This website is for sale. If you're interested, contact us. Email ID: [email protected]. Starting price: $2,000
प्रेम गुरु और नीरू बेन को प्राप्त संदेशों पर आधारित
प्रेषिका : स्लिम सीमा
तजुर्बेकार लोग कहते हैं कि गोरी की गाण्ड और काली की चूत बहुत मज़ेदार होती है। अगर इस लिहाज से देखा जाए तो मेरी मटकती गाण्ड तो बहुत ही लाजवाब है। क्या आपको मेरे (नीरू बेन) मदहोश कर देने वाले किस्से याद नहीं हैं? मैंने आपको अपनी पिछली कहानी हुई चौड़ी चने के खेत में जो कई भागों में है, में बताया था कि अपनी जोधपुर यात्रा के दौरान मैंने जगन के साथ उन चार दिनों में अपनी जवानी का भरपूर मज़ा लिया और दिया था लेकिन अब उन चार दिन की चाँदनी के बाद तो फिर से मेरी जिंदगी में अंधेरी रातें ही थी, मेरे दिल में एक कसक रह गई थी कि जगन के लाख मिन्नतें करने के बाद भी मैंने उससे अपनी गाण्ड क्यों नहीं मरवाई !
सूरत लौट आने के बाद मैंने गणेश के साथ कई बार कोशिश की पर आप तो जानते ही हैं वो ढंग से मेरी चूत ही नहीं मार सकता तो भला गाण्ड क्या मारता !
जगन के मोटे और लंबे लौड़े से चुदने के बाद तो अब रात में गणेश के साथ चुदाई के दौरान मुझे अपनी चूत में एक ख़ालीपन सा ही महसूस होता रहता और कोई उत्तेजना भी महसूस नहीं होती थी। मेरे मन में दिन रात किसी मोटे और तगड़े लण्ड से गाण्ड चुदाई का ख्याल उमड़ता ही रहता था।
हमारा घर दो मंज़िला है, नीचे के भाग में सास-ससुर रहते हैं और हमारा शयनकक्ष ऊपर के माले पर है, हमारे शयनकक्ष की पिछली खिड़की बाहर गली की ओर खुलती है जिसके साथ एक पार्क है, पार्क के साथ ही एक खाली प्लॉट है जहाँ अभी मकान नहीं बना है, लोग वहाँ कूड़ा करकट भी डाल देते हैं और कई बार तो लोग सू सू भी करते रहते हैं।
उस दिन मैं सुबह जब उठी तो तो मेरी नज़र खिड़की के बाहर पार्क के साथ लगती दीवार की ओर चली गई. मैंने देखा एक 18-19 साल का लड़का दीवाल के पास खड़ा सू सू कर रहा है, वो अपने लण्ड को हाथ में पकड़े उसे गोल गोल घुमाते हुए सू सू कर रहा है।
मैंने पहले तो ध्यान नहीं दिया पर बाद में मैंने देखा कि उस जगह पर दिल का निशान बना है और उसके अंदर पिंकी नाम लिखा है।
मेरी हँसी निकल गई। शायद वा उस लड़के की कोई प्रेमिका होगी। मुझे उसकी इस हरकत पर बड़ा गुस्सा और मैं उसे डाँटने को हुई पर बाद में मेरी नज़र उसके लण्ड पर पड़ी तो मैं तो उसे देखती ही रह गई, हालाँकि उसका लण्ड अभी पूर्ण उत्तेजित तो नहीं था पर मेरा अन्दाज़ा था कि अगर यह पूरा खड़ा हो तो कम से कम 8-9 इंच का तो ज़रूर होगा और मोटाई भी जगन के लण्ड से कम नहीं होगी।
अब तो रोज़ सुबह-सुबह उसका यह क्रम ही बन गया था।
सच कहूँ तो मैं भी सुबह सुबह इतने लंबे और मोटे लण्ड के दर्शन करके धन्य हो जाया करती थी।
कई बार रब्ब भी कुछ लोगों पर खास मेहरबान होता है और उन्हें इतना लंबा और मोटा हथियार दे देता है !
काश मेरी किस्मत में भी ऐसा ही लण्ड होता तो मैं रोज़ उसे अपने तीनों छेदों में लेकर धन्य हो जाती।
पर पिछले 2-3 दिनों से पता नहीं वो लड़का दिखाई नहीं दे रहा था। वैसे तो वो हमारे पड़ोस में ही रहता था पर ज़्यादा जान-पहचान नहीं थी। मैं तो उसके लण्ड के दर्शनों के लिए मरी ही जा रही थी।
उस दिन दोपहर के कोई दो बजे होंगे, सास-ससुर जी तो मुरारी बापू के प्रवचन सुनने चले गये थे और गणेश के दुकान जाने के बाद काम करने वाली बाई भी सफाई आदि करके चली गई थी और मैं घर पर अकेली थी। कई दिनों से मैंने अपनी झाँटें साफ नहीं की थी, पिछली रात को गणेश मेरी चूत चूस रहा था तो उसने उलाहना दिया था कि मैं अपनी झाँटें सॉफ रखा करूँ !
नहाने से पहले मैंने अपनी झाँटें सॉफ करके अपनी लाडो को चकाचक बनाया, उसके मोटे होंठों को देख कर मुझे उस पर तरस आ गया और मैंने तसल्ली से उसमें अंगुली करके उसे ठंडा किया और फिर बाथटब में खूब नहाई।
गर्मी ज़्यादा थी, मैंने अपने गीले बालों को तौलिए से लपेट कर एक पतली सी नाइटी पहन ली। मेरा मूड पेंटी और ब्रा पहनने का नहीं हो रहा था। बार-बार उस छोकरे का मोटा लण्ड ही मेरे दिमाग़ में घूम रहा था। ड्रेसिंग टेबल के सामने शीशे में मैंने झीनी नाइटी के अंदर से ही अपने नितंबों और उरोज़ों को निहारा तो मैं तो उन्हें देख कर खुद ही शरमा गई।
मैं अभी अपनी चूत की गोरी गोरी फांकों पर क्रीम लगा ही रही थी कि अचानक दरवाज़े की घण्टी बजी। मुझे हैरानी हुई कि इस समय कौन आ सकता है?
मैंने दरवाज़ा खोला तो देखा कि सामने वही लड़का खड़ा था। उसने हाथ में एक झोला सा पकड़ रखा था। मेरा दिल ज़ोर ज़ोर से धड़कने लगा था। मैं तो मुँह बाए उसे देखती ही रह गई थी, वो भी मुझे हैरानी से देखने लगा।
‘वो… मुझे गणेश भाई ने भेजा है !’ ‘क.. क्यों ..?’ ‘वो बता रहे थे कि शयनकक्ष का ए सी खराब है उसे ठीक करना है !’ ‘ओह.. हाँ आओ.. अंदर आ जाओ !’
मैं तो कुछ और ही समझ बैठी थी, हमारे शयनकक्ष का ए सी कुछ दिनों से खराब था, इस साल गर्मी बहुत ज़्यादा पड़ रही थी, गणेश तो मुझे ठंडा कर नहीं पाता था पर ए सी खराब होने के कारण मेरा तो और भी बुरा हाल था।
मैं उसे अपने शयनकक्ष में ले आई और उसे ए सी दिखा दिया। वो तो अपने काम में लग गया पर मेरे मन में तो बार बार उसके काले और मोटे तगड़े लण्ड का ही ख़याल आ रहा था।
‘तुम्हारा नाम क्या है?’ मैंने पूछा। ‘जस्सी… जसमीत नाम है जी मेरा !’ ‘नाम से तो तुम पंजाबी लगते हो?’ ‘हाँ जी…’ ‘तुम तो वही हो ना जो रोज़ सुबह सुबह उस दीवाल पर सू सू करते हो?’ ‘वो.. वो.. दर असल…!!’ इस अप्रत्याशित सवाल से वो सकपका सा गया। ‘तुम्हें शर्म नहीं आती ऐसे पेशाब करते हुए?’ ‘सॉरी मेडम… मैं आगे से ध्यान रखूँगा !’ ‘कोई जवान औरत ऐसे देख ले तो?’ ‘वो जी बात यह है कि हमारे घर में एक ही बाथरूम है तो सभी को सुबह सुबह जल्दी रहती है !’ उसने अपनी मुंडी नीची किए हुए ही जवाब दिया। ‘हम्म… तुम यह काम कब से कर रहे हो?’ ‘बस 3-4 दिन से ही…!’
उसकी बात सुनकर मेरी हँसी निकल गई, मैंने कहा,’पागल मैं सू सू की नहीं, ए सी ठीक करने की बात कर रही हूँ।’ ‘ओह… दो साल से यही काम कर रहा हूँ।’ ‘हम्म…? तुम्हें सू सू करते किसी और ने तो नहीं देखा?’ ‘प… पता नहीं !’ ‘यह पिंकी कौन है?’ ‘वो.. वो.. कौन पिंकी?’ ‘वही जिसके नाम के ऊपर तुम अपना वो पकड़ कर गोल गोल घुमाते हुए सू सू करते रहते हो?’
वो बिना बोले सिर नीचा किए खड़ा रहा। ‘कहीं तुम्हारी प्रेमिका-व्रेमिका तो नहीं?’ ‘न… नहीं तो !’ ‘शरमाओ नहीं… चलो सच बताओ?’ मैंने हँसते हुए कहा। ‘वो… वो.. दर असल मेरे साथ पढ़ती थी !’ ‘फिर?’ ‘मैंने पढ़ाई छोड़ दी !’
‘हम्म !!’ ‘अब वो मेरे साथ बात नहीं करती !’ ‘तुम्हारी इस हरकत का उसे पता चल गया तो और भी नाराज़ होगी !’ ‘उसे कैसे पता चलेगा?’ ‘क्या तुम्हें उसके नाम लिखी जगह पर सू सू करने में मज़ा आता है?’ ‘हाँ… ओह.. नही… तो मैं तो बस… ऐसे ही?’ ‘हम्म… पर मैंने देखा था कि तुम तो अपने उसको पकड़ कर ज़ोर ज़ोर से हिलाते भी हो?’ ‘वो.. वो…?’ वो बेचारा तो कुछ बोल ही नहीं पा रहा था।
‘अच्छा तुमने उस पिंकी के साथ कुछ किया भी था या नहीं?’ ‘नहीं कुछ नहीं किया !’ ‘क्यों?’ ‘वो मानती ही नहीं थी !’ ‘हम्म… चुम्मा भी नहीं लिया?’ ‘वो कहती है कि वो एक शरीफ लड़की है और शादी से पहले यह सब ठीक नहीं मानती !’ ‘अच्छा… चलो अगर वो मान जाती तो क्या करते?’ ‘तो पकड़ कर ठोक देता !’
‘हाय रब्बा… बड़े बेशर्म हो तुम तो?’ ‘प्यार में शर्म का क्या काम है जी?’ अब उसका भी हौसला बढ़ गया था। ‘क्या कोई और नहीं मिली?’ वो हैरानी से मेरी ओर देखने लगा, अब तक उसे मेरी मनसा और नीयत थोड़ा अंदाज़ा तो हो ही गया था। ‘क्या करूँ कोई मिलती ही नहीं !’
‘तुम्हारी कोई भाभी या आस पड़ोस में कोई नहीं है क्या?’ ‘एक भरजाई (भाभी) तो है पर है पर वो भी बड़े भाव खाती है !’ ‘वो क्या कहती है?’ ‘वो भी चूमा-चाटी से आगे नहीं बढ़ने देती !’ ‘क्यों?’ ‘कहती है तुम्हारा हथियार बहुत बड़ा और मोटा है मेरी फट जाएगी !’ ‘हम्म…साली नखरे करती है?’ ‘हां और वो साली सुनीता भी ऐसे ही नखरे करती रहती है !’ ‘कौन? वो काम वाली बाई?’ ‘हाँ हाँ !… वही !’ ‘उसे क्या हुआ?’ ‘वो भी चूत तो मरवा लेती है पर…!’ कहानी अगले भागों में जारी रहेगी। आपकी नीरू बेन (प्रेम गुरु की मैना) [email protected] [email protected]
This website is for sale. If you're interested, contact us. Email ID: [email protected]. Starting price: $2,000