बुआ का कृत्रिम लिंग-1

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लेखक : विवेक सहयोगी : तृष्णा मेरे प्रिय अन्तर्वासना दोस्तो, कृपया मेरा सादर प्रणाम स्वीकार करें! मैं बहुत दिनों से आप सबको अपने जीवन की एक घटना का विवरण बताना चाहता था लेकिन दो कारणों से नहीं बता पा रहा था! पहली बात यह थी कि मैं उस घटना को लिखने का साहस नहीं जुटा पा रहा था और दूसरी बात यह थी कि मेरी भाषा में व्याकरण की इतनी त्रुटियाँ होती थी कि मुझे अपने भाव तथा विचारों को सही तरह से व्यक्त करने में आसमर्थता महसूस होती थी!

इस परेशानी से जूझते हुए हाल ही के दिनों में मैंने जब अन्तर्वासना पर प्रकाशित हुई एक कहानी तृष्णा की तृष्णा पूर्ति पढ़ी और उस कहानी के स्वच्छ लेखन शैली से बहुत ही प्रभावित हो उठा, तब मैंने बहुत ही साहस जुटा कर उस कहानी की लेखिका श्रीमती तृष्णा जी से सहायता मांगी तथा मेरी बहुत ही मिन्नतों के बाद ही उन्होंने मेरी सहायता करना स्वीकार किया।

श्रीमती तृष्णा जी के द्वारा मेरी त्रुटिग्रस्त कहानी का सम्पादन और सुधार में होने के बाद ही मैं अपनी इस रचना को आप तक पहुँचाने में सफल हो सका। मैं अपनी उस घटना का विवरण बताने से पहले श्रीमती तृष्णा जी को इस रचना में उनके योगदान के लिए अपना हार्दिक आभार प्रकट करता हूँ और उन्हें अपना गुरुजी मानते हुए यह रचना उन्हीं को समर्पित करता हूँ।

तो मित्रो, मैं आज अपने गुरूजी के द्वारा दी गई हिम्मत के कारण मेरे जीवन में घटित उस घटना का विवरण लिखने से पहले उस घटना के मुख्य पात्रों का परिचय देना चाहूँगा!

मेरा नाम विवेक है और मैं दिल्ली में अपने पापा, मम्मी और सबसे छोटी बुआ के साथ रहता हूँ! मेरी आयु इक्कीस वर्ष है और मैं इंजिनीयरिंग का छात्र हूँ। मैं मज़बूत डील-डौल तथा तंदरुस्त शरीर वाला युवक हूँ जो कि मुझे मेरे पापा से विरासत में मिला है। मेरा गोरा रंग और तीखे नक्श मेरी माँ की देन है जो काफी गोरी, कमसिन तथा सुन्दर भी हैं! मेरे पापा शहर में एक कम्पनी में उच्चतम अभियंता हैं! मेरी मम्मी भी मेरे पापा की ही उसी कम्पनी में एक उच्च ओहदे पर प्रबंधक का काम करती हैं!

मेरी बुआ जो तैंतीस वर्ष की हैं, उनका तलाक हो चुका है, वे पिछले चार वर्ष से हमारे साथ ही रह रही हैं, वे बच्चों के कपड़े डिजाईन करती तथा बेचती है, और उन्होंने हमारे घर के नीचे वाली मंजिल में अपना एक बुटीक भी खोला रखा है। मेरी बुआ तो सुंदरता की एक मूरत है, उनका रंग गोरा, नैन नक्श तीखे, आँखें नीली और खूब लम्बे काले बाल हैं तथा उनके जिस्म का पैमाना 36-28-36 है। पात्रों के परिचय के बाद अब मैं आपको उस घटना के बारे में बताता हूँ जो आज तक गोपनीय ही थी और मेरे साथ एक वर्ष पहले हुई थी जब मैं बीस वर्ष का था।

उन दिनों मेरे कालेज में ग्रीष्म ऋतु की छुट्टियाँ थी इसलिए मैं अधिकतर घर पर ही रहता था! मम्मी और पापा तो रात को काफी देर से आते थे इसलिए कभी कभी मैं बुआ का हाथ बताने के लिए सांझ के समय मैं उनके साथ नीचे बुटीक में चला जाता था। बुआ दोपहर दो बजे से शाम छह बजे तक बुटीक को बंद कर के ऊपर आ जाती थी और हम दोनों एक साथ ही खाना खाते थे। वह मेरा बहुत ख्याल रखती थी और मुझे कई मनपसंद व्यंजन बना कर भी खिलाती थी।

जब से मेरी ग्रीष्म ऋतु की छुट्टियाँ हुईं थी, तब से यही नियमित कार्यक्रम ही चल रहा था। मैं अधिकतर दिन का समय ऊपर घर पर ही व्यतीत करता था और शाम को उनके साथ नीचे बुटीक में जा कर बुआ का हाथ बंटाता था। एक सोमवार को जब मैं ऊपर बैठा टीवी पर एक चल-चित्र देख रहा था, तब दिन के करीब ग्यारह बजे बुआ ऊपर आई और तेजी से अपने कमरे में चली गई!

जब कुछ देर तक वह वापिस नहीं आई तो मैं उन्हें देखने और अचानक ऊपर आने का कारण जानने के लिए उनके कमरे में की ओर गया। कमरे का दरवाज़ा आधा बंद और आधा खुला था इसलिए मैं बिना दस्तक दिए उनके कमरे में दाखिल हो गया। लेकिन कमरे के अंदर का नजारा देख कर तो मैं दंग रह गया और उलटे पाँव बिना आहट किये कमरे से बाहर आ गया। कमरे के अन्दर बुआ आँखें बंद किए बिस्तर पर बिल्कुल नग्न लेटी हुई थी और दोनों टांगें चौड़ी कर अपनी योनि में एक वाइब्रेटिंग डिल्डो (नकली रबड़ का लण्ड) डाल कर तेज़ी से अंदर बाहर कर रही थी!

मैं बाहर आकर फिर टीवी देखने बैठ गया लेकिन टीवी में मेरा मन ही नहीं लग रहा था क्योंकि उस समय मेरी आँखों के सामने सिर्फ बुआ के कमरे के अंदर का नज़ारा ही घूम रहा था, उस घटना ने मुझे हिला कर रख दिया था और मेरा बुआ की तरफ देखने का नज़रिया ही बदल गया।

अगले दिन मंगलवार सुबह को मैं बुआ के साथ ही नीचे बुटीक में चला गया, करीब ग्यारह बजे बुआ ने मुझे ‘अभी आतीं हूँ!’ कह कर ऊपर घर चली गई। जिज्ञासावश मैं अपने आपको रोक नहीं सका और बुटीक का मुख्य दरवाज़ा अंदर से बंद कर के ऊपर बुआ के कमरे के पास पहुँच गया। दरवाज़े को कल की तरह आधा बंद और आधा खुला देख कर मैं दबे पाँव एक कदम अंदर रख कर झाँक कर देखने लगा। वहाँ मैंने जब बुआ को फिर वैसे ही कल जैसी हालत में पाया तो चुपचाप वापिस नीचे बुटीक में आकर बैठ गया। यह कहानी आप अन्तर्वासना डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं।

इसके बाद के अगले दो दिन बुधवार और बृहस्पतिवार को भी जब ऐसा ही नज़ारा फिर देखने को मिला तो मेरी समझ में आ गया कि सात वर्ष पहले हुए तलाक के बाद बुआ को यौन संसर्ग के लिए कोई उपुक्त लिंग न मिलने के कारण वह अपनी योनि में हो रही खुजली को मिटाने के लिए ही ऐसा करती होगी!

पिछले चार दिनों में रोज वह नज़ारे देख कर मैं बुआ का नाम लेकर दिन में दो से तीन बार तक तो हस्तमैथुन कर ही लेता था और बुआ की खुजली मैं कैसे मिटाऊँ इसके बारे में योजना बनाता रहता था! मेरी योजना को अस्वीकार करके अगर बुआ उसके बारे में मेरे ‘मम्मी और पापा को सब बता देगी तो क्या होगा’ इस डर के मारे मैं अपने द्वारा बनाई गई हर योजना को बर्खास्त कर देता था।

बृहस्पतिवार शाम को जब मम्मी और पापा घर आये तो उन्होंने बताया कि उनकी कंपनी की ओर से एक समूह अगले तीन दिनों के लिए मनाली की यात्रा पर जा रहा है और उस यात्रा में घर का हर सदस्य उनके साथ जा सकता है। उन्होंने यह भी अवगत कराया कि उसी रात दस बजे कंपनी का वाहन हमें लेने के लिए आ रहा है। उनकी यह बात सुन कर बुआ ने छूटते ही बुटीक की वजह बता कर मनाली जाने से मना कर दिया। बुआ की बात सुन कर मैंने भी कह दिया कि घर और बुटीक में बुआ अकेली रह जायगी, इसलिए मैं भी नहीं जाऊँगा!

हमारी यह बात सुन कर पापा और मम्मी ने हम दोनों को यहीं छोड़ कर जाने का निर्णय लिया तथा सिर्फ अपने दोनों के जाने के कार्यक्रम को अंतिम रूप देकर तैयारी कर ली।

मैं मन ही मन बहुत खुश था क्योंकि मेरे नहीं जाने के पीछे कारण था कि मैं कोई अच्छी सी योजना बना कर बुआ की खुजली मिटाऊँ! मुझे पूरा विश्वास था कि मम्मी व पापा की अनुपस्थिति में यह काम बिना किसी डर, घबराहट और कठिनाई के तथा अधिक सरलता एवं शीघ्रता से हो सकता था और इसमें मुझे बुआ का पूरा सहयोग मिलने की आशा भी थी।

कहानी जारी रहेगी। आप सबसे अनुरोध है कि आप अपने दिल से जो भी सच्ची प्रतिक्रिया है, उसे लिख कर हमें ज़रूर भेजें! मेरा ई-मेल आई डी है [email protected] तथा मेरी गुरुजी का ई-मेल आई डी है [email protected]

बुआ का कृत्रिम लिंग-2

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