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मंजू- रोनी, मैं तो तुम्हें बहुत ही भला इन्सान समझती थी, पर तुम तो बहुत चालू निकले। बहुत चाहते हुए भी मैंने भी तुमसे अपने दिल की बात नहीं बताई कि कहीं तुमने मेरी बात को नकार दिया तो मैं अपनी ही नजरो में गिर जाऊँगी। रोनी, तुम मुझे अच्छे लगते हो। और मैडम ने मेरा हाथ पकड़ लिया।
“आसमान से टपका, और खजूर में अटका !” नहीं- एक? एक से भली दो !
उनकी बात सुनकर मेरी साँस में साँस आई। अब तक मैं सामान्य हो गया था। तभी किरण चाय देकर चली गई।
चाय पीते हुए मैडम बोली- रोनी आज शाम को मेरे घर आना, आओगे न?
मैंने कहा- ठीक है, जरुर आऊँगा मैडम।
तो बोली- तुम मैडम क्यों बोलते हो? मंजू बोला करो।
मैंने कहा- ठीक है मंजू जी, शाम को आ जाऊँगा।
फिर वो अपनी स्कूटी से घर चली गई।
मैं अपने ऑफिस आ गया, सोचने लगा, ‘मेरे तो दोनों हाथ में लड्डू आ गए। वाह री किस्मत’ शाम को ऑफिस बंद करके सीधा मंजू के घर गया।
दरवाजा खोलने आई मंजू को देखता ही रह गया। मंजू ने फिरोजी रंग का बिना आस्तीन का ब्लाउज और उसी रंग की झीनी सी साड़ी पहने हुई थी। जिसमें से ब्लाउज के बड़े गले से उसके उरोजों की गहरी खाई और पेटीकोट की झलक दिखाई दे रही थी।
होंठों पर लाली और आँखों में काजल लगा था। लगता है, मेरे आने से पहले सज-संवर रही थी। मुझे बैठक में बिठाकर वो पानी लेने चली गई।
पेटीकोट में कैद उसके भारी नितम्ब मस्ती में एक-दूसरे से रगड़ खाते हुए ऊपर-नीचे हो रहे थे।
मुझे घर भी वापस जाना था। समय कम था, रास्ता साफ था। मैंने ज्यादा देरी करना उचित न समझते हुए सीधे उसके पीछे किचन में पहुँच गया।
वो गिलास में पानी डाल रही थी। मैंने पीछे से उसे अपनी बाँहों में भर लिया और उसके कंधे और गले पर चुम्बन अंकित करते हुए उसके विशाल चूचे पीछे से पकड़कर मसल दिए।
मेरा लंड खड़ा होकर पैन्ट के अन्दर से ही मंजू की गांड में घुसने को आतुर हो रहा था।यह कहानी आप अन्तर्वासना डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं।
स्तनों को सहलाते मेरे हाथों को मंजू ने अपने हाथों से पकड़कर जोर से अपने चूचों को दबाने लगी, और अपनी गांड को मेरे लंड पर रगड़ते हुए कामुक सीत्कार के साथ अपनी आँखे बंद कर लीं।
उसका गदराया जिस्म जल्द से जल्द नंगा करने की चाहत दिल में हुई तो उसे अपनी और घुमाकर गोद में उठाने का प्रयास करता। उसके पहले ही वो मेरा हाथ पकड़कर अपने बेडरूम में ले गई।
मुझे बेड पर बिठाकर उसने मेरी शर्ट और बनियान निकाल दी और अपनी साड़ी निकालकर मुझ पर सवार हो गई। उसके स्तन मेरी छाती में धंसे जा रहे थे।
वो मेरे होंठों को अपने होंठों में दबाकर चूसे जा रही थी। मेरे हाथ उसके गांड के उभारों को सहलाते हुए उन्हें नाप रहे थे।
मैंने धीरे-धीरे पेटीकोट को सरकाते हुए उसके चूतड़ों को अनावृत कर दिया पर अभी पैन्टी को अलग नहीं कर पा रहा था।
उसकी जाँघों और नितम्ब को सहलाते हुए अपनी जीभ को मंजू की जीभ से भिड़ा दिया। मंजू की कामुक आहें बढती जा रही थी।
वो मेरे बदन को चूमते हुए मेरी पैन्ट तक आ गई। फिर उसने मेरे पैन्ट और मेरे कच्छे को निकाल दिया। कच्छे के सरकते ही मेरे लंड ने फनफना कर अपना सर उठा लिया।
मैंने भी उसके पेटीकोट का नाड़ा खोल कर उसे नीचे गिराते हुए पैन्टी को भी उसकी चिकनी गांड और जाँघों से आजाद कर दिया।
फिर उसके ब्लाउज और ब्रा को निकाला तो मदमस्त कर देने वाले अमृत-कलश उछलकर बाहर आ गए। भरे बदन की मंजू का हाहाकारी जिस्म मेरी आँखों के सामने था।
उसका फिगर 36–32–36 से कम नहीं था, बिल्कुल गदराया हुआ, साँची के स्तूप की तरह गोल स्तन उस पर काली घुन्डियाँ।
उसकी चूत बिल्कुल चिकनी थी। मस्त बलिष्ठ जंघाएँ, गांड के उभार तो कुछ अतिरिक्त से थे।
मैं कुछ समझ पाता, उसके पहले ही मंजू ने मुझे बेड पर धक्का देकर गिरा दिया। मेरी पिण्डलियों पर अपने होंठ रख कर चूमते हुए, मेरी जाँघो तक अपनी जीभ से गीला करते हुए चूमने लगी।
मेरा लंड अपने हाथों में थामकर उसे चूमते हुए अपने मुँह के हवाले कर दिया, बड़े ही अनुभवी तरीके से चूस रही थी, मर्दों को कैसे खुश किया जाता है, मंजू बखूबी जानती थी।
मैं तो जन्नत सा सुख ले रहा था मेरे लंड से प्रिकम की बूँदें निकलने लगी थी मेरा लंड ठुमके लगाने लगा था।
इसके पहले कि मेरा माल भी निकल जाए, मैंने उसके मुँह से लंड को आजाद किया और उसे बेड पर लिटाकर उसकी जाँघों के बीच आकर उसकी चूत पर अपने होंठ रख दिए।
मंजू की चूत शायद जन्मजात ही चिकनी थी क्योंकि वहाँ झांटों के होने का कोई भी साक्ष्य नहीं था।
मैंने अपनी जीभ से उसकी बुर में छेड़खानी शुरू कर दी। कई दिनों की प्यासी मंजू की सीत्कारें बढ़ती ही जा रही थीं।
बीच-बीच में उसके मुनक्का जैसे दाने को भी जीभ से सहलाता जा रहा था। बहुत ही जल्दी चरम पर पहुँच झड़ने लगी।
जोरों से सीत्कार करते हुए उसने मेरे सर को अपनी चूत पर दबा लिया। अपनी विशाल जाँघों को मेरे कंधे पर रखते हुए मेरी गर्दन पर लपेट लिया।
अब वो धीरे-धीरे शांत हुई, तो उसने अपनी पकड़ ढीली कर दी। मेरा चेहरा उसकी योनि-रस से गीला हो गया था।
अब मैं उसके ऊपर कोहनी के बल लेटकर उसके एक अमृत-कलश को चूसते हुए दूसरे को सहलाते हुए मसलने लगा।
मेरा लौड़ा चूत पर दबाब बना रहा था। मंजू अपनी जाँघो को हिला डुलाकर, उसे अपने अन्दर लेने की जुगत लगा रही थी।
फिर बोली- रोनी अब तड़पाओ मत, जल्दी से अन्दर डाल कर मेरी तरसती चूत की प्यास बुझा डालो।
मैं थोड़ा सा और ऊपर को आ गया। लंड का सुपारा चूत के मुहाने पर दस्तक देने लगा। मैंने एक हाथ से पकड़कर उसे योनि-द्वार से स्वर्ग का रास्ता दिखाते हुए चूत में गहराई तक उतार दिया।
“ओह्ह… आ.. ई ई..रोनी ..स्स्स्स हाँ !” करते हुए अपनी हथेली से मेरी पीठ और कमर सहलाने लगी और नीचे से अपनी गांड को उचका-उचका कर मेरे लंड को अन्दर-बाहर करते हुए सिसकारियाँ लेने लगी।
मंजू सेक्स के मामले में अनुभवी और खेली खाई औरत लग रही थी क्योंकि मुझे किरण के साथ आपत्तिजनक स्थिति में देखने के बाद उसने मौके का फायदा उठाने में जरा भी देर नहीं की।
हालांकि रोनी की यानि मेरी तो जैसे लॉटरी ही लग गई थी। मुझे तो ऐसे मौके की ही तलाश रहती है।
मैंने उसकी टाँगों को दायें-बायें फैला दिया। फिर चुदासी मंजू की चूत में जोरदार लंड पेलाई शुरू कर दी और अपनी रफ़्तार को बढ़ाते हुए जोर-जोर से गहरे धक्के लगाने लगा।
“ओह्ह… आई… स्स्स्स अईई रे…” मंजू तो जैसे लंड पाकर मस्त हो रही थी “रोनी… फाड़ दे मेरी चू …त.. को आइया रे… ओ …आह्ह !”
उसकी कामुक ‘आहें’ मेरी उत्तेजना को बढ़ाते हुए चरम के नजदीक ले आईं। मेरा माल निकलने को हुआ तो लंड का सुपारा और भी फूल गया। चूत में घर्षण बढ़ा तो चरमसुख के वो पल आ गए, जिन्हें रोका नहीं जा सकता। मेरी साँसों के साथ मेरी ‘आहें-कराहें’ बढ़ती गईं। साथ में मंजू भी आएं-बाएं बकती हुई, मुझे नोचते-खसोटते हुए मेरे साथ स्खलित हो गई।
दोनों ही एक दूसरे से गुथे हुए पूर्ण तृप्ति प्राप्त कर विश्राम करने लगे। फिर दोनों ने नहानी में जाकर अपने आप को साफ किया
फिर मैंने कुछ देर बाद अपने घर की राह पकड़ी। उसके बाद मंजू ने मुझे कई बार अपने घर बुलाया।
शालीनता और सादगी से रहने वाली इस औरत को मैं भी नहीं ताड़ पाया था जबकि यही सबसे ज्यादा चुदासी और अनुभवी लगी। जब भी मैंने इच्छा व्यक्त की, उसने कभी मना नहीं किया।
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