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रोहित पुणे वाले
सत्येन्द्र जी ने मुझसे कहा- तुम लखनऊ आ जाओ, यहाँ किसी अच्छे होटल में रुक जाओ। हम वहीं आकर तुमसे मिल लेंगे।
यह सुनकर तो मेरी हालत खराब हो गई। शायद सत्येन्द्र जी काफ़ी पैसे थे। लेकिन मेरे लिए फ्लाइट से लखनऊ जाकर एक अच्छे होटल में रुकने का मतलब था 15-18 हज़ार रुपये का नुकसान, और ये सब मेरे बस का नहीं था।
मैंने उनसे सोचने का वक़्त माँग कर फोन काट दिया। अगले दिन उर्मिला को यह बात चैट के दौरान बता दी।
वो हँसने लगी और बोली- अरे तुम्हें किसने कहा कि तुम्हें खर्च करना है। अरे जब हम तुम्हें अपने पास बुला रहे हैं तो खर्चा हम ही करेंगे ना ! तुम्हें बस यह देखना है कि तुम्हारे लिए कौन सा दिन अनुकूल होगा।
यह सुनकर तो मैं बहुत खुश हो गया। उसके बाद हमने 2 हफ्ते बाद आने वाले शनिवार और रविवार का दिन चुना।
2-3 बाद मुझे मेरी मेल आईडी पर टिकट भेज दी गई, जो कि ट्रेन की थी। मैंने भी सोचा कोई बात नहीं, एक होटल में मेरी बुकिंग करा दी।
अब मैं दिल में एक अजब सी उत्तेजना लिए लखनऊ जा पहुँचा।
हमारी मुलाकात हुई। सत्येन्द्र जी बड़े ही बुजुर्ग किस्म के इंसान रहे थे। देखने से लगा मानो 50 साल के हो। दुबले-पतले से, थोड़े कमजोर से लग रहे थे। लेकिन बहुत गंभीर किस्म के इंसान लगे।
तभी मेरी नज़र उनके बगल में खड़ी उर्मिला पर पड़ी। सच मानो दोस्तों उनको देख कर मुझे एक सीधी-साधी घरेलू औरत दिखी। एक सिल्क की साड़ी पहने हुए खड़ी थी। बहुत ही प्यारी लग रही थी।
थोड़ी से भरे बदन की थी। लेकिन वो उनको खूबरती को चार चाँद लगा रहा था। चेहरे पर लालिमा और होंठों पर लाल लिपस्टिक, और मांग में सिंदूर।
कसम से दोस्तो, उस वक़्त मुझे यकीन हो गया कि एक औरत सबसे सुंदर साड़ी में ही लगती है। जब वो शर्माती है तो उसकी हया सामने वाले आदमी के दिल को चीर कर रख देती है।
तभी सत्येन्द्र जी बोल पड़े, और मेरा ध्यान उनकी तरफ गया। हमारी बातें होने लगी। बीच-बीच में देखा कि कैसे उर्मिला जी मुझे चोर निगाहों से देख रही थीं।
जैसे ही हमारी नज़रें मिलतीं वो शर्मा कर अपना मुँह घुमा लेतीं और हल्की से मुस्कान आ जाती। बस उनकी ये अदाएँ मेरी जान ले रही थीं।
उनसे बात करने के लिए मैं बहुत बेचैन हो रहा था। तभी सत्येन्द्र जी मुझे उनके प्लान के बारे में बताया।
सत्येन्द्र जी बोले- देखिए, हमने आपका रूम यहाँ अपने घर से दूर बुक किया था। अब आज पूरे दिन और कल पूरे दिन ये आपके साथ रहेंगी।
मैं बोला- ठीक है सर।
फिर हम सब ने साथ में लंच किया और अब उर्मिला जी भी अब कुछ नॉर्मल होने लगीं।
कुछ देर बाद सत्येन्द्र जी वहाँ से चले गये यह कहकर कि उर्मिला को लेने के लिए रात में वो कार भेज देंगे।
अब जाकर मैं, उर्मिला जी के साथ अकेला हुआ। हम दोनों अंदर आकर बेड पर बैठ गये। कुछ देर तक सन्नाटा छाया रहा। आख़िर वो भी बहुत असहज महसूस कर रही थी, पराए मर्द के साथ एक कमरे में बैठना।
मैंने टीवी चला कर माहौल को कुछ नरम करने की कोशिश की और हमने बातें करने शुरू कीं। कुछ ही देर में वो मेरे साथ काफ़ी खुल गई।
उन्होंने कहा- देखो रोहित, मुझे ये सब बहुत अजीब लग रहा है। मैं तुम्हारे साथ कुछ कर नहीं पाऊँगी। तुम बहुत अच्छे हो लेकिन मुझे पता नहीं क्यों खुद पर बहुत घिन आ रही है।
मैं समझ गया कि उर्मिला जी सच में बहुत ही नेक दिल और शरीफ किस्म की औरत हैं। और ये शायद जिंदगी में पहली बार किसी पराए मर्द से मिल रही थी।
मुझे थोड़ी निराशा तो हुई लेकिन मैंने भी सोचा कि अच्छे इंसानों का कभी दिल नहीं तोड़ना चाहिए।
मैंने भी हामी भरते हुए कहा- उर्मिला जी आप जैसा चाहती हैं, वैसा ही होगा। लेकिन अगर मैं इतने दूर से मिलने आया हूँ तो मेरे साथ कुछ समय तो बिताएँ, देवर ही समझ लो अपना।
इस पर वो हँस पड़ी और बोली- हा हा… मेरा कोई देवर नहीं है लेकिन तुम बातें बहुत प्यारी करते हो। हर वक़्त मज़ाक मस्ती के मूड में ही रहते हो।
मैंने भी अब किसी तरह की शारीरिक संबंध की उम्मीद छोड़ कर, अब बस अपने 2 दिनों को जी भर कर मज़े करना चाहता था।
मैंने उनसे कहा- ठीक है भाभी। अब यहीं बैठना है या मुझे अपना शहर भी दिखाएँगी?
उन्होंने बोला- ठीक है, चलो कहीं घूमने चलते हैं।
और हम बाहर निकलने लगे। तभी उन्होंने अपना पास रखे एक पैकेट में से एक काले रंग का बुरका निकाला और उसे पहनने लगीं।
मुझे समझते देर ना लगी और मन ही मन मैं उन दोनों के दिमाग़ की तारीफ करने लगा।
हम दोनों वहाँ से एक ऑटो में बैठ कर एक मॉल की तरफ जाने लगे। रास्ते में कई बार मेरा शरीर उनसे छू जाता और वो सिहर उठती।
वहाँ मैंने जानबूझ कर रोमांटिक मूवी की टिकट लीं, वो भी आख़िरी लाइन में, मैं अभी भी हार मानने को तैयार नहीं था। लेकिन भाभी को मनाना भी मुश्किल दिख रहा था।
मूवी शुरु होने में अभी वक़्त था, तो मैंने भाभी को छेड़ना शुरू किया। क्योंकि हम चैट्स पर काफ़ी हद तक दोहरे मतलब वाली बातें कर लेते थे, तो मैंने वहीं से ही शुरू किया।
मैं- क्या भाभी, इस देवर का आपको ज़रा भी ख्याल नहीं।
भाभी थोड़ा हैरान होते हुए- क्यों क्या हुआ? कुछ ग़लती हुई क्या मुझसे?
मैं- और क्या? इतनी दूर से देवर आया है, एक बार गले भी नहीं लगी आप? इतना भी प्यार नहीं करती क्या आप?
भाभी- अरे बस इतनी सी बात ! अभी लो।
वो उठ कर मेरे सामने आ गईं। जैसे ही मुझे गले लगाया, मैंने ज़रा सा नीचे झुक कर उनके चूतड़ के नीचे जाँघों से पकड़ कर उन्हें अपनी बाहों में उठा लिया।
मेरे ऐसा करते ही, भाभी थोड़ा चौंक गईं लेकिन कुछ बोली नहीं।
इस वक़्त मेरा हाथ भाभी के चूतड़ों बस ज़रा से नीचे थे। उनके शरीर की गर्मी, मेरे शरीर को गदगद कर रही थी।
मैं बोला- भाभी मैं कब से आपको ऐसे ही बाँहों में लेना चाह रहा था, लव यू भाभी।
भाभी बोली- अच्छा, अच्छा, हो गया सब। अब मुझे नीचे भी उतारो, सब लोग देख रहे हैं। लोग क्या सोचेंगे?
मैंने कहा- क्या सोचोंगे? यही कि एक शौहर अपनी बीवी से इश्क फ़रमा रहा है, हा हा हा।
भाभी भी हँसने लगी।
अब मैंने भाभी की बहुत ही धीरे-धीरे अपनी बाँहों से नीचे उतारना शुरू किया।
मैं इस आने वाले पल को जीना चाहता था। मेरे हाथ अब भाभी की जाँघों से ऊपर आकर उनके चूतड़ों पर जा रहे थे। बहुत ही नर्म और मुलायम पिछवाड़ा था। ऐसा लग रहा था मानो गुब्बारा है, जो मेरे हाथ लगने से दब रहा है।
उधर ऊपर से भाभी की चूचियाँ भी मेरे मुँह के पास से लगती जा रही थीं।
भाभी के पैर अब ज़मीन पर आ चुके थे। मेरे दोनों हाथ की गाँठ भी अब खुल चुकी थी। लेकिन मेरे दोनों हाथ अभी भी भाभी के मस्त चूतड़ों पर ही थे, हिल नहीं रहे थे, बस रखे हुए थे। मैं भाभी की आँखों में देख रहा था।
मैं बोला- भाभी आपकी इन अदाओं ने मुझे आपका दीवाना कर दिया है।
भाभी अब थोड़ा असहज महसूस करने लगी थीं। इसीलिए वो पीछे हटने लगीं। मैंने भी उन्हें रोकने की कोशिश नहीं की।
लेकिन अलग होने से एक पल पहले मैंने भाभी के चूतड़ों पर हाथ फेर कर हल्का सा जायज़ा लिया और मजाकिया लहजे में बोला- वाह भाभी। लगता है भाईसाहब ने बहुत मेहनत की है इन पर। और हँसने लगा।
भाभी मेरे इस मज़ाक पर हँसने लगीं और बोलीं- बदतमीज़ हो तुम, शर्म नहीं आती।
तब तक हमारी फिल्म का वक़्त हो चला था।
आप सभी को मेरी कहानी कैसी लगी बताना ज़रूर।
कहानी जारी रहेगी।
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