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शाम को मैं फिर घर पहुँची। राकेश आये तो उन्होंने रात को सोते समय फिर मुझे दबोच लिया, अपना खड़ा लंड मेरे हाथों में थमा दिया।
मैं जानती थी कि उन्हें चुसवाने में बड़ा मजा आने लगा है, मैंने भी चूस चूस कर उन्हें मस्त कर दिया, फिर उनके ऊपर चढ़ कर उनका लंड अपनी बुर में ठूंस कर अपने चूतड़ों को गोल गोल घुमाकर जो झटके पर झटके लगाये तो हम दोनों ही स्वर्ग का मजा ले रहे थे पर मेरी चूत चुसवाने की तमन्ना दिल में ही रह गई, अभी तक राकेश ने मेरी चूत को अपने होंठ या जीभ से नहीं सहलाया था।
सुबह उठकर दैनिक कामों में लग गई, आठ बजे राकेश जाने लगे तो उन्हें छोड़ने दरवाजे तक गई, जैसे ही दरवाजा खोला, राकेश के साथ बाहर आई तो गली में एक कुतिया और कुत्ता संभोगरत दिखाई दिए, दरवाजे की आहट से कुतिया कुत्ते के नीचे से निकल गई तो कुत्ता फिर उसके पीछे जाकर कुतिया की चूत चाटने लगा, उसके गुल्ली जितने लंड से वीर्य की बूँदें टपक रही थी। हम दोनों को हंसी आ गई।
राकेश बोले- क्या देख रही हो? जाओ अन्दर !
फिर राकेश चले गए, मैंने दरवाजा बंद कर लिया !
पर अन्दर आकर कुत्ते कुतिया का सम्भोग देखने की इच्छा बलवती होने लगी तो मैंने खिड़की का पर्दा हटाया, देखा कि कुत्ता कुतिया अभी भी सम्भोग के लिए प्रयासरत हैं, जैसे ही कुतिया कुत्ते के नीचे से निकलती, कुत्ता पीछे जाकर उसकी चूत की चटाई करता फिर उसके ऊपर चढ़कर चुदाई करने लगता।
अबकी बार उसको कोई आहट नहीं मिली और वो लगातार चार पाँच मिनट कुतिया को दनादन चोदता रहा। फिर कोई गली में आया और उन्हें भगा दिया मेरी नजर में कुत्ते का रस टपकता लंड और कुतिया की चूत की चटाई बस से गए ! यह कहानी आप अन्तर्वासना डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं।
मुझे याद आया कि गांव में जब भैंस पर भैंसा चढ़ता था तो वो भी भैंस की चूत जीभ से चाटता था ! इन मूक पशुओं को देखो, कितने मजे से चुसाई और चटाई करते हैं पर एक राकेश है जो समझ ही नहीं रहा मेरी भावनाओं को ! फिर सर से क्या उम्मीद कर सकते हैं !
अगर मेरा वश चलता तो मैं तो कुत्ते से भी अपनी चूत चटवा लेती पर मैंने भी ठान ही लिया कि अब मुझे ही कुछ करना पड़ेगा !
आज फिर नौ बजे सर के निवास पर पहुँची तो पता चला सर की माताजी चार पाँच दिन के लिए आई हुई हैं, मेरी सारी तमन्नाओं पर पानी फिर गया लेकिन खुश थी कि राकेश तो मेरे को मस्त करने में माहिर हो रहा है।
शाम को जब घर गई तो सारे काम निपटाकर राकेश के इंतजार में बैठ गई !
राकेश मेरे बालों के लिए वेणी लेकर आये थे, आते ही मेरे बालों में लगाकर मुझे चूम लिया। वो तो मेरे चुच्चे पकड़ने वाले थे अगर मैं न कहती कि पहले मुँह हाथ धोकर खाना खा लो !
फिर जब बिस्तर पर पहुँची तो राकेश तो बिना चड्डी के ही लुंगी पहने लेटे हुए अपने लंड को सहलाकर तैयार कर रहे थे। मैंने बाथरूम में जाकर अपनी योनि को साफ करके अच्छे से धुलाई की, फिर सूखे कपड़े से पौंछकर सुखा ली। थोड़ा सुगन्धित पाउडर लगाकर कमरे में आकर मैंने मेक्सी उतार दी और सिर्फ पेंटी पहने उनसे जाकर चिपक गई। उन्होंने तुरंत मेरी दोनों गेंदों को लपक लिया, एक को मुँह में डालने की कोशिश करने लगे, अपने लंड को मेरे ज्यादा से ज्यादा पास करने की कोशिश कर रहे थे तो मैंने अपनी योजना के मुताबिक उसे थाम लिया और हाथों से सहलाने लगी।
तो वे बोले- विनी इसे किस करो ना अपने मुँह में लेकर !
तो मैंने लौड़े के टोपे को ऊपर से चूम कर छोड़ दिया और उन्हें चुसाई के लिए तरसाने के उद्देश्य से उनसे लिपटने लगी पर उन्हें तो चुसाई का चस्का लग चुका था, बोले- विनी चाटते हुए चूसो ना इसे !
मैंने कहा- चूसने में कैसा लगता है?
वे बोले- विनी, बहुत मजा आता है, ऐसा अहसास जिसको मैं शब्दों से नहीं बता सकता !
तो मैंने कहा- तुम मुझे चूस कर इसका अहसास करा दो ना ! जरा मुझे भी तो पता चले आपके आनन्द का !
तो वो घूमकर मेरी चूत की तरफ मुँह करके लेट गए, मेरी चिकनी चूत, जिसे आज सुबह ही मैंने शेव करके चिकनी बना दिया था, को देखते ही बिना विलम्ब उस पर अपने होंठ रखकर पप्पी कर दी, फिर उसकी खुशबू से मस्त होते हुए अपनी जीभ से चूत की फलकों को छेड़ दिया।
“उईई… आआह्ह्ह…” मेरी तो किलकारी सी निकल गई !
मैंने तुरंत अपनी मुट्ठी में पकड़े लंड को अपने मुँह में डाल लिया और अपनी जीभ से उसके सुपारे को छेड़ने लगी। वो जोश में आकर
अपनी जीभ को चूत में घुसाने का प्रयास करने लगे। इसी क्षण का मुझे इंतजार था, मेरी सिसकारियों से कमरे की शांति भंग होने लगी !
मैंने जोरों से इनके लौड़े को चूसना चाटना शुरू कर दिया, मैं इनकी उत्तेजना को ज्यादा से ज्यादा बढ़ना चाहती थी, मेरी हर हरकत का उन पर पूरा असर देखते हुए मैंने लंड को मुँह में अन्दर-बाहर करना शुरू कर दिया, उसी गति से वो अपनी जीभ को चूत के अन्दर बाहर कर रहे थे !
आह्ह्हह्ह…ओ… राजा… जोर सीई ईईए .. मेरी तो चीखने का मन हो रहा था ! उनके होंठों से मेरे दाने को रगड़ मिल रही थी।
मेरी चुसाई की तमन्ना पूरी हो रही थी, उत्तेजना हर क्षण बढ़ती जा रही थी।
फिर वो क्षण आ गया, जो नहीं आता तो मैं तो बेहोश ही हो जाती, जब मेरी चूत से रस की धारा छुट गई, मेरा बदन अकड़ने लगा, मैंने उनका सिर अपनी जांघों में दबा लिया, सोच रही थी- ये पल थम जाते काश !
राकेश के होंठ, दाढ़ी, गाल मेरे योनिरस से सराबोर हो गए थे, मैंने कपड़े से उनका मुँह साफ कर दिया, फिर अपने ऊपर खींच लिया !
राकेश ने मेरे ऊपर आकर मेरे चुच्चों को चूसते हुए लंड को गीली चूत पर रखकर अन्दर पेल दिया।
आह्ह्ह… लंड तो सीधा ही बिना अवरोध के अन्दर चला गया !
गीली फ़ुद्दी में जाते लंड का गुदगुदा अहसास भी गजब होता है।
मैंने कहा- पेलो न जोर से ! जानू… ओ…ह्ह्ह !
फिर लयबद्ध तरीके से राकेश ने मेरे पूरे जिस्म को मसलते, रौंदते जो गचागच पेलमपेल शुरू की, तो ऐसा लग रहा था कि इस चूत की गहराई को मापना कठिन है, जितना घुसवाओ उतना ही कम पड़ता है।
मैं तो मस्त होती जा रही थी- स्स्स्स…जोर से…हाँ…ऐसेस्स्स… करते जाओ !
यक़ीनन चुदाई का लुत्फ़ हम दोनों ऐसे ले रहे थे जैसे कल ही शादी हुई हो हमारी !
राकेश ने ठोक ठोक कर मेरी चूत को तृप्त कर दिया, अपना वीर्य मेरी योनि में जो भरा तो ऐसा लगा जैसे सूखे खेत की जमीन को पानी मिल गया हो !
सर के साथ फिर सेक्स करने का मौका नहीं मिला, जब मैडम आ गई तो अपने वादे के अनुसार मैंने भी सर को कभी बहकाने की कोशिश नहीं की। उनके अस्पताल से सीखा काम और वहाँ से मिला अनुभव मेरे को हमेशा काम आये, उसके बाद मेरी सरकारी नौकरी लगते ही वहाँ से चली गई !
अब राकेश का लंड मेरी वासना की पूरी तरह से पूर्ति करता है। यह भी सच है कि जरुरी नहीं कि अब हम रोज सेक्स करते हैं, जरुरी यह होता है जब भी हम सेक्स करते हैं तो उन्मुक्त होकर पूरी तरह से एक दूसरे को संतुष्ट करते हैं !
तो यह कहानी थी विनीता की, जिसमें सारे नाम परिवर्तित हैं, विनीता ने मुझे अपनी कहानी बताई थी, मैंने उसे कुछ सुधार और संशोधन करके आपके समक्ष प्रस्तुत किया।
हो सकता है इसे लिखने में कुछ त्रुटि रह गई हो। उसे आप नजरंदाज करके अपने कहानी प्रस्तुतकर्ता रोनी सलूजा को अपने विचार जरूर भेजें !
जल्द ही आपके लिए नई कहानी लेकर फिर आपसे मुखातिब होऊँगा !
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