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प्रेषक : प्रेम
अन्तर्वासना के सभी पाठकों को मेरा सलाम।
अन्तर्वासना में यह मेरी पहली रचना है। यहाँ कहानी नहीं अपितु संस्मरण है।
दोस्तों बात तब की है जब मैं बारहवीं में पढ़ता था। हमारे घर के सामने एक लड़की रहती थी, उसका नाम रेखा था। मैं शर्मीले स्ववभाव का था, मन ही मन उसे पसंद तो करता था पर उसको बता नहीं पाता था। वो मुझ से बड़ी क्लास में पढ़ती थी। मैं मन ही मन उसके सपने देखता था। उसके मन में क्या था मुझे नहीं मालूम था।
क्या बाला की खूबसूरती थी उसकी। उसकी नयन मानो आमंत्रण दे रहे हों, उसके काले रेशमी बाल काली घटाओं के समान थे, उसके उभार तो ग़जब ढहाते थे, अच्छों को अच्छों को राह भुला दें। उसकी जवानी में दिन पर दिन निखार आता जा रहा था।
एक बार की बात है, उसके दादा जी गाँव में स्वर्ग सिधार गए, उसके माता पिता को जाना था। पर घर में बेटी को अकेले छोड़ के नहीं जा सकते थे सो उन्होंने मेरी बहन पर यह जिम्मेदारी डाली कि रात को वो उसके साथ सोएगी।
जब शाम हुई तो मेरी बहन वहाँ जाने को हुई, मेरी माँ ने उसे टोका- रात का समय है, जमाना ख़राब है, उस घर में दो दो लड़कियाँ। ऊपर से चोरों का डर अलग !
माँ ने मुझे भी साथ भेज दिया। साथ में किसी पुरुष का होना जरुरी है।
मैं मन ही मन बहुत खुश था। चलो इसी बहाने रेखा को पास से देखने का मौका तो मिलेगा।
रेखा और मेरी बहन अन्दर वाले कमरे में सो गई, मुझे बाहर हॉल में सोने को कहा।
मैं मन ही मन रेखा को अपनी रानी बनाने के सपने देखता हुए सो गया।
करीबन आधी रात को मैंने पाया कोई मुझे हल्के से सहला रहा था, वो रेखा थी। मैं कुछ नहीं बोला, पर मुझ से रहा नहीं गया। मैं उठ गया। रेखा ने मेरे मुँह पर हाथ रख कर कहा- मुझे डर लग रहा है।
मैंने कहा- डरने की कोई बात नहीं, मैं हूँ ना !
रेखा ने कहा- इसी लिए तो आई हूँ, क्या मैं तुम्हारे पास सो सकती हूँ।
मैं तो कब से उसके सपने देख रहा था, मैं भला कैसे मना कर देता। मैंने सहमति में सर हिला दिया।
वो मेरे बिस्तर पर दूसरे कोने में सो गई, और मैं इस कोने पर था, मन में बहुत उथल-पुथल मच रही थी। पर डर था कि अगर रेखा ने शोर मचा दिया तो दीदी जग जायेगी।
लाल रंग के जीरो वाट बल्ब की रोशनी थी कमरे में। मैंने हिम्मत कर के करवट बदली, देखा रेखा अभी भी उस तरफ करवट लिए सो रही थी। मैंने आधे बिस्तर पर अपने कब्ज़ा जमा लिया, कुछ देर बाद रेखा भी मेरे और करीब आ गई।
पर शुरुआत कैसे हो?
“कुछ देर पहले रेखा मुझे सहला रही थी, सो उसके मन में भी कुछ तो है।” यह सोच मुझ में हिम्मत आई।
मैंने अपनी एक टांग रेखा की टांग से सटा दी, रेखा ने कोई विरोध नहीं किया।
मुझ में थोड़ी और हिम्मत आई, मैं जानता था कि वो सोने का नाटक कर रही है, वह भी आलिंगन का सुख चाह रही है।
मैं उसके थोड़े और करीब आ गया। हिम्मत करके मैंने उसके वक्ष पर हाथ रखा।
उसकी ओर से कोई विरोध ना देख प्यारे प्यारे उरोजों को मैं धीरे धीरे सहलाने लगा।
उसने झट से आँखें खोल दी।
मैं एकदम से डर गया।
उसने पूछा- क्या कर रहे थे?
मैंने कहा- कुछ नहीं !
रेखा ने कहा- यूं इतना डरते क्यों हो?
मैंने कहा- नहीं तो, मैं तो बस !
मेरी ऊपर की साँस ऊपर और नीचे की साँस नीचे थी, मैं तो सोच रहा था, मारे गए आज तो। कालोनी में शराफत का जितना नाम था, आज सब उतर जायेगा !
रेखा ने कहा- क्या बस-बस करते हो? मैं जानती हूँ, तुम मुझे छुप-छुप कर निहारते रहते हो !
मैंने उसकी आवाज में धीमापन और मधुरता पाई। मैंने सोचा कि अगर आवाज करनी होती तो जोर से बोलती।
फिर उसने कहा- मैं जानती हू तुम क्या सोचते हो ! अरे बुद्धू कहते क्यों नहीं?
अब जाकर मेरी जान में जान आई।
मैंने कहा- मैं तुम्हें अपनी पत्नी बनाना चाहता हूँ।
रेखा ने कहा- अरे ! अरे ! अरे ! मेरा नन्हा रसिया, अभी दाढ़ी मूंछ तो आई नहीं, चलो हम पहले पति पत्नी का खेल खेलते हैं।
मैंने कहा- इतनी रात को खेल खेलेंगे?
उसने कहा- हाँ, पत्नी बनाना चाहते हो ना, तो मैं पहले देखना चाहती हूँ कि तुम अपने पत्नी को प्यार कैसे करोगे। आओ, ऊपर वाले कमरे में चलते हैं।
उसने मेरा हाथ पकड़ कर उठाते हुए कहा।
आधी रात को मैं रेखा के पीछे पीछे हो लिया, मुझे डर था कि दीदी जाग जाएगी, पर साथ ही साथ मन में उमंग भी थी। डर पर उमंग हावी हो गई और मैं निडर हो गया।
कमरे में जा कर रेखा ने दरवाजा अन्दर से बंद कर लिया, मेरी ओर देख कर बोली- अब देख क्या रहे हो, मानो मैं तुम्हारी पत्नी हूँ, तुम ऑफिस से अभी अभी आये हो, हमारी नई नई शादी हुई है, तुम मुझे कैसे प्यार करोगे।
मैंने कहा- यह सब करना जरुरी है?
रेखा बोली- हाँ, मैं देखना चाहती हूँ।
मैं झट से गया और उसे अपनी बाहों में भर लिया, और कस के दबाने लगा।
मुझे यह उसकी और से खुला आमंत्रण लगा।
उसने मुझे दूर करते हुए कहा- इतनी जल्दी थोड़ी सब करते हैं, रुको, मैं तुम्हें सिखाती हूँ।
“मान लो कि तुम पत्नी हो और मैं तुम्हारा पति !” उसने मुझे कमरे में एक ओर खड़ा कर दिया।
उसने धीरे से डोर बेल की आवाज निकाली, मैंने दरवाजा खोलने का नाटक किया। उसने धीरे से मुझे अपने गले से लगाया, मेरे गालों पर चुम्बन लिया, बोली- जान, आज बहुत सुन्दर लग रही हो, क्या बात है, कहीं बिजली गिराने का इरादा है?
मेरे डायलोग भी वो ही बोल रही थी। मैं तो बस मजे ले रहा था। पर धीरे धीरे मेरा शेर जग रहा था। उसने मुझे ऊपर से नीचे तक चूमना चालू किया।
गजब की गर्मी थी उसकी सांसों में ! मेरे दिल की धड़कन तेज हो रही थी। वो मुझे सहला रही थी, वो इतनी बोल्ड होगी मैंने सोचा ना था। अब सहन शक्ति जवाब दे रही थी, मैं तो पहली रात में मात्र स्पर्श-सुख लेना चाह था, यह तो मुझ से भी एक कदम आगे निकली।
मैंने अपना शराफत वाला चोगा निकाल फेंका, उसके कोमल कपोलों पर अपने पहले प्यार का चुम्बन किया, फिर धीरे धीरे उसक वक्ष के पास जाकर चुम्बन करने लगा। अब तक उसके खेल अंत हो चुका था, अब वो मेरी बाहों में थी।
मैंने उसे बिस्तर पर लेटाया तो उसने कहा- क्या कर रहे हो?
“पति-पत्नी का खेल खेल रहे हैं ना, बस तुम पत्नी बन कर मेरा साथ दो !”
मैंने एक एक कर के उसके सारे कपड़े निकाल दिए। गोरा बदन था उसका, मानो दूध से नहा कर आई हो, बड़ी ही खूबसूरती से तराशा था उसके एक एक अंग को ऊपर वाले ने। उसके उभार अरावली की याद दिला रहे थे तो नितम्ब हिमालय से कम ना थे। मेरा यह पहला अनुभव था पर ब्लू फिल्मों में सब देखा था, सो वो सपने साकार करने का अवसर मिल रहा था।
उसे उत्तेजित करते हुए उसके सारे अंगों को सहलाया, प्यार के चुम्बन से उसके एक एक अंग पर अपना नाम लिखा।
उसकी सिसकारियाँ निकल रही थी- ओह मेरी जान, तुम तो बड़े सेक्सी निकले। अब और ना तडपाओ मुझ पर जम कर अपना प्यार लुटाओ !
मैं चूमता चूमता उसकी दोनों टांगों के बीच पहुँच गया, किताबों में इसका नाम योनि पढ़ा था, पर यह तो जन्नत का दरवाजा होता है, इसे प्रियतमा कहना चहिये। मैंने धीरे धीरे अपनी इस प्रियतमा को चूमना शुरू किया, उसकी सिसकारियाँ तेज होने लगी।
अब हम 69 की अवस्था में आ गये, उसने मेरे शेर को तुरंत अपने मुख में ले लिया, उसने कहा- ओह मेरी जान कितना जवान है तुम्हारा लंड !
मैंने कहा- यह लंड नहीं, शेर है मेरा !
उसने कहा- शेर है तो शेरनी से इतना दूर क्यों है? यह कहानी आप अन्तर्वासना.कॉंम पर पढ़ रहे हैं।
पक्की चुदक्कड़ निकली यह तो, मैं सोच रहा था सीधी साधी बाला होगी, पर यह तो बड़ी चालू थी।
वह एकदम मस्तानी हो गई थी, शेरनी को चूमने पर उसमें से रस बहने लगा था। मुझे उसका स्वाद अच्छा लग रहा था। मेरा शेर भी लिसलिसा हो गया था। अब मैंने अपने लंड को उसकी चूत में घुसाना चाहा, मैं कुछ करता उससे पहले ही उसने मेरे लंड को गाइड किया।
धीरे धीरे मैं उसे चोदने लगा।
उसने कहा- धीरे धीरे क्या कर रहे हो मेरे रजा, आज तो तुम मेरे पति हो, जोर से चोदो अपनी पत्नी को !
मैं जान चुका था कि यह पहले भी चुद चुकी है, तभी तो इतना अनुभव है। पर मैं यह सब सोच कर अपना मजा ख़राब नहीं करना चाहता था।
मैंने अपनी स्पीड बढ़ा दी।
उसकी आह़ें तेज हो गई- उह ओउच ओह और जोर से मेरे रजा हाय मैं मर जाऊँ तेरी चुदाई पर उह !
मैंने उसके मुहँ पर हाथ रखना चाहा कि दीदी जग ना जाये।
उसने मेरा हाथ हटाते हुए कहा- मेरे मम्मे कौन चूसेगा साले?
गाली भी दे रही थी वो !
मैंने फट से उसके चुचूक को अपने मुँह में ले लिया, आखिर यही तो वो थे जिनको देख कर मेरा मन मचल मचल जाता था।
अपनी जीभ और होटों के बीच उसके निप्पल को दबा कर मैं चूस रहा था। उसे बड़ा मजा आ रहा था।
उसके अंग अंग को प्यार करते हुए, सहलाते हुए मैंने अपनी गति तेज कर दी थी, हम दोनों को जन्नत का सुख मिल रहा था।
उहा… उहा… और वो अपनी चरम सीमा पर पहुँची तो मुझे जोर से भींच लिया- आह ! आह ! मेरी जान, तुमने तो मेरी चूत की प्यास बुझा दी। अब अपने लंड को मेरे मुहँ में दे दो, अपने राजा का रस मैं पीना चाहती हूँ।
मैंने अपना लंड उसके मुँह में दे दिया।
बड़ी ही सेक्सी अंदाज में मेरे लंड से मस्ती करते हुए उसने मुझे स्खलित कर दिया और सारा पानी अपने मुँह में ले गई।
उसके बाद हम दोनों ने एक दूसरे को सहलाया, तब तक शेर-शेरनी फिर से जाग गए थे, दूसरे राउंड में मैंने उसे रौंद डाला, इस बार ज्यादा समय लगा।
पर वो निकली एक नंबर की कामुक। मैं उसे चोद रहा था और वो चुदवा रही थी। अब मैं जान पाया कि उसका फिगर क्यों इतना निखर रहा है।
उसके बाद समय समय पर मैं उसकी प्यास बुझाता रहा। उसने अपनी और सखियों से भी मिलाया मुझे। उन्हें भी बहुत चोदा मैंने।
पढ़ाई के बाद मेरी नौकरी लग गई और मैं दूसरे शहर में आ गया, यहाँ चुदाई का कोई जुगाड़ नहीं है, तो समय निकाल कर अब भी रेखा के पास जाता हूँ। अब उसकी शादी हो गई है, सो पानी अन्दर ही छोड़ता हूँ, मेरी जिद है कि एक बच्चा मेरा पैदा करे।
मेरे पहले अनुभव पर अपनी राय जरूर दीजिये।
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