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प्रेषिका : सुनीता प्रणाम पाठको, मैं एक कंप्यूटर टीचर हूँ। मेरी उम्र पच्चीस साल की है, मैं एक प्राइवेट स्कूल में नौकरी करती हूँ। मेरे पति फौजी हैं, उनकी पोस्टिंग आजकल द्रास में है इसलिए उनको जल्दी छुट्टी नहीं मिलती। मेरे ससुर जी भी सेवा-मुक्त फौजी हैं। वे सूबेदार थे, जब पेंशन आ गए थे। मेरे पति द्रास की सर्दी जैसे ठन्डे ही हैं और मैं एक गर्म प्यासी औरत हूँ। मेरे पति का औज़ार भी कुछ ख़ास नहीं है। पर मेरे ससुर जी अब भी बहुत फिट एंड फाइन हैं, रोज़ सुबह-शाम सैर करने जाते हैं। उनके तीन दोस्त हैं, वो भी फौजी रहे हैं। उनकी उम्र ससुर जी के मुकाबले कम है। वे जरा जल्दी पेंशन आ गए थे। मैं एक बहुत खूबसूरत हसीना हूँ मेरे अंग-अंग में रस भरा है। मेरी चूचियाँ बहुत मस्त हैं। मेरा गहरे गले के सूट में छलकते मम्मे किसी का भी लंड खड़ा कर सकते हैं। मेरे ससुर जी सुबह बाहर समर्सिबल चला कर बगीचे में पिछवाड़े नहा रहे होते हैं, तो मैं कमरे से उनको देखती हूँ। साबुन लगाते समय वो कच्छा खिसका लेते हैं, कुछ सेकंड के लिए ही सही, मैंने उनके लंड का अनुमान लगा लिया था। फाड़ू लंड है ससुर जी का ! शादी से पहले मैंने खून मजे किए थे, नज़ारे लूटे थे, कई लड़कों से मेरे चक्कर चले थे। शादी अरेंज थी लेकिन सुहागरात पर मुझे इतनी ख़ुशी नहीं हुई थी क्यूंकि इनका लंड ख़ास बड़ा और मोटा नहीं है और ना ही यह ज्यादा देर तक चुदाई कर पाते हैं। मैंने तो अलग सपने देखे थे कि फौजी से शादी हो रही है, उसकी चौड़ी छाती, फौलादी शरीर, बड़ा सा लंड मुझे अपने नीचे लिटा चूर-चूर कर देगा। इसके उलट मुझे मंजिल ही ठीक से नहीं मिली और किया भी एक बार ! अब क्या कहती पहली रात ही कैसे उनके साथ ‘कलेश’ कर लेती। वो सोचते कि यह साली चुदक्कड़ रण्डी है। मैंने सोचा हो सकता है अगले दिन टाइम ज्यादा लेंगे, लेकिन फिर वही हुआ। बीस दिन बाद उनकी छुट्टी खत्म हो गई और मेरी उम्मीद भी खत्म हो गई, वो चले गए मैं अपनी चूत में उंगली डाले रह गई। घर में सासू माँ, ससुर जी एक ननद थी। ससुर जी को जब नहाते देखती मेरी चड्डी में कुछ-कुछ होने लगता। लेकिन चाह कर भी उन पर लाइन नहीं मार सकती थी। हाँ.. कपड़े बहुत सेक्सी पहनने लगी थी, कुर्ती ऊपर से कसी हुई, लंबाई भी कम ताकि गांड और मस्त लगे और उसे देख कर लौड़े खड़े हो जाएँ। जहाँ मैं नौकरी करती हूँ वहाँ भी कई मास्टर लोग भी मुझ पर मरने लगे थे। उधर ससुर जी के तीन दोस्त थे शर्मा, खन्ना और संधू, तीनों धाकड़ थे। मेरे ससुर जी दारु के शौक़ीन थे। कभी-कभी चारों महफ़िल लगाते थे। वो घर आते तो मैं कुछ न कुछ सर्व करने जाती ही थी। मैंने नोट किया जब मैं ट्रे सामने कर झुकती तो तीनों मेरे मम्मे ज़रूर देखते, दूसरे के सामने जाती तो पीछे से मेरी कमीज उठ जाती, सलवार में से पैंटी की लाइन दिख जाती थी। मुझे भी उनके लौड़े खड़े करने में मजा आता था। फिर धीरे-धीरे एक दिन जब वो लोग आए ससुर जी गेट पर छोड़ खुद दारू-मुर्गे का इंतजाम करने चले गए। ननद ट्यूशन गई थी, सासू माँ पड़ोस वाली के घर बतियाने गई थीं, मैं आगे बढ़ कर पहले खन्ना अंकल से मिली। “कैसी हो?” मेरी पीठ को सहलाते हुए अपना हाथ मेरे चूतड़ों तक ले गए। जब मैंने देखा तो उन्होंने शैतान नज़र से मुझे घूरा और मुस्कुरा दिए। मैंने भी बढ़ावा देते हुए मुस्कान बिखेर दी और वो भी नशीली नज़र बना कर… उनका स्वागत किया। तभी संधू अंकल आए वो और शर्मा बाहर बाथरूम के लिए रुक गए थे। मैं संधू से मिली तो वो हल्की सी जफ्फी डाल कर मिला। उसने धीरे से मेरी पीठ सहलाते हुए बगल के नीचे से हाथ ले जाकर मेरी चूची हल्की सी दबाई और अंदर चले गए। अभी बाहर ही निकली थी कि शर्मा अंकल ने मुझे देखा तो बोले- कैसी हो? मैं मिलने के लिए बढ़ी, उसने भी पीठ सहलाते हुए मेरी गांड पर हाथ फेर दिया और बोले- आज बहुत खूबसूरत दिख रही हो बहू ! ‘आपके सामने खड़ी हूँ अंकल…’ मैंने बेहद नशीली आवाज़ से कहा। ‘हाँ.. हाँ.. देखकर ही बोला था।’ ‘इतनी जल्दी सब कुछ देख लिया?’ बोला- देखने वाली चीज़ें पलक झपकते आँखों में कैद हो जाती हैं। “ओह तो यह बात है?” “हाँ जी ! तुम्हारी सासू माँ नजर नहीं आ रही हैं, कहाँ गईं?” वो सोफे पर बैठते हुए बोले, “क्या घर में नहीं हैं?” मैं रसोई में गई.. गिलास में कोल्ड ड्रिंक डालकर लाई और आते समय अपनी कमीज़ के दो बटन खोल लिए और चुन्नी गले से लगा ली, कमर लचकाती हुई उनके सामने गई, पहले खन्ना अंकल के आगे झुकी, गिलास उठाते हुए मेरे हाथ को पलोसा.. तो मैंने नजर उठाईं, उनकी आँखों में आंखें डालते हुए देखा, तो वो गले के अंदर झांकते हुए मुस्कुराने लगे। उन्होंने धीरे से निचला होंठ चबा लिया और एक अश्लील सा इशारा किया। मैं और आगे बढ़ी, खन्ना ने संधू को देखा और इशारा सा किया, मैंने देख लिया लेकिन उनको नहीं पता चलने दिया कि मैंने देखा है। तिरछी नजर खन्ना पे गई वो शर्मा को देख इशारा कर रहा था, संधू ने भी मेरे हाथ को सहलाते हुए और मेरे गले में झांकते हुए अपने होंठों पर अपनी भेड़िये जैसी जुबान फेरी। उसकी लारें टपकने लगी थीं, उसने मुझे आँख मार दी। मैंने भी होंठों पर जुबान फेरी और आगे बढ़ गई। शर्मा के सामने झुकी तो पीछे से संधू ने मेरी कमीज़ उठाई और हाथ घुसा मेरी पीठ को सहलाया और सामने से शर्मा ने गिलास पकड़ कर साइड में रख लिया। वो कुछ करता, बाहर गेट खुलने की आवाज़ सुनाई पड़ी तो मैं झट से ट्रे रख रसोई में चली गई। मेरी पूरी प्यास बुझाने के साधन, तीन-तीन लंड मेरे सामने थे। उधर मुझे प्रिंसिपल सर के घर जाना था, उसने मुझे कहा था कि घर के कंप्यूटर में प्रॉब्लम आई है, वो भी बहाने से मुझे अपने घर बुला रहा था। ससुर जी से कह कर मैं चली गई। मुझे उम्मीद थी कि जो आग उन तीनों ने लगाईं थी, शायद वो आज प्रिंसिपल के घर जाकर बुझ जाए। स्कूल में वो खुलकर नहीं कहते थे। एक बार अकेले में लैब में आकर मुझे बाँहों में भर चुके थे लेकिन फिर किसी के आने की वजह से छोड़ दिया था। मैं उनके घर गई, पास ही था। निराशा हुई उनकी बीवी तो नहीं थी लेकिन उनके मॉम-डैड घर पर थे। वो बोले- मेरे रूम में कंप्यूटर है जरा देखना.. चल नहीं रहा है। मुझे कमरे में बिठा कर मेरे लिए कोल्ड ड्रिंक लेकर आए, दरवाज़ा बंद किया, मुझे बाँहों में भर लिया और चूमने लगे, मैं हर सीमा लांघने को पूरी तरह तैयार थी। मैं चाहती थी वो मुझे लिटा कर सीधे-सीधे लंड मेरी चूत में डाल दें, लेकिन वो मुझे प्यार करना चाहते थे, आराम से मुझे चोदना चाहते थे। मैंने बटन खोल दिए उन्होंने चूची निकालीं और चूसने लगे। मैंने उनके लंड को पकड़ लिया और सहलाने लगी। वो मेरी गांड सहलाने लगे और मैंने सलवार का नाड़ा खिसका दिया। सलवार गिर गई, वो मेरी चूत को पैंटी के ऊपर से ही रगड़ने लगे। मैंने वो भी खिसका दी। वो मेरी नंगी चूत रगड़ने लगे, नीचे बैठ कर चपर-चपर चाटने लगे। मैं पागल हो रही थी, लेकिन उनकी मॉम ने आवाज़ लगा दी। सारे मूड की माँ चुद गई… मस्ती उतर गई। हम दोनों बहुत गुस्से में थे लेकिन उनको क्या कहते। जल्दी-जल्दी कपड़े दुरुस्त किए और मैं निकल आई। कहानी जारी रहेगी।
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