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प्रेषक : राज कार्तिक
क्या करे बेचारा दिल जब कोई हसीना अपने हुस्न के ऐसे जलवे दिखाए कि आदमी बेचारा अपना लंगोट ढीला करने को मजबूर हो जाए !
आज के समाज में अक्सर मर्द को दोषी घोषित कर दिया जाता है पर मेरा यह मानना है कि जब तक औरत इशारा ना दे तब तक कोई भी मर्द उसको छूने तक की हिम्मत नहीं कर सकता है।
मेरी यह कहानी भी कुछ ऐसी ही है। मेरे साथ भी कुछ ऐसा घटित हुआ कि मैं अपने आप को रोक नहीं सका। यह कहानी मेरे और मेरी एक रिश्तेदार के बीच के सम्बन्ध पर है।
रेशमा नाम था उसका, कुँवारी कन्या थी। मुझे भाई कह कर बुलाती थी पर मैं उससे थोड़ा दूरी ही बना कर रखता था क्योंकि उसके परिवार के साथ हमारा ज्यादा मेलजोल नहीं था। कुछ पारिवारिक मतभेद थे। पर रेशमा को जैसे इन मतभेद का अंदाजा नहीं था तभी तो वो जब भी मिलती दिल से मिलती थी।
रेशमा इक्कीस साल की हो चुकी थी। बी. ए. फाइनल में पढ़ती थी। मेरे ऑफिस का रास्ता रेशमा के कॉलेज के पास से होकर गुजरता था तो अक्सर वो मुझे कॉलेज के बाहर या फिर कॉलेज के रास्ते में मिल जाती थी। कभी कभी जब रास्ते में मिलती तो लिफ्ट मांग लेती। मैं चाहते हुए भी मना नहीं कर पाता था। जब भी मेरी बाइक पर मेरे पीछे बैठती तो मुझसे चिपक जाती।
मैं चाहे चूत का कितना भी रसिया था पर रेशमा के लिए मेरे मन में कभी भी सेक्स वाली भावना नहीं आई थी। शायद वो इसीलिए अभी तक मेरे हथियार से बची हुई थी।
खूबसूरती की बात की जाए तो रेशमा बहुत ज्यादा खूबसूरत तो नहीं थी पर नई नई जवानी फ़ूट रही थी तो अनायास ही लड़कों की नजरों में आ जाती थी। चूचियाँ बहुत बड़ी नहीं थी पर कूल्हे बहुत गजब के थे। जींस पहन कर जब कूल्हे मटका कर चलती थी तो कसम से अच्छे अच्छे लड़कों की हालत खराब कर देती थी।
यह कहानी तब शुरू हुई जब एक दिन मैं ऑफिस से वापिस आ रहा था और मैं रेशमा के कॉलेज के पास पहुँचा ही था कि बारिश शुरू हो गई। मैं बाइक रोक कर कॉलेज के गेट के पास बने शेड के नीचे खड़ा हो गया। कॉलेज की छुट्टी हो चुकी थी सो चौकीदार ने भी मुझे कुछ नहीं कहा वैसे तो वो लड़कों को गेट के आसपास भी फटकने नहीं देता था।
मैं गेट पर खड़ा बारिश के कम होने का इन्तजार कर ही रहा था कि मुझे कॉलेज के अंदर तीन-चार लड़कियाँ नजर आई और उनमें से एक रेशमा भी थी। मैं नहीं चाहता था कि वो मुझे देख ले पर फिर भी उसने मुझे देख ही लिया।
वो बारिश में ही दौड़ कर मेरे पास आई और बोली– वाह भाई… लड़कियों के कॉलेज के आगे खड़े किस का इन्तजार कर रहे हो?
मैं क्या जवाब देता !
“चलो आ ही गए हो तो मुझे भी घर छोड़ दो…”
“रेशमा अभी बारिश हो रही है… बारिश रुकेगी तो मैं जाऊँगा।”
“अरे भाई… चलो ना ! बारिश तो हल्की हो गई है और फिर बारिश की फुहारों में मज़ा आ जाएगा !”
मुझे भी देर हो रही थी तो सोचा चल ही पड़ते हैं। बाइक उठाई तो रेशमा झट से मेरे पीछे बैठ कर मुझसे चिपक गई। बाइक चली तो बारिश की ठंडी ठंडी फुहारें मुँह पर पड़ने लगी। बारिश की फुहारों और एक जवान लड़की के स्पर्श ने मेरे अंदर वासना की ज्वाला को जगा दिया था। वो पहला दिन था जब मुझे जवान रेशमा के बदन की गर्मी महसूस हुई। उसके छोटे छोटे चूचे मेरी कमर पर गड़ रहे थे। मन में रेशमा की जवानी का ख्याल आया तो पैंट में उभार आने लगा।
सड़क पर जगह जगह पानी भर गया था और पता नहीं चल रहा था कि कहाँ सड़क है और कहाँ गड्ढा। अचानक एक जगह बाइक गड्ढे में गई तो मुझे एकदम से ब्रेक लगानी पड़ी। अचानक ब्रेक लगने से रेशमा जो पहले से ही मुझसे चिपकी हुई थी, वो एकदम से मेरे ऊपर आ गिरी और उसका हाथ जो मेरे पेट पर था फिसल कर मेरी पैंट में बने तम्बू पर चला गया।
वो अपने आप को संभाल नहीं पाई और संभलने के चक्कर में उसकी मुट्ठी में मेरा लंड आ गया। मेरे सारे बदन में जैसे कर्रेंट सा दौड गया। रेशमा के बदन में भी सिहरन मैंने महसूस की।
बाइक जब दुबारा चली तो रेशमा थोड़ा हट कर बैठ गई। अब उसने मेरे पेट की जगह मेरे कंधे को पकड़ लिया था। चलते चलते हम खुली सड़क पर पहुँचे ही थे कि जोरदार बारिश शुरू हो गई। सड़क पर कहीं भी रुकने की जगह नहीं थी। करीब आधा किलोमीटर चलने के बाद एक शेड नजर आया तो मैंने बाइक वहाँ रोक दी। रेशमा उतर के शेड के नीचे चली गई। बाइक स्टैंड पर लगा कर मैं भी शेड के नीचे गया तो पहली बार मैंने रेशमा को ध्यान से देखा। बारिश में बुरी तरह से भीगने के कारण रेशमा थोड़ा थोड़ा कांप रही थी और उसके कपड़े भी बदन से चिपक गए थे।
“क्यों रिशु… आया मज़ा बारिश में भीगने का..?” मैंने उसको छेड़ते हुए कहा तो वो कुछ नहीं बोली बस हल्के से मुस्कुरा दी।
बारिश और तेज होती जा रही थी। सड़क पर भी ट्रेफिक बहुत कम था। एक्का-दुक्का कार या बाइक ही नजर आ रही थी। शेड के नीचे भी बस हम दोनों ही थे।
“भाई… चलो मुझे देर हो रही है और वैसे भी भीग तो गए ही हैं।”
मैंने उसकी बात मान ली और हम दोनों फिर से बाइक पर चल दिए। तेज बारिश में बाइक चलाने में दिक्कत हो रही थी पर फिर भी मैं धीरे धीरे चलते हुए रेशमा के घर पहुँच गया। रेशमा को उतार कर जब मैं अपने घर की तरफ चलने लगा तो रेशमा ने मेरी बाँह पकड़ कर मुझे अंदर चलने को कहा।
“प्लीज भाई… अंदर चलो ना मेरे साथ… मुझे आज बहुत देर हो गई है तो सब गुस्सा करेंगे… तुम साथ रहोगे तो कोई कुछ नहीं बोलेगा।”
मैं उसके निवेदन को ठुकरा नहीं सका। हम दोनों अंदर गए तो रेशमा की मम्मी ने दरवाजा खोला। मुझे देख कर उन्होंने बैठने को कहा और फिर अंदर चली गई। रेशमा के पापा अभी तक घर नहीं आये थे। रेशमा अपने कमरे में चली गई थी।
मेरे कपड़े गीले थे तो मैं बैठने के लिए जगह देखने लगा पर मुझे ऐसी कोई जगह नहीं दिखी जहाँ मैं गीले कपड़ों के साथ बैठ सकता सो मैं खड़ा रहा।
पाँच मिनट के बाद रेशमा कपड़े बदल कर आई। उसने गुलाबी टॉप और ब्लैक स्कर्ट पहनी हुई थी। टॉप कुछ टाईट था और रेशमा ने नीचे ब्रा भी नहीं पहनी हुई थी। इसीलिए चूचियों के चुचूक साफ़ नजर आ रहे थे। चुचक देखते ही मेरे लंड ने सर उठाना शुरू कर दिया।
“अरे भाई.. तुम अभी तक खड़े ही हो… बैठो ना…”
“रिशू मेरे कपड़े गीले है… सोफा खराब हो जाएगा… मैं चलता हूँ फिर कभी आऊँगा… आज तो वैसे भी बहुत देर हो गई है।”
“चलो मेरे कमरे में… पानी पोंछ लो… फिर गर्म गर्म चाय पीते हैं… फिर चले जाना।” इतना कह कर रेशमा मुझे लगभग खींचती हुई अपने कमरे में ले गई।
कमरे में जाते ही रेशमा ने मुझे तौलिया दिया। मैं अपने सिर और चेहरे पर से पानी साफ़ करने लगा तो रेशमा बोली- भाई, एक बार अपने सारे कपड़े उतार कर अच्छे से पानी पोंछ लो… मैं तब तक चाय लेकर आती हूँ।
इतना कह कर रेशमा कमरे से बाहर चली गई। मुझे थोड़ा अजीब लग रहा था पर फिर रेशमा के जाने के बाद मैं बाथरूम में घुस गया और अपनी शर्ट और पैंट उतार कर बदन साफ़ करने लगा। अंडरवियर तक गीला हो चुका था तो मैंने अपनी बनियान और अंडरवियर भी उतार दिया और कपड़े निचोड़ने लगा।
मैं बिल्कुल नंगा बाथरूम में खड़ा अपना बदन पोंछ रहा था कि अचानक दरवाजा खुला और साथ ही मेरे कानों में रेशमा की आवाज सुनाई पड़ी।
“ओह..माय..गोड.. !” रेशमा अपने मुँह पर हाथ रखे मेरी तरफ देख रही थी।
तभी मुझे भी ध्यान आया कि मैं नंगा हूँ। मैंने नीचे देखा तो मेरा लंड अपने पूरे शवाब पर तन कर खड़ा था। रेशमा भी अवाक निगाहों से मेरे लंड की तरफ ही देख रही थी। मैंने झट से तौलिया अपने नंगे बदन पर लपेटा और बाहर जाने लगा पर जैसे ही मैं रेशमा के पास से गुजरने लगा तो एकदम से तौलिया फिर से खुल गया। तौलिया खुलता देख रेशमा की हँसी छूट गई और वो हँसती हुई कमरे से बाहर निकल गई।
मैं भी थोड़ा शर्मिंदा सा महसूस कर रहा था सो मैंने जल्दी से अपने कपड़े पहने और फिर बारिश में ही अपने घर की तरफ चल दिया। आज एक बात तो हुई थी कि रेशमा की जवानी मेरी नजर में चढ़ गई थी। उस रात को मैंने सपने में रेशमा को चोद दिया था।
कहानी जारी रहेगी।
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