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लेखक : प्रेम गुरु
मेरी यह कहानी मेरी एक महिला ई-मित्र मधु अग्रवाल (सोनू) को समर्पित है —- प्रेम गुरू
देखो मीनू ! दरअसल तुम बहुत मासूम और परम्परागत लड़की हो। तुम जिस कौमार्य, एक पतिव्रता, नैतिकता, सतीत्व, अस्मिता और मर्यादा की दुहाई दे रही हो वो सब पुरानी और दकियानूसी सोच है। मैं तो कहता हूँ कि निरी बकवास है ! सोचो यदि किसी पुरुष को कोई युवा और सुन्दर स्त्री भोगने के लिए मिल जाए तो क्या वो उसे छोड़ देगा? पुरुषों के कौमार्य और उनकी नैतिकता की तो कोई बात नहीं करता फिर भला स्त्री जाति के लिए ही यह सब वर्जनाएं, छद्म नैतिकता और मर्यादाएं क्यों हैं? वास्तव में यह सब दोगलापन, ढकोसला और पाखण्ड ही है। पता नहीं किस काल खंड में और किस प्रयोजन से यह सब बनाया गया था। आज इन सब बातों का क्या अर्थ और प्रसांगिकता रह गई है सोचने वाली बात है? जब सब कुछ बदल रहा है तो फिर हम इन सब लकीरों को कब तक पीटते रहेंगे।
…… इसी कहानी से
मेरी प्यारी पाठिकाओं और पाठको,
उस दिन रविवार था सुबह के कोई नौ बजे होंगे। मैं ड्राइंग रूम में बैठा अपने लैपटॉप पर इमेल चेक कर रहा था। मधु (मेरी पत्नी मधुर) चाय बना कर ले आई और बोली “प्रेम मेरे भी मेल्स चेक कर दो ना प्लीज !”
“क्यों कोई ख़ास मेल आने वाला है क्या ?” मैंने उसे छेड़ा।
“ओह … तुम भी … प्लीज देखो ना ?” मधु कुनमुनाई।
मधु जब तुनकती है तो उसकी खूबसूरती और भी बढ़ जाती है। आज तो उसके गालों की लाली देखने लायक थी। आँखों में लाल डोरे से तैर रहे थे। मैं जानता हूँ ये कल रात (शनिवार) को जो दो बजे तक हम दोनों ने जो प्रेमयुद्ध किया था उसका खुमार था।
मैंने उसे बाहों में भर लेना चाहा तो वो मुझसे छिटकती हुई बोली,”ओह … तुम्हें तो बस सारे दिन एक ही काम की लगी रहती है… हटो परे !”
“अच्छा भई…” मैंने मन मार कर कहा और मधु का आई डी खोलने का उपक्रम करने लगा। इतने में रसोई में कुछ जलने की गंध सी महसूस हुई। इससे पहले कि मैं लैपटॉप मधु की ओर बढ़ाता, वह रसोई की ओर भागी,”ओह … दूध उफन गया लगता है ?”
मैंने इनबॉक्स देखा। उसमें किसी मैना का एक मेल आया हुआ था। मुझे झटका सा लगा,”ये नई मैना कौन है ?”
मैं अपने आप को उस मेल को पढ़ने से नहीं रोक पाया। ओह … यह तो मीनल का था। आपको “सावन जो आग लगाए” वाली मीनल (मैना) याद है ना ? आप सभी की जानकारी के लिए बता दूं कि मीनल (मैना) मधु की चचेरी बहन भी है। दो साल पहले उसकी शादी मनीष के साथ हो गई है। शादी के बाद मेरा उससे ज्यादा मिलना जुलना नहीं हो पाया। हाँ मधु से वो जरुर पत्र व्यवहार और मोबाइल पर बात करती रहती है।
हाँ तो मैं उस मेल की बात कर रहा था। मीनल ने शुरू में ही किसी उलझन की चर्चा की थी और अपनी दीदी से कोई उपाय सुझाने की बात की थी। मैं हड़बड़ा सा उठा। मधु तो रसोई में थी पर किसी भी समय आ सकती थी। मेल जरा लम्बा था। मैंने उसे झट से अपने आई डी पर फारवर्ड कर दिया और मधु के आई डी से डिलीट कर दिया।
आप जरुर सोच रही होंगी कि यह तो सरासर गलत बात है ? किसी दूसरे का मेल बिना उसकी सहमति के पढ़ना कहाँ का शिष्टाचार है ? ओह … आप सही कह रही हैं पर अभी आप इस बात को नहीं समझेंगी। अगर यह मेल मधु सीधे ही पढ़ लेती तो पता नहीं क्या अंजाम होता ? हे लिंग महादेव… तेरा लाख लाख शुक्र है कि यह मेल मधु के हाथ नहीं पड़ा नहीं तो मैं गरीब तो मुफ्त में ही मारा जाता ?
आप भी सोच रही होंगी कि इस मेल में ऐसा क्या था ? ओह… मैं उस मेल को आप सभी को ज्यों का त्यों पढ़ा देता हूँ। हालांकि मुझे इसे सार्वजनिक नहीं करना चाहिए पर मैं उसकी परेशानी पढ़ कर इतना विचलित हो गया हूँ कि आप सभी के साथ उसे सांझा करने से अपने आप को नहीं रोक पा रहा हूँ। मेरी आप सभी पाठिकाओं से विशेष रूप से विनती है कि आप सभी मैना की परशानी को सुलझाने में उसकी मदद करें और उसे अपने अमूल्य सुझाव अवश्य दें। लो अब आप सभी उस मेल को पढ़ लो :
प्रिय मधुर दीदी,
मैं बड़ी उलझन में पड़ गई हूँ। अब तुम ही मुझे कोई राह दिखाओ मैं क्या करुँ? मैं तो असमंजस में पड़ी हूँ कि इस तन और मन की उलझन से कैसे निपटूं ? तुम शायद सोच रही होगी कि कुछ दिनों पहले तो तुम मिल कर गई ही थी, तो भला इन 4-5 दिनों में ऐसी क्या बात हो गई ? ओह… हाँ तुम सही सोच रही हो। परसों तक तो सब कुछ ठीक ठाक ही था पर कल की रात तो जैसे मेरे इस शांत जीवन में कोई तूफ़ान ही लेकर आई थी। ओह… चलो मैं विस्तार से सारी बात बताती हूँ :
मेरी सुन्दरता के बारे में तुम तो अच्छी तरह जानती ही हो। भगवान् ने कूट कूट कर मेरे अन्दर जवानी और कामुकता भरी है। किसी ने सच ही कहा है कि स्त्री में पुरुष की अपेक्षा 3 गुना अधिक काम का वास होता है पर भगवान् ने उसे नियंत्रित और संतुलित रखने के लिए स्त्री को लज्जा का गहना भी दिया है।
और तुम तो जानती हो मैं बचपन से ही बड़ी शर्मीली रही हूँ। कॉलेज में भी सब सहेलियां मुझे शर्मीलीजान, लाजवंती, बहनजी और पता नहीं किन किन उपनामों से विभूषित किया करती थी। अब मैं अपने शर्मीलेपन और रूप सौन्दर्य का वर्णन अपने मुंह से क्या करूँ। प्रेम भैया तो कहते हैं कि मेरी आँखें बोलती हैं वो तो मुझे मैना रानी और मृगनयनी कहते नहीं थकते। मेरी कमान सी तनी मेरी भोहें तो ऐसे लगती है जैसे अभी कोई कामबाण छोड़ देंगी। कोई शायर मेरी आँखों को देख ले तो ग़ज़ल लिखने पर विवश हो जाए। अब मेरी देहयष्टि का माप तो तुमसे छुपा नहीं है 36-24-36, लम्बाई 5’ 5″ भार फूलों से भी हल्का। तुम तो जानती ही हो मेरे वक्ष (उरोज) कैसे हैं जैसे कोई अमृत कलश हों। मेरे नितम्बों की तो कॉलेज की सहेलियां क़समें खाया करती थी। आज भी मेरे लयबद्ध ढंग से लचकते हुए नितम्ब और उनका कटाव तो मनचलों पर जैसे बिजलियाँ ही गिरा देता है। और उन पर लम्बी केशराशि वाली चोटी तो ऐसे लगती है जैसे कोई नागिन लहरा कर चल रही हो। तुम अगर जयपुर के महारानी कॉलेज का रिकार्ड देखो तो पता चल जाएगा कि मैं 2006 में मिस जयपुर भी रही हूँ।
तुम तो जानती ही हो दो वर्ष पूर्व मेरा विवाह मनीष के साथ हो गया। इसे प्रेम विवाह तो कत्तई नहीं कहा जा सकता। बस एक निरीह गाय को किसी खूंटे से बाँध देने वाली बात थी। मुझे तुमसे और प्रेम भैया से बड़ी शिकायत है कि मेरे विवाह में आप दोनों ही शामिल नहीं हुए। ओह… मैं भी क्या व्यर्थ की बातें ले बैठी।
मैं तुम्हें अपने जीवन का एक कटु सत्य बताना आवश्यक समझती हूँ। कॉलेज के दिनों में मेरे यौन सम्बन्ध अपने एक निकट सम्बन्धी से हो गए थे। ओह… मुझे क्षमा कर देना मैं उनका नाम नहीं बता सकती। बस सावन की बरसात की एक रात थी। पता नहीं मुझे क्या हो गया था कि मैं अपना सब कुछ उसे समर्पित कर बैठी। मैं तो सोचती थी कि अपना कौमार्य मधुर मिलन की वेला में अपने पति को ही समर्पित करूंगी पर जो होना था हो गया। मैं अभी तक उस के लिए अपने आप को क्षमा नहीं कर पाई हूँ। पर मेरा सोचना था कि इसके प्रायश्चित स्वरुप मैं अपने पति को इतना प्रेम करुँगी कि वो मेरे सिवा किसी और की कामना ही नहीं करेगा। मैं चाहती थी कि वो भी मुझे अपनी हृदय साम्राज्ञी समझेगा। पर इतना अच्छा भाग्य सब का कहाँ होता है।
मैं पति पत्नी के अन्तरंग संबंधों के बारे में बहुत अधिक तो नहीं पर काम चलाऊ जानकारी तो रखती ही थी। शमा (मेरी एक प्रिय सहेली) ने एक बार मुझ से कहा था,”अरी मेरी भोली बन्नो ! तू क्या सोचती है तेरा दूल्हा पहली रात में तुझे ऐसे ही छोड़ देगा। अरे तेरे जैसी कातिल हसीना को तो वो एक ही रात में दोनों तरफ से बजा देगा देख लेना। सच कहती हूँ, अगर मैं मर्द होती या मेरे पास लंड होता तो तेरे जैसी बम्ब पटाका को कभी का पकड़ कर आगे और पीछे दोनों तरफ से रगड़ देती !”
ओह ये शमा भी कितना गन्दा बोलती थी। खैर ! मैंने भी सोच लिया था कि अपने मधुर मिलन की वेला में अपने पति को किसी चीज के लिए मना नहीं करूंगी। मैं पूरा प्रयत्न करुँगी कि उन्हें हर प्रकार से खुश कर दूं ताकि वो उस रात को अपने जीवन में कभी ना भूल पायें और वर्षों तक उसी रोमांच में आकंठ डूबे रहें।
उस रात उन्होंने मेरे साथ दो बार यौन संगम किया। ओह… सब कुछ कितनी शीघ्रता से निपट गया कि मैं तो ठीक से कुछ अनुभव ही नहीं कर पाई। ओह… जैसा कि हर लड़की चाहती है मेरे मन में कितने सपने और अरमान थे कि वो मेरा घूँघट उठाएगा, मुझे बाहों में भर कर मेरे रूप सौन्दर्य की प्रसंसा करेगा और एक चुम्बन के लिए कितनी मिन्नतें करेगा। यौन संबंधों के लिए तो वो जैसे गिड़गिड़ाएगा, मेरे सारे कामांगों को चूमेंगा सहलाएगा और चाटेगा- ऊपर से लेकर नीचे तक। और जब मैं अपना सब कुछ उसे समर्पित करुँगी तो वो मेरा मतवाला ही हो जाएगा। पर ऐसा कुछ भी तो नहीं हुआ। मेरे सारे सपने तो जैसे सुहागरात समाप्त होते होते टूट गए। हम लोग अपना मधुमास मनाने शिमला भी गए थे पर वहाँ भी यही सब कुछ रहा। बस रात को एक दो बार किसी प्रकार पैर ऊपर उठाये, उरोजों को बुरी तरह मसला दबाया और गालों को काट लिया… और… और… फिर….
ओह मुझे तो बड़ी लाज आ रही है मैं विस्तार से नहीं बता सकती। जिन पलों की कोई लड़की कामना और प्रतीक्षा करती है वह सब तो जैसे मेरे जीवन में आये ही नहीं। तुम तो मेरी बातें समझ ही गई हो ना?
उसने कभी मेरे मन की थाह लेने का प्रयत्न ही नहीं किया। वो तो कामकला जैसे शब्द जानता ही नहीं है। एक प्रेयसी या पत्नी रात को अपने पति या प्रेमी से क्या चाहती है उस मूढ़ को क्या पता। उसे कहाँ पता कि पहले अपनी प्रियतमा को उत्तेजित किया जाता है उसकी इच्छाओं और चाहनाओं का सम्मान किया जाता है। प्रेम सम्बन्ध केवल दो शरीरों का मिलन ही नहीं होता एक दूजे की भावनाओं का भी आदर सम्मान भी किया जाता है और एक दूसरे की पूर्ण संतुष्टि का ध्यान रखा जाता है। सच्चा प्रेम मिलन तो वही होता है जिसमें दोनों पक्षों को आनंद मिले, नहीं तो यह एक नीरस शारीरिक क्रिया मात्र ही रह जाती है। पर उस नासमझ को क्या दोष दूँ मेरा तो भाग्य ही ऐसा है।
तुम तो जानती ही हो कि समय के साथ साथ सेक्स से दिल ऊब जाता है और फिर प्रतिदिन एक जैसी ही सारी क्रियाएँ हों तो सब रोमांच, कौतुक और इच्छाएं अपने आप मर जाती हैं। वही जब रात में पति को जोश चढ़ा तो ऊपर आये और बाहों में भर कर दनादन 2-4 मिनट में सब कुछ निपटा दिया और फिर पीठ फेर कर सो गए। वह तो पूरी तरह मेरे कपड़े भी नहीं उतारता। उसे रति पूर्व काम क्रीड़ा का तो जैसे पता ही नहीं है। मेरी कितनी इच्छा रहती है यौन संगम से पहले कम से कम एक बार वो मेरे रतिद्वार को ऊपर से ही चूम ले पर उसे तो इतनी जल्दी रहती है जैसे कोई गाड़ी छूट रही हो या फिर दफ्तर की कोई फाइल जल्दी से नहीं निपटाई तो कोई प्रलय आ जायेगी। धत… यह भी कोई जिन्दगी है। जब वो पीठ फेर कर सो जाता है तो मैं अपने आप को कितना अपमानित, उपेक्षित और अतृप्त अनुभव करती हूँ कोई क्या जाने।
शमा तो कहती है कि “गुल हसन तो निकाह के चार साल बाद भी उसका इतना दीवाना है कि सारी सारी रात उसे सोने ही नहीं देता। पता है औरत को चोदने से पहले गर्म करना जरुरी होता है। ऐसा थोड़े ही होता है कि टांगें ऊपर उठाओ और ठोक दो। कसम से गुल तो इस कामकला में इतना माहिर है कि मैं एक ही चुदाई में 3-4 दफा झड़ जाती हूँ। और जब वो अलग अलग तरीकों और आसनों में मेरी चुदाई करता है तो मैं तो इस्स्स्सस….. कर उठती हूँ !” मैं तो शमा की इन बातों को सुन कर जल भुन सी जाती हूँ।
विवाह के पश्चात कुछ दिनों तक संयुक्त परिवार में रहने के बाद अब मैं भी इनके साथ ही आ गई थी। अभी 2-3 महीने पहले इनका तबादला दिल्ली में हो गया है। मनीष एक बहु राष्ट्रीय कंपनी में मैंनेजर है। यहाँ आने के 2-3 दिनों बाद ही अपना परिचय कराने हेतु इन्होने होटल ग्रांड में एक पार्टी रखी थी जिसमें अपने साथ काम करने वाले सभी साथियों को बुलाया था। इनके बॉस का पूरा नाम घनश्याम दास कोठारी है पर सभी उन्हें कोठारी साहेब या श्याम बाबू कह कर बुलाते हैं।
श्याम की पत्नी मनोरमा काले से रंग की मोटी ताज़ी ठिगने कद की आलू की बोरी है। देहयष्टि का क्या नाप और भूगोल 40-38-42 है पर अभी भी जीन पेंट और टॉप पहन कर अपने आप को तितली ही समझती है। मुझे आश्चर्य हो रहा था कि मनीष भी श्याम से अधिक उस मोटी के आगे पीछे लगा था। श्याम 38-40 के लपेटे में जरुर होंगे पर देखने में अभी भी पूरे कामदेव लगते हैं। मोटी मोटी काली आँखें, ऊंचा कद, छछहरा बदन और गोरा रंग। हाँ सिर के बाल जरुर कुछ चुगली खा जाते हैं थोड़ी चाँद सी निकली है। ये गंजे लोग भी सेक्स के मामले में बड़े रंगीन होते हैं। ऑफिस की लड़कियाँ और औरतें तो जैसे उन पर लट्टू ही हो रही थी। मैंने उचटती नज़रों से देखा था कि श्याम की आँखें तो जैसे मेरे अमृत कलशों और नितम्बों को देखने से हट ही नहीं रही थी।
मनीष ने सबका परिचय करवाया था। मेरे रूप लावण्य को देख कर तो सब की आँखें जैसे चौंधिया ही गई थी। श्याम से जब परिचय करवाया तो मैंने उनके पाँव छूने की कोशिश की तो उन्होंने मुझे कन्धों से जैसे पकड़ ही लिया। किसी पराये पुरुष का यह पहला स्पर्श था। एक मीठी सी सिहरन मेरे सारे शरीर में दौड़ गई।
मैंने झट से हाथ जोड़े तो उन्होंने मेरे हाथ पकड़ते हुए कहा,”अरे भाभी यह आप क्या कर रही हो यार। मैं इस समय मनीष का बॉस नहीं मित्र हूँ और मित्रों में कोई ओपचारिकता नहीं होनी चाहिए !” और फिर उन्होंने कस कर मेरा हाथ दबा दिया। मैं तो जैसे सन्न ही रह गई। भगवान् ने स्त्री जाति को यह तो वरदान दिया ही है कि वो एक ही नज़र में आदमी की मंशा भांप लेती है, मैं भला उनकी नीयत और आँखें कैसे ना पहचानती। पर इतने जनों के होते भला मैं क्या कर सकती थी।
“ओह… मनीष तू तो किसी स्वर्गलोक की अप्सरा को व्याह कर ले आया है यार !” श्याम ने मुझे घूरते हुए कहा। मनीष ने तो जैसे अनसुना ही कर दिया। वो तो बस उस मोटी मनोरमा के पीछे ही दुम हिला रहा था।
पार्टी समाप्त होने के बाद जब हम घर वापस आये तब मैंने श्याम की उन बातों की चर्चा की तो मनीष बोला “अरे यार वो मेरा बॉस है उसे और उनकी मैडम को खुश रखना बहुत जरुरी है। देखो मेरे साथ काम करने वाले सभी की पत्नियां कैसे उसके आगे पीछे घूम रही थी। उस अर्जुन हीरानी की पत्नी संगीता को नहीं देखा साली चुड़ैल ने कैसे उनका सरे आम चुम्मा ले लिया था जैसे किसी अंग्रेज की औलाद हो। तीन सालों में दो प्रोमोशन ले चुका है इसी बल बूते पर। इस साल तो मैं किसी भी कीमत पर अपना प्रोमोशन करवा कर ही रहूँगा !”
मनीष की सोच सुनकर तो जैसे मेरे पैरों के नीचे से जमीन ही निकल गई। उस दिन तो बात आई गई हो गई। पर अगले सप्ताह श्याम ने अपने घर पर ही पार्टी रख ली। उनकी मोटी मनोरमा का जन्म दिन था ना। इन अभिजात्य वर्ग के लोगों को तो बस मज़े करने के बहाने चाहिए। ओह… मैं तो जाना ही नहीं चाहती थी पर मनीष तो उस पार्टी के लिए जैसे मरा ही जा रहा था। वो भला अपने बॉस को खुश करने का ऐसा सुनहरा अवसर कैसे छोड़ देता। पूरी पार्टी में सभी जी जान से श्रीमान और श्रीमती कोठारी को खुश करने में ही लगे थे। मैंने और मनीष ने भी उन्हें बधाई दी।
मनोरमा बोली “ओह मनीष ! ऐसे नहीं यार आज तो गले मिलकर बधाई दो ना ?” और फिर वो मनीष के गले से वो जैसे चिपक ही गई…
श्याम पास ही तो खड़े थे, बोले “देखो भाई मनीष ये तो हमारे साथ ज्यादती है यार ? तुम अपनी भाभी के मज़े लो और हम देखते रहें ?”
और आगे बढ़ कर श्याम ने मुझे बाहों में भर कर तड़ से एक चुम्बन मेरे गालों पर ले लिया। सब कुछ इतना अप्रत्याशित और अचानक हुआ था कि मैं तो कुछ समझ ही नहीं पाई। उनकी गर्म साँसें और पैंट का उभार मैं साफ़ देख रही थी। वो दोनों मेरी इस हालत को देख कर ठहाका लगा कर हंस पड़े। मैं तो लाज के मारे जैसे धरती में ही समां जाना चाहती थी। किसी पर पुरुष का यह पहला नहीं तो दूसरा स्पर्श और चुम्बन था मेरे लिए तो।
तुम सोच रही होगी मैं क्या व्यर्थ की बातों में समय गँवा रही हूँ अपनी उलझन क्यों नहीं बता रही हूँ। ओह… मैं वही तो बता रही हूँ। इन छोटी छोटी बातों को मैं इसलिए बता रही हूँ कि मेरे मन में किसी प्रकार का कोई खोट या दुराव नहीं था तो फिर मनीष ने मेरे साथ इतना बड़ा छल क्यों किया ? क्या इस संसार में पैसा और पद ही सब कुछ है ? किसी की भावनाओं और संस्कारों का कोई मोल नहीं ?
नारी जाति को तो सदा ही छला गया है। कभी धर्म के नाम पर कभी समाज की परम्पराओं के नाम पर। नारी तो सदियों से पिसती ही आई है फिर चाहे वो रामायण या महाभारत का काल हो या फिर आज का आधुनिक समाज। ओह… चलो छोड़ो इन बातों को मैं असली मुद्दे की बात करती हूँ।
अब मनीष के बारे में सुनो। कई बार तो मुझे लगता है कि बस उसे मेरी कोई आवश्कता ही नहीं है। उसे तो बस रात को अपना काम निकालने के लिए एक गर्म शरीर चाहिए और अपना काम निकलने के बाद उसकी ना कोई चिंता ना कोई परवाह। मुझे तो कई बार संदेह होता है कि उनका अवश्य दूसरी स्त्रियों के साथ भी सम्बन्ध है। कई बार रात को लड़कियों के फ़ोन आते रहते हैं। सुहागरात में ही उन्होंने अपनी कॉलेज के समय के 3-4 किस्से सुना दिए थे। चलो विवाह पूर्व तो ठीक था पर अब इन सब की क्या आवश्कता है। पर शमा सच कहती है “ये मर्दों की जात ही ऐसी होती है इन्हें किसी एक के पल्ले से बंध कर तो रहना आता ही नहीं। ये तो बस रूप के लोभी उन प्यासे भंवरों की तरह होते हैं जो अलग अलग फूलों का रस चूसना चाहते हैं।”
मैंने श्याम के बारे में बताया था ना। वो तो जैसे मेरे पीछे ही पड़े हैं। कोई ना कोई बहाना चाहिए उनको तो बस मिलने जुलने का हाथ पकड़ने या निकटता का। मैंने कितनी बार मनीष को समझाया कि मुझे यह सब अच्छा नहीं लगता पर वो कहता है कि इसमें क्या बुरा है। तुम्हारे हाथ चूम लेने से तुम्हारा क्या घिस जाएगा। यार वो अगर खुश हो गया तो मेरा प्रोमोशन पक्का है इस बार।
ओह… मैं तो इस गन्दी सोच को सुन कर ही कांप उठती हूँ। स्त्री दो ही कारणों से अपनी लक्ष्मण रेखा लांघती है या तो अपने पति के जीवन के लिए या फिर अगर वो किसी योग्य ना हो। पर मेरे साथ तो ऐसा कुछ भी नहीं है फिर मैं इन ‘पति पत्नी और वो’ के लिजलिज़े सम्बन्ध में क्यों पडूं?
मैंने कहीं पढ़ा था कि पुरुष अधिकतर तभी पराई स्त्रियों की ओर आकर्षित होता है जब उसे अपनी पत्नी से वो सब नहीं मिलता जो वो चाहता है। कई बार उसने मुझे नंगी फ़िल्में दिखा कर वो सब करने को कहा था जो मैंने कभी सोचा भी नहीं था। पर आज मैंने पक्का निश्चय कर लिया था कि मनीष को सही रास्ते पर लाने के लिए अगर यह सब भी करना पड़े तो कोई बात नहीं।
आपके मेल की प्रतीक्षा में ….
प्रेम गुरु और मीनल (मैना रानी) : [email protected] ; [email protected]
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