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मुझे पुरूष देह की आवश्यकता महसूस होने लगी थी। काश: इस समय कोई पुरूष मेरे पास होता जो आकर मुझे निचोड़ देता… मेरा रोम रोम आनन्दित कर देता… मैं तो सच्ची धन्य ही हो जाती।
मेरा दायें हाथ अब खुद-ब-खुद तेजी से चलने लगा था। आहह हह… उफ़्फ़फ… उईई ई… की मिश्रित ध्वनि मेरे कंठ से निकल रही थी। मैं नितम्बों को ऊपर उठा-उठा कर दायें हाथ के साथ…ऽऽऽ… ताल…ऽऽऽ… मिलाने… का… प्रयास…ऽऽऽ… करने लगी।
थोड़े से संघर्ष के बाद ही मेरी कामरज धारा बह निकली, मुझे विजय का अहसास दिलाने लगी।
मैंने मोमबत्ती योनि से बाहर निकाली, देखा पूरी मोमबत्ती मेरे कामरस गीली हो चुकी थी। मोमबत्ती को किनारे रखकर मैं वहीं बिस्तर पर लेट गई। मुझे तो पता भी नहीं चला कब निद्रा रानी ने मुझे अपनी आगोश में ले लिया।
दरवाजे पर घंटी की आवाज से मेरी निद्रा भंग की। घंटी की आवाज के साथ मेरी आँख झटके से खुली। मैं नग्नावस्था में अपने बिस्तर पर पड़ी थी। खुद को इस अवस्था में देखकर मुझे बहुत लज्जा महसूस हो रही थी। धीरे धीरे सुबह की पूरी घटना मेरे सामने फिल्म की तरह चलने लगी। मैं खुद पर बहुत शर्मिन्दा थी। दरवाजे पर घंटी लगातार बज रही थी। मैं समझ गई कि बच्चे स्कूल से आ गये हैं।
मैं सब कुछ भूल कर बिस्तर से उठी, कपड़े पहनकर तेजी से दरवाजे की ओर भागी।
दरवाजा खोला तो बच्चे मुझ पर चिल्लाने लगे। मुझे अपनी गलती का अहसास हुआ। आज तो लंच भी नहीं बनाया अभी तक घर की सफाई भी नहीं की।
मैं बच्चों के कपड़े बदलकर तेजी से रसोई में जाकर कुछ खाने के लिये बनाने लगी। घर में काम इतना ज्यादा था कि सुबह वाली सारी बात मैं भूल चुकी थी।
शाम को संजय ने आते ही पूछा- आज शादी वाली सीडी देखी थी क्या? तो मैंने जवाब दिया, “हाँ, पर पूरी नहीं देख पाई।”
समय कैसे बीत रहा था पता ही नहीं चला। रात को बच्चों को सुलाने के बाद मैं अपने बैडरूम में पहुँची तो संजय मेरा इंतजार कर रहे थे। वही रोज वाला खेल शुरू हुआ।
संजय ने मुझे दो-चार चुम्बन किये और अपना लिंग मेरी योनि में डालकर धक्के लगाने शुरू कर दिये। मैं भी आदर्श भारतीय पत्नी की तरह वो सब करवाकर दूसरी तरफ मुँह करके सोने का नाटक करने लगी। नींद मेरी आँखों से कोसों दूर थी। आज मैं संजय से कुछ बातें करना चाह रही थी पर शायद मेरी हिम्मत नहीं थी, मेरी सभ्यता और लज्जा इसके आड़े आ रही थी। यह कहानी आप अन्तर्वासना डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं।
थोड़ी देर बाद मैंने संजय की तरफ मुँह किया तो पाया कि संजय सो चुके थे। मैं भी अब सोने की कोशिश करने लगी। पता नहीं कब मुझे नींद आई।
अगले दिन सुबह फिर से वही रोज वाली दिनचर्या शुरू हो गई। परन्तु अब मेरी दिनचर्या में थोड़ा सा परिवर्तन आ चुका था। संजय के जाने के बाद मैं रोज कोई एक फिल्म जरूर देखती… अपने हाथों से ही अपने निप्पल और योनि को सहलाती निचोड़ती। धीरे धीरे मैं इसकी आदी हो गई थी। हाँ, अब मैं कम्प्यूटर भी अच्छे से चलाना सीख गई थी।
एक दिन संजय ने मुझसे कहा कि मैं इंटरनैट चलाना सीख लूँ तो वो मुझे आई डी बना देंगे जिससे मैं चैट कर सकूँ और अपने नये नये दोस्त बना सकूँगी। फिर भविष्य में बच्चों को भी कम्प्यूटर सीखने में आसानी होगी।
उन्होंने मुझे पास के एक कम्प्यूटर इंस्टीट्यूट में इंटरनैट की क्लास चालू करा दी। आठ-दस दिन में ही मैंने गूगल पर बहुत सी चीजें सर्च करना और आई डी बनाना भी सीख लिया। मैंने जीमेल और फेसबुक पर में अपनी तीन-चार अलग अलग नाम से आई डी भी बना ली। एक महीने में तो मुझे फेक आई डी बनाकर मस्त चैट करना भी आ गया।
परन्तु मैंने अपनी सीमाओं का हमेशा ध्यान रखा। अपनी पर्सनल आई डी के अलावा संजय को कुछ भी नहीं बताया। उसमें फ्रैन्डस भी बस मेरी सहेलियाँ ही थीं। मैं उस आई डी को खोलती तो रोज थी पर ज्यादा लोगों को नहीं जोड़ती थी। अपनी सभ्यता हमेशा कायम रखने की कोशिश करती थी। इंटरनेट प्रयोग करते करते मुझे कम से कम इतना हो पता चल ही गया था कि फेक आई डी बना कर मस्ती करने में कोई भी परेशानी नहीं है, बस कुछ खास बातों का ध्यान रखना चाहिए। ऐसे ही चैट करते करते एक दिन मेरी आई डी पर अरूण की रिक्वेस्ट आई। मैंने उनका प्रोफाइल देखा कही भी कुछ गंदा नहीं था। बिल्कुल साफ सुथरा प्रोफाइल। मैंने उनको एैड कर लिया।
2 दिन बाद जब मैं चैट कर रही थी। तो अरूण भी आनलाइन आये। बातचीत शुरू हुई। उन्होंने बिना लाग-लपेट के बता दिया कि वो पुरूष हैं, शादीशुदा है और 38 साल के हैं। ज्यादातर पुरूष अपने बारे में पूरी और सही जानकारी नहीं देते थे इसीलिये उनकी सच्चाई जानकर अच्छा लगा। मैंने भी उनको अपने बारे में नाम, पता छोड़कर सब कुछ सही सही बता दिया।
धीरे धीरे हमारी चैट रोज ही होने लगी। मुझे उनसे चैट करना अच्छा लगता था। क्योंकि एक तो वो कभी कोई व्यक्तिगत बात नहीं पूछते… दूसरे वो कभी भी कोई गन्दी चैट नहीं करते क्योंकि वो भी विवाहित थे और मैं भी। तो हमारी सभी बातें भी धीरे-धीरे उसी दायरे में सिमटने लगी। मैंने उनको कैम पर देखने का आग्रह किया तो झट ने उन्होंने ने भी मुझसे कैम पर आने को बोल दिया।
मैंने उनको पहले आने का अनुरोध किया तो वो मान गये, उन्होंने अपना कैम ऑन किया। मैंने देखा उनकी आयु 35 के आसपास थी। मतलब वो मुझसे 2-3 साल ही बड़े थे। उनको कैम पर देखकर सन्तुष्ट होने के बाद मैंने भी अपना कैम ऑन कर दिया। वो मुझे देखते ही बोले, “तुम तो बिल्कुल मेरे ही एज ग्रुप की हो। चलो अच्छा है हमारी दोस्ती अच्छी निभेगी।”
धीरे धीरे मेरी उनके अलावा लगभग सभी फालतू की चैट करने वालों से चैट बन्द हो गई। हम दोनों निश्चित समय पर एक दूसरे के इंतजार करने लगे। वो कभी कभी हल्का-फुल्का सैक्सी हंसी मजाक करते… जो मुझे भी अच्छा लगता। हाँ उन्होंने कभी भी मेरा शोषण करने का प्रयास नहीं किया। अगर कभी किसी बात पर मैं नाराज भी हो जाती तो वो बहुत प्यार से मुझे मनाते। हाँ वो कोई हीरो नहीं थे। परन्तु एक सर्वगुण सम्पन्न पुरूष थे।
एक दिन उन्होंने मुझसे फोन पर बात करने को कहा तो मैंने मना कर दिया। उन्होंने बिल्कुल भी बुरा नहीं माना। पर जब मैं चैट खत्म करने लगी तो उन्होने स्क्रीन पर अपना नम्बर लिख दिया… और मुझसे बोले, “कभी भी मुझसे बात करने का मन हो या एक दोस्त की जरूरत महसूस हो तो इस नम्बर पर फोन कर लेना पर मुझे अभी बात करने की कोई जल्दी भी नहीं है।”
मैंने उनका नम्बर अपने मोबाइल में सेव कर लिया। वो बात उस दिन आई गई हो गई। उसके बाद हम फिर से रोज की तरह चैट करने लगी।
एक दिन जब मेरा नैट पैक खत्म हो गया। मैं तीन दिन लगातार संजय बोलती रही। पर उन्होंने लापरवाही की और रीचार्ज नहीं करवाया। मुझे रोज अरूण से चैट करने की लत लग गई थी। अब मुझे बेचैनी रहने लगी। एक दिन मजबूर होकर अरूण को फोन करने की बात सोची पर ‘पता नहीं कौन होगा फोन पर’ यह सोच कर मैंने अपने मोबाइल से अरूण को मिस काल दिया। तुरन्त ही उधर से फोन आया। मैंने फोन उठाकर बात करनी शुरू की।
अरूण- हैल्लो ! मैं- हैल्लो ! अरूण- कौन? मैं- कुसुम ! अरूण- कौन? मैं- अच्छा जी, 4 दिन चैट नहीं की तो मुझे भूल गये। अरूण- ओह, तो तुम्हारा असली नाम कुसुम है पर तुमने तो अपनी आई डी मीरा के नाम से बनाई है और वहाँ अपना नाम भी मीरा ही बताया था।
मुझे तुरन्त अपनी गलती का अहसास हुआ पर क्या हो सकता था अब तो तीर कमान से निकल चुका था। मैं- वो मेरी नकली आई डी है। अरूण- ओह, नकली आई डी? और क्या क्या नकली है तुम्हारा? मुझे उनकी बात सुन कर गुस्सा आ गया।
मैं- जी और कुछ नकली नहीं है। लगता है आपको मुझ पर यकीन ही नहीं है।
अरूण- अभी तुमने ही कहा कि आई डी नकली है, और रही यकीन की बात तो अगर यकीन ना होता हो हम इतने दिनों तक एक दूसरे से बात ही ना करते। चैट पर तो लोग 4 दिन बात करते दोस्तों को भूल जाते हैं। पर मैं हमेशा दोस्ती निभाता हूँ और निभाने वालों को ही पसन्द भी करता हूँ।
मैं- अच्छा जी ! मेरे जैसी कितनी से दोस्ती निभा रहे हो आजकल आप?
अरूण- चैट तो दो से होती है पर दोनों ही तुम जैसे अच्छी पारिवारिक महिला हैं। क्योंकि अब हम इस उम्र में नहीं है कि बचकानी बातें कर सकें। तो मैच्योर लोगों से ही मैच्योर दोस्ती करनी चाहिए।
मैं अरूण की सत्यवादिता की कायल थी फिर भी मैंने और जानकारी लेनी शुरू की।
मैं- अच्छा, यह बताओ आपने अपने जीवन में कितनी महिलाओं से यौन सम्बन्ध बनाया है?
अरूण ने सीधे सीधे जवाब दिया- सात के साथ ! 3 शादी से पहले और 4 शादी के बाद। परन्तु मैंने आजतक किसी का ना तो शोषण करना ठीक समझा और ना ही किसी से सम्बन्धों का गलत प्रयोग करने की कोशिश की। हाँ मैंने कभी भी पैसे देकर या लेकर सम्बन्ध नहीं बनाया। क्योंकि मैं मानता हूँ सैक्स प्यार का ही एक हिस्सा है और जिसको आप जानते नहीं जिसके लिये आपके दिल में प्यार नहीं है उसके साथ सैक्स नहीं करना चाहिए।
मैं पूरी तरह उनसे सन्तुष्ट थी। अब हम इसी तरह हम रोज अब मोबाइल पर बातें करने लगे। कभी कभी फोन सैक्स भी करते।
एक दिन अरूण ने मुझे बताया कि उनकी मीटिंग है और वो तीन दिन बाद दिल्ली आ रहे हैं।
मैंने पूछा, “मीटिंग किस समय खत्म होगी?”
उन्होंने जवाब दिया, “मीटिंग को 4 बजे तक खत्म हो जायेगी। पर मेरी वापसी की ट्रेन रात को 11 बजे है तो मैं शाम को तुमसे मिलना चाहता हूँ। कहीं भी किसी कॉफी शाप में बैठेंगे, एक घंटा और एक दूसरे से मीठी-मीठी बातें करेंगे। क्या तुम बुधवार शाम को चार से पांच का टाइम निकाल सकती हो मेरे लिये?”
मैंने हंसते हुए कहा, “यह भी पूछने की बात है क्या? मैं तो हमेशा से आपने मिलना चाहती थी पर आप सिर्फ़ एक घंटा मेरे लिये निकालोगे, यह मुझे नहीं पता था।”
उन्होंने कहा, “तुम घरेलू औरत हो और ज्यादा घर से बाहर भी नहीं जाती हो, मैं तो ज्यादा समय निकाल लूंगा पर तुम बताओ क्या घर से निकल पाओगी…? और क्या बोलकर निकलोगी?”
अब तो मेरी बोलती ही बंद हो गई। बात तो उनकी सही थी। शायद मैं ही पागल थी जो ये सब नहीं सोच पाई थी। पर मैं उनकी सोच का दाद दे रही थी। कितना सोचते हैं अरूण मेरे बारे में ना?
हम रोज बात करते और बस उस एक घंटा मिलने की ही प्लानिंग करने लगे। आखिर इंतजार की घड़ी समाप्त हुई और बुधवार भी आ ही गया। संजय के जाते ही मैंने अरूण के मोबाइल पर फोन किया। तो उन्होंने कहा, “बस एक घंटे में गाड़ी दिल्ली स्टेशन पर पहुँच जायेगी… और हाँ, अभी फोन मत करना मेरे साथ और लोग भी हैं हम तुरन्त मीटिंग में जायेंगे। मीटिंग खत्म करके मैं उनसे अलग हो जाऊँगा… फिर 4 बजे के आसपास मैं तुमको फोन करूँगा।”
मेरे पास बहुत समय था। मैंने पहले खुद ही अपना फेशियल किया। मेनिक्योर, पेडिक्योर करके मैंने खुद को संवारना शुरू किया। शाम को 4 बजे मुझे अरूण से पहली बार मिलना था… मैं बहुत उत्साहित थी… मैं चाहती थी कि मेरी पहली छाप ही उन पर जबरदस्त हो… अपने मैकअप किट से वीट क्रीम निकालकर वैक्सिंग भी कर डाली… नहा धोकर फ्रैश हुई, अपने लिये नई साड़ी निकाली, फिर सोचा कि अभी तैयार नहीं होती शाम को ही हो जाऊँगी… अगर अभी तैयार हुई तो शाम तक तो साड़ी खराब हो जायेगी। मैंने फिर से नाइट गाऊन ही पहन लिया।
अब मैं शाम होने का इंतजार करने लगी। समय काटे नहीं कट रहा था.
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