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मैं जानता हूँ कि आप सब बड़ी बेसबरी से ‘तेरी याद साथ है’ के आगे की कहानी पढ़ने के लिए अन्तर्वासना पर अपनी नज़रें गड़ाए बैठे हैं लेकिन आपको इतने दिनों से केवल निराशा ही मिल रही थी। ज़िन्दगी की कुछ बहुत ही विषम परिस्थितियों से घिर गया था जहाँ से निकलना थोड़ा कठिन हो रहा था इसलिए इतने दिन दूर रहा आप सबसे !
क्या करूँ दोस्तो, ये जज़्बात कम शब्दों में सिमटते ही नहीं…
खैर अब आगे बढ़ते हैं।
अपने जीवन का अब तक का सबसे अच्छा वक़्त बिताकर मैं फूला नहीं समां रहा था। प्रिया के जाने के बाद मैंने भी अपने बिस्तर को थाम लिया और थक कर चूर होने की वजह से लेटते ही नींद कि आगोश में समां गया। आँखे बंद होते ही मेरे जेहन में वो कामुक सिसकारियाँ गूंजने लगीं जो रिंकी और प्रिया के मुँह से निकले थे। मेरे होंठों पे बरबस एक मुस्कान सी आ गई और मैं मुस्कुराता हुआ सो गया।
सुबह दरवाजे पे दस्तक हुई और पता नहीं क्यूँ मैं एक बार में ही सिर्फ उस खटखटाहट से ही जाग गया। वैसे मैं सोने के मामले में बिल्कुल कुम्भकर्ण का सगा हूँ। सुबह देर तक सोना मेरी आदत है और जबतक मुझे झकझोर कर न उठाओ तब तक मैं उठता ही नहीं. हा हा हा हा …
आँखें खुल चुकी थीं और सीधे दीवार पे लटकी घड़ी पे गई, देखा तो सुबह के 5 बज रहे थे…मैं थोड़ा अचंभित सा हो गया, ‘इतनी जल्दी…कौन हो सकता है??’ मैंने खुद से फुसफुसाकर पूछा और धीरे से आवाज लगाई…
“कौन…?? कौन है ?”
“मैं हूँ बुद्धू….कभी तो जल्दी उठ जाया करो !!” एक धीमी सी खनकती हुई आवाज़ ने मेरे कानों में रस सा घोल दिया। लेकिन साथ ही साथ एक सवाल भी उठा मन में…नींद से अलसाये होने के कारण मैं उस आवाज़ को ठीक से पहचान नहीं पाया।
“रिंकी… या फिर प्रिया… कौन हो सकती है??” मन में उठे सवालों से उलझते हुए मैं बिस्तर से उठा और लड़खड़ाते क़दमों से दरवाज़े तक पहुँचा।
दरवाज़ा खोला तो देखा कि मेरे सपनों की रानी, मेरी हसीन परी प्रिया खड़ी थी। सफ़ेद शलवार-कुरते और सफ़ेद चुन्नी में… भीगे हुए बाल… होंठों पे एक सुकून भरी मुस्कान… आँखों में एक प्यार भरा समर्पण…!
एक पल को तो ऐसा लगा जैसे अब भी नींद में हूँ और कोई सपना देख रहा हूँ। मैं बिना कुछ बोले बस उसके चेहरे को देख रहा था और कहीं खो सा गया था। आज से पहले मैंने प्रिया को कभी भी ऐसे कपड़ों में नहीं देखा था। वो हमेशा मॉडर्न कपड़े ही पहना करती थी। आज तो जैसे चाँद उतर आया था ज़मीन पर…और वो भी सुबह सुबह !!
“आउच….” मेरे मुँह से अचानक निकल पड़ा, उँगलियों पे जलन सी महसूस हुई, देखा तो पाया कि मैडम जी ने अपने हाथों में पड़े चाय की गरमागरम कप मेरे उँगलियों से सटा दी थी और मज़े से मुस्कुरा रही थीं..
“जागो मेरे पति परमेश्वर…सुबह हो गई है और आपकी प्यारी सी बीवी आपके लिए गरमागरम चाय लेकर आई है !” प्रिया ने अपने नाज़ुक होंठों से इस अंदाज़ में कहा कि मैं तो मंत्रमुग्ध सा बस उसे फिर से उसी तरह देखने लगा।
“अरे अब अन्दर भी चलोगे या यहीं मुझे घूरते रहोगे..??” प्रिया की खनकती हुई आवाज़ ने मेरा ध्यान तोड़ा और मैंने उसके हाथों से चाय का कप अपने हाथों में लेकर उसका एक हाथ पकड़ा और अन्दर ले आया।
मैंने चाय का प्याला मेज़ पर रख दिया और प्रिया को अपनी बाहों में भर लिया। प्रिया भी जैसे इसी पल का इंतज़ार कर रही थी… उसने भी मुझे जकड़ सा लिया और मेरे सीने में अपना सर रखकर जोर जोर से साँसें लेने लगी। हम दोनों दुनिया से बेखबर होकर एक दूसरे को जकड़े खड़े थे..
थोड़ी देर के बाद प्रिया ने खुद को मुझसे अलग किया और मेरी आँखों में देखने लगी। उसकी वो आँखें आज भी याद हैं मुझे… इतना प्यार और इतना सुकून भरा था उन आँखों में कि मैं बस डूब सा गया था !
“चलिए जनाब अब जल्दी से फ्रेश हो जाइये और यह चाय पीकर बताइए कि कैसी बनी है…?? प्रिया ने मुझे बाथरूम की तरफ धकेलते हुए कहा।
मैंने प्रिय को फिर से अपनी बाहों में भरने की कोशिश की तो उसने मुझे रोक दिया..
“ओहो, बाबा…पहले आप जल्दी से फ्रेश हो लो…फिर मैं तो आपकी ही हूँ, जितना चाहे प्यार कर लेना। वैसे अगर आप जल्दी से हमारी बात मानोगे तो आपको एक अच्छी खबर मिलेगी !” प्रिया ने प्यार से मुझे पीछे से धक्का देते हुए कहा।
प्रिया के गोल गोल उभारों का स्पर्श मुझे उत्तेजित सा कर रहा था… लेकिन साथ ही उसकी बातों से मेरा कौतूहल बढ़ता जा रहा था… मैं सोचने पर विवश हो गया कि आखिर ऐसी क्या खबर होगी…
“इससे अच्छी क्या खबर हो सकती थी कि जिसके सपने देख कर मैं सोया था वो खुद ही सुबह सुबह मेरी आँखों के सामने है।” यह सोचकर मैं मुस्कुरा कर फ्रेश होने के लिए बाथरूम में घुस गया।
बाहर आया तो देखा कि प्रिया रानी मेरे कमरे को साफ़-सुथरा करने में व्यस्त थीं। देख कर मन प्रसन्न हो गया, बिल्कुल एक बीवी की तरह वो अपना धर्म निभा रही थी। शायद ये उन हसीन पलों में से एक था जिसकी कल्पना हम सभी कभी न कभी करते ही हैं।
बाहर आकर मैंने उसे पीछे से पाकर कर अपनी गोद में उठा लिया और अपने कमरे में ही चक्कर लगाकर घूमने सा लगा।
“अरे …क्या कर रहे हो ? छोड़ो भी… देखो कमरे का क्या हाल कर रखा है, इसे ठीक तो कर लेने दो।” उसने मुझसे छूटने की कोशिश करते हुए मुस्कुराते हुए आग्रह किया।
“कमरा तो बाद में भी ठीक हो जायेगा जानू, लेकिन अगर यह पल एक बार बीत गया तो वापस नहीं मिलने वाला !” मैंने उसके गर्दन पे पीछे से चूमते हुए कहा और उसे लेकर सीधा बिस्तर पे लेट गया। प्रिया ने हालाँकि कुछ विरोध तो दिखाया लेकिन यह विरोध प्यार वाला था।
हम दोनों करवट लेकर लेट गए जिसमे प्रिया की पीठ मेरी तरफ थी और मैं पीछे से बिल्कुल चिपक कर उसकी गर्दन और कन्धों पर अपने होंठों से धीरे धीरे चूमने लगा। थोड़ी न नुकुर के बाद प्रिया ने भी लम्बी लम्बी साँसें लेनी शुरू कर दी और चिपके हुए ही पलट कर सीधी हो गई। अब मैं उसके माथे पे एक प्यार भरा चुम्बन देकर उसकी आँखों में देखने लगा।
मेरे हाथ सहसा ही उसकी गोल कठोर चूचियों पे चले गए और मैंने उसकी एक चूची को अपने हथेली में भर लिया…
“उफ्फ्… ऐसा मत करो… प्लीज, कल रात भर में तुमने इन्हें इतना बेहाल कर दिया है कि हल्का सा स्पर्श भी बहुत दर्द दे रहा है… छोड़ो न !!” प्रिया ने अपने चेहरे का भाव बदलते हुए दर्द भरी सिसकारी ली और मेरे हाथों पे अपना हाथ रख दिया।
प्रिया की जगह कोई और होती तो मैं शायद बिना कुछ सुने उन मखमली चूचियों को मसल देता… लेकिन पता नहीं क्यूँ उसके चेहरे पे दर्द की लकीरें देखकर मैंने अपना हाथ हटा लिया और उसके गालों पर एक चुम्मी लेकर उसे फिर से बाहों में भर लिया। उसने भी मेरे होंठों पे अपने होंठों से एक चुम्बन दिया और उठ कर बैठ गई।
“इतने प्यार से तुम्हारे लिए चाय बनाई है, पीकर तो देखो !” प्रिया ने मेरा ध्यान चाय की तरफ खींचा।
मैंने भी हाथ बढ़ाकर चाय की प्याली उठा ली और एक घूंट पीकर उसकी तरफ ऐसे देखा मानो चाय बहुत ही बुरी बनी हो… वास्तव में बहुत अच्छी चाय थी। प्रिय ने मेरा चेहरा देखकर महसूस किया कि शायद चाय ठीक नहीं है…
“क्या हुआ, अच्छी नहीं है?” प्रिया ने अजीब सी शकल बनाकर पूछा..
मैं हंस पड़ा और उसके गालों पे एक पप्पी लेकर कहा, “इतनी अच्छी चाय कभी पी नहीं न, इसलिए।”
“बदमाश….हर वक़्त डराते ही रहते हो।” प्रिया ने जोर से मेरे कंधे पे चिकोटी काट ली।
“वैसे आप कुछ अच्छी खबर देने वाली थीं..?” मैंने प्रिया को याद दिलाया तो प्रिया की आँखों में एक चमक सी आ गई।
“ह्म्म्म… अच्छी खबर यह है कि हम सब 15 दिनों के लिए मेरे नानी के घर जा रहे हैं… छोटी मौसी की शादी है।” प्रिया ने एक सांस में बहुत ख़ुशी के साथ कहा।
खबर सुनकर मैं थोड़ा चौंका और सोचने लगा कि इसमें अच्छा क्या है… बल्कि अब तो वो मुझसे 15 दिनों के लिए जुदा हो जाएगी… मैं ये सोच कर परेशान हो गया।
मेरे चेहरे की परेशानी देखकर प्रिया ने शैतानो वाली मुस्कान के साथ मेरे चेहरे को अपने हाथों में लेकर कहा, “अरे बाबा, परेशां मत हो… हम सब मतलब आप और नेहा दीदी भी हमारे साथ आ रहे हो !”
“क्या… यह कब हुआ…प्लान बन गया और मुझे खबर भी नहीं हुई?” मैंने चौंक कर प्रिया से पूछा।
“यह तब हुआ जब आप घोड़े बेच कर सो रहे थे… दरअसल मामा जी आये हैं अभी एक घंटा पहले और सभी लोग ऊपर ही बैठे हैं… नेहा दीदी भी ऊपर ही हैं और काफी देर से हम सब मिलकर प्लान ही बना रहे हैं..” प्रिया ने सब कुछ समझाते हुए कहा।
मैं अब तक भौंचक्का होकर उसकी बातें सुन रहा था.. ‘जाना कब है और शादी कब है ?” मैंने धीरे से पूछा।
“आज शाम की ट्रेन है जनाब, दरअसल मॉम यह सारी प्लानिंग कई दिनों से कर रही थीं और उन्होंने हम सबके लिए टिकट पहले से ही बुक करवा ली थीं। तो अब जल्दी से अपने सारे काम निपटा लीजिये और चलने की तैयारी कीजिये… वैसे आपको यह जानकर ख़ुशी होगी कि हमारे मामा जी के बहुत सारे खेत खलिहान हैं और वहाँ कोई आता जाता नहीं है।” प्रिया ने एक मादक और शरारत भरे अंदाज़ में कहा और धीरे से मेरे नवाब को पकड़ कर दबा दिया।
मैं यह सुनकर बहुत ही खुश हो गया और न जाने क्या क्या सपने देखने लगा… मेरी आँखों के सामने खुले खेत और बाग़ बगीचे के बीच प्रेम क्रीडा के दृश्य घूमने लगे।
“अभी से खो गए, एक बार वहाँ पहुँच तो जाइये जनाब, फिर सपने नहीं हकीकत में कर लेना सब कुछ।” प्रिय ने मेरे लंड को जोर से दबा कर मेरा ध्यान तोड़ा।
मैं अपने हाथ से चाय का प्याला रख कर प्रिया को जोर से पकड़ कर उसके ऊपर लेट सा गया और जिस लंड को प्रिया ने दबा कर जगा दिया था उसे कपड़ों के ऊपर से उसकी चूत पे रगड़ने लगा।
“ओह सोनू…देखो ऐसा मत करो… एक तो तुमने मेरी मुनिया की हालत बिगाड़ दी है और अगर अभी यह जाग गई तो बर्दाश्त करना मुश्किल हो जायेगा.. और अभी यह संभव नहीं है कि हम कुछ कर सकें… तो प्लीज मुझे जाने दो और तुम भी जल्दी से तैयार होकर ऊपर आ जाओ, सब तुमसे मिलना चाह रहे हैं।” इतना कहकर प्रिया ने मुझे ज़बरदस्ती अपने ऊपर से उठा दिया और मेरे लंड को एक बार फिर से सहलाकर जाने लगी।
प्रिया के जाते जाते मैंने बढ़कर उसकी एक चूची को जोर से मसल दिया… यह मेरी उत्तेजना के कारण हुआ था।
“उफ़…ज़ालिम कहीं के.. !” प्रिया ने अपने उभार को सहलाते हुए मुझे मीठी गाली दी और मुस्कुराकर वापस चली गई।
मैं मस्त होकर अपने बाकी के कामों में लग गया और जाने की तैयारी करने लगा।
कहानी जारी रहेगी…
सोनू…
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