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प्रेषक : प्रेम सिंह सिसोदिया
“अरे बाप रे, रेशू आण्टी, मुझे तो देर हो गई।” कॉलेज में देर हो जाने से मैं घबरा गया था।
“रेशू जी, लौट कर आऊँगा तो प्यार करेंगे।”
“अरे नहीं, उनके सामने नहीं करना, अकेले में चुपके से, यानि कल सुबह को, उनके ऑफ़िस जाने के बाद।”
“हाँ ठीक है… ठीक है…”
कुछ सुना अनसुना सा करके मैंने झटपट कपड़े पहने और कॉलेज की ओर दौड़ लगा दी। मुझे नहीं पता था कि यह प्यार तो अकेले में करने का होता है और इस तरह का प्यार तो छुप छुप के ही हो सकता है। मैं तो मन ही मन सोच रहा था रेशू आण्टी कितनी अच्छी है, मुझे तो वो खूब प्यार करती हैं।
दूसरे दिन सवेरे का मैं बेसब्री से इन्तज़ार करता रहा, शायद मेरे से अधिक रेशू को इन्तज़ार था। उसके तन बदन अनबुझी आग बाकी थी, मैंने सुबह उठते ही रसोई की तरफ़ दौड़ लगा दी। सवेरे रेशू आण्टी वहीं होती थी।
मैंने उन्हें जोर से प्यार कर लिया- आण्टी, मेरा लण्ड पकड़ो ना !
वो एकदम से घबरा गई- यह क्या कर रहे हो गज्जू? कोई देख लेगा !
“ओहो … पकड़ो ना मेरा लण्ड आण्टी, कल तो बहुत प्यार किया था ना आपने !”
“क्या हुआ रेशू डार्लिंग… क्या पकड़वाना है… लाओ मैं मदद कर दूँ !” अंकल ने रसोई में आते हुये कहा।
रेशू घबरा सी गई।
“अरे नहीं नहीं, कुछ भी नहीं … ये गज्जू है ना … इसे नाश्ता चाहिये।”
“गज्जू, आण्टी को काम करने दो चलो, यहाँ टेबल पर आ जाओ।”
मैं मन मार कर मेज के पास आकर बैठ गया। नाश्ता वगैरह करके अंकल तो फ़्रेश होने चले गये।
नौ बजते बजते अंकल ऑफ़िस चले गये। अंकल के जाते ही रेशू आण्टी ने मुझे फ़टकार पिलाई।
अंकल के सामने ही गड़बड़ करने लगे थे।
“क्यों आण्टी जी, लण्ड पकड़ने को ही तो कहा था?”
रेशू के चेहरे पर हंसी बिखर गई, वो हंसते हुये बोली- अरे मेरे लल्लू जी, वो तुम्हें लण्ड नजर आता होगा, ये तो खासा पहलवान लौड़ा है लौड़ा !
रेशू आण्टी ने फिर से मेरा लण्ड थाम लिया… फिर पजामे में से बाहर निकालते हुये बोली- देखो तो ये लण्ड है या लौड़ा…?
फिर वो धीरे से लण्ड दबाने लगी। मुझे एक तेज गुदगुदी सी हुई। इस समय तो वो तो सिर्फ़ एक पेटीकोट और कसे हुये ब्लाऊज में थी, कोई ब्रा नहीं थी। वो मेरे से चिपकती हुई मेरे जिस्म को सहलाने और दबाने लगी। बीच बीच में रेशू आण्टी की सिसकारी भी सुनाई दे जाती थी। मैं भी जैसे तैयार था। बिल्कुल नंगा, मात्र बनियान पहने हुये। लण्ड तो चूत में घुसता है ना … अब पजामा तो आण्टी ने उतार ही दिया था। बिल्कुल साफ़ सुथरा स्नान करके, गुप्तांगों की सफ़ाई करके… हाँ जी एकदम साफ़ सुथरा … हो कर आया था।
रेशू के लिपटते ही मेरा लण्ड तन कर खड़ा हो गया था। मैं अब सब कुछ समझ चुका था। फिर तो मैं एक अभ्यस्त मर्द की भांति उसे आलिंगन में ले कर उसके अधरपान करने लगा।
रेशू ने प्यार से मेरे बालों पर हाथ फ़ेरा और मेरा चेहरा को झुका कर अपनी एक चूची मेरे मुख में दबा दी- चूस ले मेरे गज्जू, हाँ इस दूसरे को भी…
उसके कठोर चूचक को मैं चूसने लगा, उसके बोबे की गोलाइयों को मैं हाथ दबाता भी जा रहा था। उसने भी मेरी बनियान को खींच कर उतार दिया और नंगा कर दिया और मेरा लण्ड पकड़ कर अपनी चूत पर घिसने लगी। मैंने उसके गाण्ड की गोलाइयों को दबा दिया।
“कितना प्यारा लण्ड है, एकदम लोहे की तरह…”
“यह तो नूनी ही है रेशू जी, लण्ड तो गाली होती है।”
“यह लण्ड है और ये चूचियां है। मेरे नीचे चूत है समझे मेरे भोले पंछी !”
मैंने अपनी समझ के अनुसार यूं ही सिर हिला दिया, जैसे मैं कुछ जानता ही नहीं हूँ। पर जी नहीं, मैं इतना भी अनाड़ी नहीं था। मुझे सब कुछ समझ आता था। पर फिर भी कुछ आनन्द को मैं नहीं जानता था और ना ही उसके बारे में सुना था। फिर उसने मुझे सीधा खड़ा किया और नीचे बैठ गई। मेरे लण्ड को हिलाने लगी। मुझे गुदगुदी होने लगी।
तभी उसने मेरा लण्ड अपने मुखश्री में भर लिया।
“छिः छिः, ये क्या कर रही हो, ये तो गन्दा है।” मैंने उसे हटाने की कोशिश की।
“उहुं, खुशबूदार है ये तो, मस्त लौड़ा है !” रेशू ने अपनी मस्ती जारी रखी।
तभी उसने मेरे चूतड़ों को अपने हाथ में भर लिया और उसे अपनी दबा कर लण्ड को पूरा ही मुख में समा लिया। मुझे असहनीय आनन्द की पीड़ा होने लगी। मेरे मुख से अस्फ़ुट स्वर फ़ूट पड़े। मेरी कमर अपने आप ही चलने लगी और उसके मुखश्री को चोदने लगी। उसने तुरन्त मेरे लण्ड को मुख में से निकाल दिया, शायद उसे लगा होगा कि कहीं मेरा माल फिर से निकल जाये।
वो खड़ी हो गई और उसने झटपट अपना ब्लाउज उतार फ़ेंका और अपना पेटीकोट को खोल दिया। उसने मुझे प्यार किया और मुझे ले कर बिस्तर की ओर बढ़ गई।
“रेशू जी, अब क्या करना है…?”
“बिस्तर पर तो चलो… तुम्हें तो कुछ पता ही नहीं है… आओ लेट जाओ, बिलकुल सीधे, और अपने लण्ड को सीधा कड़क रखो।”
“तो… अब लेट कर कल की तरह प्यार करेंगे क्या?”
“हूं, चुदाई करेंगे…” वो मुस्काई।
“छीः आप तो गाली देने लगी।” उसने मेरे मुख पर अंगुली रख दी। मैं मन ही मन में अपने आप को बहुत समझदार समझने लगा था।
उसने मुझे लेटा दिया और अपनी चूत को मेरे मुख पर रख दिया।
“लो तुम भी थोड़ा सा चूस लो।”
“अरे हटो ना, ,ऐसे मत करो …” मैं थोड़ा सा कसमसाया। पर उसके चूत में एक प्रकार की मधुर खुशबू थी, उसकी चूत पूरी गीली थी। उसने मेरा हाथ दोनों तरफ़ से दबा दिया और अपनी नंगी गीली चूत की फ़ांक को मेरे होंठों पर रख दिया। ना चाहते हुये भी मैंने उसे चूसना शुरू कर दिया। मेरे चूसने से वो आनन्द के मारे किलकारियाँ भरने लगी। मुझे लगा कि ऐसा करने से औरतों को आनन्द आता है। सो मैं और भी जोर जोर से चूसने लगा। उसकी चूत का गीलापन मेरे मुख से लिपट गया। फिर उसने अपनी चूत वहाँ से हटा ली और मेरी टांगों को दबा कर उस पर बैठ गई। मेरे लण्ड का बुरा हाल था। ऐसा लग रहा था कि कठोर हो कर फ़ट जायेगा। रेशू ने मेरे लण्ड का सुपारा खोल दिया। फिर वो विस्मित हो उठी।
मुस्कराहट उसके चेहरे पर तैर गई। मेरी तरफ़ मतलब भरी नजरों से देखते हुये वो मेरे लण्ड पर बैठ गई।
“मेरे अनाड़ी बालमा, आ, आज तेरी मैं पहली बार इज्जत उतार दूँ?”
मुझे हंसी आ गई उनकी बात पर, इज्जत तो औरतों की उतारी जाती है, और ये मेरी … उंह !
तभी रेशू की चूत का दबाव मेरे लण्ड पर पड़ा। मुझे आश्चर्य हुआ कि रेशु ये क्या कर रही है। पर जल्दी समझ गया कि शायद चुदाई इसे ही कहते हैं। वो मुझे टेढ़ा-टेढ़ा देख कर मुस्करा रही थी। उसने अपने होंठों को एक तरफ़ से दांतों से दबाते हुये अपनी गीली चूत हल्के से दबा दी और मेरे कड़क लण्ड को अन्दर ले लिया। मुझे असीम आनन्द आ गया।तभी रेशू ने अपने आपको सेट करके अपना पोज बनाया और मेरे पर झुक गई।
“पहली चुदाई मुबारक हो !”
उसे भला कैसे पता कि यह मेरी पहली चुदाई है। उसके शरीर ने जोर लगाया और मेरा लण्ड चूत में पूरा उतर गया। मेरे लण्ड में एक तेज जलन हुई। मेरे कुंवारेपन की चमड़ी फ़ट चुकी थी। रेशू पहले तो मेरे बनते बिगड़ते चेहरे को देखते रही फिर उसकी कमर चल पड़ी। वो कब मेरे पर तरस खाने वाली थी। पहले तो मैं तकलीफ़ से तिलमिलाता रहा, फिर मुझ पर चुदाई की मीठी लहर ने काबू पा लिया। जब मुझे आराम सा आ गया तो मेरी कमर भी चुदाई में ताल से ताल मिलाने लगी।
रेशू खुश होकर तेजी से धमाधम मुझे चोदने लगी थी। जाने कब तक हम चुदाई के घोड़े पर सवार हो कर चुदाई करते रहे। हमारी सांसें तेज हो गई थी। पसीना चेहरे पर छलक आया था। उसकी तड़पती हुई कठोर चूचियों को मैं जोर जोर से घुमा घुमा कर मसल रहा था। उसकी सीत्कार कमरे में जोर से गूंज रही थी। तभी रेशू छटपटा पर झड़ गई। फिर उसने मेरा लण्ड पकड़ कर घिस कर मेरा भी वीर्य अपने मुखश्री में निकाल लिया।
इस बार के वीर्य स्खलन में बहुत रस था। मुझे लगा कि जैसे मेरे भीतर तक की आग शान्त हो गई है।
जीवन में जवान होते ही मैंने चुदाई का पहली बार रस लिया था। मुझे तो लग रहा था ही जीवन में चुदाई से बढ़कर और कोई दूसरा आनन्द नहीं है। मैं रेशू आण्टी का सदा आभारी रहूँगा कि उनके द्वारा मुझे यह अलौकिक आनन्द प्राप्त हुआ। रेशू और मैंने शहर में तीन साल की पढ़ाई के दौरान बहुत चुदाई की, सभी आसनों में चोदाचादी की। रेशू की चिकनी गाण्ड मैंने बहुत बार चोदी क्योंकि उसके बिना वो मानती भी तो नहीं थी। उसका कहना था कि शान्ति सभी छिद्रों से मिलनी चाहिये, चाहे वो मुखश्री का छेद हो या मस्त गाण्ड का। चूत तो सदाबहार मुख्यद्वार है ही चुदाई का…
॥ इति ॥
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