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प्रेषक : सन्दीप शर्मा
जब मैं आंटी के होंठों से अलग हटा तो मैंने देखा की उनके चहेरे पर एक अलग ही सुकून था।
उनके चेहरे पर तो सुकून आ गया था लेकिन मेरे अंदर तो एक तूफ़ान अभी बाकी ही था तो मैं आंटी की उसी हालत में उनकी दोनों टांगों के बीच में आया और पूरा तना हुआ लण्ड आंटी की गीली चूत में एक झटके में ही डाल दिया। इस बार आंटी के मुँह से एक उफ़ तक नहीं निकली और जब मैंने धक्के लगाना शुरू किए तो आंटी बोली- थोड़ी देर धीरे धीरे हिल ताकि मैं भी तैयार हो सकूं !
मैंने वही किया।
मुझे लगा अब आंटी को बाँध कर रखने की वजह खत्म हो चुकी थी तो मैंने लण्ड चूत में डाले डाले ही बैठ कर सबसे पहले आंटी के दोनों पैरों को खोल दिया उसके बाद आंटी के ऊपर लेटते हुए उनके दोनों हाथों को भी खोल दिया। जैसे ही आंटी के हाथ पैर खुले, आंटी ने मुझे अपने हाथ-पैरों से जकड़ लिया और कस कर बाहों में भर लिया।
आंटी भी फिर से तैयार हो चुकी थी चुदने के लिए और मैं तो पहले से ही तैयार था चोदने के लिए तो मैंने भी आंटी को एक हाथ से उनकी कमर के थोड़ा ऊपर और दूसरे हाथ से कंधे को लपेटते हुए आंटी को धक्का पेल चुदाई करने लगा। मेरे हर धक्के पर चट चट की आवाज आ रही थी आंटी के मुँह से आह आह्हह्ह की आवाजें निकल रही थी मानो मेरी चुदाई और आंटी की आहों में एक लयबद्ध प्रतियोगिता चल रही हो।
मैं ऊपर से आंटी को चोद रहा था और नीचे से आंटी भी अपनी चूत को चुदवाने के लिए मुझे कस कर जकड़े हुए थी। कभी मैं उनके होंठों को चूमता और कभी उनके स्तनों को पीने लगता।
हम दोनों में ये धक्कों का तूफ़ान चलता ही रहा और एक दूसरे में खोते रहे, इसी बीच आंटी एक बार फिर से झड़ने लगी और झड़ने के दौरान उन्होंने मुझे कस कर पकड़ लिया।
जब आंटी झड़ चुकी तो मुझे लगा कि अब आंटी फिर से नहीं चुद पाएँगी, मैं रुक गया। लेकिन मैं गलत था और आंटी ने फिर से मेरे होंठों को चूमा और मुझे इशारा किया, आंटी के इशारे की देर थी कि मैंने आंटी को फिर से चोदना शुरू कर दिया।
मैंने कुछ देर चोदा और उसके बाद मुझे आंटी को अलग तरह से चोदने का मन हुआ तो मैंने आंटी की चूत से लण्ड निकाला और उन्हें पलट कर घोड़ी बन जाने को कहा। यह कहानी आप अन्तर्वासना डॉट कॉंम पर पढ़ रहे हैं।
मेरे कहने भर की देर थी की आंटी ने घोड़ी बन कर अपनी चूत को मेरे सामने कर दिया, मैंने खड़े हो कर एक ही झटके में उनकी चूत में मेरा लण्ड अंदर तक घुसा दिया।
उसके बाद मैं आंटी को फिर से चटाचट चोदने लगा और बीच बीच में मैं हाथ से आंटी की चूत के दाने को भी रगड़ देता था जिससे आंटी अचानक ही सिहर उठती थी।
आंटी को घोड़ी बना कर चोदते हुए मैं कभी आंटी की पीठ को काट लेता था और कभी उनके चूतड़ों पर हल्की थपकियाँ लगा देता था जिससे आंटी को बड़ा मजा आ रहा था और मुझे भी।
हमें चुदाई करते हुए काफी देर हो चुकी थी और मुझे लग रहा था कि मैं अब ज्यादा देर नहीं टिक पाऊँगा तो मैंने आंटी को फिर से पीठ के बल लेटाया और उनके होंठों को मेरे होंठों में भरा, लण्ड को उनकी चूत में और कस कस कर धक्के लगाते हुए आंटी को चोदने लगा।
मैंने कुछ ही धक्के लगाए होंगे कि आंटी झड़ गई और वो पूरी तरह से झड़ती, उससे पहले ही मैं भी झड़ गया, मैंने उनके होंठों को चूसते हुए मेरा सारा वीर्य उनकी चूत में ही भर दिया और मैं उनके ऊपर ही लेट गया।
मैं कुछ देर उसी हालत में लेटा रहा और उन्होंने मुझे लिटाये रखा, थोड़ी देर बाद हम दोनों एक दूसरे से अलग हुए तो आंटी बोली- अच्छा बदला निकाला तुमने मुझसे?
पर मेरी बात करने की हालत नहीं थी तो मैंने कोई जवाब नहीं दिया और सिर्फ लेटा ही रहा।
थोड़ी देर बाद आंटी उठ कर जाने लगी तो मैंने उन्हें वहीं पकड़ कर अपने पास ही लेटा लिया। मैंने घड़ी देखी तो नौ बजने में सिर्फ दस मिनट बाकी थे।
आंटी बोली- सिर्फ बिस्तर पर ही रहने का इरादा है क्या? भूख नहीं लगी क्या तुम्हें? खाना नहीं खाओगे?
मैंने कहा- मैं ऑर्डर दे चुका हूँ, आधे घंटे में आ जायेगा, तब तक आप यही रहो।
और मैंने कम्बल ओढ़ कर उनको मेरे पास ही चिपका कर लेटा लिया।
हम दोनों ही थक चुके थे तो आंटी भी लेट गई और मुझे कब नींद लगी पता ही नहीं चला।
मेरी तब नींद खुली जब आंटी मुझे खाने के लिए बुलाने आई, मैं समझ गया कि रेस्तराँ से खाना आ गया है, आंटी ने खाना लगा लिया है।
मैंने कपड़े पहने, आया तो देखा कि आंटी ने संतरे का जूस भी बना लिया था जो मुझे बहुत पसंद है।
हमने खाना खाया, मैं कमरे में आकर टीवी देखने लगा और आंटी भी मेरे पास ही आकर मुझ से चिपक कर लेट गई।
खाना मैंने ज्यादा खा लिया था और दिन भर में कई बार होने के साथ साथ थोड़ी देर पहले ही इतना सब किया था तो मैं थोड़ा आराम चाहता था तो मैं टीवी देखने लगा और आंटी मुझ से चिपक कर लेटी रही। इस बार नींद आंटी को लग चुकी थी और मैं जाग ही रहा था लेकिन मेरा पेट और मन अभी के लिए भर चुका था तो मैंने भी कुछ करने की सोचने के बजाय थोड़ी देर टीवी देखा और फिर आंटी को चिपका कर उनको बाँहों में जकड़ कर सो गया।
सुबह कब हुई पता ही नहीं चला और सुबह जब आंटी ने मुझे चाय के लिए जगाया तो पता चला कि सुबह के आठ बज गए हैं।
रात भर की अच्छी नींद के बाद मैं पूरी तरह से तरोताज़ा हो चुका था तो मैंने आंटी को मेरे पास ही बिस्तर में खींच लिया जैसे आंटी आंटी ना होकर मेरी बीवी हो, और उन्हें नीचे पटक कर कम्बल में लपेटते हुए उनके ऊपर आ गया।
आंटी बोली- क्या इरादे हैं जनाब? अभी तो जागे हो, रात में तो कुछ किया नहीं अब सुबह सुबह शुरू हो गए।
मैंने कहा- रात को पहले मैं सोया था या आप? और जब आप सो गई थी तो कैसे करता?
मेरी बात सुन कर बोली- रात में कुछ करने की हालात नहीं रह गई थी यार ! चूत तो एकदम सूज गई है तुम्हारी मार के कारण और दर्द अलग कर रही है, अभी भी मेरी हालत नहीं है और चुदवाने की।
मैंने शरारत भरी मुस्कान के साथ कहा- मत चुदवाओ, वैसे भी अब मेरा मन तुम्हें चोदने का है भी नहीं !
आंटी मेरी बात समझ गई थी और बोली- नहीं मैंने आज तक गाण्ड नहीं मरवाई है और मरवाऊँगी भी नहीं। बहुद दर्द होगा।
उनकी बात सुन कर मैंने कहा- जब मरवाई ही नहीं है तो पता कैसे है कि दर्द होता है या मजा आता है? और देखो आप नाटक करो या प्यार से मरवा लो, गाण्ड तो मैं आपकी मार कर रहूँगा, यह आप भी जानती हो कि मैं कितना कमीना हूँ।
यह कहते हुए मैंने आंटी को बैठा कर उनका गाऊन एक झटके में निकाल दिया, और साथ साथ अपने कपड़े भी निकाल दिए।
अब तक आंटी भी गर्म हो चुकी थी और वो भी गाण्ड मरवाने के लिए पहले से ही शायद तैयार थी तो उन्होंने कहा- अच्छा ठीक है।
मैंने उनकी ड्रेसिंग टेबल से तेल की शीशी उठाई, लण्ड पर अच्छे से तेल लगाया और थोड़ा तेल हाथ में लेकर आंटी को उल्टा करके उनकी चिकनी गाण्ड पर भी मसल दिया और थोड़ा तेल आंटी की गाण्ड को चौड़ा कर के उनके छेद में भी डाल दिया।
जैसे ही तेल आंटी के छेद में गया आंटी कुलबुलाने लगी और बोली- रहने दे ना, चूत को ही चोद ले, गाण्ड को छोड़ दे।
पर उनकी छोड़ दे में भी चोद दे ही था।
मैंने लण्ड को अच्छे से तेल लगाने के बाद आंटी को घोड़ी बना कर उनकी गाण्ड पर रखा और जैसे ही धक्का मारा आंटी आगे खसक गई।
मैंने एक बार और कोशिश की और इस बार भी नतीजा वही निकला।
वैसे इस बात की मुझे पहले ही उम्मीद थी क्योंकि पहली बार गाण्ड मरवाने पर महिलाएँ यही करती हैं। अत: मैंने आंटी को कहा- सीधे ही लेट जाओ, इससे आंटी को एक बारगी लगा कि मैं अंदर नहीं डाल पा रहा हूँ इसलिए अब चूत में ही डालने वाला हूँ लेकिन यह आंटी का भ्रम ही था।
जब आंटी सीधी लेट गई तो मैंने उनकी दोनों टांगों को पूरी तरह से हवा में उठा दिया जिससे उनकी गाण्ड का छेद बहुत अच्छे से खुल गया और फिर थोड़ा सा हाथों से और खोल कर मैंने मेरे लण्ड को उनकी गाण्ड पर रखा और एक झटके में मेरा सुपारा उनकी गाण्ड के अंदर सरका दिया।
जैसे ही सुपारा अंदर गया, आंटी तड़पने लगी, कहने लगी- निकाल ले इसे, बहुत जलन हो रही है, मेरी गाण्ड फट गई है, मैं मर जाऊँगी।
लेकिन ये तो हर औरत का ही कहना होता है पहली बार चुदवाने या गाण्ड मरवाने के समय तो मैंने एक झटका और मार कर मेरा आधा लण्ड अंदर घुसा दिया और जब तक आंटी कुछ कहती मैंने उनके दर्द की परवाह किये बिना पूरा लण्ड आंटी की गाण्ड के अंदर घुसा दिया।
आंटी दर्द में तड़पती रही और मैं उस दर्द के मजे लेता रहा, मुझे बहुत मजा आता है औरतों के इस दर्द को देखने में, यूँ भी सिर्फ थोड़ी देर की बात होती है उसके बाद तो खुद ही इस दर्द के लिए कहती रहती हैं।
आंटी थोड़ी देर दर्द में तड़पती रही और कहती रही- निकाल ले !
और मैं उनके दर्द में भी उनकी गाण्ड को धीरे धीरे धक्के मारता रहा, मारता रहा।
उनकी गाण्ड बहुत कसी हुई थी तो मुझे सिर्फ इसी बात का डर था कि कहीं ऐसा ना हो कि आंटी के मजा आने के पहले ही मैं झड़ जाऊँ और अगर ऐसा हो जाता तो शायद आंटी को गाण्ड मरवाने से ही नफरत हो जाती जो मैं बिल्कुल नहीं चाहता था। इसलिए मैं धीरे धीरे ही आंटी की गाण्ड मार रहा था और गाण्ड मारने के साथ ही साथ उनकी चूत को भी सहलाते जा रहा था।
मैंने थोड़ी देर आंटी की गाण्ड इसी तरह से मारी थी कि आंटी को भी मजा आने लगा और बोली- थोड़ा जोर से करो ना !
मैं समझ गया था कि अब मैं जो चाहूँ वो कर सकता हूँ तो मैंने आंटी की गाण्ड के नीचे दो तकिये रखे और उनकी गाण्ड को ऊँचा कर दिया।
उसके बाद मैंने जोर जोर से आंटी की गाण्ड मारना शुरू कर दिया और चूंकि मैं आंटी को सीधा लेटा कर ही उनकी गाण्ड मार रहा था तो मेरे सारे धक्के उनकी चूत पर भी टकरा ही रहे थे।
मैं आंटी की गाण्ड मार रहा था और इससे चट चट की आवाज निकल रही थी दूसरी तरफ आंटी के मुँह से भी आह आह की आवाजे निकलती ही जा रही थी। मुझे लगा कि अब मैं झड़ने वाला ही हूँ तभी आंटी आनन्द की अधिकता से झड़ गई और उसके तुरन्त बाद ही मैं भी झड़ गया और मैंने मेरा सारा वीर्य इस बार आंटी की गाण्ड में भर दिया।
अब हम दोनों की सांसें धौंकनी की तरह चल रही थी और जब सांसों का तूफ़ान थोड़ा थमा तब हम दोनों एक दूसरे से अलग हुए।
अलग होने के बाद मैंने चाय पी, नहाया और जब पलक आ गई तो मेरे कपड़े पहन कर मैं घर से बाहर चला गया पलक को आंटी की हालत का जायजा लेने के लिए छोड़ कर।
बाद में आंटी और मैं चार सालों तक शारीरिक सम्बन्ध बनाते रहे फिर मेरी शादी हो गई तो आंटी और मेरे शारीरिक सम्बन्ध खत्म हो गए।
मैं अब भी उनसे महीने में एक दो बार जरूर मिलता हूँ लेकिन हम दोनों के बीच अब इस तरह के कोई सम्बन्ध नहीं है और अभी शारीरिक सम्बन्धों का ना होने का कारण उनकी तबियत है।
इस कहानी को यहीं खत्म करते हुए यह वादा करता हूँ कि जल्द ही नई कहानी आप सभी के सामने नुमाया करूँगा।
अगली कहानी मेरी दिल्ली यात्रा की है जिसमे जिंदगी के दो ऐसे अनुभव हुए हैं जिन्हें मैं कभी दोहराना नहीं चाहता।
तब तक आप इस कहानी के बारे में अपनी राय भेजिये।
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