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प्रेषक : गुल्लू जोशी
मेरी नौकरी शहर में लग गई थी। मैंने सबसे पहले वहाँ पर एक किराये का मकान तलाश किया। मेरे साथ मेरा मित्र भी था। मैंने और मेरे मित्र राजकुमार के लिये मुझे बड़ा कमरा टॉयलेट के साथ मिल गया था। मकान मालिक कोई चालीस वर्ष का था और उसकी पत्नी आशा कोई पैंतीस साल की थी। उनके पास मात्र एक लड़की थी जो भोपाल में अपने बड़े पापा के यहाँ रह कर पढ़ाई करती थी। सामान के नाम पर हमारे पास बस एक एक ऐयर बैग था, जिसमें हमारे पास दैनिक जरूरतों का सामान और दो तीन ड्रेस थी। हमें ऊपर का कमरा दिया गया था। खाने के नाम पर हम लोग पेईंग गेस्ट की तरह थे। हमें रोज बताना पड़ता था कि आज हम भोजन करेंगे या नहीं।
आशा के पति अक्सर दौरे पर चले जाते थे, शायद यही कारण था कि उन्हें घर की देखरेख के लिये एक नौकरी-पेशे वाले किरायेदार की आवश्यकता थी। जब उसके पति घर पर होते थे तो आशा कमरे में ही रहती थी, पर जब वो यात्रा पर होते थे तो वो खुले चौंक में मात्र एक पेटीकोट में और एक ढीला सा ब्लाऊज पहने कपड़े धोती रहती थी या कोई अन्य काम करती रहती थी, हमें सीढ़ियों से उतर कर उसी चौक से गुजरना होना पड़ता था।
हमारे पास उस समय टीवी नहीं था। मनोरंजन के नाम पर बस राजकुमार कुछ अश्लील किताबें ले आया करता था। शाम को बस हम दोनों भोजन पश्चात वही कहानियाँ पढ़ते थे। कभी कभी शराब भी पी लिया करते थे।
एक शाम को रोज की भांति हम दोनों गपशप कर रहे थे कि राजकुमार ने शराब की फ़रमाईश भोजन से पहले ही कर दी। मैं बाजार जाकर एक अद्धा बोतल ले आया। फिर हम दोनों अश्लील कहानियां पढ़ते हुये शराब पीने लगे। कुछ ही देर में कहानी पढ़ते पढ़ते मेरा लण्ड खड़ा हो गया। राजकुमार के साथ भी यही होना था।
साले क्या लिखते हैं, बस दिल चीर कर रख देते हैं…
मस्त लिखते है साले… मुठ्ठ मारने का दिल कर रहा है !
देख तो साला कैसा हो रहा हरामी… सीधा तन्नाया हुआ…
राजू, तेरा लण्ड तो देख… लगता है चड्डी ही फ़ाड़ देगा…
मैं राजू के पास सरक आया, अपनी बनियान उतार दी।
राजू, तेरा लण्ड तो जोरदार लग रहा है… दिखा तो कैसा है?
अरे यार, जैसा तेरा है… खुद का ही देख ले ना…
मैंने अपनी चड्डी नीचे सरकाई और अन्दर से लण्ड बाहर खींच लिया। लण्ड का अधखुला सुपारा देख कर राजू बोल उठा- अरे, उसे पूरा तो खोल दे… मस्त सुपारे को तो बाहर की हवा तो खाने दे…
“नहीं नहीं… पहले तू निकाल… साला अन्दर तो जंग खा जायेगा…”
राजू ने अपनी चड्डी पूरी खोल कर उतार दी। उसका लण्ड भी मेरे बराबरी का ही था पर सुपारा पूरा खिला हुआ था। मैंने रंग में आकर उसका लण्ड पकड़ लिया।
उफ़्फ़्फ़ ! एकदम गर्म हो रहा था।
“मुठ्ठ मार दूँ…? मजा आ जायेगा…!”
“अरे पूछने की बात है? चला अपना हाथ !”
मैंने जैसे ही उसका लण्ड रगड़ना शुरू किया… वो मस्त हो गया।
“ठहर गुल्लू, साले मेरी तो निकाल देगा फिर…?”
उसने मेरा लण्ड पकड़ लिया…
“चल साथ साथ मुठ्ठ मारते हैं…”
हम दोनों एक दूसरे के सामने मुख करके लेट गये और धीरे धीरे मुठ्ठ मारने लगे। दोनों के मुख से सिसकारियाँ निकल रही थी।
“रुक साले… तेरी भेन को चोदूँ… पीछे पलट…”
मुझे पीछे पलटा कर वो मेरी पीठ से चिपक गया। अब उसने अपना लण्ड मेरे चूतड़ों के बीच घुसा दिया। मैं समझ गया कि अब मेरी गाण्ड मारेगा राजू। मैंने उसकी सहायता की और गाण्ड में उसका लण्ड घुसने दिया। उसका लण्ड एक लकड़ी की भांति मेरी गाण्ड में घुसने लगा। उसने अपनी गाण्ड दबा कर मेरी गाण्ड में लण्ड अन्दर कर दिया। मुझे तो गुदगुदी सी हुई। गाण्ड मराने का यह पहला अनुभव था।
फिर तो राजू मेरी गाण्ड से जोर से चिपक कर मेरी गाण्ड मारने लगा। साथ ही में पीछे से हाथ डाल कर मेरे लण्ड को मुठ्ठ मारने लगा। मुझे दोनों ओर से बहुत मजा आ रहा था। वो कभी मेरा मुख चूमता तो कभी गले में काट लेता था। मेरे कड़क लण्ड पर उसका हाथ चलने से मुझे अनोखा आनन्द मिल रहा था।
तभी मेरे लण्ड को जोर से रगड़ने के कारण मेरे लण्ड ने जोर से पिचकारी छोड़ दी। फिर तो राजू ने मुझे नीचे लेटा कर खुद ऊपर आ गया और जोर से गाण्ड पर शॉट पर शॉट मारने लगा। फिर एकाएक वो मेरी गाण्ड में ही जोर से झड़ गया।
“साले, गाण्ड मार दी ना मेरी…?” मैं नीचे दबा हुआ ही बोला।
“भेन चोद, तू है ही इतना चिकना… जाने कब से तेरी गाण्ड मारने को मन कर रहा था।”
मेरे ऊपर से अब वो उतर गया था, मैं भी ठीक से बैठ गया था। वो भी मेरे पास आ कर बैठ गया था। हम फिर से शराब की धीरे धीरे चुस्कियाँ लेने लगे। वो कभी कभी मेरे लण्ड के साथ छेड़खानी भी करने लगा था। मुझसे बार बार लिपटने लगा था।
“साले, कितना चिकना है तू… चिकनी गाण्ड पर तो कोई मर ही जाये…”
“अरे क्या कोई सपना देख रहा है?”
“तेरी तो बार गाण्ड मारने को मन करता है…।”
तभी नीचे से आवाज आई- भोजन कर लो। फिर इन्हें जाना भी है !
हमने जल्दी से पाजामा पहन लिया और नीचे आ गये।
‘भई, गुलशन मैं रात की गाड़ी से जा रहा हूँ… घर का ख्याल रखना।”
फिर वो राजकुमार से बातें करने लगे। अचानक मेरी नजर आशा की तरफ़ उठ गई। आशा की नजर तो मेरे उठे हुये पाजामे पर थी, मेरा लण्ड जाने कब से खड़ा था। अपने लण्ड की तरफ़ घूरते हुये देख मुझे शरम सी आ गई। मैंने अपने हाथों से उसे धीरे से छुपा लिया।
जैसे ही हमारी नजरें चार हुईं, आशा शरमा गई… मेरा मुख भी लाल हो उठा।
सवेरे मुझे रात की घटना याद हो आई, राजकुमार ने कैसे मेरी गाण्ड मार दी थी। फिर अचानक मुझे आशा की वो हरकत भी याद हो आई, जब आशा बड़ी ही हसरत भरी निगाहों से मेरे लण्ड को देख रही थी।
सुबह सुबह राजकुमार स्टेशन पर किसी से मिलने चला गया था। मैं किसी बहाने की सोच ही रहा था कि नीचे जाकर आशा से कुछ बाते करूँ, पर मुझे कोई बहाने बाने का मौका ही नहीं मिला।
आशा ने खुद ही मुझे बुला लिया- गुल्लू जी, क्या कर रहे हो ? नीचे आ जाओ…
“जी, अभी आया…”
मैं तो जैसे तैयार ही बैठा था। जल्दी से सीढ़ियों से मैं नीचे उतर आया और सामने पड़ी एक कुर्सी खींच कर बैठ गया। आशा तो एक पतला सा पेटीकोट पहने हुये मेरी तरफ़ पीठ किये हुये कपड़े धो रही थी। मैंने अपनी आँखें उसके गोल गोल चूतड़ों पर गड़ा दी। बहुत सुन्दर, सुडौल… गहरी दरार वाले चूतड़ मेरे दिल में समा से गये। लग रहा था कि बस उससे चिपक कर पीछे से अपना लण्ड उसकी गाण्ड में घुसेड़ दूँ।
“आज राजू कहाँ चले गये…?”
“वो स्टेशन पर अपने मित्र से मिलने गया है। साहब का टूर कहाँ का है?”
“अरे वही मुल्ला की दौड़ मस्जिद तक… दिल्ली के अलावा और कहाँ जाते हैं !”
“कितने दिन के लिये गये हैं…?”
वो कपड़े ले कर उठ गई, पेटीकोट आशा के चूतड़ों के दरार में घुस कर फ़ंस गया। जैसे मेरा दिल भी पेटीकोट के साथ वहीं अटक गया हो।
“अब गये हैं तो चार पांच दिन की गई…।”
फिर वो बर्तन लेकर मेरे बिल्कुल सामने बैठ गई। उफ़्फ़्फ़ ! क्या भारी स्तन थे। बड़े बड़े… भरे हुये मांसल स्तन…
मेरी तरफ़ देख कर बोली- क्या देख रहे हो? कुछ स्पेशल है क्या?
मेरे मन में भी शरारत सूझी- जी हाँ, स्पेशल तो है… वही कल की तरह !
अपने होंठों को एक तरफ़ से काटते हुये अपने स्तन को मेरी तरफ़ ओर झुका दिया, मुस्करा कर बोली- कैसे हैं…?
फिर दोनों बाहों से अपने कबूतरों साईड से दबा कर और मेरी तरफ़ उभार दिया,”उफ़्फ़्फ़ ! कैसे सम्हालू अपने आपको?… सालों को दबा दूँ…!” उसकी आँखों में भी अब गुलाबी डोरे थे। वो बैठे बैठे ही मेरी ओर पास सरक आई। मेरी सांस तेज हो गई- आशा जी, ये तो बहुत अच्छे हैं… बहुत ओह्ह्ह्ह !
“आपका ये तो फिर से खड़ा हो गया !” आशा ने जैसे लण्ड देख कर आह भरी।
“आशा जी…”
मैंने हाथ आगे बढ़ा कर उनके गदराये हुये उरोजों को सहला दिया।
“जरा, अच्छी तरह से टटोल लीजिये… फिर ना कहना कि मौका ना मिला…”
मेरा सब्र का बांध टूटने लगा था, मैं आशा के उरोज सहलाने लगा।
तभी आशा ने अप्रत्याशित तरीके से मेरा लण्ड पकड़ लिया।
“अरे… ओ… यह क्या?” मेरे लण्ड में एक तेज मीठी टीस उठी।
“हाय रे… कितना कड़क… कितना बड़ा…” आशा मुझसे लिपटने लगी थी, मैं उसके सर के बालो को सहलाने लगा था।
उसने तो अपना मुख मेरे पजामे में घुसा दिया और मेरे लण्ड को ऊपर से ही काटने लगी। मैं नीचे झुक कर उसकी गाण्ड को दबाने लगा। इधर आशा ने मेरा पाजामा खींच कर अन्दर से चड्डी से लण्ड निकाल लिया और चाटने लगी।
“आशा प्लीज अब धीरे से…”
उसने तमतमाया हुआ चेहरा मेरी तरफ़ उठाया और धीरे से खड़ी हो गई। मैंने जल्दी से उसका चेहरा उठाया और उसके अधरों को पीने लगा। उसका पेटीकोट सरक कर उसके पैरों पर आ गया। मैंने उसकी चूत में अपनी अंगुली डाल दी। तभी मुझे गरम गरम सा कुछ तरल पानी का सा आभास हुआ। आशा का पेशाब निकल पड़ा था। मैं उसके मूत को चूत पर हाथ रख कर उसे मसल मसल कर उसे धोने लगा। फिर नीचे झुक कर उसकी चूत को अपने मुख से लगा लिया। पूरा मुख पेशाब से नहा गया कुछ मुख में भर गया। आशा भी चूत से पेशाब की धार को मेरी तरफ़ उभार कर मुझ पर डालने लगी।
“मेरे गुल्लू… कितना मजा आया ना…?”
आशा अब मेरा लण्ड अपने हाथ में लेकर मलने लगी। तभी मैंने भी जोर से अपना मूत्र त्यागना आरम्भ कर दिया। आशा मुसकराई और नीचे बैठ गई और जैसे स्नान करने लगी हो। पूरे चेहरे को पेशाब से मला और फिर मेरे लण्ड को नल की तरह से अपने मुख से लगा दिया। बड़े ही शौक से उसने पेशाब पी लिया और अपने शरीर को नहला लिया।
“गुल्लू जी, आपको बुरा तो नहीं लगा ना…?”
“आशा जी, पहली बार इतना सुखद अनुभव हुआ है !”
“मुझे भी, पति तो ये करने नहीं देते हैं… आज आप ने मेरा दिल जीत लिया है… आओ अब स्नान कर लें…”
“अजी, ऐसे ही ठीक है…”
“अरे कोई आ गया तो… फिर उसने मुझे खींच कर स्नानाघर में खड़ा कर दिया। उसने शॉवर खोल दिया और झुक कर घोड़ी सी बन गई, मैंने उसकी पीठ ठीक से धो दी। फिर ना जाने क्या सोचा… घोड़ी बनी हुई उसकी सुडौल गाण्ड मुझे बहुत मोहक लग रही थी। मैंने उसके बाल पकड़े और उसकी गाण्ड में लण्ड फ़ंसा दिया।
“उईईई मां, अचानक ही…”
“साली, क्या मस्त गाण्ड है… सोचा कि मार ही दूँ !”
“तो मार साली को… तबियत से मार… आज इसे भी शान्ति मिल जायेगी।”
हम दोनों नहाते भी गये और गाण्ड मारते भी गये। खूब लिपटा-लिपटी की। मेरे लण्ड को भी उसने खूब चूसा, उसकी चूत का रसीला पानी भी मैंने खूब चूसा।
“गुल्लू, वो राजू आ गया होगा… चलो नाश्ता लगा देती हूँ।”
राजू आ चुका था। नाश्ते के लिये उसे आवाज लगाई। फिर आशा बोली- गुल्लू, ये राजू कैसा है…?
“कैसा से मतलब… ओह्ह्ह… चुदवाना है क्या?” यह कहानी आप अन्तर्वासना.कॉंम पर पढ़ रहे हैं।
“धत्त, ऐसे क्या कहते हो… चूत है तो चुदवाना तो होगा ही ना?”
“अरे हम तो है ना… चूत ठोकने के लिये…!”
“जी हाँ, पर बात यह है कि मेरे पास तो दो दो छेद है, समझे…? कितना मजा आयेगा जब तुम्हारा लण्ड सामने से चोदेगा और एक लण्ड मेरी गाण्ड मारेगा।
लो वो राजू आ ही गया… उसी से पूछ लेते हैं…”
“अरे नहीं गुल्लू…! सुन लो भई राजू, आशा जी को चोदना है…”
राजू की तो आँखें फ़ैल गई। मैंने आशा की चूचियाँ दबाते हुये कहा।
“अरे छोड़ो ना… वो देख रहा है…”
तभी राजू ने आशा के पास आकर… उसकी गाण्ड दबा दी…”आज्ञा दो आशा जी… जैसा आपका फ़रमान…”
“तो आज छुट्टी ले लो… फिर घर पर गुल्लू-लीला करते हैं !”
“और राजू लीला…” फिर तीनों हंस पड़े।
दोनों ने अपने ऑफ़िस में फोन कर दिया और एक दिन की छुट्टी ले ली। फिर महफ़िल जमी आशा के बेडरूम में। राजू ने आशा की गाण्ड को नंगी करके खूब चाटा और दबाया। उसके गाण्ड के छेद की जीभ से चाट चाट सफ़ाई की… उसमें खूब खुजली की फिर मेरी ही तरह राजू ने आशा ने जम कर गाण्ड मारी।
फिर मैंने भी आशा को दबोच कर खूब चोदा… रात को सोने के समय आशा की चूत और गाण्ड में क्रीम भर कर दोनों ने एक साथ आगे व पीछे से चुदाई की।
राजू का जब जी नहीं भरा तो उसने मेरी आशा के सामने दो बार गाण्ड मार दी। आशा ने मेरी गाण्ड मराई पर बहुत खुशी जताई। मेरी गाण्ड मराने का नजारा उसने पहली बार देखा था।
गुलशन जोशी
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