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‘जीजू, बहुत चालू हो आप!’ कहकर हंसने लगी वो!
फिर हमने एक दूसरे को साफ किया, वो खाना बनाने लगी, मैं लेट गया, शाम को किसी बहाने से उसे फिर से घर लाने की योजना सोचने लगा।
कल तीसरा दिन है, मेरी जान कल बेटे को लेकर घर आ जाएगी, यानि आज शाम और कल सुबह का वक्त है हमारे पास!
वो खाना बनाने लगी, मैं लेट गया, शाम को किसी बहाने से उसे फिर से घर लाने की योजना सोचने लगा।
रेखा के साथ जल्दी जल्दी खाना खाया और दलिया लेकर दो बजे अस्पताल पहुँच गए। मेरी पत्नी ने कुछ नहीं पूछा।
शाम चार बजे मैंने अपनी जान से कहा- जान, कुछ लाना है बाजार या घर से…?
थोड़ी देर बाद जानू का फोन बज उठा, फोन उठा कर बोली- हाँ भैया बोलो… कैसे हो आप? भाभी के बिना परेशानी हो रही होगी आपको… सब ठीक है… हाँ खा लिया… नहीं किसी चीज की जरुरत नहीं है… हाँ अस्पताल से कल शाम छुट्टी हो जाएगी… हाँ यही पर हैं, लो बात कर लो… लो भैया का फोन है बात कर लो!
‘…हेलो भाई साहब! नमस्ते!’
उधर से- जीजाजी किसी प्रकार की जरुरत हो तो निसंकोच बता देना।
मैं- ठीक है भाईसाब!
उधर से- रेखा से बात करा दो!
मैं- लो भाभी, आप से बात करनी है भैया को…
ठीक है! याद क्यों नहीं आएगी… जब तुम बुला लो… धत्त… फोन लेकर रेखा बाहर चली गई, पाँच मिनट बाद आकर कहा- दीदी आपका फोन!
रेखा मुझे बार बार कनखियों से देख लेती, कभी मुस्कुरा देती।
कहीं मेरी जान ने देख लिया तो मुसीबत हो जाएगी यह सोच फिर मैं अकेला घूमने चला गया।
लौटते वक्त कुछ फल वगैरह अपनी जान के लिए, भाभी के लिए आइसक्रीम, अलका रानी सिस्टर के लिए समोसे लेकर आया।
शाम के चार बजे थे, सिस्टर अपने घर जा रही थी तो समोसे अलका ने अपने बैग में रख लिए।
भाभी आइसक्रीम खाने लगी, अपनी जान को मैं फल काटकर खिला रहा था।
मैंने अपनी पत्नी से कहा- जान, कुछ लाना है बाजार या घर से?
वो बोली- हाँ जानू! बाजार से बच्चों का बिस्तर, मच्छरदानी कुछ खिलौने, कुछ सुन्दर से कपड़े आज ही लेकर रख देना, मेरे लिए खाना मत लाना, रखा है।
मैंने कहा- ठीक है, शाम को खाना खाने भाभी को लेकर घर जायेंगे, उसके पहले बाजार से खरीद लेंगे, उन्हें इन चीजों का अनुभव है। पांच बजे मैंने कहा- अभी मौसम साफ है, जान, मैं बाजार का काम निपटा लूँ, तुम कहो तो शाम का खाना खाकर सात-आठ बजे तक भाभी को लाकर छोड़ दूँगा यहाँ।
मेरी बीवी बोली- ठीक है।
भाभी को लेकर मैं सीधा घर पहुँचा।
रास्ते में रेखा बोली- क्यों फिर से मुझे इतनी जल्दी लेकर घर आ गए?
मैंने कहा- अन्दर चलो, बताते हैं।
दरवाजा लॉक किया, फिर रेखा को बाँहों में उठा लिया, अन्दर कमरे में ले जाकर सीधा चीर हरण कर उसकी साड़ी उतार फेंकी, पेटीकोट ब्लाउज़ में उसका बदन बड़ा सेक्सी लग रहा था।
फिर मैंने अपने सारे कपड़े उतार दिए, मेरा लंड खड़ा होकर उछल रहा था, मुझे नंगा देख रेखा ने अपनी आँखों को हाथ से ढक लिया।
मैं पीछे से जाकर रेखा से चिपक गया उसके घने बालों को खोल दिया। मेरे लंड को अपनी गांड में चुभता महसूस कर मेरी और घूम गई मेरे गले में अपनी गुदाज मखमली बाहें डाल अपने होंठ मेरे सीने पर रख चूमने लगी।
अब मेरा लिंग उसकी नाभि को निशाना बना रहा था। बाजु से हाथ डालकर पेटीकोट का नाड़ा खोल नीचे गिरा दिया, फिर ब्लाउज़ के हुक खोल कर उसे भी निकाल दिया। फिर खड़े खड़े ही उसके सारे बदन को चूम डाला तो रेखा सीत्कारने लगी।
उसकी पीठ चूमते हुए कमर तक आ गया फिर उसकी पेंटी को भी निकाल दिया। बड़े बड़े गठीले नितम्ब बहुत चिकने थे, उन पर किस किया तो रेखा चिहुंक उठी।
वाकई लगा कि यह गांड तो मारने लायक है, गांड से जांघों तक किस करते करते प्रिकम की बूंद मेरे लिंग से बाहर आ गई। जब प्रिकम बाहर निकलता है तो बड़ा ही सुखद अनुभव होता है।
अब मैंने अपनी अंगुली को रेखा की चूत में घुसाना चाहा खड़े होने की वजह से योनिद्वार बंद था पर उसका रस बह निकला था इसलिए चिकनापन होने से अंगुली ने अपना रास्ता ढूंढ ही लिया।
रेखा की सिसकारियाँ बढ़ती जा रही थी, बोली- इतना मजा पहले कभी नहीं आया!
फिर मैंने अपने होंठ से रेखा की चूत को छेड़ा फिर नाभि को छेड़ते हुए स्तनों तक आ गया। अब ब्रा को भी निकाल फेंका, गगनचुम्बी स्तनों को सहलाते हुए स्तनाग्रों को चूसने लगा तो बोली- जीजू आपने ये सब तरीके कहाँ से सीखे? दीदी को भी ऐसे ही करते हो?
मैंने कहा- हाँ, मगर जो आनन्द तुम्हारे अंगों में है, उसके अंगों में कहाँ!
रेखा ने हाथ बढाकर मेरे लंड को पकड़कर मसलना चालू कर दिया। मैंने उसकी दोनों भुजाओं को ऊपर उठाया, बालरहित चिकनी कांख से उठती यौवन की मादक गंध ने मुझे दीवाना बना दिया। कांख पर होंठ से चूमा किया तो लगा जन्नत प्राप्ति के कितने साधन, अंगों के रूप में स्त्री के पास होते हैं। फिर उसके चिकने बदन को जीभ से गुदगुदाता रहा चाटता रहा।
अब रेखा की प्यास बढ़ गई, वासना से झुलसने लगी थी वो! जाने कितने देर मैं उसके जिस्म को उलट पलट कर चूमता, चाटता, यहाँ तक कि कई जगह काटता भी रहा।
तब तक रेखा मेरे लिंग को आगे पीछे करती रही निकलती हुई प्रिकम को लिंग पर चुपड़ कर चिकना कर रही थी।
अब मैंने रेखा को बाथरूम में ले जाकर उसकी चूत पर पानी डाल कर धो डाला अपने लिंग को भी धो लिया।
फिर रेखा को बेड पर लिटा दिया मैंने पलंग के नीचे खड़े होकर रेखा के पैर फैला कर उसकी चूत को जीभ से चाटना और दाने को छेड़ना चालू कर दिया।
रेखा को मजा आने लगा, अपनी गांड उछाल कर जीभ को अन्दर लेने की कोशिश करने लगी, बोली- जीजू, बड़ा आनन्द आ रहा है, मेरा तो काम हो जायेगा ऐसे में!
फिर हम 69 पोजीशन आ गए, मैंने कहा- अब तुम मेरा लिंग मुँह में लो!
बोली- नहीं, मैंने ऐसा कभी नहीं किया। मैंने कहा- करके देखो, मजा आएगा!
रेखा ने बेमन से होंठ लगाये मेरे लंड को, मैंने उसकी चूत में जीभ गाड़ दी फिर उसके दाने को छेड़ दिया। अब रेखा ने मेरे लिंग अपने मुँह में लेकर चूसना चालू कर दिया। ऐसे चूस रही थी जैसे इस काम में महारथ हासिल हो उसे!
बोली- जीजू, अब मेरी चूत की आग बुझा दो, नहीं तो मैं जल जाऊँगी। मैंने कहा- तो तुम खुद बुझा लो!
फिर मैं पलंग चित्त लेट गया, मेरा सख्त कड़क लंड सिर उठाये ऐसे खड़ा था जैसे छत के पंखे को को देख रहा हो।
भाभी मेरी कमर के दोनों ओर पैर डाल घुटनों के बल बैठ गई फिर एक बार मेरे लिंग को मुँह में लेकर इस तरह बाहर निकाला कि पूरा लिंग उसके लार से तर हो गया।
फिर रेखा ने लिंग को पकड़कर अपनी योनि पर ऊपर से नीचे इस तरह रगड़ा कि उसकी भगनासा को भी रगड़ मिली और लंड को उसकी बुर से निकलते पानी से चिकनापन मिला, फिर लिंग के अग्र भाग सुपारे को चूत के छेद पर रख कर धीरे से दबा दिया। आधा लंड बुर में घुस गया, फिर सिसकी लेते हुए आहें भरते पूरा लंड अपने अन्दर लेकर ऊपर नीचे होकर अपनी चुदाई का आनन्द लेने लगी।
एक बात तो है कि मर्द के ऊपर चढ़ कर चुदवाने में रेखा पारंगत लग रही थी, समझना मुस्किल था कि वो चुद रही है या चोद रही है। उसकी सांसें तेज और तेज होती जा रही थी। कितना आनन्द था इस क्रिया में, शब्दों में बयाँ नहीं कर पा रहा हूँ!
मैं अपनी आँखों के सामने उसके हिलते झूलते बड़े बड़े स्तनों को मसलने चूसने में मग्न था जो कड़क होकर लाल हो रहे थे।
इसी तारतम्य में मैंने एक बात बिल्कुल नई देखी कि अभी हाल पहले रेखा अपनी गांड का दवाब बनाकर चूत में मेरे लंड को ज्यादा से ज्यादा अन्दर घुसा रही थी, अब उसके एकदम उलट चूत में अन्दर लंड लेकर अपने योनिमुख को भींचकर जब अपना शरीर ऊपर उठती तो लगता जैसे मेरे लिंग को चूत के साथ ऊपर खींच रही हो, जैसा मुख चूषण करने में मजा आता है वैसा लग रहा था।
योनि मुख सिकोड़ने से भगनासा भी अन्दर को आ गई लिंग के समीप सटकर जिससे भगनासा को लिंग का घर्षण हर धक्के पर मिल रहा था। यह मजा मैं पहली बार किसी के साथ अनुभव कर रहा था।
रेखा की गति निरंतर बढ़ती जा रही थी, अब मेरे हाथ उसकी गांड को सहलाते हुए सहारा देकर उसे ऊपर नीचे करने में सहयोग कर रहे थे उसकी खुली जुल्फें मेरे चेहरे पर आ रही थी, आँखें शराबी हो गई थी आह्ह्ह… ओ… ओ… जीजू.. जू ..जू… ओ.. म माँ… इ… की आवाजें करते हुये सारा शरीर अकड़ाते हुए कटे वृक्ष की तरह मेरी छाती पर धम्म से आ गिरी, फिर बेल की तरह मेरे शरीर से लिपट गई।
मेरा खड़ा लंड उसकी बुर की गहराइयों के भीतर की झटकेनुमा हलचल को महसूस कर रहा था। यदि कुछ देर और झटके लगाती तो मेरा वीर्य भी पिचकारी से बाहर आ जाता!
अब मुझे कुछ मिनट अपना ध्यान दूसरी ओर लगाना चाहिए ताकि स्खलन जल्दी न हो जाये यह सोच फिर अपने हाथों से उसकी चिकनी, गठी हुई, सुडौल गांड की गोलाइयों को सहलाता हुआ उसके होंठ अपने होंठ से चूस रहा था।
कुछ देर बाद उसने अपना चेहरा उठाकर कहा- बहुत मजा आया जीजू आप के साथ!
‘मुझे भी तुमने एक नया अनुभव दिया है रेखा, जिसे मैं कभी नहीं भूल सकता।’ मैंने उसकी गांड को सहलाते हुए कहा- अभी तो बहुत कुछ बाकी है!
और उसकी गांड की दरार में अंगुली डाल गुदा छिद्र पर अंगुली से गुदगुदी कर दी।
फिर मैंने उसे पलंग से नीचे उतार कर घोड़ी बनने के लिए कहा तो बोली- जीजू, मेरे को वो सब पसंद नहीं प्लीज़, आगे चूत में जो करना है करो, पीछे गांड में नहीं करने दूंगी।
मैंने कहा- रेखा जी, मैं आपकी भावनाओं को समझता हूँ, मुझे भी गांड मारने का बिल्कुल शौक नहीं है पर सुन्दर सुगठित गांड की कद्र करता हूँ, चूमता सहलाता हूँ, फिर घोड़ी बनाकर पीछे से गांड के पास से चूत में लंड डालकर चुदाई करता हूँ तो गांड मारने की कमी महसूस नहीं होती। फिर तुम्हारी सुन्दर चिकनी गुलाबी कमसिन सी चूत छोड़कर गांड के चक्कर में क्यों पड़ने लगा।
अब रेखा जमीन पर खड़ी होकर अपनी कोहनी पलंग पर टिका कर घोड़ी बन गई। पतली कमर और चौड़ी गांड का मेल बड़ा ही कामुक लग रहा था।
काश गांड मारने का शौक होता तो…!
‘जीजू क्या सोच रहे हो?’ रेखा बोली।
‘डियर, तुम्हारी सेक्सी और सुन्दर सांचे में ढली कामुक काया को देखकर सोच रहा हूँ कि मैं तुमसे कभी तृप्त हो पाऊँगा या मेरी प्यास ऐसे ही सदैव बरक़रार रहेगी।’
‘जीजू, अभी तो मैं तुम्हारे सामने हूँ, अपनी प्यास बुझा लो, मेरे प्यासे मन को भी सीच दो अपने अमृत जल से!’
उसने अपनी गांड को कुछ इस तरह से फैलाया कि पीछे से ही गुलाबी रसभरी बुर दिखाई देने लगी जिसे देख लिंग को जैसे जान आ गई। फिर से सख्त होकर खड़ा हो गया।
अब मैं रेखा से बोला- जानेमन, एक बार इसे अपने मुँह में लेकर गीला कर दो!
रेखा ने लिंग को किस करते हुए लंड को चूस चूस कर लाल कर दिया, फिर लार से भिगोकर बाहर निकाल दिया।
मैंने पीछे से अपने लिंग को चूत पर रगड़ रसभरी के रस से भिगोया, फिर गांड के छेद से रगड़ते हुए चूत के मुहाने तक ले गया, नीचे से भाभी ने हाथ से सुपारा पकड़कर छेद पर लगा कर कहा- डाल भी दो न जीजू।
मैंने धीरे धीरे दबाव डाला तो लंड आधा अन्दर चला गया, बड़ा टाइट लग रहा था चूत में!
फिर रेखा ने अपना शरीर पीछे को ठेलकर पूरा अन्दर कर लिया, अब मैंने हाथ बढाकर मम्मे मसलना चालू किया, नग्न पीठ पर, गर्दन पर चुम्बन करते हुए मैंने जो झटके लगाना चालू किया तो दो तीन मिनट में ही रेखा और मेरी सीत्कारों से कमरे की शांति भंग होने लगी।
बीच बीच में उभरे नितम्बों को मसलता जाता, उनका स्पर्श लंड, अपनी कमर और जान्घों पर महसूस कर मेरी उत्तेजना बहुत बढ़ गई। रेखा अंट शंट बके जा रही थी, कभी कहती- और जोर से! कभी आह… ओ . उ… ईईईई फाड़ दो न…जोर से जीजू! हाँ… करो… ऊ ओ!
यह सुन कर मेरे लंड में भी उफान आ गया फिर दोनों एक साथ चरम पर पहुँच कर स्खलित हो गए और पलंग पर वैसे ही लेट गए। रेखा नीचे उसकी गांड और पीठ पर मैं लदा हुआ!
दो मिनट बाद लंड सिकुड़ कर बाहर आ गया तो मैं खड़ा हो गया।
रेखा भी फ़ौरन खड़ी हो गई तो चूत से रसधारा उसकी रानों पर बह निकली। वो भाग कर बाथरूम में धोने चली गई, उसके बाद मैंने अपनी धुलाई सफाई की।
रेखा कपड़े पहनने लगी तो मैंने उसे पलंग पर अपने पास खींच लिया, पूछा- मजा आया या नहीं?
बोली- बहुत, इतना मजा पहली बार आया।
मैंने कहा- फिर कपड़े क्यों पहन रही हो? एक बार और करूँगा भाभी। कल शाम तुम्हारी दीदी की छुट्टी अस्पताल से हो जाएगी, हमारे पास कल दोपहर तक का वक्त और है।
रेखा बोली- अभी खाना बनाना है, लेट हो जायेंगे, फिर बाजार का सामान भी लेना है।
मैंने कहा- अपन खाना होटल में खा लेंगे फिर सामान खरीदकर अस्पताल पहुँच जायेंगे।
रेखा बोली- यहाँ से जाने के बाद हमें आपकी बहुत याद आएगी जीजू! अगर हम मिलने का प्रयास करेंगे तो किसी दिन बदनाम भी हो सकते हैं।
‘मुझे भी आपकी याद आयेगी भाभी! पर हमें अपने पर कंट्रोल रखना पड़ेगा, भूल से कोई गलत मजाक भी नहीं करना है। हमें जिन्दगी में कभी मौका मिला तो हम जरुर मजे करेंगे, नहीं तो ये यादें ही हमारे लिए काफी हैं।’
बातों के साथ साथ ही मैं एक हाथ से उसके बृहद स्तनों को मसल रहा था दूसरे हाथ की अंगुली से चूत को कुरेद रहा था।
वो मेरे सीने पर उगे बालों को ऊँगलियों से सहला रही थी, दूसरे हाथ से मेरे लिंग को मसल रही थी। लंड ने अंगड़ाई लेते हुए फिर से अपना सिर उठा लिया।
अबकी बार रेखा को चित्त लिटाकर उसके पैर अपने कन्धों पर रख लंड को उसकी जगह दिखा दी, फिर जोर से लंड को चूत में ठेल दिया।
अचानक हमले से चिहुंक उठी रेखा।
फिर लब-चुम्बन करते हुए, स्तन मर्दन करते चुदाई का दौर जोरों से चला, अलग अलग कई आसनों से चुदाई करते हुए एक दूसरे को संतुष्ट कर जब वासना का तूफान थम गया तब नहा धो कर होटल से खाना खाकर सारा सामान लेकर आठ बजे अस्पताल पहुँच गए। अस्पताल में हमारी माताजी मेरी के पास बैठी थी जो सात बजे गाँव से अस्पताल पहुँच गई थी।
रात में रेखा को अस्पताल छोड़ माँ को लेकर घर आ गया।
दूसरे दिन दोपहर में रेखा से मिलन नहीं हो पाया माँ जो घर में थी। शाम को पत्नी और नए मेहमान को घर ले आया। उनके भाई यानि साले साहब भी आ गए तो माँ ने रेखा को साले साहब के साथ जाने की अनुमति दे दी।
तब से आज तक रेखा से मुलाकात तो होती रहती पर सेक्स का मौका नहीं मिला। लगता है पत्नी को फिर से जच्चा बनाना पड़ेगा। अंकल, आंटी, भाभी, लड़के और लड़कियाँ तमाम कहानी पढ़ने वाले पाठक अपनी प्रतिक्रिया एवं राय निम्न इमेल आईडी पर भेजें, सबका स्वागत है।
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