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मैं आपको मेरे जीवन की उस घटना के बारे में बताना चाहता हूँ जब एक सुंदरी को मैंने काम सुख प्रदान किया था तथा बदले में उससे रति सुख लिया था।
तो बात को ज्यादा लम्बा न खींचते हुए सीधा उस लड़की का परिचय करवाता हूँ- उसका नाम पयस्विनी है, पयस्विनी का मतलब ही दूध देने वाली होता है तो यह तो असंभव ही है कि उसके पास दुग्ध को एकत्रित करने के लिए विशाल पात्र न हों।
कहने का तात्पर्य यह कि पयस्विनी स्तनों के मामले में संपन्न थी, उसे परमपिता परमेश्वर ने सामान्य से बड़े स्तन दिए थे कम से कम उनका विस्तार 35 इंच तक तो होगा ही तथा उसी अनुपात में उसके नितम्ब भी थे, जब वो चलती थी तो बरबस ही उसे गजगामिनी की उपमा देने का मन होता था, उसका कद भी अच्छा था यही कोई लगभग 5’8’।
मैं चूंकि मेरे घर से दूर हॉस्टल में रह कर पढ़ता था। जब मैं दिवाली की छुट्टी में घर आया तब पहली बार उसे देखा था, हुआ यूँ कि हमारा परिवार काफी संपन्न है तथा ब्रिटिश काल में हम ज़मींदार हुआ करते थे जिनकी शान अभी भी बाकी है, बड़ा सा किले नुमा घर तथा काफी मात्रा में घर पर गायें भी हैं जिन्हें चरवाहे चरा कर शाम को घर छोड़ देते हैं तथा दूध भी निकाल कर घर पर दे देते हैं।
तो मूल बात अब शुरू होती है जब मैं द्वितीय वर्ष में था, मैं दिवाली की छुट्टी में आया तो मैंने देखा कि हमारे पुराने मुंशी जी का निधन हो जाने के कारण नए मुंशी जी केशव बाबू आये हैं, केशव बाबू की पत्नी का निधन बहुत पहले ही हो गया था, उनकी केवल एक पुत्री थी जो हमारी कहानी की नायिका है पयस्विनी।
पयस्विनी भी द्वितीय वर्ष मैं ही पढ़ती थी तथा वह भी छुट्टियों में घर पर आई थी। वैसे तो केशव बाबू को रहने के लिए हमारे घर के परिसर में ही जगह दे दी गई थी तथा उनके लिए खाना भी भिजवा दिया जाता था परंतु पयस्विनी के आने के बाद वही खाना बनाती थी।
एक दिन की बात है, मैं सुबह सुबह बाहर अहाते में पिताजी के साथ बैठ कर समाचार पत्र पढ़ रहा था, तभी मैंने पयस्विनी को पहली बार देखा था, सुबह सुबह वह नहा कर आई थी, उसने सफ़ेद रंग के कसे हुए सलवार-कुरता पहने हुए थे उसके बाल गीले थे, इन सब में उसका कसा हुआ शरीर गजब ढा रहा था, उसके शरीर का एक एक उभार स्पष्ट दिख रहा था वह किसी स्वर्गिक अप्सरा के समान लग रही थी। अन्दर मेरी मां नहीं थी इसलिए उसे हम लोगों के पास आना पड़ा।
जैसे ही वो मेरे पास आई, मेरी श्वास-गति सामान्य नहीं रही, जैसे ही उसने बोलने के लिए अपना मुख खोला तो उसके मुँह से पहला शब्द ‘दूध’ निकला। इस शब्द को बोलने के लिए उसके दोनों ओंठ गोलाकार आकृति में बदल गए जो मदन-मंदिर के समान लग रहे थे। उसकी वाणी में जो मधुरता थी, उसके तो क्या कहने !
वास्तव में उसके पिता का कोई आयुर्वेदिक इलाज चल रहा था इसलिए उसे गाय के शुद्ध दूध की जरूरत थी, एकबारगी तो मैं अचकचा गया था, परंतु पिताजी के समीप ही बैठे होने कारण मैंने अपने आपको संभाला और तुरंत अन्दर जाकर उसे दूध दे दिया।
तो यह थी हमारी पहली मुलाक़ात ! इसके बाद मैं कॉलेज चला गया, वह भी अपने कॉलेज चली गई परंतु मेरे मन उसके प्रति एक आकर्षण उत्पन्न हो गया था, हो भी क्यूँ ना, उसे देख कर मुर्दे का भी लिंग जागृत हो जायेगा, फिर मैं तो जीता जगता इंसान हूँ।
परीक्षा समाप्त होने के बाद जब मैं वापस घर आया तो इस बार मैं कुछ तैयार हो कर आया था। मेरे माता पिता थोड़े धार्मिक प्रवृत्ति के हैं अतः उन्होंने बुद्ध पूर्णिमा के अवसर पर हरिद्वार जाने का कार्यक्रम बनाया।
वे वहाँ पर लगभग दो महीने रहने वाले थे, मेरी मां ने मुझे भी चलने के लिए कहा पर मैंने कहा कि मुझे पढ़ाई करनी है इसलिए आप लोग जाओ, मैं यहीं रहकर पढ़ूगा तो इस प्रकार मेरे माता रवाना हो गए थे।
बरसात का मौसम आने वाला था, इसलिए ज्यादातर नौकर भी अपने गाँव चले गए थे केवल एक नौकर बचा जो कि मेरा खाना बनाता था।
इस प्रकार हमारे दिन निकल रहे थे।
पयस्विनी रोज़ दूध लेने के लिए आती और मैं उसे दे देता था। इसी प्रकार हमारी थोड़ी थोड़ी बातचीत शुरु हुई और अब हम काफी घुलमिल भी गए थे।
ऐसे ही हमें एक हफ्ता हो गया था, जमीन से सम्बंधित कोई जरूरी कागजात पर पिताजी के हस्ताक्षर बहुत जरूरी थे इसलिए पिताजी ने मुंशी जी को वो कागजात लेकर हरिद्वार बुला लिया। मुंशी जी जाने से पहले मेरे पास आये तो मैंने कहा- आप चिंता क्यों करते हैं, आप आराम से हरिद्वार जाएँ, दो दिन की ही तो बात है, पयस्विनी यहीं पर रह लेगी और उसे खाना बनाने की क्या जरूरत है, नौकर बना देगा और फिर दो ही दिन की तो बात है, आप वापस तो आ ही रहे हैं, थोड़ा बहुत मेरे साथ पढ़ भी लेगी।
इससे मुंशी जी को थोड़ी संतुष्टि मिली।
फिर मैं उन्हें ट्रेन तक छोड़ने चला गया।
वापस घर लौटते लौटते मुझे कुछ देर हो गई और मैं शाम को सूरज के छिपने के बाद घर पहुँच पाया और काफी थकान होने के कारण जल्दी ही मुझे नींद आ गई।
अगले दिन सुबह मुझे लगा कि कोई मुझे झकझोर रहा है और उनींदी आँखों से मैंने देखा कि यह तो पयस्विनी है वो नहाने के बाद मुझे नाश्ते के लिए जगाने आई थी।
पर मैं तो उसके गीले बालों, जो कि खुले हुए थे और उसके नितम्बों तक आ रहे थे, के बीच में उसके चेहरे को ही देखने में खो गया। नयन-नक्श एकदम किसी रोमन देवी के समान और स्तन और नितम्बों का विकास तो किसी पुनरजागरण कालीन यूरोपियन मूर्ति का आभास करवा रहे थे।
जब उसने मुझ से दूसरी बार पूछा तब मेरी चेतना लौटी और हकलाते हुए मैंने कहा- आप यहाँ?
तो उसने कहा- रामसिंह (कुक) के परिवार में किसी का निधन हो गया है और इस कारण आज घर पर आप और मैं दो लोग हैं इसलिए नाश्ता और खाना मैं ही बनाऊँगी।
मैंने अचकचाते हुए कहा- ठीक है !
और पयस्विनी के जाने का इंतजार करने लगा क्योंकि मैंने नीचे केवल अंडरवियर पहना हुआ था और अपने शरीर को कम्बल से ढका हुआ था और कम्बल नहीं हटाने का कारण तो आप जानते ही हैं, अन्दर पप्पू मेरे अंडरवियर को तम्बू बना रहा था। मैंने बैठे बैठे ही कहा- आप चलिए, मैं फ्रेश होकर डायनिंग टेबल पर आता हूँ।
तो वो जाने लगी पर जैसे ही वो मुड़ी मेरी हालत तो और ख़राब हो गई क्योंकि जब वो चल रही थी तो उसका एक नितम्ब दूसरे से टकरा कर आपस में विपरीत गति उत्पन्न कर रहे थे, ऐसा लग रहा था जैसे अपने बीच में आने वाली किसी भी चीज़ को पीस कर रख देंगे।
जैसे तैसे मैं आपको नियंत्रित करते हुए बाथरूम में पहुँचा, जल्दी से फ्रेश हुआ और नहा धोकर डायनिंग टेबल पर पहुँच गया।
हालाँकि डायनिंग टेबल बिल्कुल तैयार थी पर पयस्विनी को वहाँ न पाकर मैं रसोई में गया तो देखा कि वह घुटनों के बल उकड़ू बैठी है, उसका चेहरा आगे की तरफ झुका हुआ है और वह नीचे सिलेंडर को चेक कर रही है, उसकी पीठ मेरी तरफ थी और इसलिए उसे नहीं ध्यान था कि मैं उसके पीछे खड़ा होकर उसके वस्त्रों का चक्षु भेदन कर रहा हूँ।
अब आप ही बताइए कि एक स्वस्थ युवा के लिए यह कैसे संभव है कि सामने एक अतुलनीय सुंदरी अपने नितम्बों को दिखाती हुई खड़ी हो और वो निष्पाप होने का दावा करे।
वास्तव में पाप-निष्पाप भी कुछ नहीं होता, हर घटना, हर वस्तु का केवल होना ही होता है, उसके अच्छे या बुरे होने का निर्धारण तो हर कोई अपनी अपनी सुविधानुसार करता है।
जो भी हो पयस्विनी को पहले ही दिन देख कर मेरे मन में और नीचे कुछ कुछ होने लगा था और अब जब हम दोनों अकेले थे तो मेरी इस इच्छा ने आकार लेना आरम्भ कर दिया था..
अचानक से पयस्विनी मुड़ी और मेरी आँखों से उसकी आँखें मिली तो उसने फिर अपनी आँखें लज्जावश नीचे झुका ली।
मैंने मदद के लिए पूछा तो उसने कहा- शायद सिलेंडर में गैस ख़त्म हो गई है। मैंने कहा- मैं देखता हूँ।
और मैंने नीचे झुककर जैसे ही सिलेंडर को छूने का प्रयास किया मेरा हाथ पयस्विनी के हाथ से छू गया और इस प्रथम स्पर्श ने मेरे पूरे शरीर में झुरझुरी उत्पन्न कर दी पर अभी भी जबकि इस घटना को दो वर्ष बीत गए हैं, मैं उस कोमल स्पर्श की अनुभूति से बाहर नहीं आ पाया हूँ। मैंने उससे कहा- सिलेंडर को बाद में देखते हैं, पहले नाश्ता कर लिया जाये क्योंकि बहुत जोर की भूख लगी है, कल रात को भी बिना कुछ खाए ही सो गया था।
तो उसने कहा- ठीक है।
और हम दोनों नाश्ते की मेज पर पहुँच गए। नाश्ता भी उसने बहुत ही लजीज बनाया था, पूरा नाश्ता उसकी पाक प्रवीणता की प्रशंसा करते करते ही किया और हर बार उसके चेहरे पर एक लालिमा सी आ जाती जो मुझे बहुत ही अच्छी लग रही थी।
नाश्ता करने के बाद मैं अपने कमरे में चला गया और कुछ पढ़ने लगा और पयस्विनी ने मुझे कमरे में आकर कहा कि वह भी रसोई का काम निपटा कर अपने घर चली जाएगी। उसका घर वहीं परिसर में था तो मैंने कहा- घर में तुम अकेले बोर हो जाओगी इसलिए अपनी बुक्स लेकर यहीं आ जाओ, साथ में बैठ पढ़ेंगे।
उसने कहा- ठीक है।
मुझे अपने कमरे में आकर बैठे हुए अभी कुछ देर ही हुई थी कि पिताजी का फ़ोन आया और कहा- मुंशी जी भी कुछ दिन यहीं रहेंगे हमारे साथ, आखिर उनकी भी तो तीर्थयात्रा करने की उम्र हो गई है..
मैंने उन्हें नहीं बताया कि रामसिंह भी छुट्टी लेकर अपने गाँव चला गया है और घर पर हम दोनों अकेले हैं। मैं मन ही मन लड्डू फ़ोड़ते हुए एक पुस्तक खोलकर बैठ गया पर आज मन नहीं लग रहा था, थोड़ी ही देर में पयस्विनी भी अपनी पुस्तकें लेकर आ गई।
मैंने उसको अपनी ही स्टडी टेबल पर सामने की तरफ बैठने के लिए कह दिया। थोड़ी देर तक तो दोनों पढ़ते रहे पर मेरा मन तो कहीं और ही घूम रहा था इसलिए मैंने ऐसे ही उससे बातें करनी शुरु कर दी। मैंने उससे उसकी पढ़ाई के बारे में पूछा तो पता चला कि वो दिल्ली के एक प्रतिष्ठित महिला कॉलेज में पढ़ती है।
मैंने आश्चर्य से कहा- मैं भी दिल्ली में ही पढ़ता हूँ।
और इस तरह हमारा बातों का सफ़र आगे बढ़ा। मैंने उससे उसकी स्टडी के बारे में पूछा तो पता चला कि वह संस्कृत साहित्य की विद्यार्थी है और संस्कृत में बी.ए. ऑनर्स कर रही है।
शायद इसी कारण उसमे वो बात थी जो मुझे और लड़कियों में नहीं दिखती। एक अपूर्व तन की स्वामिनी होते हुए भी वह बिल्कुल निर्मल और अबोध लगती थी जैसे उसे अपने शरीर के बारे में कुछ ध्यान ही न हो।
यहाँ से मुझे ऐसे लगने लगा था कि शायद कुछ काम बन जाये। हालाँकि मैं राजनीति शास्त्र का विद्यार्थी हूँ। पर मुझे संस्कृत काफी आनन्ददायक लगती है इसलिए मैं थोड़ा-बहुत हाथ-पैर संस्कृत में भी चला लेता हूँ और बात को आगे बढ़ाते हुए मैंने कथासरित्सागर नामक एक प्राचीन संस्कृत ग्रन्थ का उल्लेख किया जो मैंने कुछ वर्ष पहले पढ़ा था, तो तुरंत पयस्विनी ने कहा- कथासरित्सागर तो अश्लील है।
मैंने इसका प्रतिवाद किया और पूछा- अश्लीलता क्या होती है?
उसने सीधा कोई उत्तर नहीं दिया तो मैंने बताया कि जिसे तुम अश्लील साहित्य कह रही हो वो हमारे स्वर्ण काल में लिखा गया था। वास्तव में प्रगतिशील समाजों में यौनानंद को लेकर कोई शंका नहीं होती है जैसे कि आज के पश्चिमी यूरोप और अमेरिका हैं। प्राचीन काल में यौनानन्द को लेकर समाज में निषेध की भावनाएँ नहीं थी, इसे एक आवश्यक और सामान्य क्रियाकलाप की तरह लिया जाता था। और इसके बाद आया हमारा अन्धकाल ! जब हमने अपने सब प्राचीन परम्पराओं को भुला दिया या हमारे उन प्राचीन प्रतीकों को पश्चिम से आने वाले जाहिल मूर्तिपूजा विरोधियों ने नष्ट भ्रष्ट करना आरम्भ कर दिया। इस प्रकार हम हमारी प्राचीन परम्परा से दूर होते गए और धीरे धीरे हम भी नाम से भारतीय बचे बाकी मानसिकता हमारी भी उन मूर्तिपूजा जाहिलों जैसी हो गई जो यौन कुंठाओं के शिकार थे, और इसीलिए हमने श्लील और अश्लील जैसे शब्दों का आविष्कार किया और कुछ गतिविधियों को अश्लीलता के कॉलम में डालकर उन्हें समाज के लिए निषेध कर दिया गया।
इस उद्बोधन का पयस्विनी पर काफी प्रभाव पड़ा और वह मुझसे कुछ-कुछ सहमत भी हो रही थी।
माहौल को कुछ हल्का करने के लिए मैंने उससे बातों बातों में पूछा- क्या तुम टेबल टेनिस खेलना जानती हो?
तो उसने हामी भरी तो हमने तय किया कि टेबल टेनिस खेला जाये।
घर में टेबल-टेनिस खेलने का सारा इन्तजाम पहले से ही था क्योंकि मैं टेबल टेनिस का राष्ट्रीय खिलाड़ी हूँ तो हम दोनों ने टेबल टेनिस खेलना आरम्भ कर दिया।
खेल की शुरुआत से ही मुझे लगा कि वह अपने कपड़ों की वजह से खेल में पूर ध्यान नहीं दे पा रही है क्योंकि उसकी थोड़ा बहुत इधर उधर मूव करते ही उसकी चुन्नी अस्त व्यस्त हो जाती और मुझे उसके वक्ष के दर्शन हो जाते। इस प्रकार पहला गेम मैं जीत गया।
गेम की समाप्ति के बाद मैंने उससे कहा की यदि उसे सलवार कुरते में खेलने से परेशानी हो रही हो तो मेरे शॉर्ट्स और टीशर्ट पहन सकती है तो उसने शरमाते हुए कहा- मैं शॉर्ट्स और टी शर्ट कैसे पहन सकती हूँ।
तो मैंने कहा- क्यों मैंने भी तो पहने हुए हैं!
मैंने कहा- वैसे भी यहाँ हम दोनों के अलावा कौन है जो तुम्हें शॉर्ट और टीशर्ट में देख लेगा?
तो उसने कहा- ठीक है।
और मित्रो, हम दोनों वापस मेरे बेडरूम में गए, मैंने अपने शॉर्ट्स और टीशर्ट उसको दिए।
हालाँकि वो कुछ शरमा रही थी पर मैंने उसको प्रोत्साहित करते हुए कहा- ऐसे क्या गाँव वालों की तरह बर्ताव करती हो, जल्दी से चेंज करके आओ।
तो वो मेरे बाथरूम की तरफ बढ़ गई, थोड़ी देर बाद जब वो बाहर निकली तो सफ़ेद शॉर्ट और टीशर्ट में जबरदस्त आकर्षक लग रही थी, बस टीशर्ट कुछ ज्यादा ही बड़ा था जो शॉर्ट्स को लगभग ढक ही रहा था और फ़िर मैंने मेरे पप्पू को नियंत्रित करते हुए उसे वापस टेनिस टेबल पर चलने को कहा।
अब हमने खेल पुनः आरम्भ किया, इस बार टॉस पयस्विनी जीती, उसने पहले सर्विस करने का फैसला किया और एक तेज सर्विस मेरी तरफ की।
हालाँकि मैं चाहता तो उस सर्विस को वापस खेल सकता था पर मैंने जानबूझ कर उसे जाने दिया और इस ख़ुशी में पयस्विनी एकदम से उछल पड़ी जिसके कारण उसके स्तन भी उसके साथ उछले और मेरे नीचे कुछ होने लगा।
अगली बार मैंने एक तेज शोट मारा जो टेबल के बिल्कुल बाएं हिस्से पर लग कर नीचे गिर गया।
पयस्विनी इस शोट को काउंटर करने के लिए तेजी से एकदम आगे बढ़ी पर गेंद काफी आगे थी और इस कारण पयस्विनी का संतुलन बिगड़ गया और वह टेबल पर एकदम झुक गई, उसने पूरी कोशिश की सँभालने की पर उसके स्तन टेबल पर छू ही गए, पयस्विनी एकदम झेंप से गई पर मैंने माहौल को हल्का बनाते हुए वापस सर्विस करने को कहा।
और इस तरह हमारा खेल चलता रहा।
इस बार मुकाबला कांटे का था, पयस्विनी भी काफी सक्रिय लग रही थी। आप तो जानते ही हैं कि टेबल टेनिस एक फुर्ती वाला खेल है और इसे खेलने वाला अगर ढंग से खेले तो पूरा शरीर कुछ ही देर में पसीने से भीग जाता है।
ऐसा ही हमारे साथ हुआ, थोड़ी ही देर में हम दोनों के कपड़े हमारे शरीर से चिपक गए थे।
जैसा कि हमारे भारत में आम है कि गाँव के लोगों को बिजली की सप्लाई सरकार बहुत कम करती है, इस कारण लाइट भी थोड़ी देर में चली गई, अब जनरेटर चलने का समय तो हमारे पास था नहीं, हम खेलने में मशगूल थे, थोड़ी ही देर में मैंने तो गर्मी से परेशान होते हुए अपने टीशर्ट उतार कर रख दिया और खेलने लगे।
हालाँकि मैं खेल तो रहा था पर इस बार मेरा ध्यान टेबल टेनिस की छोटी सी गेंद पर कम और पयस्विनी की विशाल गेंदों पर ज्यादा था इसलिए इस बार का गेम मैं हार गया।
पयस्विनी की ख़ुशी मुझे उसके स्तनों के ऊपर नीचे होने से दिख रही थी।
खैर खेलते खेलते काफी देर हो गई थी और पयस्विनी काफी थक भी गई थी इसलिए मैंने कहा- चलो, अब खेल बंद करते हैं, मेरे रूम में चलते हैं, रूम में जाकर मैं बेड पर बैठ गया और पयस्विनी पास में कुर्सी पर बैठ गई।
तो मैंने कहा- यहाँ आराम से बैठो न बेड पर ! यह इस तरह परहेज रखना ठीक बात नहीं है, आखिर हम दोनों दोस्त हैं।
तो पयस्विनी भी वहीं बेड पर आकर बैठ गई। यह कहानी आप अन्तर्वासना.कॉम पर पढ़ रहे हैं।
इस तरह बैठे बैठे उसने कहा कि अब वो कपड़े चेंज कर लेती है तो मैंने कहा- क्या जरुरत है? तुम इनमें भी अच्छी लग रही हो !
तो उसने कहा कि नहीं वो चेंज करेगी और उठकर बाथरूम की तरफ जाने लगी। उसकी मंशा समझते हुए मैं फुर्ती से उठकर गया और उससे पहले बाथरूम में जाकर उसके कपड़े उठा लिए, पयस्विनी भी पीछे पीछे बाथरूम में ही आ गई और मुझसे अपने कपड़े मांगने लगी।
मैंने कहा- खुद ले लो !
जैसे ही उसने हाथ आगे बढ़ाया, मैं वहाँ से हट गया और इस तरह हमारे बीच छीना-झपटी का खेल चालू हो गया। अचानक पयस्विनी ने अपने हाथ मेरे पीछे की तरफ ले जाकर मेरा दायाँ हाथ पकड़ने की कोशिश की पर इस प्रयास में उसका दायाँ स्तन मेरे बाएं कंधे से जबरदस्त रगड़ खा गया।
अब मेरा बायाँ पाँव पयस्विनी के दोनों पैरों के बीच था, मेरा बायाँ हाथ पयस्विनी कीदाहिनी जांघ के पास उसके नितम्ब को छू रहा था और मेरे दाहिने हाथ से मैंने पयस्विनी के बायें कंधे को हल्का सा धक्का देकर बाथरूम से बाहर आ गया, पीछे पीछे पयस्विनी भी आ गई।
अब वास्तव में कपड़े लेना तो बहाना थे, हम दोनों को इस छीना-झपटी में आनन्द आ रहा था।
चूंकि इन सब गतिविधियों के कारण मेरा पप्पू कुछ कुछ उत्तेजित हो गया था जो बिना टीशर्ट के शॉर्ट्स में छुपाना असंभव हो गया था, पयस्विनी ने भी पप्पू के दीदार कर लिए थे और उसकी आँखों में मुझे अब परिवर्तन नजर आ रहा था और इसी कारण अब वो भी थोड़ा ज्यादा सक्रिय होकर इस छीना-झपटी का आनन्द ले रही थी, मैं दौड़ कर बेड के ऊपर चढ़ गया था और पयस्विनी भी बेड पर चढ़ गई और मेरे हाथ से अपने कपड़े छीन लिए जैसे ही वो अपने कपड़े लेकर मुड़ी मैंने पीछे उसे पकड़ कर अपनी तरफ खींच लिया।
मेरे हाथ उसके स्तनों और कमर के बीच में थे, मैंने उसे अपने बाहुपाश में कसके अपनी तरफ खींच लिया। अब उसके नितम्ब मेरी जाँघों को छू रहे थे और पप्पू अपने पूर्ण विकसित रूप में आकर में उसके दोनों नितम्बों के बीच में था। उसकी बढ़ी हुई धड़कनों को मैं साफ़ महसूस कर रहा था।
शॉर्ट्स पहने हुए होने के कारण उसकी पिंडलियाँ मेरी पिंडलियों से छू रही थी और इतनी देर की उछल कूद ने हमारे अन्दर जबरदस्त आवेश भर दिया था।
उसके पेट को थोड़ा और दबाते हुए मैंने अपने मुँह को उसकी गर्दन के पास ले जाकर उसे कान में धीरे से पूछा- मैडम, वट डू यू वान्ट?
और उसने अपने दायें हाथ को पीछे ले जाकर…
कहानी जारी रहेगी।
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