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प्रेषक : निलेश शर्मा
मेरा नाम नील (निलेश शर्मा) है। मैं अन्तर्वासना का नियमित पाठक हूँ, काफ़ी दिनों से कहानियाँ पढ़ रहा हूँ, एक अरसे से सोच रहा हूँ कि मैं भी अपनी कहानी आप लोगों तक भेजूँ, पर संकोचवश नहीं भेजी। आज हिम्मत कर के अपनी आपबीती लिख रहा हूँ।
पेशे से मैं एक बिजनेसमैन हूँ, जयपुर में मोबाईल का काम है मेरा, आप लोगों की दुआ से सही चल रहा है। चलिये अब आपको ज्यादा बोर नहीं करूँगा। कहानी की तरफ़ रुख करते हैं।
यह बात करीब सात साल पहले की है जब मैं दिल्ली रहता था, वहाँ पास ही में एक बहुत सुन्दर धार्मिक स्थल था। जिसमें मैं दो महीनों से लगातार जा रहा था। वहाँ का माहौल काफ़ी सुन्दर था। वहाँ सभी ऊँचे घरों के लोग आते थे। मेरी वहाँ के पुजारी से सही बनती थी। वो सभी के घरों की पोल मेरे सामने खोलता था कि किसकी बीवी किसके साथ लगी है और किसका पति किसके साथ लगा हुआ है।
बातों-बातों में उसने मुझे यह भी बता रखा था कि उसने वहाँ की कितनी औरतों का शिकार किया है।
रोज की तरह अगले दिन सुबह मैं फ़िर मन्दिर आ गया तो देखा कि आज आरती में एक और महिला पुजारी जी के साथ है, जो पूजा में उनका साथ दे रही थी। यही कोई पच्चीस साल की औरत थी, उसका फ़िगर एकदम मस्त 32-28-36 जानलेवा चीज बिल्कुल शकीरा जैसी।
आरती के बाद जब मैं प्रसाद लेने पुजारी के पास गया तो उन्होंने मेरी तरफ़ इशारा करके उस औरत से कहा- शीला, यह नील है, तुम्हें किसी भी तरह का काम हो तो इसे बता देना, यहीं पास में रहता है।
मैंने पूछा- आप कहीं जा रहे हैं क्या पुजारी जी?
तो वो हँस कर बोले- अरे नहीं यार, एक नया पूजास्थल खुला है, मुझे उसका काम मिला है। यहाँ शीला देख लेगी और मैं वहाँ रह लूँगा, क्यों सही है ना?
मुझे भला इसमें क्या एतराज होगा, मैंने कहा- हाँ, वो तो सही है, पर यहाँ?
तो इस पर उन्होंने कहा- अरे मैं तो तुम्हें शीला से मिलवाना ही भूल गया, यह शीला है मेरी पत्नी और तुम्हारी भाभी।
मैंने उनसे नमस्ते की तो उन्होंने भी मुस्कुरा कर मेरा स्वागत किया।
क्या लग रही थी यार वो ! थी तो वो 25 की, पर लगती एकदम अप्सरा, फ़िगर 32-28-34, रंग इतना गोरा जैसे दूध में किसी ने जरा सा सिन्दूर डाल दिया हो। मस्त लग रही थी यार।
अब तो हर रोज़ मैं देखभाल करने के बहाने शीला भाभी के पास जाने लगा। वो शायद कुछ ज्यादा ही शरीफ थी। बातें तो मुझसे खूब करती थी, पर सिर्फ़ काम की।
मैंने एक दिन उनसे पूछा- भाभी अब पुजारीजी नहीं आते, क्यों?
तो भाभी बोली- वो अब महीने दो महीने में एक या दो दिन के लिये ही आयेंगे।
यह सुन कर मेरी हिम्म्त और बंध गई, अब तो मैं दिन भर भाभी के यहीं पड़ा रहता था, उनके काम में हाथ बंटा देता था। मैंने एक दोस्ती सी कर ली, पर मैं मौका तो भाभी को जम कर चोदने का ढूंढ रहा था।
और एक दिन मौका मिला।
मैं सुबह जब मन्दिर आया तो देखा कि कोई नहीं था। भाभी भी कहीं नहीं दिखाई दे रही थी, मैं अन्दर उनके कमरे में गया तो देखा भाभी बेसुध होकर लेटी हैं। उनकी साड़ी भी अस्त व्यस्त थी, उनकी पिन्डलियाँ साफ़ नज़र आ रही थीं।
मेरा मन किया कि अभी चोद दूँ, पर मैं अपने आप को काबू करके उनके पास जाकर बैठ गया, और उन्हें हाथ से हिलाकर उठाने लगा। तो देखा, भाभी का बदन तो बुखार से तप रहा था।
मैंने कहा- भाभी आपको तो तेज़ बुखार है।
भाभी बोली- हाँ, कल रात से ही तड़प रही हूँ।
मैंने कहा- मैं दवा लेकर आता हूँ।
मैंने भाभी को दवा खिलाई, और उनके पैर दबाने लगा। भाभी ने मना करना चाहा, पर मैंने उनकी एक नहीं सुनी और पैर दबाने लगा।
उनके बदन की गर्मी से मेरे लौड़े में भी गर्मी आने लगी, मैं थोड़ा सरसों का तेल गर्म करके लेकर आया और उससे मालिश करने लगा।
मेरे हाथ अब भाभी की जांघों को मसल रहे थे। बीच-2 में मैं भाभी की पैन्टी के ऊपर से उनकी चूत को भी हाथ लगा रहा था।
भाभी की तरफ़ से कोई हलचल नहीं होने से मेरा हौसला थोड़ा बढ़ गया।
मैंने भाभी से कहा- आप उल्टी लेट जाइये, तो मैं आपकी पीठ पर भी मालिश कर देता हूँ।
इस पर उन्होंने सहमति की मोहर लगा दी, और उल्टी होकर लेट गईं।
साड़ी तो उनकी पहले ही पूरी उतरी हुई थी, अब वो सिर्फ़ पेटीकोट और ब्लाउज में थी।
मेरे लन्ड का हाल मत पूछो दोस्तों एकदम सख्त खड़ा था। मन तो पूरा कर रहा था कि चोद दूँ, पर क्या करूँ, मर्यादा नाम की भी तो कोई चीज होती है ना।
मैंने भाभी से कहा- भाभी मेरे तेल लगे हुए हाथ अगर आपके ब्लाउज पर लग गये तो ब्लाऊज चिकना हो जाएगा।?
भाभी बोली- एक काम करो ना ! इसके हुक खोल लो ! पीछे से मैंने झट से हुक खोल डाले और अब पूरी कमर मेरे सामने थी।
एकदम चिकनी कमर थी, मैं बड़े दिल से भाभी की मालिश कर रहा था, वो गहरी नींद में सो चुकी थीं। मुझे भाभी की मालिश करते हुए काफ़ी देर हो गई थी।
अब मैं हट गया और भाभी के बगल में बैठ गया और अपना लोअर उतार दिया और मुठ मारने लगा। मेरा गर्म वीर्य भाभी के हाथ पर गिरा तो मैं डर गया कि कहीं वो उठ ना जाये। इसलिये मैं दूसरे बिस्तर पर आ गया। मुझे भी अब नींद आने लगी थी। मैं सो गया।
रात करीब 10 बजे मुझे भाभी ने उठाया।
“नील उठो, रात हो गई है, खाना खा लो।”
मैंने कहा- भाभी, आप की तबियत कैसी है?
उन्होंने कहा- अब मैं बिल्कुल ठीक हूँ। आओ खाना खाते हैं।
फिर हमने खाना खाया, खाने से फ़्री होकर मैंने भाभी से कहा- भाभी मैं चलता हूँ।
तो भाभी गुस्से से बोली- कहीं जाने की ज़रुरत नहीं है। तुम्हें आज यही सोना होगा। मैंने तुम्हारा बिस्तर उस कमरे में लगा दिया है। वहाँ कूलर लगा है, आराम से सो जाओ।
मैंने कहा- भाभी आप कहाँ सोयेंगी?
तो भाभी बोली- मैं यहाँ सो रही हूँ, नीचे बिस्तर लगा लिया है। तुम्हें कुछ चाहिये तो मुझे आवाज लगा लेना।
फ़िर हम दोनों सो गये, सो तो मैं गया था पर नींद किसे आने वाली थी। जब ऐसी बला पास में सो रही हो और आस-पास कोई भी ना हो तो।
भाभी सिर्फ़ नाईटी में थी। कमरे की ठण्डी हवा और भी जुल्म ढा रही थी। मेरा लौड़ा तो कह रहा था कि साले अभी चोद दे पकड़ कर।
मैं सोने की कोशिश कर रहा था पर नींद कोसों दूर थी भाभी अधनंगी लेटी थी। ऐसा लग रहा था, जैसे वो सो चुकी है। मैंने सोचा थोड़ा और गहरी नींद में सो जाये तो उनको देख कर मुठ मारूँगा।
करीब रात के बारह बजे होंगे, मैं हिम्मत करके भाभी के पास जाकर लेट गया और उनके मम्मों पर अपना हाथ रख कर धीरे-धीरे सहलाने लगा। भाभी सोई हैं, यह जानकर मैंने उनकी नाईटी के चारों बटन खोल दिये।
अब वो लगभग एकदम निर्वस्त्र थीं। मैं अब उनकी गोरी और मासंल टाँगों की तरफ़ जाकर चूमने लगा। मैं पूरा मदहोश होने लगा और बेतहाशा चूमते हुए उनकी जाँघों से होता हुआ, उनकी सफ़ेद पैन्टी के ऊपर से उनकी चूत को चूम रहा था।
अचानक भाभी ने मेरे सिर पर हाथ रखा और उखड़ी हुई साँसों से कहा- नील, प्लीज मेरी पैन्टी उतार कर चूमो ना ! यह कहानी आप अन्तर्वासना डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं।
मैं खुशी से फूला नहीं समा रहा था। फ़िर मैंने भाभी की पैन्टी उतारी और अपनी जीभ को जैसे ही भाभी कि चूत के दाने को चाटने लगा, भाभी ‘ऊह… ऊऊ… ऊआ… आआ…आह्ह्ह…’ करने लगीं।
उन्होंने ज़ोर से मेरे चेहरे को अपनी चूत पर झुका रखा था। मैं भी मस्ती से चूत चाट रहा था, फ़िर हम 69 की पोजीशन में एक-दूसरे के अँगों को चाट रहे थे।
बीस मिनट तक चूमा-चाटी करने के बाद मैं भाभी की ब्रा उतार कर उनकी चूचियों को चूसने लगा और चूचियों को चूसते हुए मैं भाभी की गर्दन से होता हुआ, अब उनके होंठों को अपने मुँह में ले लिया था। जम कर उनके होंठों का रस पी रहा था। भाभी मेरे लौड़े को हाथ में लेकर खेल रही थीं।
भाभी की सिस्करियों से पूरा कमरा गूँज रहा था। भाभी दो बार और मैं एक बार झड़ चुका था।
भाभी के सब्र का बान्ध अब टूट रहा था, वो बोली- नील अब नहीं रहा जाता, अब करो ना।
मैंने उन्हें बिस्तर पर चित लिटाया और उनकी टांगों को चौड़ा करके मेरे लौड़े का सुपाड़ा उनकी चूत पर जैसे ही रखा, भाभी सिस्कारी भरती हुई बोली- अब देर ना करो नील, डाल दो कब से प्यासी हूँ।
मैंने एक झटके से बिना देर किये अपना आधा लौड़ा घुसा डाला।
भाभी मस्ती भरी आवाज में चीखीं- नील, थोड़ा धीरे से करो।
मैंने कहा- ठीक है भाभी।
मैंने पूरा का पूरा लौड़ा पेल दिया और भाभी के होंठों को अपने होंठों से बन्द कर दिया। अब मैं उनकी चूत पर झटके मार रहा था।
कुछ देर में भाभी भी झटकों से मेरा साथ देती हुई झड़ गईं।
मैंने उन्हें घोड़ी बनाया और पीछे से अपना लौड़ा डाल दिया। अब मेरे झटके तेज़ होते जा रहे थे।
मैंने भाभी से कहा- मैं झड़ने वाला हूँ, कहाँ निकालूँ?
तो उन्होंने कहा- अरे… अरे… मैं सीधी लेट रही हूँ, बाहर मत गिराना इसे मेरी चूत में डाल दो।
तो मैंने अपने लौड़े को निकाल कर भाभी को सीधा लिटाया और उनकी टांगों को चौड़ी करके एक झटके के साथ पूरा डाल कर जोर-जोर से झटके मारने लगा।
भाभी और जोर से करने के लिये कह रही थीं। मैं झटके पर झटके मारने लगा। मेरा निकलने ही वाला था कि मुझसे पहले एक बड़ी सी ‘सिसकारी’ के साथ भाभी दुबारा झड़ गईं। मैं दुगने जोश से झटके मारने लगा, अब निकलने की बारी मेरी थी।
मैंने भाभी की टांगें और चौड़ी कीं और पूरे लौड़े के साथ अपना पूरा का पूरा वीर्य भी भाभी की चूत में डाल दिया।
हम कुछ मिनट तक एक-दूसरे को चूमते रहे।
अब तो जब भी मौका मिलता, मैं और भाभी चुदाई करते। ऐसे ही समय बीतता रहा। भाभी चार महीने पेट से हो गई थीं, और वो मेरा बच्चा था।
तो यह थी दोस्तों मेरी कहानी, इन सबके बाद शीला भाभी ने मुझे चार और औरतों से मिलवाया। उनकी कहानी भी मैं आप लोगों बताऊँगा। आप इस कहानी पर अपनी प्रतिक्रिया दीजिये !
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