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लेखक : रोहित
मित्रो, मैं रोहित ! अपनी पिछली कहानी ‘सुप्रिया डार्लिंग’ में मैंने बताया था कि सुप्रिया मुझसे पहली ही मुलाकात में चुदने से बच गई।
उस दिन उसकी चुदाई की भूमिका तैयार हो चुकी थी। असल में उसकी शादी तय तो हो चुकी थी लेकिन उसमें अभी देर थी और वह उत्तेजना से भरी थी। ऐसे में उसे लगा कि मैं उसकी जवानी की नैया पार लगा सकता हूँ इसीलिए वो मुझसे इतनी आसानी से पट गई।
अगले दो दिनों तक रात में उससे फोन पर घंटों बात हुई और वह पूरी तरह मेरे काबू में आ गई।
लेकिन तीसरे दिन से अचानक उसका फोन बंद हो गया। एकाध दिन बाद मैंने उसका पता लगाने की कोशिश की तो बस इतना अंदाजा लग सका कि उसे अचानक घर वापस जाना पड़ गया।
मैं रोज उसके नंबर पर फोन करता लेकिन स्विच ऑफ। मुझे यह सोच कर कोफ्त होती कि मैंने उसे पहली बार में ही क्यों नहीं चोद लिया जबकि वह तैयार थी चुदवाने के लिए। इतना शानदार मस्त माल हाथ से निकल गया। उसकी मस्त एकलक्खी(लाखों में एक) गांड याद कर मैं मूठ मारता और उसे फोन करता पर कोई लाभ नहीं।
मुझे डर था कि वह किसी और से न चुद जाए लेकिन कोई उपाय नहीं था।
इसी तरह 6 महीने बीत गये।
एक दिन अचानक उसके नम्बर से मेरे फ़ोन पर घंटी बजी, मुझे लगा कि यह नंबर किसी और को मिल गया होगा लेकिन तभी सुप्रिया की हेलो सुनाई दी।
मेरा लंड टनटना गया।
उसने मुझसे सॉरी बोलते हुए बताया कि उसे अचानक घर जाना पड़ गया क्योंकि उसकी भाभी को बच्चा होने वाला था और रास्ते में उसका फोन चोरी हो गया जिसमें मेरा नंबर था।
घर पहुँचने के बाद फोन लेने में उसके घर वालों ने जल्दी नहीं दिखाई क्योंकि लड़की घर ही थी। इस बीच उसके कोर्स की परीक्षा भी छूट गई और नए सत्र की शुरुआत में उसे फिर लखनऊ भेजने की तैयारी हुई तब नया फोन खरीदा गया।
खैर सुप्रिया ने बताया कि वो दो-तीन बाद लखनऊ आ जाएगी। साथ ही उसने यह भी बताया कि उसे अब नया कमरा खोजना होगा क्योंकि वो जहाँ रहती थी, उसके मकान मालिक ने उसे अब कमरा छोड़ने के लिए कह दिया था।
उसने मुझसे उसी लोकेलिटी में कोई कमरा दिलाने को कहा जो सुरक्षित हो।
इस बात ने मुझे खुशी से भर दिया क्योंकि मैं जिस फ्लैट में रहता था उसमें दो छोटे और एक बड़ा कमरा था। बड़ा कमरा अपने आप में एक फ्लैट था क्योंकि उसमें अलग से किचन और बाथरूम था। मैंने अपने मकान मालिक को बता दिया कि मैं उस कमरे को अपने इलाके की एक स्टूडेंट को दे रहा हूँ।
उसे कोई आपत्ति नहीं हुई।
अब मैंने सुप्रिया को यह बात बता कर अपने इसी कमरे में रहने को कहा तो वह मान गई और कुछ दिन बाद अपने बड़े भाई के साथ आ गई।
उस बड़े कमरे और मेरे कमरे के बीच अंदर एक दरवाजा था जिसमें दोनों तरफ से ताला लग सकता था। मैंने उसके बड़े भाई को बताया कि सुप्रिया अपनी तरफ से इसे ताला लगा कर बंद रख सकती है।
वे मान गये, वे इस बात से खुश थे कि मैं भी उनके ही जिले का हूँ। वे यहाँ सुप्रिया को सुरक्षित समझ रहे थे। उन्हें क्या पता कि उनकी बहन चोदने की पूरी योजना मेरे मन में तैयार है।
खैर वे अगले दिन चले गये। सुप्रिया अपने कमरे को व्यवस्थित करने में दिन भर लगी रही। मैं भी अपने दूसरे कमरे के बेड के लिए पाँच हजार रुपये में दो मोटे और मुलायम गद्दे खरीद लाया। मुलायम बिस्तर पर लौंडिया पेलने का अलग ही आनन्द है। मैं सुप्रिया को जल्दी से जल्दी चोदना चाहता था, संभव हो तो आज ही।
हम दोनों के कमरे के बीच का दरवाजा खुल चुका था। काम खत्म होने के बाद सुप्रिया मेरे कमरे में आ गई और मुझसे लिपट कर पागलों की तरह चूमने लगी। वो पक्की चुम्बनबाज लड़की थी। अगले डेढ़ साल तक उसने मुझे कभी चुम्बन के लिए नहीं तरसाया बल्कि इसमें वो खुद पहल करती थी।
खैर उसने कहा कि आज वो खाना बनाएगी और हम साथ खाएंगे।
मैंने हामी भर दी, वैसे बाद में यह रोज का काम हो गया। सुप्रिया मेरी रसोई में खाना बनाने लगी। वो इस वक्त एक गाउन पहने थी जिसमें उसके मस्त चूतड़ उभरे थे। मुझसे रहा नहीं गया और मैंने उसे पीछे से अपनी बाँहों में भर लिया। मैं उस वक्त ट्रैक पैंट पहने था जिससे लंड का उभार स्पष्ट था। मेरा खड़ा लंड उसकी मस्त गांड पर लगा हुआ था और मैंने अपने दोनो हाथों को क्रास करके उसकी दोनो चूचियों पर लेजा कर दबाने लगा और अपने होंठ उसके चिकने गाल पर घुमाने लगा।
सुप्रिया गर्म होने लगी लेकिन थोड़ी देर में उसने खुद को छुड़ा लिया, मैं भी हट गया।
उसने शानदार खाना बनाया था, खाने के बाद मैंने उसे अपने गोद में उठाया और बिस्तर पर आ गया और हम दोनों बातें करने लगे। बीच-बीच में चुम्बनबाजी भी होती लेकिन आज थकी होने के नाते उसे नींद आने लगी और वो सो गई।
मैंने भी ज्यादा जोर नहीं दिया क्योंकि मैं उसकी पहली चुदाई का उसे पूरा मज़ा देना चाहता था।
दूसरे दिन रात को उसका मूड ठीक था और खाने के बाद मैं उसे लेकर अपने मुलायम बिस्तर पर आ गया। मैंने उसे चूमते हुए उसका गाउन उतारा और खुद भी केवल ब्रीफ में आ गया। मैंने उसके तलवों को चाटने से शुरु किया और बारी-बारी से उसकी चिकनी और रेशमी जाँघों तक पहुँच कर चूमता-चाटता रहा।
सुप्रिया के मुँह से आहें निकल रही थी। साथ ही मैं अपने दोनो हाथों से उसकी चूचियाँ दबाता रहा और उसके निप्पल पर चुटकियाँ काटता रहा।
सुप्रिया की पैंटी गीली हो गई। यह कहानी आप अन्तर्वासना डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं !
मैंने अब उठ कर उसकी पैंटी भी उतार दी। उसकी मस्त झाँटमुक्त चूत अनावृत थी, बिल्कुल सीलबन्द !
एक मस्त कमसिन लौंडिया मेरे सामने नंगी पड़ी थी, मैं उस मस्तानी लौंडिया की गदराई जवानी देख रहा था। सवा अठारह साल की उम्र ही कितनी होती है जबकि मैं उससे लगभग 10 साल का बड़ा था। अब मैं उसके ऊपर लेट कर उसकी एक चूची मुँह में लेकर चूसने लगा और दूसरी मसलने लगा फिर यही दूसरी चूची के साथ भी किया।
सुप्रिया कामवासना में बिल्कुल बेसुध थी लेकिन जब मैंने उसके होंठों पर होठ रखा तो उसे जैसे होश आ गया और उसने जोश से साथ दिया। भरपूर चुम्बन के बाद मैंने उससे पूछा कि लंड डालूँ?
उसने सिसकते हुए कहा- हाँ रोहित, मैं तड़प रही हूँ।
मैं उठा और अपनी ब्रीफ उतार कर अपना लंड सुप्रिया की चूत पर रखा और धक्का देने लगा, वह रोने लगी लेकिन मैं पेलता रहा। उसकी सील टूट गई और खून आने लगा।
15 मिनट बाद मैं उसकी चूत में झड़ गया।
कहानी के अगले भाग में मैं बताऊँगा कि कैसे सुप्रिया मेरे लौड़े की शौकीन हुई।
कहानी का शीर्षक होगा ‘सुप्रिया को लंड-चटोरी बनाया।’
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