरह से धोकर सुखा देती थी। अधिकतर वे सारा दिन अपने बेटे की देखभाल के लिए उनकी पास ही बैठी रहती ! दोपहर को जब उसका बेटा सो जाता था तब वे भी मेरे बिस्तर पर कमर सीधी करने के लिए कुछ देर के लिए सुस्ता लेती थी ! इसी प्रकार बड़ी चाची पूरा दिन व्यस्त रहती थी तथा सांझ को बड़े चाचा के घर आने के बाद तो वे फिरकी की तरह पूरे घर में भाग भाग कर अपने परिवार की ज़रूरतें पूरी करती रहती थी। मुझे कई बार उस पर तरस भी आता था क्योंकि सब अपनी ज़रूरतों के लिए उन्हें आदेश देते रहते थे लेकिन उनकी ज़रूरतों का कोई भी ध्यान नहीं रखता था। एक दिन तो हद हो गई जब इसी भाग दौड़ में उनकी पांव में मोच आ गई और वे पूरा दिन दर्द सहती रही और लंगड़ाती हुई सभी की ज़रूरतों के आदेशों का पालन करती रही। दोपहर को जब वे कमर सीधी करने के लिए लेटी तो दबी आवाज़ में कराह रही थी। मुझसे उसका कराहना सहन नहीं हुआ और मैं उठ कर उनकी पास बैठ गया और उनसे कहराने का कारण पूछा। पहले तो उन्होंने कुछ भी बताने से इनकार कर दिया लेकिन मेरे जोर देने पर उसने अपने पांव में हो रहे दर्द के बारे में बताया। मैं तुरंत उठ कर प्राथमिक चिकित्सा के डिब्बे से ‘आयोडेक्स’ महलम निकाल कर उनके पांव पर अच्छी तरह से मल दी। जब मैं चाची के पांव में मलहम मल रहा था तब मैंने उसकी आँखों में आँसू देखे तो उनसे पूछ बैठा कि क्या उन्हें मेरे जोर से मलने के कारण अधिक दर्द हो रहा था? तब उन्होंने झट से अपने आँसू पोंछ लिए और मुझे अपने गले लगाते हुए कहा कि उनकी दर्द पर मेरे द्वारा दिखाई गई चिंता तथा लगाव को देख कर के उनकी आँखों में से ख़ुशी के आँसू निकल आये थे! सांझ को जब मैंने चाची से उनके पांव के बारे में पूछा तो उन्होंने बताया कि उन्हें पहले से कुछ आराम है। तब मैंने उन्हें कह दिया कि अगर वे रात को एक बार फिर से पांव पर मलहम मलवा लेंगी तो उन्हें सुबह तक पूर्ण आराम मिल जायेगा। चाची ने मुस्कराते हुए मुझे देखा और मेरी बात को सुना अनसुना करते हुए अपने काम में लगी रही। रात को नौ तक जब हम सबने खाना खा लिया तब चाची अपने बेटे और बेटी को सुला कर अपने शयन-कक्ष में चली गई तथा रात दस बजे तक सोने के लिए नहीं आई। उसकी प्रतीक्षा करते करते मुझे नींद आ रही थी जब चाची ने आकर मुझे जगाया और कहा कि उनके पांव में दर्द हो रही है और मैं उस पर मलहम मल दूँ! मैं उठ कर मलहम लाया और उनके पांव की ओर बैठ कर उस पर मलहम मलने लगा। चाची ने नाइटी पहनी हुई थी जो पंखे की हवा में बार बार उड़ कर ऊपर हो जाती थी और जिसे चाची लगातार नीचे कर रही थी। क्योंकि चाची ने नाइटी के नीचे पैंटी नहीं पहनी थी इसलिए एक बार तो नाइटी के कुछ ज्यादा ऊपर उठ जाने से मुझे चाची के जघन्स्थल के दर्शन भी हो गए ! उनकी दोनों बिल्कुल सफ़ेद, चिकनी और सुडौल जांघों के मिलन-स्थल पर योनिस्थल पर उगे हुए गहरे भूरे रंग के बाल बहुत ही सुन्दर एवं आकर्षक लग रहे थे। जब मैं पांव पर मलहम मलना समाप्त करने ही वाला था तब चाची ने अपनी नाइटी को घुटनों तक ऊपर कर दी और मुझसे आग्रह दिया कि उन्हें घुटनों में भी दर्द है इसलिए मैं उन पर भी मलहम मल दूँ ! उनके निर्देश के अनुसार मैं उनके घुटनों पर भी अच्छी तरह से मलहम मल रहा था तब अचानक हवा के एक झोंके से चाची की नाइटी ऊपर उठ गई और उनकी टाँगें चौड़ी होने के कारण उनके जघन बाल के बीच में स्तिथ उनकी योनि साफ़ साफ़ दिखाई देने लगी! इस बार चाची ने भी अपनी नाइटी को ठीक करने की कोई चेष्ठा नहीं करी और उसी तरह लेटी टांगें फैला कर लेटी रही ! हॉल कमरे में सभी गहरी नींद में सो रहे थे इसलिए मैंने कोई प्रतिकिया नहीं की और उनके जघन्स्थल के बालों से घिरी हुई उनकी योनि को निहारते हुए उनके घुटने पर मलहम मलता रहा ! ऐसा मनमोहक दृश्य को देख कर आनन्द के मारे में मेरा लिंग बार बार सिर उठा कर उनकी योनि को सलामी देने लगा था, मेरे मन में उस डबल रोटी की तरह सुन्दर सी दिखने वाली योनि को देख कर उसे छूने की लालसा जाग उठी थी। अपनी लालसा की तृप्ति के लिए मैंने चाची से पूछा लिया कि अगर वे अनुमति दें तो मैं उनकी जाँघों का मर्दन भी कर दूँ। चाची कुछ देर के लिए चुप रही और फिर बोली- ठीक है, तुम मेरी दोनों टांगों की तेल से मालिश कर दो मलहम से नहीं ! तब मैंने चाची से कहा कि वे पैंटी पहन लें क्योंकि नाइटी ऊपर होने के कारण अगर कोई उन्हें इस हालात में देख लेगा तो अच्छा नहीं लगेगा ! मेरी बात सुन कर चाची ने झट से नाइटी नीचे की और उठ कर खड़ी हो गई तथा मुझे अपने साथ उनके शयनकक्ष में चलने को कहा। मैंने महलम की डिब्बी बंद की और उनके पीछे पीछे उनके शयनकक्ष की ओर चल पड़ा ! कमरे में पहुँच कर देखा कि वह खाली था और जब मैंने चाचा के बारे में पूछा तो उन्होंने बताया कि वे दोपहर को किसी काम से तीन-चार दिनों के लिए शहर चले गए थे। इसके बाद चाची ने शयनकक्ष के दरवाज़े को सिटकनी लगा कर बैड पर लेट गई और नाइटी को कमर तक ऊंचा कर मुझे टांगों की मालिश करने के लिए कहा। मैंने उनकी टाँगें चौड़ी करके उनके बीच में बैठ गया और उनकी टांगों पर तेल लगा कर ऊपर से नीचे की ओर अपनी हथेलियों से हल्का-हल्का मर्दन करने लगा! जब भी मैं उनकी जाँघों का मर्दन करता तब अपने हाथ से उनकी योनि को ज़रूर छू लेता ! मेरा ऐसा करने से जब चाची की ओर से कोई आपत्ति या प्रतिक्रिया नहीं हुई तब मेरा साहस बढ़ गया, मैं कई बार उनकी जाँघों के अन्दर की तरफ से मर्दन करते समय उनके भगांकुर को अपनी ऊँगली या अंगूठे से रगड़ देता था! मेरे ऐसा करने पर कई बार चाची सिहर जाती और उनके शरीर में एक कंपकंपी सी हो उठती तथा वे अपनी टाँगें सिकोड़ लेती ! आधे घंटे के बाद मर्दन क्रिया के अंत में मैंने अपनी लालसा की तृप्ति के लिए दो बार उनकी योनि में अपनी एक ऊँगली भी डाल दी लेकिन ऐसा दिखाया कि वह क्रिया गलती से हो गई थी! जब ऊँगली बाहर निकाली तो उसे गीला पाया तब मैं समझ गया की कम से कम एक बार तो चाची का पानी निकल ही गया होगा! जब मैंने मर्दन समाप्त किया तब मेरा लिंग अब एक नाग की तरह फुफकार रहा था! मैंने बहुत ही मुश्किल से अपने लिंग को अपनी टांगों के बीच में दबा कर उठा और शौचालय में जा कर मूत्र विसर्जन किया तथा चाची का नाम ले कर हस्त-मैथुन किया !
कहानी जारी रहेगी।
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तथा मेरी गुरुजी का ई-मेल आई डी है
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