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लेखिका : आयशा खान
प्रेषक : अरविन्द
मैं आयशा ख़ान हूँ, 21 साल की हूँ और लखनऊ में रहती हूँ। मेरी एक पक्की सहेली का नाम है सुरैया, वो 22 साल की है। सुरैया की बड़ी बहन की शादी हो चुकी है और वो दिल्ली में रहती है।
मुझे दिल्ली में एड्मिशन के लिई दिल्ली आना था, सुरैया ने मुझसे कहा कि वो भी दिल्ली में अपनी बहन के यहाँ गर्मी की छुट्टियाँ बिताना चाहती है।
उसने कहा कि उसका एक क्लासमेट विवेक भी एड्मिशन के लिए दिल्ली जाने वाला है, इसलिए हम दोनों ने दिल्ली के लिए रिज़र्वेशन के लिए विवेक को कह दिया।
तीन दिन बाद हमें जाना था, मैं अपना सामान लेकर सुरैया के घर गई तो वो मेरा इंतज़ार ही कर रही थी। आज सुरैया बड़ी स्मार्ट लग रही थी, मैं भी आज खूब मेकअप करके आई थी।
हमने ऑटो लिया और रेलवे स्टेशन को चल दिए। स्टेशन पर ट्रेन नहीं आई थी और अभी देर थी। विवेक हमें वहीं मिल गया।
रात का सफर था और ट्रेन बीच में कहीं रुकती भी नहीं थी इसलिए मैंने विवेक से कहा कि कोई मॅगज़ीन ले आए रास्ता काटने के लिए।
वह कुछ किताबें ले आया। दस मिनट बाद ट्रेन आई तो हम लोग अपने कैबिन में बैठ गये। इस कैबिन में केवल 4 बर्थ थी, तीन हमारी थी और एक किसी और की होगी।
कुछ देर बाद ट्रेन ने सीटी दी और सरकने लगी।
तभी एक जवान खूबसूरत लंबा सा आदमी कैबिन में आया, चौथी बर्थ उसी की थी। जब ट्रेन चल दी उसने डोर लॉक कर दिया और अपनी बर्थ पर जाकर लेट गया।
ट्रेन रफ़्तार ले रही थी। इस कैबिन में दो जवान लड़कियाँ और दो जवान युवक सफ़र कर रहे थे। मैं और विवेक नीचे की बर्थ पर थे और सुरैया और वो अजनबी ऊपर की बर्थ पर !
मैंने विवेक से मॅगज़ीन माँगी तो उसने अपनी पॉकेट से एक स्माल बुक निकालकर दे दी।
बुक के कवर पर ही एक जवान और खूबसूरत युवती की नग्न तस्वीर थी। पहले पहल तो मैं नंगी लड़की की तस्वीर देखकर हिचकिचाई लेकिन फिर मेरे मन में उस बुक को अंदर से देखने की ललक जाग उठी।
नंगे फोटो ने मेरे बदन में झुरझुरी पैदा कर दी थी। मैंने विवेक को गुस्से से देखा तो वह मुस्कराने लगा और खुद भी एक छोटी सी बुक निकाल कर पढ़ने लगा।
वह अजनबी भी खबार पढ़ने लगा। सिर्फ़ सुरैया ही कुछ पढ़ नहीं रही थी बल्कि वह उस अजनबी को घूर रही थी।
ओह नो ! जब मैंने वह किताब पढ़ना शुरू की तो मैं हैरान रह गई। उसमें बहुत ही सेक्स-चुदाई की स्टोरी थी जिसे पढ़ कर मैं बेचैन हो गई और पूरी कहानी पढ़ ली। उसमें लड़की के भाई के दोस्त भी लड़की को भाई के साथ मिलकर चोदते हैं।
कहानी पढ़ते हुए मैं उत्तेजित हो गई और अपने एक हाथ को चूत पर ले जा कर चूत सहलाने लगी, अपने हाथ को शलवार के अंदर डालकर चूत के दाने को सहलाते हुए को मसलने लगी।
चूत से पानी निकलने लगा था और मैं आँखें बंदकर मस्ती ले रही थी।
तभी मुझे लगा कि कोई मेरी जम्पर के ऊपर से मेरे मम्मों को चूस रहा है। आँखें खोली तो वह कोई और नहीं बल्कि सुरैया का क्लासमेट विवेक था।
वह मेरे पास आकर घुटने के बाल बैठकर मेरी चुच्ची को मुँह में लेकर चूस रहा था और दूसरे हाथ से दूसरी चुच्ची को दबाने लगा था।
उसे ज़रा भी डर नहीं था कि कैबिन में और लोग भी हैं।
मैं तो खुद मस्त थी इसलिए विवेक की गर्दन में हाथ डालकर उसे अपने चेहरे पर झुका लिया। अब उसके गरम लब मेरे लबों से चिपक गये।
ओह ! बड़ा ही मज़ेदार बोसा था !
विवेक अपनी जीभ को मेरे मुँह में डालकर चूम रहा था। मैं भी अपनी गुलाबी गरम जीभ को उसके मुँह में डालकर चारों तरफ घूमाने लगी।
हम लोगों की चूमाचाटी की आवाज़ें कैबिन में गूँज रही थी लेकिन हमें किसी की परवाह नहीं थी। विवेक ने मेरे जम्पर के बटन को खोल दिया और मेरी संतरे के बराबर चूचियों को नंगा कर दिया, फिर एक चूची को दोनों हाथ से पकड़कर दबाते हुए चूसने लगा।
यह कहानी आप अन्तर्वासना.कॉम पर पढ़ रहे हैं।
मैंने उसके सिर को हाथ से पकड़कर अपनी चूचियों पर दबा लिया ताकि वह सही से चूस सके। मस्ती में यह भी भूल गई थी कि सुरैया और एक अजनबी आदमी ऊपर की बर्थ पर लेटे हैं।
अब विवेक मेरे भूरे निप्पल को दबा दबाकर चूस रहा था और दूसरी चूची को दबा रहा था। मैं अपनी चूसी जा रही चूची को देख रही थी।
एकाएक मेरी नज़र ऊपर की बर्थ पर चली गई, ऊपर देखा तू हैरान हो गई, सुरैया शायद विवेक को मेरे साथ मज़ा लेते देखकर जोश में आ गई थी. वह उस जवान अजनबी के साथ लिपटी हुई थी।
सुरैया खुद उस अजनबी की बर्थ पर चली गई थी और मेरी तरह उसके साथ मज़ा ले रही थी। वह अजनबी सुरैया के गोरे बदन पर हाथ चला रहा था और सुरैया अपनी टाइट चूचियों को उसके चौड़े सीने पर रग़ड़ रही थी।
उसने अपनी जम्पर को खोलकर अलग कर दिया था और बर्थ पर कोने में डाल दिया था। सुरैया उस आदमी के होंठों को अपने मुलायम होंठों में दबाकर चूस रही थी।
तभी सुरैया ने अपनी एक चूची को उसके मुँह पर रखकर दबाया तू वह अजनबी उसके निप्पल को दबा दबाकर चूसने लगा। उसकी चूचियाँ बहुत सख्त हो गई थी और निपल तने हुए थे।
इधर विवेक मेरी चूचियों को बारी बारी से चूस रहा था, मैं मज़ा लेती अपने हाथों से उसे अपनी दूधियाँ पिला रही थी, मेरी चूत मेरी गोरी-गोरी जाँघों के बीच गीली हो गई थी और उससे चूत का रस टपक रहा था।
तभी विवेक अपना एक हाथ नीचे लाया और मेरी शलवार का इजारबंद खोल कर उसे सरका दिया और मैं नीचे से एकदम नंगी हो गई।
मेरी चूत जब नंगी हुई तो वह अपने हाथ से मेरी चूत पर उगी घनी घनी झांटों को सहलाने लगा। मेरी झाँटें चूत के पानी से भीग गई थी।
तभी उसने अपनी उंगली मेरी चूत में डाली तो मैं बोल पड़ी- ओह विवेक डार्लिंग, बहुत मज़ा आ रहा है !
विवेक चालाक छोकरा था, मुझे सिसकारते देख कर समझ गया कि लौंडिया पेलने के लिए तैयार है। मेरी बेचैनी देखकर वह मुस्कराने लगा, वह मुझसे अलग हुआ और अपने कपड़े उतारने लगा।
जब वह नंगा हुआ तो उसका अनकट, मोटा लंबा लंड आज़ाद होकर फुदकने लगा।
पहले तो मैं सुरैया की वजह से डर रही थी पर सुरैया खुद हम दोनों को आपस में उलझे देखकर उस अजनबी जवान के साथ लिपटी थी। सुरैया की तरफ से मेरा डर और शरम ख़त्म हो गई थी।
फिर मैंने उसके सख्त लंड को पकड़ा तो मेरा बदन कांपने लगा। उसके लंड को सहलाते हुए अपनी चूचियों को डबवा रही थी।
उसका लंड चिपचिपा गया था जिससे मेरी उंगलियाँ भी लसलसा गई और मेरा मन उसके पानी को चाटने का हुआ तो मैं बोली- ओह विवेक ! मैं तुम्हारे लंड को अपने मुँह में लेकर चूसना चाहती हूँ, इसका रस चाटना है मुझे !
मेरी बात सुन कर वह अपना लंड मेरे गुलाबी गालों पर रगड़ने लगा। गाल पर गरम लंड का स्पर्श मुझे सिहराने लगा। इतने पास लंड को देखकर मेरी प्यास बढ़ी तो मैंने अपने लब खोल दिए।
विवेक ने अपना लंड मेरे मुँह में घुसेड़ दिया। उसका लंड इतना मोटा था और केवल आगे का हिस्सा ही अंदर गया।
मैं उस पर लगे नमकीन रस को चाटने लगी तो वह लंड को अन्दर बाहर करते हुए मेरे मुँह को चोदने लगा। मैं भी उसके लंड पर अपना मुँह दबा दबाकर उसका लंड चूस रही थी।
तभी वह उठा और मेरे मुँह से लंड निकालकर मेरी टाँगों के बीच आ गया, उसने मेरी जांघों को फैलाया और बीच में बैठ गया।
उसने मेरे पैरों को अपने कंधे पर रख लिया जिससे मेरी चूत उसके लंड से छूने लगी। मेरी चूत लंड के लिए बेकरार थी पर वह अपने लंड को चूत के चारों तरफ रगड़ने लगा।
मुझसे सहन नहीं हुआ और मैं जोर से बोली- प्लीज अपने लंड को मेरी चूत में पेलकर फाड़ दो मेरी चूत को ! हाय अपने लंड का पानी मेरी चूत को पिलाकर इसकी प्यास बुझा दो।
कुछ देर बाद विवेक ने लंड को चूत के छेद पर लगाकर दबाया तो चौथाई लंड मेरी गीली चूत के अंदर चला गया।
लंड अंदर जाते ही मैंने अपने पैरों से विवेक की गर्दन कस ली और उसके पूरे लंड को खाने के लिए कमर को उछालने लगी। मेरा मन विवेक के पूरे लंड को निगलने को हो रहा था।
चूत में लंड जाते ही विवेक लंड को धक्का देने लगा और मैं चूत को उसके मोटे लंड से चिपकाने की कोशिश करने लगी।
हर धक्के के साथ लंड मेरी कसी चूत में पिस्टन की तरह जाने लगा। मुझे हल्के दर्द के साथ जन्नत का मज़ा मिलने लगा।
अब विवेक धक्का लगते हुए मेरी रसीली चूत में अपने मोड़े लण्ड को पेल रहा था। तभी मेरी नज़र ऊपर की बर्थ पर चली गई।
सुरैया और वह अजनबी एकदम नंगे थे, सुरैया उस अजनबी के ऊपर लेटी थी और चूत को उसके खड़े लंड पर दबाकर रग़ड़ रही थी।
फिर सुरैया ने उसके लंड को पकड़कर अपनी चूत के बीच में लगाकर कमर को दबाया तो उसका लंड सुरैया की चूत में सरकने लगा।
सुरैया उसके लंड को खाने के लिए कमर उछाल उछाल कर धक्के लगाने लगी। उसके नाज़ुक बदन का भार उस अजनबी के ऊपर था जिससे उसकी बड़ी बड़ी चूचियाँ उसके मुँह से रग़ड़ खा रही थी।
अब वह अजनबी उसकी एक चूची को मुँह में लेकर चूसते हुए दूसरी को मसल रहा था और सुरैया की कमर को अपने पैरो से जकड़ कर नीचे से धक्का लगा रहा था।
तभी सुरैया की नज़र मुझसे मिली तो उसने मुस्कराने की कोशिश की पर मस्ती की वजह से मुस्करा ना पाई। वह उस अजनबी से चुदवाने में लीन थी।
सुरैया के चूतड़ उसके लंड पर फिरकी की तरह नाच रहे थे और उसकी चूत में लंड फ़चा फ़च अंदर बाहर हो रहा था।
सुरैया अपनी चूचियों को चुसवाते हुए लपालप लंड को चूत में ले रही थी। उसकी चूत से चुदाई का पानी बह रहा था।
उसकी आँखें लाल हो गई थी और वह मदहोशी के आलम में चिल्ला रही थी- ओह ओह डार्लिंग ! मेरे राजा, बहुत मज़ा आ रहा है।
वह कराहते हुए बोल रही थी। उसे ज़रा भी होश नहीं था कि कैबिन में और लोग भी हैं। मैं समझ गई कि वह खल्लास होने वाली है, वह बड़ी तेज़ी से अपने चूतड़ उठा उठाकर धक्के लगा रही थी।
तभी एक ज़ोरदार धक्के के साथ सुरैया उस अजनबी के ऊपर गिरकर उससे चिपक गई। मैं समझ गई कि उसकी चूत ने रस छोड़ दिया है।
उस अजनबी ने उसे कसकर अपने बदन से चिपका लिया, सुरैया उससे चिपकी ज़ोर ज़ोर साँसें ले रही थी।
इधर विवेक अपने लंड को जड़ तक मेरी चूत में पेल कर धक्के लगा रहा था। वह अपने पूरे लंड को बाहर कर कर के धक्के के साथ चूत के अंदर तक पेल रहा था।
मैं अपने पैरों से उसके कंधे को जकड़ते हुए उसकी गाण्ड के छेद को कुरेद रही थी, इससे उसकी मस्ती भी बढ़ रही थी।
मैंने एक चूची को हाथ से पकड़कर उसे चूसने का इशारा किया तो वह अपने मुँह को चूची पर लाया और फिर खूब सा थूक उस पर गिराया और फिर जीभ से उसे पूरी चूची पर लगाने लगा. फिर दोनों चूचियों पर थूक लगाकर एक को मसलते हुए दूसरी को चूसने लगा, निप्पल को उंगली और अंगूठे से चुटकी में ले रहा था, जिससे मैं जन्नत में थी।
तभी सुरैया उस अजनबी के बदन से अलग हुई और वो दोनों नीचे हम लोगों के पास आ गये।
उस अजनबी का लंड अभी भी सख्त था और उस पर सुरैया की चूत का गाढ़ा सफ़ेद रस लगा था।
कहानी जारी रहेगी।
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