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प्रेषक : पाण्डेय कुमार
उस रात हम लोगों ने दो बार चोदा-चोदी का खेल खेला।
सुबह उठ कर मैं अपने घर आ गया।
दोपहर में फिर डौली के घर गया। उसे अपने बाहों में लेकर चूम ही रहा था कि अचानक छोटी बहन जौली सामने आ गई।
मैंने तो डर कर उसे जल्दी से छोड़ा। हम दोनों को इस हाल में देख कर वह दूसरे कमरे में चली गई। हम दोनों ही बहुत घबरा गए थे। बाद में डौली बोली- जौली एक घंटा पहले ही आई है। इसे पता चला कि घर पर कोई नहीं है तो एक सप्ताह के लिए यहाँ रहने आई है। मैंने वहाँ से जाना ही उचित समझा। डौली को यह बोलते हुए कि फोन करना है, मैं अपने घर आ गया।
घर आ कर मैं बहुत ही तनाव में था। सोच रहा था कि पता नहीं जौली क्या पूछ रही होगी डौली से।
फिर रात के नौ बजे के लगभग में डौली का फोन आया, बोली- क्या सोने नहीं आओगे?
मैंने पूछा- जौली क्या बोली? क्या वह गुस्से में है?
वह बोली- कुछ नहीं बोली और वह नाराज भी नहीं है। अगर नाराज रहती तो क्या हम तुमको सोने के लिए बुलाते?
मुझे बहुत आश्चर्य हुआ कि हम दोनों को इस तरह से देखने के बाद भी जौली नाराज नहीं है। खैर मैं भी तुरंत उनके घर पहुँच गया, देखा दोनों नाईटी पहने टीवी देख रही थी।
मैंने पूछा- क्या बात है, आज बहुत जल्दी तुम लोगों को नींद आ रही है?
डौली बोली- हाँ, मैं तो सोने चली। तुम लोग बातें करो।
और वह उठ कर दूसरे कमरे में सोने चली गई।
मैं घबरा गया।
कुछ देर के बाद जौली ने ही चुप्पी तोड़ी- और क्या हाल है?
“ठीक हूँ।” मैंने कहा- क्या तुम नाराज हो मुझसे?
जौली बोली- नहीं तो ! नाराज क्यों होऊँगी? अब तो हम दोनों का नया रिश्ता बन गया है।
“क्या मतलब?” मैंने पूछा।
मतलब यह कि आपको और दीदी को जिस हाल में मैंने देखा, उस हिसाब से तो अब मैं आपकी बहन नहीं साली हुई।
मैं उसका मुँह ताक रहा था।
वह बोली- क्यों जीजा जी?
और वह मेरे पास आकर बैठ गई।
मैंने कहा- जैसा तुम समझो… लेकिन जब हम तीनों साथ रहें तब, सबके सामने नहीं।
वह बोली- और जब हम दोनों ही रहें तो?
“मैं समझा नहीं…?”
“जीजा जी… साली के प्रति भी जरा सोचा करो…!” बोलते हुए मेरे गले में उसने अपनी बाँहें डाल दी।
मैं कुछ समझ पाता, इससे पहले ही वह मेरे ओंठों को चूसने लगी।
मुझे भी अच्छा लगने लगा, मैंने कहा- यार, तेरी दीदी देख लेगी।
“मैंने आप दोनों को देखा तो कुछ बोला?”
“नही… लेकिन क्या तुम अपने पति से सन्तुष्ट नहीं हो?”
“जीजू डार्लिंग ! आप मुझे सन्तुष्ट करो ना… छोड़ो ना किसी और को…!”
मैंने भी उसकी नाईटी उतार दी। वह बिल्कुल नंगी हो गई थी क्योंकि उसने अंदर में एक भी कपड़ा नहीं पहना था। लग रहा था कि वह मुझसे चुदवाने के लिए तैयार थी।
मैं उसकी चुची को दबाते हुए ओंठ को चूसने लगा। उसने भी चुदक्कड़ की तरह मेरे कपड़े उतार कर मेरे बदन को खूब चूमा। ऐसा लग रहा था कि काफी दिनों से चुदी नहीं है या पति उसे संतुष्ट नहीं रख रहा है।
वह बदहवास जैसी बके जा रही थी– डार्लिंग… अपना लण्ड हमारी बुर में डालो ना जल्दी से… आह जान, तुम्हारा लण्ड बड़ा प्यारा है। मेरी गाण्ड भी मारना…. जान मेरी बुर अपने लण्ड से फाड़ दो…!
और वह मुझे बिछावन पर पटक कर मेरे ऊपर लेट गई और अपनी बुर मेरे लण्ड पर रगड़ने लगी।
मैं भी उसकी गाण्ड पकड़ कर अपने तरफ जोर जोर से खींच रहा था। फिर उसने अपने हाथ से मेरा लण्ड पकड़ कर अपनी बुर में सटा ली और जोर से धक्का मार कर मेरा पूरा का पूरा लण्ड अपने बुर में घुसवा ली। सात ईंच का मेरा लण्ड उसके बुर को चीरते हुए अन्दर गया तो हम दोनों जन्नत की सैर करने लगे। अब हम दोनों अपना अपने चूतड़ उछाल उछाल कर चोदा चोदी का खेल घंटों तक खेलते रहे। वह पूरी तरह से मदहोश होकर गंदी गंदी बातें बोल रही थी- मेरी जान, आज मेरी बुर का यार मिल गया… अपने लण्ड का सारा रस मेरी बुर को पिला दो… और मेरी बुर के रस से अपना लण्ड को नहला दो… आह जान… आह… आह… फाड़ दो बुर… आह… आह… मेरी गाण्ड भी चोद के फाड़ दो… आह आह… जान चोद… चोद ना जान… आह… आह… हमको चोद चोद के रण्डी बना दो जान… तुम अपनी रखैल बना के रखना जान … हम तो तुमसे ही चोदवाएँगें… चोदोगे ना जान?
“हाँ जान, तुमको खूब चोदेंगें… तुम मेरी रखैल बनना और मैं तुम्हें रखैल बनाऊँआ अपनी।” मैंने कहा।
इस तरह की बातें करने में बहुत मजा आ रहा था। लगभग एक घंटा चुदवाने के बाद जौली उसी तरह नंगी ही मेरे साथ सो गई। सुबह में उठने के बाद उसने एक बार फिर से चुदवाया मुझसे।
इस तरह एक सप्ताह तक रोज दोनों बहनों को मैंने खूब चोदा। आज भी जब भी मौका मिलता है दोनों को खूब चोदता हूँ। जौली को चोदने में ज्यादा मजा आता है।
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