This website is for sale. If you're interested, contact us. Email ID: [email protected]. Starting price: $2,000
लेखक : प्रेम गुरु
मैं अब अपने कपड़े पहन लेना चाहती थी। जैसे ही मैंने अपनी लुंगी और शर्ट उठाने का उपक्रम किया श्याम मेरे हाथों से वो वस्त्र छीन कर परे फेंकते हुए बोला “अभी नहीं मेरी मैना रानी अभी तो बहुत काम बाकी है ?”
“ओह … श्याम तुम 2 बार तो कर चुके हो अब और क्या काम शेष रह गया है ?”
“अरे मेरी भोली मैना तुम बस देखती जाओ आज की रात तुम्हारे जीवन की ऐसी कल्पनातीत रात होगी जो तुम अपने शेष जीवन में कभी नहीं भूलोगी।”
पता नहीं अब श्याम क्या करने वाला है। मैं पलंग पर करवट लेकर लेट सी गई। श्याम मेरे बगल में लेट गया और मेरे कन्धों को पकड़ कर मुझे अपने सीने से लगा लिया। मैं तो उसके सीने से लग कर आत्मविभोर ही हो गई। उसके सीने पर उगे हलके हलके बालों में अंगुलियाँ फिराती रही और वो कभी मेरे सिर के बालों पर हाथ फिराता और कभी कमर पर कभी मेरी पीठ और कभी नितम्बों पर। मेरे गोल गोल नितम्ब तो अब इतने कस गए थे जैसे कोई कोल्हापुर के छोटे छोटे तरबूज ही हों। और उनकी सुरमय घाटी तो जैसे श्याम पर बिजलियाँ ही गिरा रही थी।
उसके दिल की धड़कनों से इसका साफ़ पता चल रहा था। उसने अपना हाथ मेरे दोनों नितम्बों की घाटी (दरार) में फिराना चालू कर दिया। ओह … रोमांच की ये नई परिभाषा थी। आह … जैसे ही उसकी अंगुली मेरी रानी के छिद्र से छूती मेरी रानी और मुनिया दोनों अपना संकोचन कर बैठती और उसकी अंगुली उस छेद पर रुक सी जाती। अनोखे आनंद से मैं तो सराबोर ही हो रही थी। मैं सोच रही थी कि वो अपनी एक अंगुली मेरे उस दूसरे छिद्र में क्यों नहीं डाल रहा है। मैं अपने आप को नहीं रोक पाई और अपने दोनों पैरों को उसकी कमर के दोनों और करके उसके ऊपर आ गई और एक चुम्बन उसके होंठों पर ले लिया। उसने मेरी कमर पकड़ ली और मेरे होंठ चूसने लगा।
पर इस से पहले कि मैं कुछ करती श्याम मुझे अपने ऊपर से हटाते हुए उठा खड़ा हुआ । मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ। मैं भी उठ बैठी थी ।
हाय… राम उसका “वो” तो ठीक मेरे होंठों के सामने था। मैंने अपनी सारी शर्म आज छोड़ कर उसे अपने हाथ में पकड़ लिया। कितना प्यारा लग रहा था। थोड़ा सा अलसाया सा कोई 4 इंच लम्बा और 1 इंच मोटा मेरे हाथों में ऐसे लग रहा था जैसे कोई नटखट बच्चा शरारत करने के बाद अपनी निर्दोश और मासूम हंसी लिए गहरी नींद में सोया पड़ा हो। ऐसे में कौन उसे प्यार ना करना चाहेगा । मैंने उसके सुपारे पर एक चुम्बन ले लिया। उसने एक हलकी सी अंगडाई ली। मैं अब अपने आप को नहीं रोक पाई और उसके सुपारे पर अपनी जीभ टिका दी। आह… एक गुनगुना सा अहसास तो मुझे पुलकित ही कर गया। मैंने उसका पूरा सुपारा मुँह में भर लिया और चूसने लगी। अभी मैंने 2-3 चुस्की ही लगाई थी कि वो तो फूलने लगा था। श्याम ने मेरा सिर अपने हाथों में पकड़ लिया और आह… उन्नन … की आवाजें निकालने लगा। अब धीरे धीरे उसका आकार बढ़ने लगा था। मैंने एक हाथ से उसका “वो” पकड़ रखा था और दूसरे हाथ से उसकी एक जांघ पकड़ रखी थी। मैं घुटनों के बल हो गई थी। उसने अपनी कमर आगे पीछे करनी चालू कर दी। आह… अब तो आराम से वो अन्दर बाहर होने लगा था। उसके मुँह से सीत्कार निकलने लगी थी।
मेरे लिए जीवन में यह पहला और निराला अनुभव था। श्याम कभी मेरे होंठों को सहलाता कभी अपने “उसको” छू कर देखता कि कितना अन्दर जा रहा है। उसका सारा शरीर रोमांच से जैसे कांप सा रहा था। मेरे लिए तो यह नितांत नया अनुभव ही था। मेरे मन में इसके बारे में भी कई भ्रांतियां थी लेकिन आज इसे मुँह में लेकर चूस लेने के पश्चात ही मुझे पता चला है कि मैं अब तक इस अनोखे आनंद से वंचित क्यों रही। मैंने अपना पूरा मुँह खोल दिया ताकि उसका वो अधिक से अधिक अन्दर चला जाए । मैं आँखें बंद किये उसे चूसती रही । वो कमर हिला हिला कर उसे अन्दर बाहर करता रहा। उसके लटकते अंडकोष मेरी ठोडी से लगते तो मैं रोमांचित ही हो जाती, एक हाथ से पकड़ कर मैंने उन्हें मसलना शुरू कर दिया। मेरे मुँह से अब फच्च फच्च की आवाजें आनी चालू हो गई थी और बीच बीच में गूं… गूं… की आवाजें भी निकल रही थी। श्याम के लिए तो जैसे यह किसी स्वर्ग के आनंद से कम नहीं था। वो भी अपनी आँखें बंद किये आह… ओह … उन्न्नन्न … ईस्स्स्स… किये जा रहा था।
मैंने कोई 8-10 मिनट तो अवश्य उसे चूसा होगा। अब तो वो खूंटे की तरह हो गया था। मेरे मुँह से निकली लार से तर होकर किसी पिस्टन की तरह मेरे मुँह में ऐसे आ जा रहा था जैसे यह मुँह ना होकर कोई रतिद्वार ही हो। चूसते चूसते मेरा मुँह दुखने सा लगा था। मैंने उसे अपने मुँह से बाहर निकाल दिया। मुझे तो बड़ा आश्चर्य हो रहा था कि मेरे छोटे से मुँह में इतना बड़ा और मोटा कैसे अन्दर तक चला गया। इससे पहले कि मैं अपने होंठ पोंछती उसने झट से नीचे बैठते हुए मेरे होंठ अपने मुँह में भर लिए। शायद वो भी उस मिठास को थोड़ा सा चख लेना चाहता था।
“ओह… धन्यवाद मेरी मीनू !” कहते हुए उसने मुझे अपनी बाहों में भर लिया।
अब वो पलंग पर टेक लगाकर बैठ गया और अपनी एक जांघ मोड़ ली और दूसरा पैर लम्बा कर दिया। मैं उसकी जांघ पर सिर रख कर लेट गई। वो नीचे झुका और मेरे माथे और गालों को चूमने लगा। वह एक हाथ से मेरे सर के बालों और कपोलों को सहला रहा था और दूसरे हाथ से मेरे उरोजों को दबाने और मसलने लगा।
मेरी आँखें बंद थी और मैं तो जैसे सपनों के उस रहस्यमयी संसार में गोते ही लगा रही थी। मेरे लिए तो यह रोमांच कल्पनातीत ही था। उसका कामदण्ड तो मेरे कंधे के नीचे दबा फिर उछलकूद मचाने लगा था। उसने मेरी मुनिया पर हाथ लगाया और एक अंगुली से उसकी कलिकाओं को चौड़ा करके अपनी अंगुली को ऊपर नीचे करने लगा। वो तो फिर पानी छोड़ने लगी थी। उसने अपनी अंगुली को मुँह में ले लिया और एक चटखारा लगाया !
मैंने मारे शर्म के अपनी आँखों पर हाथ रख लिए और उसकी गोद से लुढ़क कर नीचे हो गई और दूसरी ओर करवट लेकर लेट गई। अब वो मेरे नितम्बों के ठीक पीछे आ कर चिपक सा गया। उफ्फ्फ… उसका कामदण्ड तो मेरे नितम्बों की खाई में टकरा रहा था। उसने कस कर मुझे अपने से चिपका लिया। मैंने भी अपने घुटने थोड़े से मोड़ कर नितम्ब जितने पीछे हो सकते थे कर दिए। उसने एक हाथ से मेरा पेट पकड़ कर मुझे अपनी ओर खींच लिया। मेरी मीठी सीत्कार फिर निकलने लगी। अब उसने अपने हाथ मेरे पेट से हटा कर अपने कामदण्ड को पकड़ कर मेरे नितम्बों की खाई में रगड़ना चालू कर दिया। आह… उसका चिकना सा अहसास तो रोमांच से भरा था मैंने अपनी एक जांघ थोड़ी सी ऊपर उठा दी। अब तो उसका सुपारा ठीक मेरी गुदा द्वार के ऊपर ही तो लगा था। कुछ गीला गीला और चिकना सा मुझे अनुभव हुआ । मुझे तो बाद में पता चला कि उसने अपने सुपाड़े पर अपना थूक लगा लिया था।
श्याम कभी अपने कामदण्ड को मेरी मुनिया की कलिकाओं (पंखुड़ियों) पर रगड़ता कभी रानी के छिद्र पर। मुझे तो लगा कि अगर 2-4 बार उसने ऐसे ही किया तो मैं कुछ किये बिना ही एक बार फिर झड़ जाउंगी । शमा बताती है कि गुल तो ऐसे अवस्था में एक ही खटके में अपना पूरा का पूरा “वो” उसके पिछले छेद में ठोक देता है। ऐसा सोचते ही मेरे दिल कि धड़कन तेज हो गई कहीं श्याम भी मेरी ?? ओह … अरे नहीं… ?
मैं एक झटके से उठ बैठी श्याम ने मेरी ओर आश्चर्य से देखा जैसे कह रहा हो,”क्या हुआ ?”
“तुम कहीं … ?… वो… ओह … ?” मेरे मुँह से तो जैसे कुछ निकल ही नहीं रहा था। मैंने अपनी मुंडी नीचे कर ली।
“नहीं मेरी मीनू मैं तुम्हारी इच्छा के विपरीत ऐसा कुछ नहीं करूंगा जो तुम्हें पसंद ना हो और जिससे तुम्हें जरा भी कष्ट पहुंचे ।”
“पर वो… वो तुम ?”
“अरे नहीं मैं तो बस तुम्हारी उस सहेली को प्रेम कर रहा था बस ?” उसने हंसते हुए कहा।
“छी … छी … वह कोई प्रेम करने की जगह है भला ?”
“अपनी प्रियतमा का कोई भी अंग भला गन्दा कैसे हो सकता है ?”
“नहीं…नहीं… मुझे लाज आती है…” मैंने अपने हाथों को अपनी आँखों पर रख लिया।
“अच्छा चलो प्रेम ना सही उसे छू तो सकता हूँ ?” उसने मेरे चहरे से मेरे हाथ हटाने का प्रयत्न किया तो मैं अपने हाथ छुड़ाने चक्कर में नीचे गिर पड़ी । वो मेरे दोनों हाथ पकड़ कर मेरे ऊपर आ गया और फिर उसने मुझे अपनी बाहों में जकड़ लिया। मैंने अपनी शर्म छुपाने के लिए अपनी आँखें बंद कर के अपनी बाहें उसके गले में डाल दी। धीरे धीरे उसने अपने हाथ मेरी कमर और कूल्हों पर पुनः फिराने शुरू कर दिए। मैंने अपने पैर ऊपर उठा कर उसकी कमर से लपेट लिए। उसकी अंगुलियाँ मेरे नितम्बों की खाई में फिर से फिरनी चालू हो गई। पता नहीं उसने कब पलंग की दराज़ में पड़ी वैसलीन की डिब्बी निकाल ली थी और उसकी क्रीम अपनी अंगुली पर लगा ली थी। अब तो उसकी अंगुलियाँ ऐसे फिर रही थी जैसे किसी चिकने घड़े पर पानी की बूँदें फिसलती हैं। उसने मेरी रानी के मुँह पर भी अंगुली फिरानी चालू कर दी। आह … उसका चिकना अहसास तो मुझे इस आनंद को भी भोग लेने को ललचाने लगा था।
“मीनू सच बताना क्या सच में तुम इसे गन्दा समझती हो ?”
“किसे ?” मैं उसका संकेत समझती थी पर फिर भी मैंने अनजान बनते हुए पूछा ।
“मैं स्वर्ग के इस दूसरे द्वार की बात कर रहा हूँ।” उसने अपनी अंगुली को मेरे रानी के छेद पर दबाया।
“छी … छी … !”
“देखो मीनू इस प्रकृति ने जो कुछ भी सृजन किया है वह भला गन्दा कैसे हो सकता है ? सम्भोग और प्रेम में कुछ भी गन्दा, बुरा या अपवित्र नहीं होता। इस में जो आनंद कूट कूट कर भरा है वो कोई विरले ही जान और समझ पाते हैं !”
“नहीं मुझे डर लगता है !”
“अरे इसमें डरने वाली क्या बात है ?”
“नहीं तुम्हारा ये देखो कितना मोटा है और अब तो कितना खूंखार लग रहा है… ना बाबा … ना… मैं तो मर ही जाउंगी ?”
“अच्छा चलो तुम अगर नहीं चाहती तो ना सही पर क्या तुम एक बार बस इतना अनुभव भी नहीं करना चाहती कि जब ये कामदण्ड तुम्हारे उस छेद पर जरा सा रगड़ खायेगा या दबाव बनाएगा तो कैसा रोमांच, गुदगुदी और अनूठा अहसास होगा ?”
सच कहूं तो अब मुझे भी उसका “वो” मेरे पिछले छेद में लेने की तीव्र इच्छा होने लगी थी पर मैं अपने मुँह से कुछ बोल नहीं पा रही थी। इस लज्जत और आनंद के बारे में मैंने शमा से बहुत सुना था। मैंने निर्णय नहीं कर पा रही थी। एक ओर मन की सोच थी तो दूसरी ओर तन की प्यास !
मैंने एक सांस छोड़ते हुए श्याम से कहा,”ज्यादा दर्द तो नहीं होगा ना ?”
“देखो मीनू मैंने अभी तक कुछ भी ऐसा किया है जिससे तुम्हें जरा भी कष्ट हुआ हो ?”
“हूँ … !”
“तुम बस मेरे कहे अनुसार करती जाओ फिर देखो इस जन्नत के दूसरे दरवाजे का आनंद तो उस पहले वाले से भी सौ गुना ज्यादा होगा।”
अब उसने मुझे पेट के बल लिटा दिया और घुटनों के बल मेरी जाँघों के बीच बैठ गया। उसने मेरे पेट के नीचे एक तकिया लगा दिया और मेरी कमर पकड़ कर मेरे नितम्बों को थोड़ा सा ऊपर उठा दिया। ओह अब तो मेरा सारा खज़ाना ही उसके सामने जैसे खुल सा गया था। दो गुदाज और मांसल नितम्ब, गहरी खाई और उनके बीच खुलता और सिकुड़ता स्वर्ग का दूसरा द्वार। उसके 1 इंच नीचे स्वर्ग गुफा का पहला द्वार जिसके लिए आदमी तो क्या देवता भी अपना संयम खो दें । रोम विहीन मोटी मोटी सूजी हुई सी गुलाबी फांके और रक्तिम चीरे के बीच सुर्ख लाल रंग की कलिकाएँ किसी का भी मन डोल जाए । उसने अपने जलते और कांपते होंठ उन पर लगा दिए। मेरी तो किलकारी ही निकल गई। उसने अपनी जीभ से उसे चाटा और फिर अपनी जीभ उस पर फिराने लगा। कभी फांकों पर, कभी दरार पर और कभी उस छिद्र पर जिसे अब तक मैं केवल गन्दा ही समझ रही थी। अब तो यह छेद भी एक नए अनुभव के लिए आतुर सा हो चला था। कभी खुलता कभी बंद होता। मैंने भी अपनी मुनिया और रानी का संकोचन करना शुरू कर दिया। उसकी आँखें तो बस उस छिद्र पर टिकी ही रह गई होंगी।
आमतौर पर पर यह छिद्र काला पड़ जाता है पर मेरा तो अभी भी सुनहरे रंग का ही था और उसकी दरदरी सिलवटें तो ऐसी थी कि किसी के भी प्राण हर लें।
रोमांच की अधिकता के कारण मैंने अपनी कमर और नितम्ब ऊपर नीचे करने चालू कर दिए। मुझे आश्चर्य हो रहा था कि वह इतनी देर क्यों कर रहा है। उसका “वो” तो अब काम के वशीभूत होकर उपद्रव करने को मचल रहा होगा। ऐसा कसा हुआ और कुंवारा छिद्र भला उसे पहले कहाँ नसीब हुआ होगा। उसने वैसलीन की डिब्बी खोली और ढेर सारी क्रीम निकाल कर मेरी रानी के छिद्र पर लगा दी। [मुझे क्षमा कर देना मैं इन अंगों का गन्दा नाम (लंड, चूत, गांड) नहीं ले पा रही हूँ] और फिर धीरे धीरे अपनी अंगुली उस पर मसलने लगा। मेरी तो सीत्कार ही निक़ल गई। जब उसने धीरे से एक पोर अन्दर किया। मैं तो रोमांचित और तरंगित ही हो उठी।
मैंने अपनी रानी का संकोचन किया तो श्याम बोला “नहीं मीनू इसे बिलकुल ढीला छोड़ दो और आराम से रहो तुम्हें कोई कष्ट नहीं होने दूंगा। अगर तुम्हें जरा भी कष्ट हो या अच्छा ना लगे तो उसी समय बता देना मैं आगे कुछ नहीं करूंगा।”
मेरी ऐसी मनसा कत्तई नहीं थी। मैंने अपनी रानी का मुँह ढीला छोड़ दिया। उसने फिर क्रीम अपनी अंगुली पर लगाई और इस बार आधी अंगुली बिना किसी रोकटोक के अन्दर प्रविष्ट कर गई। मुझे आश्चर्य हो रहा था कि इतनी सरलता से यह सब कैसे हो रहा है। श्याम अवश्य कोई जादू जानता है। 4-5 बार उसने क्रीम अन्दर लगाई और अपनी अंगुली को मेरी रानी में अन्दर बाहर करता रहा। मेरा अनुमान था कि आधी डिब्बी क्रीम तो अवश्य अन्दर चली ही गई होगी। अब तो रानी बिलकुल रंवा हो चली थी। आह… उस का चिकना सा अहसास तो अति रोमांचित कर देने वाला था। जैसे ही उसकी अंगुली अन्दर जाती मेरी रानी का छल्ला भी साथ अन्दर चला जाता और जब अंगुली बाहर आती तो बादामी रंग का छल्ला भी बाहर आ जाता। अब उसने डिब्बी में बाकि की क्रीम को अपने कामदंड पर लगा लिया। मैंने अपनी मुंडी जरा सी मोड़ कर देखा था ट्यूब लाइट के दुधिया प्रकाश में उसका “वो” ऐसे चमकने लगा था जैसे कि कोई पहलवान अपने शरीर पर खूब तेल की मालिश कर अखाड़े में कुश्ती लड़ने को खड़ा हो।
उसने मेरे नितम्बों पर 3-4 चपत लगाए। आह… चुनमुना सा अहसास मुझे पीड़ा के स्थान पर तरंगित कर रहा था। जिसे ही उसका हल्का सा थप्पड़ मेरे नितम्ब पर पड़ता तो वो हिलने लगता और मैं अपनी रानी का संकोचन कर बैठती और फिर मेरे मुँह से अनायास एक काम भरी सीत्कार निकल जाती। अब उसने मेरे पेट के नीचे से तकिया निकाल कर बगल में रख दिया और मेरी दाईं जांघ को घुटने से थोड़ा सा मोड़ कर मुझे करवट के बल लेटा दिया। मेरा बायाँ पैर सीधा था और दायाँ पैर मुड़ा हुआ था जिसके घुटने और जांघ के नीचे तकिया लगा था। मैंने तकिये को थोड़ा सा अपनी छाती से चिपका लिया।
श्याम उठकर अपने पैर उलटे करके मेरी बाईं जांघ पर बैठ गया और मेरे दायें नितम्ब को अपने हाथ से थोड़ा सा ऊपर की ओर कर दिया। अब तो रानी का छिद्र बिलकुल उसकी आँखों के सामने था। उसने कोई हड़बड़ी या जल्दी नहीं की । धीरे से उसने अपनी अंगुलियाँ मेरी मुनिया की फांकों पर रगड़नी चालू कर दी। कभी वो दाने को मसलता और कभी उसकी कलिकाओं को। आह… मुझे तो लगा मैं झड़ गई हूँ। श्याम कुछ कर क्यों नहीं रहा है। अब उसने अपनी एक अंगुली मेरी रानी के छेद पर लगा कर उसे घुमाना चालू कर दिया। मेरे ना चाहते हुए भी रानी ने फिर संकोचन करना चालू कर दिया तो श्याम बोला,”मीनू अपने आप को बिलकुल ढीला छोड़ दो। अब तुम उस परम आनंद को अनुभव करने वाली हो जिस से तुम आज तक वंचित थी। मेरा विश्वास करो इस अनुभव को प्राप्त कर तुम प्रेम के उस उच्चतम शिखर पर पहुँच जाओगी जिसकी कल्पना तुमने कभी स्वप्न में भी नहीं की होगी !”
“उन्ह्ह …” मैं क्या बोलती । मैंने अपना एक अंगूठा अपने मुँह में ले लिया और चूसने लगी। मेरा एक हाथ मेरी छाती से लगे ताकिये को कसा था। मेरे दिल की धड़कनें तेज होती जा रही थी। श्याम ने अपने कामदण्ड को अपने बाएं हाथ में पकड़ कर रानी के छिद्र पर लगा ही दिया और दूसरे हाथ से मेरी मदनमणि को अपनी चिमटी में पकड़ लिया। उसने मदनमणि को इतनी जोर से भींचा कि मेरी तो चींख ही निकल गई। दूसरी ओर उसके कामदण्ड का दबाव और चिकना अहसास में अपनी रानी के छल्ले पर अनुभव कर रही थी। मेरी बंद आँखों में सतरंगे तारे से जगमगाने चालू हो गए। आँखें तो पहले से ही बंद थी। धीरे धीरे दबाव बढ़ता गया और मुझे लगा जैसे किसी ने मेरी रानी के छेद को चौड़ा सा कर दिया है और उसके साथ ही मुझे लगा जैसे मेरी रानी के छल्ले के चारों ओर सैंकड़ों चींटियों ने एक साथ काट खाया है। मेरे मुँह से सहसा निकल पड़ा “ऊईई… मा ……”
और फिर गच्च की एक हल्की सी आवाज हुई और उसका सुपारा अन्दर घुस गया। मेरी तो जैसे साँसें ही अटक गई थी। श्याम कुछ देर चुप सा रहा। ना तो हिला ना ही उसने धक्का लागाया मुझे तो लगा जैसे किसी ने लोहे की मोटी सी गर्म सलाख मेरी रानी के अन्दर ठूंस दी है। मेरी आँखों से आंसू से निकल पड़े। मैं जोर से चींखना चाहती थी पर मैंने अपने दांत कस पर दबा लिए और अपने हाथों से उस तकिये को जोर से अपनी छाती से भींच लिया।
कोई 2-3 मिनट हम दोनों इसी अवस्था में रहे। मुझे थोड़ा दर्द भी हो रहा था पर इतना नहीं कि मैं चीखूँ या चिलाऊँ। श्याम ने मेरे नितम्बों को सहलाना शुरू कर दिया। मेरा शरीर अनोखे भय और रोमांच से कांपने लगा था। उसके दिल की धड़कने भी बढ़ गई थी।
थोड़ी देर बाद वो बोला,”धन्यवाद मेरी मीनू … बस … अब कोई दर्द या कष्ट नहीं होगा … अब तो बस आनंद ही आनंद है आगे !”
सच कहूं तो मुझे तो कोई आनंद नहीं अनुभव हो रहा था। हाँ थोड़ा सा दर्द और चुनमुना सा अहसास अवश्य हो रहा था। मुझे तो लग रहा था कि मेरी रानी का छिद्र और छल्ला सुन्न से पड़ गए हैं। मैंने अपना एक हाथ पीछे ले जाकर अपनी रानी के छेद पर लगाने कोशिश की । ओह जैसे कोई मोटा सा मूसल किसी ने मेरी रानी में ठोक रखा था। अभी भी 4-5 इंच तो बाहर ही होगा। मैंने अपना हाथ हटा लिया। श्याम ने अपने हाथ मेरे नितम्बों, जांघ और कमर पर फिराने चालू रखे। अब तो मुझे भी लग रहा था कि वह अन्दर समायोजित हो चुका है। उसने एक ठुमका सा लगाया और मेरी रानी ने संकोचन करके जैसे उसे अपनी स्वीकृति प्रदान कर दी। मुझे अन्दर तो कुछ अनुभव ही नहीं हो रहा था बस उस छल्ले पर जरूर कसाव और चुनमुनापन सा अनुभव हो रहा था।
अब श्याम ने अपने कामदण्ड को थोड़ा सा बाहर निकाला और फिर धीरे से अन्दर दबाव बनाया । इस बार 5 इंच तक अन्दर चला गया। मुझे तो बस छल्ले का अन्दर बाहर होना ही अनुभव होता रहा। उसने अभी पूरा अन्दर नहीं डाला बस 4-5 इंच अन्दर डाल कर कभी बाहर करता कभी अन्दर सरका देता । कुछ देर बाद तो मैं भी जैसे अभ्यस्त सी हो गई थी। अन्दर क्रीम पिंघलने से छेद रंवा सा हो गया था और अब तो बड़ी आसानी से अन्दर बाहर होने लगा था। उस के मुँह से भी आह… ईईइ … गुर्रर्र की आवाजे आने लगी थी। मेरी भी अब सीत्कार निकलने लगी थी। अचानक उसके अंडकोष मेरी मुनिया से टकराये तब मुझे ध्यान आया कि अब तो उसका पूरा का पूरा 7″ मेरे अन्दर प्रविष्ठ कर ही गया है। आह… उसने मुझे पूर्ण रूप से आज पा ही लिया है। अब तो मेरा छल्ला जैसे ही अन्दर या बाहर होता मेरा तो रोम रोम ही पुलकित होने लगा था। रोमांच की यह नई परिभाषा और पराकाष्ठा थी। आज से पहले मैंने कभी इतना आनंद नहीं अनुभव किया था।
“मीनू एक काम करोगी ?” अचानक श्याम की आवाज मेरे कानों में पड़ी।
“क … क्या ?”
“तुम तकिया अपने पेट के नीचे कर के उस पर लेट जाओ प्लीज !”
मैंने अपने दाईं टांग को सीधा किया और पेट के नीचे तकिया लगा कर थोड़ा सा दाईं ओर झुक गई। श्याम अब ठीक मेरे ऊपर आ गया। मैंने अपने नितम्ब ऊपर उठा दिए। यद्यपि वो मेरे ऊपर आ गया था पर उसने अभी अपना पूरा भार मेरे ऊपर नहीं डाला था। उसने अपने घुटने मोड़ रखे थे। उसके मुड़े हुए दोनों पैर मेरी कमर और नितम्बों के दोनों ओर थे। वह थोड़ा सा झुका और अपने हाथ नीचे ले जा कर मेरे उरोजों को पकड़ लिया और उन्हें दबाने लगा। मैं भी या ही चाह रही थी कि वो आज इन्हें भी मसल ही डाले। जब सब कुछ समायोजित हो गया तब उसने धीरे धीरे अपने कामदण्ड को अन्दर बाहर करना फिर से चालू कर दिया। अब तो ना कोई कष्ट था ना कोई रूकावट। अब तो बस किसी पिस्टन की तरह वो अन्दर बाहर होने लगा था। जब वो अपना कामदण्ड थोड़ा सा बाहर निकाल ता तो मैं भी अपने नितम्ब थोड़े ऊपर कर देती और जब वो हल्का सा धक्का लगता तो वो अपने आप नीचे हो जाते। उसके अंडकोष मेरी मुनिया की फांकों से टकराते तो रोमांच के मारे मेरी मीठी सीत्कार निकल जाती।
हमें कोई दस मिनट तो अवश्य हो गए होंगे। पर समय का किसे भान और चिंता थी। ओह … मुझे तो असली काम रहस्य का आज ही अनुभव हुआ था। मैं तो इसे निरा गन्दा और अप्राकृतिक ही समझती रही थी आज तक। शमा सच कहती थी कि अपने प्रेमी या पति को पूर्ण रूप से समर्पित तभी माना जाता है जब वो इस आनंद को भी प्राप्त कर ले। आज मैं भी पूर्ण समर्पिता हो गई हूँ।
श्याम ने अब जोर जोर से धक्के लगाने चालू कर दिए थे मुझे तो पता ही नहीं चला। मेरी सीत्कार गूँज रही थी और उसकी भी मीठी स्वर लहरी हवा में गूँज रही थी। एक अनोखे आनंद से हम दोनों ही लबालब भरे एक दूजे में समाये थे।
मैं थोड़ी थक सी गई थी। मैंने अपने नितम्ब ऊपर नीचे करने बंद कर दिए तो श्याम ने मेरे कंधे को पकड़ कर मुझे करवट के बल हो जाने का इशारा किया। मैंने अपने नितम्बों को थोड़ा सा ऊपर करके तकिया निकाल दिया और करवट लेकर लेट गई। श्याम मेरे पीछे था। हमने यह ध्यान अवश्य रखा था कि वो फिसल कर बाहर ना आ जाए । अब मैंने अपनी दाईं जांघ अपने बांह में भर कर ऊपर कर ली। श्याम मेरी कमर पकड़ कर धक्के लगाने लगा। बड़ी आसानी से वो अन्दर बाहर होने लगा था। मुझे तो आश्चर्य हो रहा था कि इतना मोटा और लम्बा कैसे मेरे इस छोटे से छिद्र में समाया अन्दर बाहर हो रहा है।
अब तक 20-25 मिनट हो चले थे। मैं थक गई थी पर मेरा मन अभी नहीं भरा था। मैं आज इस आनंद को जी भर कर उठा लेना चाहती थी। काश समय रुक जाए और हम एक दूजे में समाये इसे तरह लिपटे सारी रात पड़े रहें।
अब श्याम के मुँह से गुरर्र … गुन्न्न्न … आह… की आवाजें आनी शुरू हो गई थी। मुझे लगा कि अब वो किसी भी समय पिचकारी छोड़ सकता है। मैंने अपने नितम्ब जोर से उसकी जांघों से सटा दिए। उसका एक हाथ मेरी कमर के नीचे से होता मेरे उरोज को पकड़े था और दूसरे हाथ से मेरी मुनिया को सहला रहा था। अचानक उसने मेरी कमर पकड़ ली और एक जोर से धक्का लगा दिया। आह… वो तो जड़ तक अन्दर चला गया था। मेरी हलकि सी किलकारी निकल गई और मेरी मुनिया ने पानी छोड़ दिया। अब उसका कामदण्ड फूलने और पिचकने लगा था। उसने एक ठुमका लगाया और उसी के साथ मेरी रानी ने भी संकोचन कर उसका अभिवादन किया। उसका शरीर अकड़ने सा लगा और झटके से खाने लगा। मैंने अपना दायाँ पैर नीचे कर लिया और वो फिर मेरे ऊपर आ गया। मैंने अपने नितम्ब ऊपर किये तो उसने अंतिम धक्का लगा दिया और इसके साथ ही उसके वीर्य की पिचकारियाँ छूटनी चालू हो गई। आह… गर्म गाढ़े वीर्य से मेरी रानी लबालब भर गई। उसका कामदण्ड भी वीर्य से लिपड़ गया। उसके धक्के धीमे पड़ने लगे और उसने मुझे जोर से अपनी बाहों में कस लिया और ऊपर ही लेट गया।
कुछ देर हम दोनों बिना कुछ बोले ऐसे ही पड़े रहे। अब तो उसका वो सिकुड़ने लगा था। एक पुच की आवाज के साथ वो फिसल कर बाहर आ गया। और उसका गर्म वीर्य मेरी रानी के छिद्र से बाहर आना चालू हो गया जो मेरी जाँघों पर भी फ़ैलने लगा। मुझे गुदगुदी सी होने लगी । और अपनी रानी के अन्दर खालीपन सा अनुभव होने लगा। उसने मुझे अपनी बाहों में उठा लिया और बाथरूम में जाते हुए मेरी बंद आँखों की पलकों को चूम लिया।
हम सफाई करके वापस पलंग पर आ गए। वो चित लेट गया और मैं उसके सीने पर अपना सिर रख दिया। मेरे सर के बालों से उसका मुँह ढक सा गया था। उसने मेरे सिर, कपोलों और पीठ पर हाथ फिराने चालू रखे। पता नहीं कब इसी तरह आपस में लिपटे हमें नींद ने अपने बाहुपाश में ले लिया।
सुबह जब मेरी आँख खुली तो मैंने घड़ी देखी। ओह… सुबह के 10:00 बज रहे थे। श्याम दिखाई नहीं दे रहा था। हो सकता है वो ड्राइंग रूम में हो या फिर बाथरूम में। मैंने अपने निर्वस्त्र शरीर को देखा जो बस उसी लुंगी से ढका था। मैंने बैठे बैठे ही एक अंगडाई लेने की कोशिश की तो मुझे लगा कि मेरा तो अंग अंग ही किसी मीठी कसक और पीड़ा से भरा है। मैंने अपने अधरों को छू कर देखा वो तो सूजे हुए लग रहे थे। मेरे उरोजों पर, उनकी घाटियों पर, पेट पर, पेडू पर, जाँघों पर, नितम्बों पर लाल और नीले से निशान बने थे। ओह … ये तो श्याम के प्रेम की निशानी थे। मैं तो ऐसा सोच कर ही लजा गई। मैंने लुंगी और शर्ट उठाई और बाथरूम की ओर भागी। ओह… मेरी दोनों जाँघों और नितम्बों के बीच तो ऐसा लग रहा था जैसे किसी ने चाकू से चीर ही दिया हो। मैंने बाथरूम में जाकर शीशे में अपना चेहरा देखा। हाय … राम मेरे होंठ सूजे हुए थे। कपोलों, गले, माथे, स्तनों पर हर जगह लाल और नीले निशान पड़ गए थे। मेरी मुनिया तो सूज कर पाव रोटी की तरह हो गई थी। आँखों में लाल डोरे से तैर रहे थे। शायद रात की खुमारी अभी भी बाकी थी।
मैंने शीशे में एक बार अपने आप को फिर से निहारा। ओह … यह तो वही चार साल पहले वाली निर्दोष, निष्पाप, निष्कपट, निश्छल, मासूम और अपराधबोध रहित मीनल खड़ी थी।
मैं मुँह हाथ धोये और वही लुंगी और शर्ट पहन कर ड्राइंग रूम में आ गई। मैं चाहती थी तो कि श्याम मुझे देखते ही दौड़ कर मेरी ओर आये और मुझे अपनी बाहों में भर कर इतनी जोर से भींचे कि मेरा सारा दर्द उसी पल दूर हो जाए। पर श्याम तो कब का जा चुका था। हाँ सोफे के बीच रखी मेज पर कागज़ का एक पुर्जा सा पड़ा अवश्य दिखाई दिया।
मैंने झट से उसे उठा लिया और उसे पढ़ने लगी :
“मेरी मीनल
आज मैंने तुम्हें पूर्ण रूप से पा लिया है मेरी प्रियतमा। मेरे पास तुम्हारे इस समर्पण के लिए धन्यवाद करने को शब्द ही नहीं हैं। आज मेरा तन मन और बरसों की प्यासी यह आत्मा सब तृप्त हो गए हैं। तुमने मुझसे वचन लिया था कि यह सब केवल आज रात के लिए ही होगा। मैं जा रहा हूँ मेरी प्रियतमा। मैं नहीं चाहता कि तुम मेरे ऊपर अपना वचन भंग करने का आरोप लगाओ। मैं भला अपने ऊपर अपनी प्रियतमा के वचन भंग (वादा खिलाफी) का आरोप कैसे लगने दे सकता हूँ ? मैं जा रहा हूँ, मेरी प्रियतमा अपना ख़याल रखना।
–तुम्हारा श्याम”
“ओह … मेरे श्याम…” मैं स्तंभित खड़ी उस कागज़ के पुर्जे को देखती ही रह गई।
“नहीं श्याम तुम ऐसा कैसे कर सकते हो …. मेरे साजन ……. मैं अब तुम्हारे बिना जी नहीं पाउंगी …….. मुझे छोड़ कर यूं मत जाओ … मैं तुम्हें वचन मुक्त करती हूँ !” मुझे तो ऐसा लग रहा था किसी ने मेरी छाती में खंजर भोंक दिया है और मेरा सारा रक्त ही निचोड़ लिया है। मैं अपना सर पकड़ कर वहीं सोफे पर गिर पड़ी। अब मेरे अन्दर इतनी शक्ति कहाँ बची थी कि मैं शयन कक्ष में वापस जा पाऊँ।
मेरी आँखें छलछला उठी। मैं अपने जीवन में घुट घुट कर बहुत रोई हूँ पर आज तो मैं फूट फूट कर रो रही थी। मुझे लगा जैसे मैं एक बार फिर से छली गई हूँ।
यह थी मेरी आपबीती। अब तुम सोच रही होगी कि अब समस्या क्या है वो तो बताई ही नहीं ? ओह… तुम भी निरी बहनजी ही हो ? श्याम तो बस एक रात के मुसाफिर की तरह मेरे सूने जीवन में आया और मुझे सतरंगी दुनिया की एक झलक दिखा कर चला गया। मैं भी कितनी पागल थी कि उसे अपने वचन में बाँध बैठी। मनीष 3-4 दिनों के बाद आ जाएगा और उसकी पदोन्नत्ति निश्चित है। अब फिर उजड़ कर दूसरे शहर जाना होगा। अब तुम बताओ कल रात जो सुनहरे और सतरंगी सपने मैंने देखे थे और उस परम आनंद की अनुभूति की थी मैं उसे कैसे अपने तन और मन से अलग कर पाउंगी। मेरे लिए अब क्या रास्ता बचा है? बताओ मैं क्या करूँ ?
तुम्हारी – मीनल
मेरी प्यारी पाठिकाओं ! अब आप मेरी उलझन समझ रही हैं ना ? मैं सीधे तौर पर मीनल को इस समस्या से निपटने का रास्ता नहीं सुझा सकता और ना ही मधुर से इस मेल की चर्चा कर सकता हूँ। अब आप ही बताएं कि इस हालत में मीनल (मैना) क्या करे। आप उसे मेल करेंगी ना ? आप मुझे भी उस मेल की एक प्रति (कॉपी) जरूर करें। दरअसल मैं यह देखना चाहता हूँ कि आपकी राय मेरी राय से कितनी मिलती है।
आपके मेल की प्रतीक्षा में ……
प्रेम गुरु और मीनल (मैना रानी)
This website is for sale. If you're interested, contact us. Email ID: [email protected]. Starting price: $2,000