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सुहागरात का असली मजा-1
तभी भाई आ गये और बोले- क्या बात चल रही है भाभी-देवर में? मैं बोला- तुम्हारे बारे में ही चल रही है। ‘क्या?’ भाभी बता रही थी कि आपने रात इन्हें कितना सताया। ‘अच्छा?’ ‘हाँ!’ ‘चलो, तुम मौज लो, मैं चलता हूँ!’ और मैं वहाँ से आ गया।
मैं बहुत खुश था और समय का इन्तजार करने लगा कि कब भाभी की चूत फाड़ने का मौका मिलेगा। दो दिन भाभी के भाई उन्हें लेने आ गये। वो चली गई।
फिर हम उनको लेने गये तो छोटी भाभी बीमार थी इसलिए हम बड़ी भाभी को लेकर आ गये। 3-4 दिन बाद रेनू भाभी का फोन आया, बोली- कैसे हो जानू? ‘मैं तो ठीक हूँ पर तुम कैसे बीमार हो गई थी और अब कैसी हो?’ ‘तुम दूर रहोगे तो बीमार ही रहूँगी ना!’ ‘तो पास बुला लो!’ ‘जानू आ जाओ, बहुत मनकर रहा है मिलने का।’ ‘मिलने का या कुछ करने का?’ ‘चलो तुम भी ना!’ ‘जान कब तक तड़पाओगी?’
रेनू कुछ सोच कर बोली- जानू, तुम कल आ घर आ जाओ। ‘क्यूँ?’ ‘कल सारे घर वाले गंगा स्नान के लिए जा रहे हैं और परसों शाम तक आएँगे।’ ‘तो जान, अभी आ जाता हूँ।’ ‘ओ रुको! अभी आ जाता हूँ?’ और हँसने लगी। ‘तुम कल श्याम को आना। ठीक है? मैं फोन रखती हूँ।’ ‘ठीक है, लव यू जान!’ ‘लव यू टू जानू!’ ‘बाय!’
अब मैं बस उस पल का इन्तजार कर रहा था कि कब रेनू के पास पहूँचूं और उसे पेलूँ। मैं दूसरे दिन तैयार हुआ और गाड़ी लेकर निकल गया। मैं उसके गाँव से लगभग 15 कि. मी. दूर था तो रेनू का फोन आया। ‘जानू कहाँ हो?’ ‘जान 15-20 मिनट में पहुँच रहा हूँ।’ ‘जल्दी आ जाओ जानू, मैं इन्तज़ार कर रही हूँ।’ ‘ठीक है जान, थोड़ा और इन्तज़ार करो और तेल लगा कर रखो, मैं पहुँचता हूँ।’
मैं गाँव पहुँचा तो रेनू और अंकिता (रेनू के चाचा की लड़की, इससे मैं शादी में मिला था) के साथ बाहर ही मेरा इन्तजार कर रही थी। मैंने गाड़ी रोक ली। दोनों ने सिर झुकाकर नमस्ते की। रेनू पीले रंग और अंकिता आसमानी रंग का सूट सलवार पहने थीं। दोनों ही ऐसे लग रही जैसे आसमान से उतरी हों। अंकिता की लम्बाई और चूचियाँ रेनू से ज्यादा थी और चेहरा लगभग एक जैसा ही। तभी पीछे से आवाज आई- जीजू, कहाँ खो गये? ‘तुम्हारे ख्यालों में!’ ‘जीजू सपने बाद में देखना, पहले घर तो चलो।’
हम घर पहुँच गये। रेनू ने दरवाजा खोला। हम अन्दर जाकर सोफा पर बैठ गये। रेनू रसोई में चली गई। अंकिता और मैं बात करने लगे। मन कर रहा था कि साली को पकड़ कर मसल डालूँ। फिर सोचा आज रेनू को चोद लेता हूँ फिर इसके बारे में सोचूँगा। साली कब तक बचेगी। रेनू चाय लेकर आ गई। हमने चाय पी फिर अंकिता चली गई। रेनू दरवाजा बन्द करके मेरे पास बैठ गई और बोली- खाने में क्या खाओगे। ‘तुम्हें!’ और पकड़कर चूमने लगा।
‘अरे जानू, बहुत ही बेशर्म और बेसब्र हो। मौका मिलते ही चिपक जाते हो।’ ‘और कितना सब्र करूँ जान? अब नहीं रुका जाता और तुम हर बार रोक देती हो।’ ‘थोड़ा और सब्र करो जान, हमारे पास पूरी रात है। पहले तुम फ़्रेश हो लो, मैं खाना लगा देती हूँ।’ ‘ठीक है जानू, जैसी आपकी मर्जी!’ कहते हुए बाथरूम में चला गया।
मैं नहा धोकर आया जब तक रेनू ने खाना लगा दिया। रेनू बोली- जानू, मैं अपने हाथ से तुम्हें खाना खिलाऊँगी। मैं बोला- ठीक है, खिलाओ।
फिर हम दोनों ने एक दूसरे को खाना खिलाया। खाने के बाद रेनू बोली- जानू, तुम उस कमरे में आराम करो। मैं नहा कर आती हूँ। मैं कमरे में जाकर बैठ गया।
लगभग एक घन्टे बाद आई। उसने वही कपड़े पहने थे जो सुहागरात वाले दिन पहने थे। प्याजी कलर के लहँगा चोली और हाथ में दूध का गिलास। मैं उसे देखकर समझ गया कि वो क्या चाहती है और अब तक मुझे क्यूँ रोकती रही। मैं खड़ा हुआ और दरवाजा बन्द कर दिया। उसके हाथ से गिलास लिया और एक तरफ रख दिया। फिर उसे पैरों और कमर से पकड़कर बाँहों में उठाकर बेड पर लिटा दिया। मैं उसके पास लेट गया।
आज रेनू कितनी सुन्दर लग रही थी। दिल कर रहा कि बस उसे देखता रहूँ। उसकी प्यारी मासूम सी आँखों में काजल और पतले से होंटों पर गुलाबी रंग की लिपस्टिक बहुत ही अच्छी लग रही थी।
मैंने उसकी नथ और कानों के झुमके उतार दिये। फिर मैं उसके पेट को सहलाने लगा। उसके चेहरे पर नशा सा छा रहा था जो उसकी सुन्दरता को और बढ़ा रहा था। मैंने अपना हाथ उसकी चूचियों पर रखा और धीरे धीरे दबाने लगा। रेनू के होंट काँपने लगे। मैं थोड़ा उसके ऊपर झुका और उसके होंटों पर होंट रख दिये। रेनू ने तिरछी होकर मेरा सिर पकड़ा और होंटों को चूसने लगी। उसने एक पैर मेरे पैर के ऊपर रख लिया जिससे उसका लहँगा घुटने से ऊपर आ गया। मैं हाथ लहँगा के अन्दर डालकर चूतड़ों को भींचने लगा जो एक दम कसे थे।
अब मेरा लण्ड पैंट में परेशान हो रहा था। मैं रेनू से अलग हुआ और पैंट उतार दी। मेरा लण्ड अण्डरवीयर में सीधा खड़ा था। रेनू लण्ड को देखकर मुस्कराने लगी। मैं फिर रेनू के होंटों और गर्दन पर चुम्बन करने लगा। रेनू मुझसे लिपट गई। मैंने कमर पर हाथ रखकर ब्लाऊज की डोरी खींच दी और ब्लाऊज को अलग कर दिया।
गुलाबी ब्रा में गोरी चूचियों को देखकर मुझसे रुका नहीं गया और मैंने ब्रा नीचे खींच दी, उसकी चूचियों को पकड़कर मसलने लगा। ‘राज धीरे!’ पर मैं चूचियों को मसलता रहा। वो एक हाथ में मेरा लण्ड लेकर दबाने लगी। मैं उसकी चूचियों को चूसने लगा।
रेनू के मुँह से सिसकियाँ निकलने लगी- आ आह् सी उ राज चूसो मसलो आ ह. . उसने खुद ही अपना नाड़ा खोलकर लहँगा और पेंटी उतार दी। फिर बैठ कर मेरी कमीज और अन्डरवीयर भी। अब हम दोनों बिल्कुल नंगे थे। मेरा लण्ड हवा में लहराने लगा। रेनू ने लण्ड हाथ में पकड़ा और बोली- लण्ड इतना बड़ा भी होता है?
फिर एक हाथ से लण्ड और दूसरे से अपनी चूत सहलाने लगी। मैं खड़ा हो गया और बोला- जान मुँह में लो ना। रेनू मना करते हुए बोली- मुझे उल्टी हो जायेगी। ‘चुम्मा तो लो!’
रेनू ने लण्ड के अगले भाग होंट रख दिये और जीभ फिराने लगी। उसके होंटों के स्पर्श से लण्ड बिल्कुल तन गया। मैंने उसका सिर पकड़ा और लण्ड मुँह में डालने लगा।
रेनू की आँखो में इन्कार था पर मैं नहीं माना और लण्ड मुँह में ठोक दिया। अब मैं उसके मुँह को चोदने लगा। थोड़ी देर बाद रेनू खुद लण्ड को लॉलीपॉप की तरह चूसने लगी। मेरे मुँह से सिसकारियाँ निकलने लगी। अब मुझसे नहीं रुका जा रहा था। मैंने रेनू को फिर चूमना और भींचना शुरु कर दिया। रेनू भी पागलों की तरह मुझे चूम रही थी।
मैं उठकर उसके पैरों के बीच बैठ गया। रेनू ने अपनी टागेँ खोल दी। क्या मस्त चूत थी, एक भी बाल नहीं और रगड़ रगड़ कर लाल हो रही थी। मुझसे बिना चूमे नहीं रुका गया। मैंने चूत की फाँकें खोली और छेद पर जीभ रखकर हिलाने लगा।
रेनू मचल उठी और मेरा सिर चूत पर कस लिया। उसके मुँह से लगातार सिसकारियाँ निकल रही थी। जाने क्या बोल रही थी- चूसो आह सी सी ई.. खा जाओ कुतिया को खा जा बहन के लौड़े मेरी चूत को… अह्ह्ह… जान यह बहुत परेशान करती है मुझे! सी ई.. बोली- राज, अब नहीं रुका जा रहा, डाल दो अपना लण्ड और फाड़ दो मेरी चूत को।
मैंने रेनू को तिरछा किया और एक पैर उठा कर कन्धे पर रख लिया। रेनू की टाँगें और लड़कियों से ज्यादा खुलती थी। फिर लण्ड चूत पर फिट किया और टाँग पकड़कर एक झटका मारा। मेरा आधा लण्ड चूत फाड़ता हुआ अन्दर चला गया। रेनू साँस रोकर चुप लेटी थी वो शायद दर्द सहन करने की कोशिश कर रही थी। मैंने एक झटका और मारा और पूरा लण्ड चूत में ठोक दिया। रेनू का सब्र टूट गया और वो चिल्ला पड़ी- आ अ ऊई म् माँ मैं बोला- ज्यादा दर्द हो रहा है क्या? ‘न् नहीं! तुम चोदो! आ!’
मैंने उसे सीधा लिटाकर चुम्मा लिया और चूचियों को दबाने लगा। चूचियाँ दबाते हुए धीरे धीरे धक्के मारने लगा। थोड़ी देर बाद रेनू के मुँह से सिसकारियाँ निकलने लगी और गाण्ड उठाकर मेरा साथ देने लगी- चोद मुझे, फाड़ दे मेरी चूत को! फाड़ तेरे भाई की गाण्ड में तो दम नहीं, तेरी में है या नहीं है! निकाल दे मेरी चूत की आग जो तेरे भाई ने लगाई है! ‘यह ले कुतिया, चूत की क्या तेरी आग निकाल देता हूँ!’
मैंने उसे खींचा और बेड के किनारे पर ले आया। खुद नीचे खड़ा हो गया और कन्धे पकड़कर पूरी ताकत से धक्के मारने लगा। रेनू की हर झटके पर चीख निकल रही थी- आ अ म मरी ऊ ई पर मेरा पूरा साथ दे रही थी। 15-20 मिनट बाद वो मेरे से लिपट गई। उसकी चूत से पानी निकलने लगा और वो चुप लेट गई। मैं लगातार झटके मार रहा था। रेनू बोली- राज, अब निकाल लो, पेट में दर्द हो रहा है। ‘अभी तो बड़ा उछल रही थी? फाड़ मेरी चूत! दम है या नहीं? अब क्या हुआ?’ ‘राज, प्लीज निकाल लो, अब नहीं सहा जा रहा।’
मैंने लण्ड चूत से निकाल लिया और उसे उल्टा लिटा लिया। अब उसके पैर नीचे थे और वो चूचियों के बल लेटी थी। मैं लण्ड उसकी गाण्ड पर फिराने लगा। शायद वो समझ नहीं पाई कि मैं क्या कर रहा हूँ। वो चुप आँखे बन्द करके लेटी थी।
मैंने लण्ड गाण्ड पर रखा और दोनों जांघें पकड़ कर धक्का मारा। लण्ड चूत के पानी से भीगा था सो एक ही झटके में 4 इन्च घुस गया। रेनू एकदम चिल्ला उठी- आ अ फाड़ दी में मेरी! मर गई ई! कुत्ते निकाल बाहर! रेनू गिड़गिड़ा उठी- राज, प्लीज़ निकाल लो इसे, बाहर वर्ना मैं मर जाऊँगी। निकाल लो राज, मेरी फट गई है प्लीज़!!! मुझे बहुत दर्द हो रहा है, राज मैं मर जाऊँगी।’ मैं मर जाऊँगी।
मैंने लगातार 10-15 झटके मारे। रेनू दर्द से कराह रही थी। मैं बोला- रेनू, मेरा निकलने वाला है, कहाँ डालूँ। वो कुछ नहीं बोली, बस चिल्ला रही थी। मैंने उसकी गाण्ड में सारा माल भर दिया। थोड़ी देर में लण्ड बाहर निकल गया।
हम दोनों एक दूसरे से लिपटे थोड़ी देर ऐसे ही पड़े रहे। मैं एक बार और रेनू प्यारी चूत के साथ मूसल मस्ती करना चाह रहा था। एक बार फिर से टाँगें उठाकर अपना मूसल रेनू की चूत में जड़ तक घुसेड़ दिया, रेनू बेड पर पड़ी कराह रही थी। मैंने उसे खड़ा किया। पर उससे खड़ा नहीं हुआ गया और नीचे बैठ गई। उसकी आँखों से आँसू निकल रहे थे। मैं रेनू के बगल में बैठ गया और आँसू पोंछने लगा।
रेनू का दर्द कुछ कम हुआ तो बोली- जानू, आज तो मार ही देते। ‘जान मार देता तो मेरे लण्ड का क्या होता?’ वो हँसने लगी और बोली- अब तो बन गई मैं तुम्हारी पूरी घरवाली? ‘हाँ बन गई!’ और मैं उसे चूमने लगा। ‘जानू, तुम में और तुम्हारे भाई में कितना फर्क है! उससे तो चूत ढंग से नहीं फाड़ी गई और तुमने गाण्ड के भी होश उड़ा दिये। वास्तव में आज आया है सुहागरात का असली मजा।’ ‘आया नहीं, अब आयेगा।’ रेनू हँसने लगी और मुझसे लिपट गई।
मैंने सुबह तक रेनू की चूत का चार बार बाजा बजाया, रात को उसे 3 बार पेला और सुबह नहाते हुए भी। उसके बाद अंकिता की चूत और गाण्ड फाड़ी। कैसे? अगली कहानी में। फिलहाल यह कहानी कैसी लगी, बताना। आपका राज कौशिक [email protected]
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