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मैं उनके बालों को सहलाते हुए अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के गर्व से फूली नहीं समा रही थी।
फिर मैंने माफ़ी मांगते हुए उन्हें सारी सच्चाई बता दी तो वो हँसते हुए बोले- मैं डॉक्टरक्टर हूँ, तुम्हें बाथरूम से उठाकर लाया था, तभी समझ गया था कि तुम्हें कहीं चोट नहीं लगी है। फिर तुम्हारी परेशानी को देखते हुए मैंने भी तुम्हारा साथ दे दिया, आइन्दा ऐसा प्रयास कभी ऐसा दोबारा मत करना, न ही इस गोपनीयता को भंग करना।
रही बात प्रयास की तो ‘यह आने वाली परिस्थितियों पर निर्भर करता है !’ कहती हुई मैं बाथरूम में जाकर मूतने बैठ गई। मेरी चूत में पहले ही जलन से हो रही थी, गर्म गर्म पेशाब से मेरी चूत में तो आग सी लग गई। मूतने के बाद मैंने अपनी बुर का मुआयना किया मेरी बुर की इतनी बुरी हालत कभी नहीं हुई थी, उसका मुँह तो जैसे खुला ही रह गया था, फिर उसे ठन्डे पानी से धोया तो बड़ी राहत मिली।
इतना सबक भी लिया कि सेक्स का मजा सामने वाले को तरसा कर, तड़पा कर और सता कर ही ठीक से मिलता है, इसमें धैर्य बहुत जरुरी है।
डॉक्टर के साथ एक ही बार की चुदाई करने के बाद मेरे पोर पोर में दर्द हो रहा था, एक मीठी सी कसक का अहसास हो रहा था, जोर से ठोका-बजाया था उन्होंने ! वो तो अच्छा हुआ मेरी सील राकेश ने पहले तोड़ दी थी और मेरी चूत को रगड़ रगड़ कर थोड़ा ढीला कर दिया था, कहीं डॉक्टर ने मेरी सील तोड़ी होती तो मैं तो अभी बेहोश पड़ी होती।
मेरी इच्छानुसार मेरे को तगड़ा डोज मिल गया था जैसा मैं चाह रही थी। चलने में मेरे पैर दुःख रहे थे !
जैसे तैसे किचन में जाकर उनका खाना बनाया, फिर मैं उनके निवास से निकलकर अपने घर चली आई, फिर नहा धोकर मेक्सी पहन कब सो गई पता ही नहीं चला।
रात आठ बजे राकेश ने दरवाजा खटखटाया तो मेरी नींद खुली, बोले- अभी सो रही हो? यह क्या वक्त है सोने का?
तो मैंने फ़ौरन बहाना बनाया- मेरी तबियत कुछ ठीक नहीं थी तो अस्पताल से जल्दी आ गई थी, फिर मेरी नींद लग गई। आप मुँह-हाथ धो लो, मैं खाना लगाती हूँ।
फिर खाना गर्म करके हम दोनों ने साथ साथ खाया, फिर उसके बाद जब मैं सोने पहुँची तो राकेश बिस्तर में मेरा ही इंतजार कर रहे थे, आज बड़े रोमांटिक मूड में थे।
मेरे लेटते ही अपना एक पैर मेरी जांघों पर रख लिया करवट लेकर एक हाथ से मेरे स्तनों को सहलाने लगे, दुखते हुए स्तनों को बड़ी राहत सी मिल रही थी। मैंने भी करवट लेकर राकेश के कच्छे के ऊपर से ही उनके लौड़े को सहलाने लगी।
धीरे धीरे उसका आकार बढ़ने लगा, मैंने मेक्सी के नीचे कुछ नहीं पहना था, मेरे स्तन कठोर से होने लगे, चूत में फड़कन सी होने लगी। हालांकि वो अभी भी दर्द से कसक रही थी, उसमें कुछ सूजन भी आ गई थी इसलिए पेंटी नहीं पहनी थी मैंने।
जब राकेश का लंड कठोर हो गया तो मैंने कच्छा उतार दिया, बनियान भी उतार दिया, फिर उसके बदन को चूमने लगी, लंड को पप्पी तो कई बार की थी, आज पप्पी करते हुए मुँह में ले लिया था, उसे चूसने लगी, बड़ा ही मजा आ रहा था।
राकेश तो बस चिहुंक उठे, वो आह्ह्ह ओह्ह स्स्स्स जैसी आवाज निकालने लगे, बोले- विनीता, आज तुम बड़े ही रोमांटिक लग रही हो यार ! क्या बात है जानेमन?
“ओह्ह स्स्स्स !”
राकेश ने मेरी मेक्सी उतार कर अलग कर दी। वो मेरी चूत में अंगुली डालकर अन्दर बाहर करने लगे, मुझे बड़ा ही सुकून सा मिल रहा था, बार बार डॉक्टर का चेहरा और उनका बड़ा लंड मेरी आँखों के सामने आ रहा था जिससे मेरी उत्तेजना बढ़ रही थी, मेरी चूत ने पानी छोड़ना शुरू कर दिया, एकदम गीली हो गई, उनकी अंगुली बिना किसी अवरोध के सटासट मेरी चूत में अन्दर-बाहर हो रही थी। साथ ही साथ मेरी क्लिटोरिस को भी रगड़ मिल रही थी।
मेरे मुँह से भी स्स्स्स… ऊऊ… आआअह्हह्हह… की आवाज निकल रही थी, मैं उनके दोनों कूल्हों को दोनों हाथ से थामकर तेजी से लंड-चूसन करने लगी। राकेश एक हाथ से मेरे स्तनों को सहलाते हुए मेरी चूत का अंगुली-चोदन कर रहे थे। मेरी चूत से स्खलन के साथ बहुत सा रस निकलकर राकेश की हथेली को भिगो गया। मैंने अपनी चूत को संकुचित कर जांघों के साथ एकदम दबा लिया। तभी राकेश के लंड से वीर्य की धार निकल पड़ी, मैं अपना मुँह लंड से हटाती, तब तक दो तीन पिचकारी मेरे मुँह में ही चल गई थी।
पहली बार मैंने वीर्य का स्वाद लिया था, मैंने अपनी मेक्सी से मुँह साफ किया, फिर जहाँ वीर्य गिरा था, वहाँ साफ किया और राकेश के बाजु में जाकर लेट गई, उनके सीने पर हाथ फेरती हुई बोली- राकेश आज आपने मेरी चूत को अपने हाथ से सहलाकर मेरे को कितना सुख दिया ! मुझे बहुत अच्छा लगा !
तो राकेश भी बोले- तुमने भी तो मेरे लंड को सहलाकर कितने अच्छी तरह से चूसा, मैं तो बस धन्य ही हो गया।
मैं सोच रही थी कि यह तो अन्तर्वासना की कहानियों में मैंने पढ़ा था इसलिए नहीं तो लंड जैसी चीज को मुँह में लेना ! मैं कहाँ जानती थी कि यह इतना मजेदार हो सकता है। मुझे तो अब यह लगने लगा कि कोई मेरी चूत को भी अपने होंठों में लेकर चूस ले पर इतनी जल्दी यह बात राकेश से कहना गलत होता !
वो सवाल करते कि तुम्हें लंड चूसना, चूत चुसाना किसने सिखा दिया।
इसलिए उस इच्छा को छोड़कर चूत में लंड लेने के लिए राकेश को तैयार करने लगी, उनके लिंग को हाथ में लेकर मसलते सहलाते हुए आगे पीछे करने लगी तो उसमें फिर उठान आने लगा।
अक्सर एक ही बार सेक्स के बाद हम दोनों सो जाते थे, दोबारा करने का मौका ही नहीं मिल पाता था और राकेश सो जाते थे। आज उनको चूत नहीं मिली तो अभी तक जग रहे थे। मैंने भी एक बार अपनेआप को स्खलित कर लिया, उन्हें भी स्खलित कर दिया, मन ही मन डॉक्टर को धन्यवाद दिया- वाह डॉक्टर ! एक अध्याय तो सिखा ही दिया आपने सेक्स सुख लेने का ! अभी तो बहुत कुछ सीखना है।
सोच ही रही थी कि राकेश बोले- मेरे खड़े लंड को अब अन्दर डालने दोगी या यूँ ही माल निकाल दोगी रगड़ रगड़ कर?
उनका लौड़ा अब और भी ज्यादा कठोर होकर तनतना गया था, मैं सोचने लगी कि यह लौड़ा मेरी चूत के दर्द को और भी बढ़ा देगा,
फिर सोचा ‘जब ओखली में सर दे ही दिया तो अब मूसल से क्या डरना !’
मैंने भी अपना जोर दिखाते हुए कहा- आ जा मेरे राजा, आज तो तेरे को पूरा ही अन्दर घुसा लूँगी, आ घुस !
कहते हुए मैंने अपनी टांगों को घुटने से मोड़कर दायें बायें फैला ली, लालिमायुक्त चूत ने अपना मुँह खोल लिया, राकेश ने अपने खड़े कठोर लंड को दोनों पंखुड़ियों के बीच लगाकर धीरे से आधा लंड अन्दर पेल दिया- ऊई ईइ… माँ… स्स्स्स मेरे मुँह से घुटी सी चीख निकल गई, पहले से सूज गई चूत की गुफा भी संकरी हो गई थी शायद, राकेश का लौड़ा भी सर के लंड जितना मजा और दर्द दे रहा था ! मेरी तो निकल पड़ी थी !
अब राकेश ने घस्से लगाना शुरू किया तो मैं भी अपने चूतड़ उठा उठा कर ताल से ताल मिलाने लगी, ‘आह्ह्ह… उईई’ के साथ मेरी सिसकारियाँ बढ़ने लगी। राकेश लगातार चोदे जा रहा था, कभी मेरे निप्पल अपने मुँह में लेकर चूस रहा था, कभी मेरे स्तनों को सहलाकर मसल देता ! मैं जन्नत की सैर कर रही थी, ऐसी ही चुदाई की तो तमन्ना की थी मैंने।
लेकिन राकेश एक बार स्खलित हो चुके थे, इसलिए अब वो स्खलित जल्दी नहीं होंगे, मेरी जांघों में दर्द होने लगा।
मैंने चुदाई को बीच में रोककर अपना आसन बदल लिया, मैं कोहनी और घुटने के बल घोड़ी बन गई, अपने नितम्बों को बाहर की ओर इतना उभार दिया कि पीछे से चूत के दर्शन होने लगे। फिर राकेश के लंड को चूत के मुहाने पर टिका कर कहा- अब डालो अन्दर… ‘ओह्ह… आःह्ह… हाय.. रे..’ क्या सटीक धक्का लगाया, मैं तो निहाल हुई जा रही थी, अपनी किस्मत पर नाज कर रही थी।
फिर तो पिस्टन की स्पीड से रगड़ते हुए राकेश भी इस आसन से उत्तेजित होने लगा।
वो पीछे से घस्से मार रहा था, मैं आगे से अपनी गांड को पीछे ठेलकर गपागप लंड को ज्यादा से ज्यादा अन्दर लेने की होड़ कर रही थी। इसके बाद उसने जो अपने लंड से मेरी चुदाई की, हाय दैया… मेरी मैया याद आ गई ओह्ह…आह्ह्ह.. लय बद्ध झूलते बेसहारा दूधों को दोनों हाथों में थाम कर सहलाते मसलते उसकी सांसों की गति बढ़ गई। कमरे में हम दोनों की सिसकारियाँ शांति को भंग करने लगी।
अचानक राकेश का लंड फूल गया, योनि की दीवारों में घर्षण और भी बढ़ गया, इन्ही आनंद के क्षणों में मेरी चूत ने अपना माल छोड़ दिया, योनि चिकनी होते ही राकेश ने अपना वीर्य तेज गति से मेरी चूत में भर दिया।
मैं तो वही वैसे ही धराशायी हो गई थी, मेरे ऊपर राकेश आ गिरे, लंड अभी भी चूत में सांसें लेते हुए अपनी अंतिम बूँदें गिरा रहा था।
राकेश ने मेरी पीठ और गर्दन पर पप्पी करते हुए कहा- विनी, आज तो बहुत मजा आया !
फिर हम बातें करते करते कब सो गए, पता ही नहीं चला।
सुबह जल्दी ही नींद खुल गई, सारा बदन टूट रहा था, मैंने एक जोरदार अंगड़ाई ली तो अपने नग्न बदन पर निगाह पढ़ते ही झट से मेक्सी उठाकर पहन ली। चादर उठाकर देखा तो राकेश भी नंगे सो रहे थे।
मैंने उनके लंड को एक बार फिर पप्पी लेकर छोड़ दिया, सोचने लगी कि कल का दिन मेरे लिए यादगार दिन रहेगा जब मैंने दो अलग अलग लोगों के साथ सम्भोग करके अपनी वासना की आग बुझाई।
निगोड़ी जवानी होती ही ऐसी है।
आज अपने नर्सिंग ट्रेनिग सेंटर के बाद अस्पताल गई, कमरे पर लौटते वक्त पता चला कि मेडम को आज आना था मगर वो अब गंगाजली और तेरहवीं पूजन करके ही लौटेंगी।
मेरी तो बांछें खिल गई यानि अभी दस दिन में कभी भी मस्ती करने का मौका मिल सकता है। फिर यह सोच कर कि वो लुत्फ़ दिन में उठाऊँगी, रात को आज फिर राकेश के लौड़े का मजा लूटना है !
इस समय मेरे दोनों हाथों में लड्डू आ गए थे। आगे क्या हुआ पढ़ते रहिये !
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