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दोस्तो, मेरा नाम है वरिंदर, मैं गाज़ियाबाद का रहने वाला हूँ, मैं अन्तर्वासना का बेहद शौक़ीन आदमी हूँ। इसकी हर चुदाई को पढ़-पढ़ कर मुझे बहुत आनंद आता है और रात को मैं लैपटॉप पर हिंदी सेक्स स्टोरी अपनी बीवी को पढ़वा कर फिर उसको चोदता हूँ।
वैसे मेरी बीवी भी बहुत चुदक्कड़ है, रात को मेरे से ज्यादा उसको चूत मरवाने की जल्दी रहती है, काम काज निबट कर जब वो बिस्तर में आती है तो सेक्सी बन के, ताकि मेरा लौड़ा खड़ा हो जाए, वो मेरे लौड़े से खूब खेलती है, पूरा चूस चूस कर बेहाल कर देती है और फिर जल्दी से अपनी टाँगे फैला देती है, कहती है- मेरी भी चाटो! और फिर मैं उसकी चूत चाटता हूँ और फिर लौड़ा घुसा कर उसकी चूत मारता हूँ।
मेरी दो सालियाँ हैं, दोनों विवाहित है, छोटी वाली कनाडा में है, बड़ी वाली पिंकी यहीं भारत में थी, उसने भाग कर शादी कर ली थी वो भी जाति से बाहर जाकर!
पहले उसको किसी ने नहीं अपनाया था, सभी ने नाता तोड़ लिया था उससे, लेकिन शायद उसको उम्मीद थी कि एक दिन आएगा जब सबका गुस्सा पानी होकर बह जाएगा और सभी मिलने लगेंगे।
शादी के डेढ़ साल बाद उसने एक लड़की को जन्म दिया। धीरे धीरे कुछ सामान्य होने लगा, मिलना-बरतना चालू हो गया, अब वो अपने पति के साथ घर आने-जाने लगी, उसके पति का वो आदर सत्कार नहीं होता था, बस इतना था कि उसको आने से कोई नहीं रोकता और एक सामान्य मेहमान की तरह उसकी खातिदारी होती, ना कि वो जमाई वाली! उसके लिए दारु, मुर्गा और पकवान आदि कुछ नहीं!
वो खुद ही कम जाता लेकिन पत्नी को नहीं रोकता जाने से, उसका अपना घर भी नहीं था, किराए पर रहते थे, उसको उम्मीद थी कि ससुराल से उसकी पत्नी का बनता हिस्सा एक दिन मिल जाएगा क्यूंकि उनका भाई नहीं था, इसी लालच से शायद उसने भी शादी की थी।
जब उसको लगा की दाल जल्दी नहीं गलने वाली तो उसने अपने घर में लड़ाई-झगड़ा करना शुरु कर दिया, दोनों में रोज़-रोज़ लड़ाई-झगड़ा होने लगा, पीट देता, घर से निकाल देता, वो मायके आती, फिर कुछ दिन बाद वो गलती मान माफ़ी मांगता और उसको ले जाता।
इस बीच उनका एक लड़का हुआ, अब उनकी जिंदगी पटड़ी पर आने लगी, ससुराल वालों ने उनको एक छोटा सा घर खरीद कर दिया तो दोनों की जिंदगी अच्छी चलने लगी, बच्चे बड़े होने लगे। अब कभी-कभी वो मेरी साली पर शक करने लगता और झगड़ा हो जाता।
मेरी साली है ही बहुत ज़बरदस्त माल, उसकी जवानी हाय-तौबा थी, उसके मम्मे उसका खास आकर्षण का केंद्र थे, उसकी लड़की सोनिया बचपन से बहुत गोलू-मोलू सी थी, फिर मेरा रिश्ता उस घर में तय हो गया, तब उसकी लड़की की उम्र दस साल के करीब थी, शादी के बाद सबने हमें खाने पर बुलाना चालू कर दिया।
मेरी मर्दानगी मुंह बोलती है, मुझे अपने मर्द होने पर नाज़ है, मेरा लौड़ा बहुत ज़बरदस्त है।
मैंने भी नोट किया कि मेरी बड़ी साली कुछ-कुछ चालू है, ज्यादा नहीं, शायद उसके पति के लौड़े में अब दम का नहीं था, उसका पति एक प्राइवेट कम्पनी में नौकरी करता था, उसकी तनख्वाह अच्छी थी। बच्चे बड़े हुए, मेरी साली ने एक स्कूल में नौकरी कर ली और बेटे को उसी स्कूल में दाखिल करवा लिया।
मेरी साली की बेटी सोनिया की अपनी मौसी से बहुत पटती थी, कभी कभी रहने आती थी। तब मेरा कोई ऐसा-वैसा ख़याल नहीं था, छोटी थी, मेरे साडू ज्यादातर घर से बाहर रहता था, उसकी नौकरी ऐसी थी कि रहना पड़ता था।
अब भी उनमें झगड़ा हो जाता, कारण वही शक था, वह कहता- तू नौकरी छोड़ दे, बच्चे सम्भाल बस!
मेरी नियत साली पर बेईमान थी, मेरा दिल उसको चोदने का करने लगा, मेरी साली भी जानती थी कि मैं उस पर मरता हूँ।
शादी के बाद मेरी पत्नी जम्मू से बी.एड करने लगी, कभी चली जाती थी, कभी आ जाती थी।
एक दिन में घर अकेला था, उस दिन मेरे घर वाले भी गाँव में गए हुए थे, हमारा खेती-बाड़ी का बहुत बड़ा काम है, डैड और मॉम कभी हमारे पास शहर रुकते, कभी गाँव। मेरा अपना बिज़नस है।
रात के साढ़े आठ बजे का वक्त था, मैं घर में बैठा दारु के पैग लगा रहा था, साथ साथ टी.वी देख रहा था, अकेला था, पहले सोचा अपनी किसी माशूक को बुला लेता हूँ, लेकिन उस दिन सभी व्यस्त थी, कोई रात को आ नहीं सकती थी।
तभी दरवाज़े की घण्टी बजी, मैंने दरवाज़ा खोला, मेरे आँखों में नशा था, मेरे सामने मेरी साली खड़ी थी,
‘पिंकी! तुम? इस वक़्त अकेली आई हो?’ ‘हाँ! अकेली हूँ!’ ‘इतनी रात को? सब ठीक ठाक तो है?’ ‘हाँ!’
कह कर वो अंदर चली आई। मैंने मुख्य दरवाज़ा बंद किया और उसके पीछे अंदर आ गया। वो चुप थी। ‘पिंकी, क्या हुआ? झगड़ा हो गया क्या?’
इतने में उसका मोबाइल बजा, उसने काट दिया। फिर मेरी सासू माँ का फ़ोन आ गया। मेरी साली पिंकी मुझसे बोली- मेरे बारे मत बताना!
मेरी सास ने कहा- पिंकी का जमाई जी से झगड़ा हो गया है। पता नहीं, घर से चली गई। मुझसे पूछा- तुम्हारे घर आई है क्या? ‘नहीं मम्मी! यहाँ नहीं आई!’
फ़ोन बंद किया मैंने और उसके करीब जाकर उसके कंधे पर हाथ रखते हुए कहा- पिंकी, हुआ क्या? ‘कुछ नहीं जीजाजी! होना क्या है, बस वैसे आ गई, नहीं आ सकती क्या?’
‘ऐसी बात नहीं है!’ मैं उसके कंधे से हाथ उसकी पीठ पर फेरते हुए बोला- क्यूँ नहीं आ सकती? इस वक़्त आई हो ना अकेली! इसलिए!
वो खड़ी हुई और मुझसे लिपट गई, उसकी छाती का दबाव जब मेरी छाती पर पड़ा, मैं तो पागल होने लगा। वही लड़ाई-झगड़ा! वही बचकानी बातें!
मैंने भी पी रखी थी, अपनी बाँहों को पीछे ले जाकर उसकी पीठ पर कसते हुए मेरा हाथ जब उसके ब्लाऊज़ के ऊपर उसके जिस्म पर लगा, उसने खुद को और कस लिया, वो रोने लगी।
मैंने अपने होंठ उसकी गर्दन पर टिका दिए- चुप हो जाओ पिंकी! मैं हूँ ना!
आगे क्या हुआ?? यह जानने के लिए पढ़ें कहानी का अगला भाग! [email protected]
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