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लेखक : इमरान रसोई से बाहर आ उसने तौलिया लिया और मेरी ओर पीठ करके अपनी चूत साफ करने लगी। उसकी कमर से लेकर चूतड़ों तक पारस का वीर्य फैला था। वो जल्दी जल्दी साफ़ करते हुए पीछे मुड़ कर बाथरूम की ओर भी देख रही थी। उसकी इस स्थिति को देखते हुए मेरे लण्ड ने भी पानी छोड़ दिया। अब मैं नीचे उतर बिना नहाये केवल हाथ मुंह धोकर ही बाहर आ गया। हाँ, थोड़े से बाल जरूर भिगो लिए जिससे नहाया हुआ लगूँ। बाहर एक बार फ़िर सब कुछ सामान्य था, सलोनी फिर से रसोई में थी और पारस शायद अपने कमरे में था। हाँ बाहर एक कुर्सी पर सलोनी की ब्रा जरुर पड़ी थी जो उनकी कहानी वयां कर रही थी।वो कितना भी छुपाएँ पर सलोनी ब्रा को बाहर ही भूल गई थी। मैंने उससे थोड़ी मस्ती करने की सोची और पूछा- सलोनी, क्या हुआ? तुम्हारी ब्रा कहाँ गई। मगर बहुत चालाक हो गई थी वो अब ! कहते हैं न कि जब ऐसा वैसा कोई काम किया जाता है तो चालाकी अपने आप आ जाती है। वो तुरन्र बोली- अरे काम करते हुए तनी टूट गई तो निकाल दी। मैंने फिर उसको सताया- कौन सा काम बेबी? वो अब भी सामान्य थी- अरे, ऊपर स्लैब से सामान उतारते हुए जान ! मैं अब कुछ नहीं कह सकता था, हाँ, उसके चूसे हुए होंटों को एक बार चूमा और अपने कमरे में आ गया। तो यह था मेरा पहला कड़वा या मीठा अनुभव, कि मेरी प्यारी जान मेरी सीधी सी लग वाली बीवी सलोनी ने कैसे मेरे भाई से अपनी नन्ही-मुन्नी चुदवाई। हाँ, एक अफ़सोस जरूर था मुझे कि मैं उसको देख नहीं पाया ! मगर फिर भी सब कुछ लाइव ही तो था, देख नहीं पाया, सुना तो सब था मैंने, अपनी बीवी की सीत्कारें रसोई में मेरे भाई से चुदवाते हुए ! मैं तैयार होकर बाहर आया, नाश्ता लग चुका था। पारस भी तैयार हो गया था। मैं- पारस, आज कहाँ जाना है, मैं छोड़ दूँ। पारस- नहीं भैया, कहीं नहीं, आज आराम ही करूँगा, आज रात की गाड़ी से तो वापसी है मेरी। मैं- हाँ, आज तो तुझको जाना ही है, कुछ दिन और रुक जाता। पारस- आऊँगा ना भैया, अगली छुट्टी मिलते ही यहीं आऊँगा। अब तो आप लोगों के बिना मन ही नहीं लगेगा। कह मेरे से रहा था जबकि देख सलोनी को रहा था। फिर सलोनी ने ही कहा- सुनो, मुझे जरा बाज़ार जाना है, कुछ कपड़े लेने हैं। मैं- यार, मेरे पास तो टाइम ही नहीं है, तुम पारस के साथ चली जाना। सलोनी- ठीक है, थोड़े पैसे दे जाना। मैं- ठीक है, क्या लेना है, कितने दे दूँ। सलोनी- अब दो तीन जोड़ी तो अंडरगार्मेन्ट्स ही लाने हैं, एक तो अभी ही टूट गई, अब कोई बची ही नहीं, थोड़े ज्यादा ही दे देना। वो मुस्कुराते हुए पारस को ही देख रही थी। पहले तो मैं कोई ध्यान नहीं देता था मगर अब उन दोनों की ये बातें सुन सब समझ रहा था। सलोनी- अच्छा 5000 दे देना, अबकी बार अच्छी और महंगे वाले चड्डी ब्रा लाऊँगी। वो बिना शरमाये अपने कपड़ो के नाम बोल रही थी। मैं- ठीक है जान, ज़रा अच्छी क्वालिटी की लाना और पहन भी लिया करना। पारस- हा… हा… हा… भैया, ठीक कहा आपने। हाँ भाभी… ऐसे लाना जिनको पहन भी लो… आपको तो पता नहीं, पर ऐसे कपड़ों में दूसरों को कितनी परेशानी होती होगी। सलोनी उसके कान पकड़ते हुए- अच्छा बच्चू ! बहुत बड़ा हो गया है तू अब। ऐसी नजर रखता है अपनी भाभी पर? बेटा सोच साफ़ होनी चाहिए, कपड़ों से कोई फर्क नहीं पड़ता। पारस- हाँ भाभी, आपने ठीक कहा, मैंने तो मजाक किया था। मैं उन दोनों की नोकझोंक सुन कर मुस्कुरा रहा था, कुछ बोला नहीं, बस सोच रहा था कि कैसे इन दोनों की आज की हरकतें जानी जाएँ। अब घर पर मेरा टिकना तो सम्भव नहीं था। तभी मेरे दिमाग में एक आईडिया आया, मैंने सलोनी के पर्स में रु० रखते हुए सोचा, उसका यह पर्स मेरी समस्या कुछ हद तक दूर कर सकता है। मैंने कुछ समय पहले एक आवाज रिकॉर्ड करने वाला पेन voice recorder लिया था, मैंने उसको ऑन करके सलोनी के पर्स में नीचे की ओर डाल दिया। उसकी क्षमता लगभग 8 घंटे की थी, अब जो कुछ भी होगा, कम से कम उनकी आवाजें तो रिकॉर्ड हो ही जाएंगी। मैंने पहले भी यह चेक किया था, जबर्दस्त पॉवर वाला था और एक सौ मीटर की रेंज की आवाजें रिकॉर्ड कर लेता था। अब मैं निश्चिंत हो सबको बाय कर ऑफिस के लिए निकल गया। सोचा किअब शाम को आकर देखते हैं क्या होता है पूरे दिन… मैं शाम 7 बजे वापस आया, घर का माहौल थोड़ा शांत था, सलोनी कुछ पैक कर रही थी, पारस अपने कमरे में था। मैं भी अपने कमरे में जाकर कपड़े बदलने लगा कि तभी मुझे सलोनी का पर्स दिख गया। मैंने तुरंत उसे खोलकर वो पेन निकाला, वो अपने आप ऑफ हो गया था। पर्स में मुझे 3-4 बिल दिखे हैं, मैंने उनको चेक किया, सलोनी ने काफी शॉपिंग की थी। उसकी 2 लायेन्ज़री Lingerie, कुछ कॉस्मेटिक और पारस की टी-शर्ट, नेकर और अंडरवियर भी थे। आमतौर पर मैं कभी ये सब नहीं देखता था पर जब सलोनी की सब हरकतें आसानी से दिख रही थी तो अब मेरा दिल उनकी सभी बातें जानने का था, आज तो उनके बीच बहुत कुछ हुआ होगा। मगर यह सब अभी सम्भव नहीं था, मैंने पेन से मेमरी चिप निकाल कर अपने पर्स में रख ली, सोचा कि बाद में सुनुँगा। बाहर पारस सलोनी को मना रहा था- मत उदास हो भाभी, फिर जल्दी ही आऊँगा। ओह ! सलोनी इसलिए उदास थी ! मैंने भी उसको हंसाने की कोशिश की मगर वो वैसी ही बनी रही उदासमना। मैं- पारस, कितने बजे की ट्रेन है तेरी? पारस- भैया, 8:50 की है, मैं 8 बजे ही निकल जाऊँगा। मैं- पागल है क्या? मैं छोड़ दूँगा तुझे स्टेशन पर, आराम से चलेंगे, चल खाना खा लेते हैं। पारस- आप क्यों परेशान होते हो भैया, मैं चला जाऊँगा। मैं- नहीं, तुझसे कहा ना ! सलोनी तुम भी चलोगी ना। सलोनी- नहीं, मुझे अभी बहुत काम हैं, और मैं इसको जाते नहीं देख पाऊँगी, इसलिए तुम ही जाओ। मैं मन ही मन मुस्कुरा उठा- ओह… इतना प्यार…!! और तभी मन में एक कौतुहल भी जागा कि पारस को छोड़ने के बाद मेरे पास इन दोनों की बात सुनने का समय होगा। और हम जल्दी जल्दी खाना खाने लगे। मैंने बाथरूम में जाकर चिप अपने फ़ोन में लगा ली और रिकॉर्डिंग चेक की। थैंक्स गॉड ! सब कुछ ठीक था और उसमें बहुत कुछ मसाला लग रहा था। फिर सब कुछ जल्दी ही हो गया और हम जाने के लिए तैयार हो हो गए। मैं बाहर गाड़ी निकालने आ गया, पारस अपनी भाभी को अच्छी तरह मिलकर दस मिनट बाद बाहर आया। मैं- क्या हुआ? बड़ी देर लगा दी? पारस- हाँ भैया, भाभी रोने लगी थीं। मैं- हाँ, वो तो पागल है, सभी को दिल से चाहती है। पारस- हाँ भैया, भाभी बहुत अच्छी हैं, उनका पूरा ख्याल रखना। मैं- अच्छा बच्चू, अभी तक कौन रख रहा था? पारस- नहीं भैया, मेरा यह मतलब नहीं था। आप काम में बिजी रहते हो ना, इसलिए कह रहा था। मैं- हाँ वो तो है ! चल अच्छा, अपना ध्यान रखना और किसी चीज की जरूरत हो तो बता देना। पारस- हाँ भैया, आपसे नहीं तो किससे कहूँगा। मुझे उसके जाने की बहुत जल्दी थी, मैं उस टेप को सुनना चाह रहा था। कहानी जारी रहेगी।
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