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शमीम बानो कुरेशी
मैं सुहाना से मिलकर बाहर निकली ही थी कि एक सुन्दर से जवान लड़के से टकरा गई। मैं एकदम से घबरा गई- हाय अल्लाह…!
“माफ़ करना मोहतरमा…” उसने तुरन्त माफ़ी मांगी।
“जी, कोई बात नहीं…” मैंने अपना दुपट्टा का कोना अपने मुँह के कोने में दबा लिया और मुस्करा कर उसे तिरछी नजरों से घायल कर दिया।
“आपको पहचाना नहीं… आप?” तिरछी नजरों से घायल उसके मुँह से निकल पड़ा।
मैं हंस दी… और शरमा कर तेज कदमों से आगे बढ़ गई। मैंने जाने क्या सोच कर दरवाजे से मुड़ कर पीछे देखा… वो बुत बना मुझे ही निहार रहा था।
मैंने फिर से मुस्करा कर और जानकर शरमा कर दुपट्टे से चेहरा छुपा लिया, वो लपक कर भागता हुआ मेरे पीछे आ गया- …हुजूर… जनाबे-आली… अपना नाम तो बताते जाईये…?!!
“जी… शमीम बानो…” मैंने अपनी सुरीली आवाज में कहा, फिर से मैंने अपना चेहरा शरमा कर ढांप लिया।
“खुदा की कसम… मार गई हमें तो…” कितनी संगीत भरी मिठास थी।
मैं भाग कर बैठक में पहुँची तो अब्दुल मेरा वहाँ इन्तजार कर रहा था।
“चलें क्या… सुहाना से मिल ली…?”
“हाँ वो तो मिल ली… पर वो खूबसूरत जवान कौन था?”
“वो जो अभी अन्दर गया है…? सुहाना का भाई है… हमीद नाम है।”
“खुदा की कसम, बड़ा जालिम लगता है वो, क्या चीज है हरामजादा?”
“बस तुझे तो लड़का नजर आया कि चूत में खुजली शुरू…” अब्दुल एकाएक चिढ़ सा गया।
“अरे अब चल ना…” झुंझला कर वो बोला।
हम दोनों बाहर आ गये। मेरे दिलो दिमाग में हमीद छाया हुआ था। कैसा होगा उसका लण्ड? लगता तो सॉलिड है साला… चक्कर में तो पक्का आ ही जायेगा…
अब्दुल सब समझ रहा था, आखिर मुझे वो तीन सालों से चोद रहा था। कुछ दिनों से वो खिन्न सा रहता था… पर मैं अब्दुल से डरती भी थी कि उसके दिल पर क्या गुजरेगी। पर नये लण्ड की चाह में मेरे मुँह में पानी भर आया था। कहते हैं ना चूत को तो सिर्फ़ लण्ड से राहत मिलती है।
दूसरे दिन ही मैंने हमीद को अब्दुल के घर जाते हुये देख लिया था। मैंने तुरन्त अपनी नई वाली पेन्सिल जीन्स पहनी और एक टाईट सा बनियान नुमा टॉप डाल लिया। मेरा दुबला पतला बदन बहुत सुन्दर लग रहा था। मैंने तुरन्त अपना स्कार्फ़ लिया। मुँह को लपेटा और अब्दुल के घर की ओर तेजी से चल दी। मेरी नजर बड़ी तेजी से हमीद को ढूंढ रही थी। वो ताई के पास बैठा हुआ था।
“आओ बानो… आओ… यह हमीद है… फ़ैय्याज भाई का लड़का है।”
“आदाब अर्ज… भैया…”
“आदाब… आपको घर पर मिल चुका हूँ।”
“जी… जी…” मैंने धीमी आवाज में मिमियाते हुये से कहा।
“बानो और हमीद… तुम दोनों वहाँ बैठक में बैठो… मैं चाय बना कर लाती हूँ…”
मैं सर झुका कर चुपचाप बैठक में आ गई। हमीद भी लपक कर मेरे पीछे पीछे आ गया- खुदा खैर करे… कभी आपको देखते हैं, कभी अपने आप को…!
मैंने शर्म से नजर नीची कर ली…- जी… ये आप क्या फ़रमा रहे हैं…?
“क्या चेहरे से ये जनाब का नकाब उतरेगा… मेरे हुजूर…?”
मैं और शरम से सिमट गई। मैंने धीरे से अपने स्कार्फ़ को हटाया और चेहरे को बेनकाब कर दिया।
“या अल्लाह… मेरे खुदा… आसमानी जन्नते रूह से सामना हो गया… इतनी बेमिसाल… सुन्दरता की इन्तेहां…!”
“मेरे खुदा… ये आप क्या फ़रमा रहे है?” मैंने दोनों हाथों से अपना चेहरा छिपा लिया।
“बादलों में चांद को ना छुपाओ ऐ हुस्नपरी… जलवा देखने के लिये होता है…”
“मैं जाती हूँ जनाब… आप तो इन्शाअल्लाह दीवाने होते जा रहे हो।” मेरे दिल में खुशियों के अम्बार मचलने लगे। लगा कि यह आशिक साला फ़ंस जाये तो जी भर कर चुदवा लूँ।
“मोहतरमा… दिल घायल… जिगर घायल… घायल मेरी जान… कहो तो जान दे दूँ इन कदमों पर !”
“मियां हमीद साहब… अब आप हदें पार करते जा रहे हैं…!” मैंने जरा तेज स्वर में कहा।
वो चौंक उठा। उसका चेहरा उतर सा सा गया… मैं खिलखिला उठी।
“ये हंसी… जैसे बाग खिल उठे… हसीना हंसी तो फ़ंसी… बानो जी मुझे आपसे मुहब्बत हो गई है।”
“बहुत फ़्लर्ट कर लिया हमीद साहब… बस करो… मुझसे दोस्ती करना है तो बोलो…?”
“फ़्लर्ट नहीं… मुहब्बत…”
“बोलो दोस्ती करोगे…?”
“हाँ भई हाँ…!”
“तो आज से हम दोस्त… बोलो शाम को तलैया पर मिलोगे… खर्चा करना पड़ेगा?”
“जान हाजिर है जाने जहां… खर्चे की क्या बात है? बानो आप बहुत अच्छी हैं…”
“आप तो जोकर हैं बिल्कुल… इतना हंसाया कि मुझसे रहा ही नहीं गया… बाय…!”
“शाम को तलैया पर…”
मैं शाम को टूसीटर लेकर तलैया पर आ गई। वहीं पर वो मेरा इन्तजार करते हुये मिल गया।
“चलो उस रेस्टोरेन्ट में चलते हैं, कुछ ठण्डा लेंगे…”
हमीद खूबसूरत तो था ही… शरीर से बलिष्ठ भी जान पड़ता था। उसकी सफ़ेद कार मंहगी सी लग रही थी। हम दोनों रेस्टोरेन्ट में चले आये और एक कोने वाली सीट चुन ली।
“मेम साहब… वो केबिन खाली है…” शायद बेयरा हमें भांप चुका था।
मैंने हमीद को इशारा किया। हमीद ने चुप से पचास का नोट उसे दे दिया और धन्यवाद कहा।
अच्छा केबिन था… धीमी लाईट थी म्यूजिक भी बहुत धीमा पर कर्णप्रिय था। हम दोनों पास पास बैठ गये। बेयरे ने आते ही कोल्ड ड्रिंक रख दिया। हमीद ने शायद कोई उसे इशारा किया। वो चुप से चला गया। मैं सब समझ रही थी कि हमीद कुछ करने के मूड में है। चलो मुझे इन नाटक से छुट्टी मिली। बस अब तो मुझे उसे पटाना भर था। उसकी जांघ मेरी जांघ से छू रही थी।
उसने चुप्पी तोड़ी- जानती हो बानो… आप बहुत सुन्दर हैं…
“झूठ बोलना तो कोई तुमसे सीखे…”
“ये जो गालों पर डिम्पल हैं ना… बला के सेक्सी हैं…”
“फिर झूठ… आप भी कोई कम नहीं हो… ये सलमान खान जैसी बॉडी… ये दिलीप कुमार से उड़ते हुये बाल… मोहक हंसी… सच में… कोई फ़िल्मी हीरो लगते हो !”
“…बानो जी बस आप तो…” उसने मतलबी हंसी बिखेर दी।
मैंने सोचा शुरूआत तो कर ही दूँ… वर्ना ये भोसड़ी का हवा में ही मुझे चोद देगा। मैंने धीरे से उसकी जांघ पर हाथ रख दिया।
वो तो जैसे कांप उठा…उसके बदन की झुरझुरी मुझे भी महसूस हुई।
मैंने धीरे से उसकी जांघ दबाई, उसने प्रतिउत्तर में मेरी कमर में हाथ डाल दिया। मैं थोड़ा सा कसमसाई।
“बानो… मेरी बानो…”
“हां मेरे हमीद…”
“मैं तो आपका दीवाना हो गया हूँ !”
“सच में मेरी जान…?”
मैं धीरे से उसकी जांघ दबाते हुये उसके लण्ड की ओर हाथ सरकाने लगी। उसका शरीर कंपकपाहट से लहरा सा रहा था। उसकी सांसें तेज हो उठी। उसका हाथ मेरी कमर से हट कर मेरी चूचियों की तरफ़ बढ़ चला। मेरी धड़कनें भी बढ़ गई। एकाएक उसने मेरी एक पूरी कठोर चूची थाम ली और दबा दी।
मैंने भी उसका लण्ड जोर से थाम के दबा दिया। वो तड़प सा उठा।
“उफ़्फ़ ! हमीद, बस करो… मार डालोगे क्या?” मेरी भी सांसें फ़ूलने लगी।
“जरा जोर से दबाओ मेरे मिठ्ठू को बानो जी… उह्ह्ह्ह दबाओ ना…”
“देखो जी, तुम्हारी चूं ना बोल जाए।” मैंने अपनी चूचियाँ उसकी ओर उभार दी।
“उफ़्फ़्फ़… बानो जी… दबा कर साले का रस निकाल दो…”
“नहीं… हमीद जी बिना शादी के… ये सब नहीं… रस तो शादी के बाद ही निकालेंगे।”
मैंने उसे धक्का देकर सीधे बैठा दिया। मेरी चूत गीली हो चुकी थी। मैंने अब धीरे से अपनी असलियत पर आना आरम्भ कर दिया था।
“हमीद साहब… इस ठण्डे की पहले तो पूरी मार तो दो…”
“मार दो… मतलब?”
“पी लो यार… फिर चलो खाने की मां भेन करते हैं…”
वो मुझे देखता ही रह गया…
खाना खाकर हम दोनों बाहर निकल आये… साढ़े आठ बज रहे थे, हम दोनों कार में बैठ गये… उसने कार स्टार्ट कर दी और आगे बढ़ गये। मैंने धीरे से हाथ बढ़ा कर उसका लण्ड पकड़ लिया। उसने धीरे से साईड में कार लगा दी।
“आह्ह्ह, बानो… मजा आ गया यार… जोर से दबा दे…”
“भोसड़ी के ! लण्ड बाहर तो निकाल।”
उसने पैन्ट की जिप खोली और चड्डी के साईड में से लण्ड बाहर निकाल दिया।
अच्छा लण्ड था… मोटा भी ठीक ठाक था… लम्बाई भी अच्छी थी। मैंने उसका लण्ड सहलाया…
“अरे साले… टांगें तो खोल… ठीक से तो लण्ड बाहर निकाल यार !”
जब पूरा लण्ड उसने बाहर निकाल लिया तो मैं उस पर झुक पड़ी। खारा खारा लण्ड मस्त सख्त और चोदने को तैयार था। उसका कड़क लण्ड लेने को मन मचल उठा। चूत में ऐसा लण्ड फ़ंस जाये तो आनन्द आ जाये।
“भेनचोद… लौड़ा धोया नहीं था क्या… नमकीन लग रहा है।”
“नमकीन तो तू भी है मेरी बानो… चूस ले…”
बहुत मजा आया उसका लण्ड चूसने में… उसका खिला हुआ मस्त सुपारा… बेपर्दा… बाहर से फ़ूल कर टमाटर जैसा लग रहा था।
“मेरी रस भरी चूत पियेगा क्या… तुझे देख कर साली रस से लबालब भर गई है।”
“क्या बात है बानो… मेरा जहे नसीब… जवान चूत का स्वाददार रस…”
मैंने अपना जीन्स नीचे खींच कर चूत को खोल दिया। मेरी खूबसूरत चूत को देख कर तो वो वैसे ही पगला गया।
वो पहले तो मेरी चूत को सूंघता रहा…
“कुत्ता है क्या भड़वा… जीभ से चाट और फिर चूस…”
“अरे मजे तो लेने दे पहले…” उसने जोर से सांस भरी और मदहोश सा हो गया।
मेरी चूत गीली हो कर लप लप करने लगी थी। जल्दी से मेरी चूत चाट ले तो गीलापन तो दूर हो…
तभी उसकी लपलपाती हुई जीभ ने सड़ाक से मेरा चूत का पानी चाट लिया।
“क्या महक है बानो चूत की… मजा आ गया !”
“बहुत दिनों से कुँवारी रहने से…”
फिर चूत में खुजली चलने के कारण यौन स्त्राव से मेरी चूत में बला की तेज सुगन्ध आने लग गई थी। उसने जोर जोर से मेरी चूत को चूसना शुरू कर दिया। मेरे दाने को भी उसने खूब चूसा।
मैंने उसे अपने झड़ने पर ही उसे रोका… झरने पर मैंने अपनी सांसें काबू में कर ली। पर अभी उसके मस्त लण्ड का स्वाद लेना बाकी था।
“बस बस हमीद भाई… मजा आ गया। चलो अब लण्ड निकालो और ठीक से बैठ जाओ।”
मैंने उसका लण्ड पकड़ा और जोरदार मुठ्ठ मारी… फिर मुँह में भर कर उसे खूब चूसा…। उसके लण्ड से भी जवानी के स्त्राव की तेज गन्ध आ रही थी। मैंने उसका लण्ड खूब चूसा… उसे तड़पा कर रख दिया। लण्ड चूसने में मेरा अपना अनुभव काम में आया। उसका खूब माल निकला… उसका पूरा ही वीर्य निकाल कर मैंने पी लिया।
हमीद अब सन्तुष्ट था। उसने गाड़ी आगे बढ़ा दी…
शमीम बानो कुरेशी
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