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प्रेषक : जितेन्द्र कुमार
आख़िर जब वो पूरा घुस गया तब मैंने दीदी के पाँव अपने कंधों पर लिए और तल्लीनता से उसे चोदने लगा। दीदी संकोचन करके लण्ड को दबाने की कला अच्छी तरह जानती थी। बीस मिनट की चुदाई में वो दो बार झड़ी। मैंने भी पिचकारी छोड़ दी और कुछ देर बाद दीदी के बदन से नीचे उतर गया।
कुछ ही देर बाद दुबारा चुदाई के लिये दीदी को तैयार करने के लिए मैं उसके बदन से खेलने लगा। इस तरह हम बाकी की पूरी रात चुदाई करते रहे।
सुबह फिर भाई बहन किसी को कुछ ना शक हो रक्षाबन्धन मनाया। पूरे दिन काफी घूमना फिरना हुआ, फिर रात घिर आई जिसका हमें इन्तजार था, हम कुल मिला जुला कर पूरा फायदा उठा रहे थे। आज किसी दूसरे तरीके से चुदाई का मन मैंने बना लिया था।
मेरे पास आते ही उसने मेरे होंठ अपने होंठों में दबा लिये और उसे चूसने लगी। मैं आनन्द के मारे तड़प उठा।
मेरा लण्ड तन कर बड़ा हो गया और उसकी चूत लप-लप करने लगी मेरा लौड़ा खाने के लिये।
पर अपना पजामा खोलने के लिये हाथ बढ़ाया तो वो हाथ पकड़ कर बोली- भैया ना कर ऐसे, मैं तो लुट जाऊँगी… हाय रे कोई तो बचाओ !
मैं धीरे से मुस्कुराया क्योंकि ऐसा तो स्टाइल मैंने सोचा भी नहीं था।
तभी उसने अपना ब्लाऊज़ उतार कर एक तरफ़ डाल दिया।
“अब दीदी, यह पेटीकोट उतार कर अपनी मुनिया के दर्शन करा दो !”
मैंने कमर से जोर से धक्का दिया और यह भी ख्याल रखा कि उसे चोट ना लग जाये। पर वो तो बहुत ही होशियार निकली। उसने खड़ी होकर मुझे भी खड़ा कर दिया। मेरा पाजामा उतार कर नीचे सरका दिया। अब मैं बिल्कुल नंगा था, मेरे सारे बदन में सनसनी सी फ़ैल गई थी। इतने समय से मैं चोदने का प्रोग्राम कर रहा था और यहाँ तो तैयारी जोर की मिल गई। बस अब स्वाद ले लेकर खाना था। उसने कहा- भाई, मेरी चूत देखो, देख भैया, मेरा तूने क्या हाल कर दिया है, बस अब बहुत हो गया, मुझे कपड़े पहनने दे !
“तो यह मेरा लौड़ा कौन खायेगा?” कहकर मैंने अपना लण्ड उसके हाथों में पकड़ा दिया।
“आह ! दैया री, इतना मोटा लण्ड ! (जैसे आज तक देख ही नहीं था) मुझे तो मजा आ जायेगा चुदवाने में। मेरे दिल की कली खिल उठी।” मैंने मन ही मन उसके मुख ऐसी बातें सुन कर मजे में उसकी चूत ही चूस ली। वो धीरे से मेरे पास आई और मुझे लिपटा लिया।
आज तो अलग मजे मिल रहे थे जैसे पहली बार चोद रहा हूँ,”दीदी, शरम ना करो, रोज चुदती हो, पर आज तुम फ़ड़वा लो !”
वो मुझे बुरी तरह चूसने और चूमने लगी। उसकी कठोर चूचियाँ मेरे लण्ड के नजदीक टकरा रही थी। मेरा लण्ड उसकी चूत के द्वार में घुसने के लिये बेकरार था बस उसे लपेटने के चक्कर में था।
तभी दीदी का एक हाथ मेरे सर पर आ गया और उसने मुझे दबा कर नीचे बैठाना चालू कर दिया। मैं समझ गया कि चूत को चाटना है।
मैं 69 की अवस्था में हो गया,”आह, अब मेरा लण्ड चूस लो दीदी, शर्माओ मत, मुझे बहुत मजा आ रहा है।”
मैं नीचे बढ़ता गया और फिर उसकी मस्त चूत मेरे सामने रस टपकाने लगी। मैं जैसे ही चूत चूस कर सीधा हुआ, उसने अपनी कमर उछाल कर मेरा लौड़ा अपनी चूत पर दबा दिया। मैंने जल्दी से उसका लाल सुर्ख सुपाड़ा उसकी चूत में दे दिया।
“अब चुदो… लो मेरी जान, साले लौड़े को मस्त कर दो।”
उसे भी जोश आने लगा। वो कठोर लण्ड को चूत में घुमा घुमा कर लेने लगी और आहें भरती रही।
मन में सोचा- साली कैसा नाटक कर रही थी !
और जो हो, मजेदार चुदाई ! अब हुई शानदार चुदाई ! और यह रात भी बीत गई।
सुबह 15 अगस्त था, मेरा आखिरी दिन क्योंकि मुझे आज लौटना था, सुबह जग कर फ़्रेश होकर दीदी से बोला,”दीदी आज मुझे जाना है, कल से मार्केट देखना पड़ेगा !”
दीदी सामन्य सी बोली,”मालूम है मेरे राजा भैया, मैं तुम्हें नहीं रोकूंगी पर शाम में चले जाना, कितनी देर लगेगी !”
मैंने भी कहा- ओ के दीदी, जैसा आप कहें।
फिर उनकी ननदों को अपने कालेज जाना था तो वे दोनों भी तैयार हो रही थी।
दीदी ने इशारे से कहा,”जब ये कालेज चली जायेंगी तो अखिरी बार ले लेना, जाने कब फिर आना हो तेरा !
मैंने भी सोचा, चलो आखिरी बार ले लेंगे, आज तक तो दिन में नहीं ली है, यह शौक भी पूरा कर लेते हैं।
फिर इन्तजार करने लगे उनके कालेज जाने का और वो समय आ गया।
जैसे ही वे बाहर निकली, हमें फिर चुदाई का मौका दिखने लगा। थोड़ी देर इन्तजार के बाद जल्दी जल्दी कपड़े उतारने लगे और बेडरूम में पहुँचते ही चुदाई शुरु कर दिये क्योंकि आज ही का समय रह गया, फिर जाने कब मौका मिले, और दिन में लेने का पहला मौका था लागातार धक्के मार रहा था और दीदी ले रही थी मस्ती !
अब तो आखिरी परवान पर चढ़ने को था कि हल्की खट की आवाज से हमारे होश उड़ गए। फौरन हड़बड़ा कर अलग हुए और पीछे देखा तो पसीने छूटने लगे, मुँह से आवाज की जगह घुटन होने लगी, कलेजा धाड़-धाड़ कर रहा था।
पीछे दीदी की बड़ी ननद श्वेता खड़ी हमें देख रही थी। उसने घिन जैसा मुँह बनाया और गुस्से से कांपते हुए बाहर चली गई।
मैंने और दीदी ने आपस में एक दूसरे का मुँह देख नजरें झुका ली। मैं तो अब एक पल भी नहीं रूका, जल्दी जल्दी कपड़े पहन सुटकेस लिये बाहर आ गया। मन ग्लानि से भर गया, पहली बार लगा कि बुरा काम पकड़े जाने पर ही बुरा लगता है !
मुझे जरूर मेल करियेगा, आगे की कहानी भी बतानी है।
यह एक सच्ची घटना है।
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