तीसरी कसम-5

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प्रेम गुरु की अनन्तिम रचना

‘बस सर, अब वो वो… जल थेरपी… सिखा दो?’ उसकी आवाज थरथरा रही थी।

‘ह… हाँ… ठीक है… च… चलो बाथ रूम में चलते हैं’ मुझे लगा मेरा भी गला सूख गया है। मैं तो अपने प्यासे होंठों पर अपनी जबान ही फेरता रह गया।

उसने नीचे झुक कर फर्श पर पड़ी ब्रा और टॉप उठा लिया और अपनी छाती से चिपका कर उन नन्हे परिंदों को छुपा लिया और बाथरूम की ओर जाने लगी। मैं मरता क्या करता, मैं भी उसके पीछे लपका।

बात रूम में आकर मैंने गीज़र से एक बाल्टी में गर्म और दूसरी में ठण्डा पानी भरा और दो सूखे तौलिये उनमें डुबो दिए। पहले मैंने गर्म तौलिये से उसके उरोजों की सिकाई की बाद में ठण्डे से। जैसे ही ठण्डा तौलिया उसके उरोजों पर लगता उसके सारे शरीर में सिहरन सी दौड़ जाती और सारे रोम कूप खड़े से हो जाते। मैंने उसे भाप सेवन (स्टीम बाथ) के बारे में भी समझाता जा रहा था। वह तो आँखें बंद किये मेरे हाथों का स्पर्श पाकर मदहोश ही हुए जा रही थी। उसके पतले पतले होंठ अब गुलाबी से रक्तिम हो कर कांपने लगे थे। एक बार तो मन में आया कि इनको चूम ही लू। मेरा अनुमान था वो विरोध नहीं करेगी। सिमरन की तरह झट से मुझे बाहों में जकड़ लेगी। सिमरन का ख़याल आते ही मेरे हाथ रुक गए।

आप तो जानते हैं मैं सिमरन से कितना प्रेम करता था। मैं भला ऐसी जल्दबाजी और अभद्रता कैसे कर सकता था। भले ही मेरे मन में उसका कमसिन बदन पा लेना का मनसूबा बहुत दिनों से था पर मैं सिमरन के इस प्रतिरूप के साथ ऐसा कतई नहीं करना चाहता था।

हमें इस जल थरेपी में कोई 15-20 मिनट तो लग ही गए होंगे। मेरे हाथ रुके देख कर पलक को लगा शायद अब जल थरेपी का काम ख़त्म हो गया है।

‘और नहीं करना?’

‘ओह… हाँ बस हो गया?’ मेरे मुँह से निकल गया। मैं तो सिमरन के खयालों में ही डूबा था।

उसने टॉवेल स्टेंड से सूखा तौलिया उठाया और अपने उरोजों को पोंछ लिया। उसने ब्रा दुबारा पहन ली और फिर जल्दी से टॉप भी पहन लिया। अब बाथरूम में रुके रहने का कोई मतलब नहीं रह गया था।

कमरे में आने के बाद मैंने कहा,’पलक एक काम तो रह ही गया?’

‘वो.. क्या सर?’

‘ओह.. तुम्हें इनको चूसवाना भी तो सिखाना था ना?’

‘चाट गेहलो?’

‘मैं सच कहता हूँ इनको चुसवाने से ये जल्दी बड़े हो जायेंगे?’

‘आज नहीं सर, वो कल सिखा देना… अब मैंने ब्रा पहन ली है?’ कह कर वो मंद मंद मुस्कुराने लगी।

ये कमसिन लडकियाँ भी दिखने में कितनी मासूम और भोली लगती हैं पर आदमी की मनसा कितनी जल्दी भांप लेती हैं। चलो एक बात की तो मुझे तसल्ली है कि उसे मेरे मन की कुछ बातों का तो अब तक अंदाज़ा हो ही होगा। अब तो बस इस कमसिन कलि को अपने आगोश में भर कर इसका रस चूस लेने में थोड़ी सी देरी रह गई है। दरअसल मैं कोई जल्दबाजी नहीं करना चाहता था। कहीं ऐसा ना हो कि वो बिदक ही जाए और उसके साथ मेरा प्रथम मिलन का सपना केवल सपना ही बन कर रह जाए। मैं किसी भी हालत में ऐसा नहीं होने देना चाहता था।

‘सर…मुझे बहुत देर हो गई है। घर पर वो दादी और बुआ को कोई शक हो गया तो मेरा जीना हराम कर देंगी।’

‘क्यों ऐसी क्या बात है?’

‘अरे आप नहीं जानते, मैं उनको फूटी आँख नहीं सुहाती। बस उनको तो कोई ना कोई बहाना चाहिए पापा से शिकायत करने का !’

‘ओह…’

‘चलो छोड़ो… मैं भी क्या बातें ले बैठी ! कल का क्या प्रोग्राम है?’ उसने आँखें फड़फड़ाते हुए पूछा। उसके होंठों पर जो शरारत भरी कातिलाना मुस्कान थिरक रही थी मैं उसका मतलब बहुत अच्छी तरह जानता था।

‘तुम बताओ कल कब आओगी?’

‘प्रेम क्या तुम मेरे घर पर नहीं आ सकते?’ आज पहली बार उसने मुझे प्रेम के नाम से संबोधित किया था।

‘पर तुम्हारे घर पर तो वो दादी और पापा भी होंगे ना?’

‘ओह… पापा तो कल ही टूर पर चले गए हैं और दादी तो रात को 9 बजे ही सो जाती है !’

‘और वो तुम्हारी बुआ?’

‘आप भी ना पूरे गहले ही हैं? अरे भई वो तो कभी कभार दिन में ही आती है। आप ऐसा करो कल रात को 10:00 बजे के बाद आ जाना मैं सारी तैयारी करके रखूँगी।’

‘कैसी तैयारी?’ मेरा दिल जोर जोर से धड़कने लगा था।

‘ओह. आप भी घेले (लोल) हो ! मैं आयल मसाज और जल थैरेपी की बात कर रही थी !’ उसके मुँह पर अबोध मुस्कान थी।

‘ओह. हाँ… ठीक है…’

आप सोच रहे होंगे यह प्रेम गुरु भी अजीब पागल है हाथ आई चिड़िया को ऐसे ही छोड़ दिया साली को पटक कर रगड़ देते?

दोस्तों ! आप नहीं समझेंगे। मैं भला उसके साथ ऐसी जबरदस्ती कैसे कर सकता था। मेरी मिक्की और सिमरन की आत्मा को कितना दुःख होता क्या आपको अंदाज़ा है?

भले ही पलक नादाँ, अनजान, मासूम और नासमझ है अपना सर्वस्व लुटाने को तैयार है पर मैं अपनी इस परी के साथ ऐसा कतई नहीं कर सकता। मिक्की और सिमरन के प्रेम में बुझी मेरी यह आत्मा उसे धोखा कैसे दे सकती है। मैं उसकी कोमल भावनाओं से खिलवाड़ कैसे कर सकता था। कई बार तो मुझे लगता है मैं गलत कर रहा हूँ। लेकिन उसका चुलबुलापन, खिलंदड़ी हंसी और बार बार रूठ जाना और बात बात पर तुनकना मुझे बार बार उसे पा लेने को उकसाता रहता है। आदमी अपने आप को कितना भी बड़ा गुरु घंटाल क्यों ना समझे इन खूबसूरत छलाओं को कभी नहीं समझ पाता।

पलक ने मुझे अपना पता बता दिया था और यह भी चेता दिया था कि घर के पास पहुँच कर उसे मिस कॉल कर दूँ, वो दरवाजे पर ही मिल जाएगी।

पलक को मैं नीचे तक छोड़ आया। ऑटो रिक्शा में बैठने के बाद उसने मुझे एक हवाई चुम्बन (फ़्लाइंग किस) दिया। अब आप मेरी हालत समझ सकते हैं कि मैंने वो रात कैसे काटी होगी। मधु से फ़ोन पर एक घंटे सेक्स करने और दो बार पलक के नाम की मुट्ठ लगाने के बाद कोई 2 बजे मेरी आँख लगी होगी। और फिर सारी रात पलक के ही सपने आते रहे। मैंने सपने में देखा कि हम दोनों नदी के किनारे रेत पर चल रहे हैं और पलक खिलखिलाते हुए मेरा चुम्बन लेकर भाग जाती है और मैं उसके पीछे दौड़ता हुआ चला जाता हूँ।

हे लिंग महादेव ! इस नाज़ुक परी के कमसिन बदन की खुशबू कब मिलेगी अब तो बस तेरा ही आसरा बचा है।

कितना अजीब संयोग था पटेल चौक से कोई आधा किलोमीटर दूर सरोजनी नगर में 13/9 नंबर का दो मजिला मकान था। तय प्रोग्राम के मुताबिक़ मैं ठीक 10:00 बजे उसके घर के बाहर पहुँच गया। मैंने टैक्सी को तो पिछले चौक पर ही छोड़ दिया था। अक्टूबर के अंतिम दिन चल रहे थे। गुलाबी ठण्ड शुरू हो गई थी। मैंने पहले तो सोचा था कि कुरता पाजामा पहन लूं पर बाद में मैंने काले रंग का सूट और सिर पर काला टॉप पहनना ठीक समझा। इन दिनों में गुजरात में गणेश उत्सव और नवरात्रों की धूम रहती है। मैंने आज दिन में पूरी तैयारी की थी। मैं आज किसी चिकने चुपड़े आशिक की तरह पेश आना चाहता था। आज मैंने अपनी झांटें साफ़ कर ली थी और रगड़ रगड़ कर नहाया था। मैंने बाज़ार से दो गज़रे भी खरीद लिए थे और अपने कोट की जेब में दो तीन तरह की क्रीम और एक निरोध (कंडोम) का पैकेट भी रख लिया था। क्या पता कब यह हुस्न परी मेरे ऊपर मेहरबान हो जाए।

मैंने अपने मोबाइल से दो बार पलक को मिस काल किया।

वो तो जैसे मेरा इंतज़ार ही कर रही थी। उसने दरवाज़े का एक पल्ला थोड़ा सा खोला और आँखें टिमटिमाते हुए हुए पूछा,’किसी ने देखा तो नहीं ना?’

‘ना !’ मैंने मुंडी हिलाई तो उसने झट से मेरा बाजू पकड़ते हुए मुझे अन्दर खींच कर दरवाज़ा बंद कर लिया।

‘वो… तुम्हारी दादी?’ मैंने पूछा।

‘ओह दादी को गोली मारो, वो सो रही है सुबह 8 बजे से पहले नहीं उठेगी। मैंने उसे दवाई की डबल डोज़ पिला दी है। तुम आओ मेरे साथ।’ उसने मेरा हाथ पकड़ा और सीढ़ियों की ओर ले जाने लगी।

मैं चुपचाप उसके साथ हो लिया। उसके कमसिन बदन से आती मादक महक तो मुझे अन्दर तक रोमांच में भिगो रही थी। शायद उसने कोई बहुत तेज़ इत्र या परफ्यूम लगा रखा था। उसने अपने खुले बालों को लाल रिबन से बाँध कर एक चोटी सी बना रखी थी। सफ़ेद रंग की स्कर्ट के ऊपर कसे हुए टॉप में उसके गोलार्ध उभरे हुए से लग रहे थे। सीढियाँ चढ़ते समय उसके छोटे छोटे गुदाज़ नितम्बों को लचकते देख कर तो यह सिमरन का ही प्रतिरूप लग रही थी। मैं तो यही अंदाज़ा लगा रहा था कि आज उसने ब्रा तो नहीं पहनी होगी पर कच्छी जरुर गुलाबी रंग की ही पहनी होगी। इसी ख़याल से मेरा पप्पू तो अभी से उछल कूद मचाने लगा था।

शायद यह उसका स्टडी रूम था। कमरे में एक मेज, दो कुर्सियाँ और एक छोटा बेड पड़ा था। बिस्तर पर फूल बूटों वाली रेशमी चादर बिछी थी और दो तकिये रखे थे। एक कोने में उसके सफ़ेद जूते फेंके हुए से पड़े थे। मेज के ऊपर एक तरफ कंप्यूटर पड़ा था और साथ में 3-4 किताबें आदि बिखरी पड़ी थी। मेज पर एक कटोरी में शहद और एक में कच्चा दूध पड़ा था। साथ में तेल की दो तीन शीशियाँ और दो सूखे तौलिये भी रखे थे।

वो बिस्तर पर बैठ गई तो मैं पास रखी कुर्सी पर बैठ गया। मैं अभी यही सोच रहा था कि किस तरह बात शुरू करूँ कि पलक बोली- सर, एक बात पूछूं?

”हम्म्म…?’

‘क्या आप मधुर दीदी के भी चूसते हो?’

‘क्या?’ मैंने मुस्कुराते हुए पूछा।

‘तमे इतला पण भोला नथी कि मारी वात समझया न होय?’ (आप इतने भोले नहीं हैं कि मेरी बात ना समझे हों)

‘ओह… हाँ… मैं तो लगभग रोज़ ही चूसता हूँ !’

‘शु दीदी ने पण एम मजा आवे छे?’ (क्या दीदी को भी इसमें मज़ा आता है?)

‘हाँ उसे तो बिना चुसवाये नींद ही नहीं आती।’

‘अच्छा… ऐना बूब्स नु माप शु छे?’ (अच्छा? उनके बूब्स की साइज़ कितनी है?)

’36 की तो होगी।’

‘आने लगन पेला केटली हती?’ (और शादी से पहले कितनी थी?)

‘कोई 28 के आस पास !’

‘हटो परे झूठे कहीं के?’

‘मैं सच कहता हूँ मैंने उन्हें चूस चूस कर इतना बड़ा किया है !’

वो कुछ सोचने लगी थी। मैं उसके मन की उथल पुथल अच्छी तरह समझ सकता था। थोड़ी देर बाद उसने अपनी मुंडी को एक झटका सा दिया जैसे कुछ सोच लिया हो और फिर उसने बड़ी अदा से अपनी आँखें नचाते हुए पूछा,’वो… आज पहले मालिश करेंगे या…?’

‘पलक अगर कहो तो आज तुम्हें पहले वो… वो…?’ मेरा तो जैसे गला ही सूखने लगा था।

‘सर, ये वो.. वो.. क्या होता है?’ मेरी हालत को देख कर मुस्कुरा रही थी।

‘म… मेरा मतलब है कि तुम्हें वो बूब्स को चुसवाना भी तो सिखाना था?’

‘हाँ तो?’

कहानी जारी रहेगी !

प्रेम गुरु नहीं बस प्रेम

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