This website is for sale. If you're interested, contact us. Email ID: [email protected]. Starting price: $2,000
लेखक : अलवी साहब
सीढ़ियाँ उतरते मुड़ के वापस उसके पास गया और कलाई पकड़ के एक तरफ लिया और पूछा- चेहरा क्यों उतरा हुआ है?
तो इतनी मासूमियत से उसने कहा- आप जा रहे हैं इसलिए !
अल्लाह, क्या खूब अदा दी है तूने इस हंगामा-परस्त खूबसूरती को !
मैंने कहा- दो घंटे बाद हाल में रिसेप्शन और निकाह का प्रोग्राम है, अब हम लोग वहाँ मिलेंगे !
और रिसेप्शन के वक़्त सब वहाँ हाज़िर हो गए थे, दुल्हन और उसकी दोनों सहेलियाँ और शहनाज़ ये चारों भी आ गए, स्टेज पर दुल्हे दुल्हन की कुर्सी पर दुल्हे दुल्हन आ गए, दुल्हे की तरफ हम लड़के और दुल्हन की तरफ मेरी शहनाज़ और बाकी लड़कियाँ थी। हम दोनों लोगों से नज़रें चुरा कर आपस में मुस्कराहट से प्यार कर रहे थे एक दूसरे को। मैंने कोई ना देखे, इसका ख़याल करके आँख मारी शहनाज़ को तो उसने गुस्से से होंठ पे दांत दबा के मुझे डांटा कि ‘कोई देख लेगा यहाँ’, तो मैं शरारत से हंस दिया, मैंने एक गुलाब देखा, उठाया और उसे दुल्हे दुल्हन की कुर्सी के पीछे इशारे से बुलाया और महकता हुआ गुलाब-ए-इश्क उसे बहुत प्यार से हाथ में दिया और ‘आई लव यू’ कहा
वो हल्के से मुस्कुरा दी। दुल्हन ने मेरा ‘आई लव यू’ सुन लिया, तिरछी निगाह से हम दोनों को देखा।
हम दोनों हड़बड़ाहट से अलेहदा (अलग) हो गए, और फ़िर इसी तरह शाम तक हमारा सफ़र-ए-इश्क महेव-ए-मंजिल रहा, और जब रुखसती तमाम हुई, तो दुल्हन वाले लौट के जाने की तैयारी करने लगे तो मेरा कलेजा तन्हाई के खौफ से लरज़ने लगा कि शहनाज़ आज ही मिली और आज ही लौट जाएगी !?!
‘ए खुदा, तूने मोहब्बत ये बनाई क्यों है?
गर बनायी तो मोहब्बत में जुदाई क्यों है?’
दुल्हन तो चली गई अपने सुहाग की पनाह में, और रज़िया आई मेरे पास- हमारा सामान होटल के कमरे पड़ा है, और हमें बस तक जाना है।
मैंने कहा- कोई बात नहीं, तुम दोनों जाओ बस पर, मैं शहनाज़ और सामान दोनों पहुँचा देता हूँ बस पे आपको !
रज़िया हंसते हुए बोली- सही सलामत पहुँचाना दोनों सामान को !
मैंने भी हंसते हुए जवाब दिया- आपका सामान अमानत से पहुँचेगा और मेरा सामान मेरी जागीर है अब, वो अब अमानत मेरी है।
तो रज़िया बोली- या अल्लाह, एक ही दिन में अपना बना लिया?
मैंने कहा- अपना तो सुबह ही बना लिया तो अभी तो आपको बता रहा हूँ।
शहनाज़ भी वहीं खड़ी सर झुकाए रज़िया की मौजूदगी के लिहाज़ के पेशेनज़र शरमा रही थी।
और फ़िर हम दोनों बाईक लेके अफज़ल के घर गए, वहाँ से कार ली, अफज़ल को बाईक दी और कहा- अब मैं इनको और इसके सामान को होटल से बस तक पहुँचा कर सीधे वहीं से निकल जाऊँगा।
वो रोकने लगा मगर मैं रुका नहीं और फ़िर मैं और शहनाज़ कार से होटल गए, अन्दर कमरे में दाखिल हुए, मैंने कहा- जल्दी सामान पैक कर लो।
मैं वाशबेसिन पर मुँह धोने लगा तो उतने में शहनाज़ पीछे से मुझसे लिपट गयी, मेरे गालों पर चूमने लगी- फ़िरोज़, अब कब मिलना होगा?
मैंने कहा- मेरे दिल की शहजादी का जब दिल करे तब मिलेंगे हम मेरी जान !
और यह कह कर पलट कर मैंने उसे बाहों में जकड़ लिया बेपनाह ताकत से, वो बे’आब मछली की मानिंद मचलने लगी मेरी ताकतनुमा बाहों की शिकस्त में,
उसके उरोज बुरी तरह दब गए मेरे सख्त सीने से, और उसने भी अपने बांहें मेरे गले में डाल दी और मेरी पुश्त (पीठ) पर अपना हाथ फेरने लगी। बहुत ही बेखुदगी और बेचैनी और बेअख्तियारी के आलम में वो मुझसे लिपटी हुई मुझसे प्यार कर रही थी और मैं भी उसी शिद्दत से उसे अपनी आगोश-ए-इश्क में दबाये हुए प्यार कर रहा था।
कुछ लम्हे यूँ ही बीत गए, कि वो बेसाख्ता रोते हुए बोली- आप मेरी ज़िन्दगी के मालिक हैं, कभी छोड़ना मत अब मुझे !
जवाबन मैंने कहा- नहीं छोडूंगा मेरी रूह-उल अफशा, मेरी आँखों का नूर हो अब तुम, मेरी बेकरार जवानी को तुमने आके महेव-ए-करार किया है, मेरे लहू की हर बूंद बूंद में तुम्हारे इश्क का इस कदर नशा भरूँगा के मेरे रोम रोम तुम्हारे मुश्ताक रहेंगे मेरी जान, बस अब रहती ज़िन्दगी तक मेरी साँसों की रवानी पर आप साहिबान हो, आप हुक्मुरान हो, आप मेरे दिल की रु-ए-ज़मीन अब से हाकिम हो ! आई लव यू मेडली जान !
इतने में रजिया का फ़ोन आया- जल्दी करो, बस तैयार है।
फ़िर हम लोगों को न चाहते हुए भी वक़्त की तंगी के पेशे नज़र एक दूसरे की बाहों से जुदा होना पड़ा, दोनों के जिस्मों में यलगार लगी हुई थी, दोनों की जिस्मानियत जल कर ख़ाक हो जाने को आमादा थी, मगर हम बैग उठा के चल दिए और कार में बैठ गए।
कार स्टार्ट करके देखा कि सन्नाटा है तो इसका जायज़ फायदा उठा लिया और शहनाज़ के बालों को जकड़ कर उसे मेरी जानिब झुका के उसके लबों पे अपने लब रख दिए और बेहद बेचैनी से उसे चूमने लगा, उसने भी साथ दिया, मगर वक़्त की तंगी को नज़र में रखते हुए किस करते हुए ही कार को पहले गेअर में डाला और चलाई तो शहनाज़ अपनी जगह पर सही से बैठ गई और मैंने उसे बस पर छोड़ दिया।
मैं हाथ मलता रह गया और शहनाज़ चली गई।
मानो ता-हद्दे नज़र अन्धेरा तारी हो गया मेरी नजरों के आगे, और फ़िर बस के निकलने के बाद मैं भी कार लेकर उसके पीछे पीछे चलने लगा। बस को अहमदबाद जाने के लिए भावनगर से ही जाना पड़ता है तो भावनगर तक इस बस के साथ ही चलूँगा क्योंकि इसमें मेरी शहनाज़ है।
कुछ देर चली थी के रज़िया के मोबाईल से मिस काल आया। मैंने काल किया तो शहनाज़ बोली- आप कहाँ पहुँचे?
मैंने कहा- आपकी बस के पीछे ही हूँ देखो पीछे !
तो वो बोली- मैं आ जाऊँ क्या?
मैंने कहा- आ जाओ !
तो कहने लगी- न बाबा, सब बातें करेंगे !
और फिर थोड़ी सी बातें की और फोन रखा। फ़िर अपना म्युज़िक प्लेयर ओन करके स्पीड से कार चलाने लगा और सीधे घर आ गया, करीब रात को दो बजे रज़िया के फोन से शहनाज़ का फिर फोन आया कि हम लोग सही सलामत पहुँच चुके हैं।
मैंने कहा- शुक्र खुदा का, मेरी जान सही सलामत पहुँच गई ! खुदा इसी तरह हर मुसाफिर को अपनी मंजिल तक सही सलामत इज्ज़त के साथ पहुँचाये !
शहनाज़ ने आमीन कहा, शहनाज़ बोली- कल मैं आपको अपने मोबाईल से काल करुँगी और फ़िर गुड नाईट और ‘आई लव यू’ के बाद फोन रख दिया।
दोस्तो, उम्मीद करता हूँ कि मोहब्बत की इज्ज़त करने वालों को यह कहानी पसंद आई होगी, और सिर्फ सेक्स के लिए कहानी पढ़ने वालों से भी गुजारिश होगी कि थोड़ा सब्र रख कर मेरी कहानियाँ पढ़ें, आपको वो सब भी पढ़ने को मिलेगा जो आप ज़्यादातर कहानियों में पढ़ते हैं, मगर मेरी कहानियों में एक कायदे से पढ़ने को मिलेगा आपको ! तमाम रोमांस के साथ, पूरी मोहब्बत के साथ।
तब तक आप लोग मुझे मेल ज़रूर कीजिये ताकि हौसला बना रहे आगे की वारदात-ए-इश्क को यहाँ तहेरीर (लिखने) करने का,
अब इजाज़त लेता हूँ दोस्तों आप से !
This website is for sale. If you're interested, contact us. Email ID: [email protected]. Starting price: $2,000