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प्रेषिका : लक्ष्मी कंवर
मुझे भी जोश आने लगा। उसका कठोर लण्ड को मैं घुमा घुमा कर चूसने लगी। वो आहें भरता रहा।
‘साली कैसा नाटक कर रही थी और अब शानदार चुसाई! मेरी रानी जोर लगा कर चूसो!’
तभी उसका रस मेरे मुख में निकलने लगा। मैं मदहोश सी उसे पीने लगी। खूब ढेर सारा रस निकला था।
‘अब तुम्हारी बारी है भाभी, लेट जाओ चूत चुसाई के लिये।’
‘बस हो गया ना अब, अब तुम जाओ।’
‘अरे जाओ, मैं ऐसे नहीं छोड़ने वाला। लेट कर अपनी दोनों टांगें चौड़ी करो!’
‘मुझे शरम आती है भैया!’
‘ओये होये, मेरी रानी, जिसने की शरम, उसके फ़ूटे करम! चूत में से पानी नहीं निकालना है क्या?’
मैंने अब अक्कू को अपने पास खींच लिया और उसकी चौड़ी छाती पर सिर रख दिया। इतना कुछ हो गया तो अब मैं भी क्यों पीछे रहूँ। अब मन तो चुदवाने को कर ही रहा है, देखना साले के लण्ड को निचोड़ कर रख दूंगी। तबियत से चुदवाऊँगी… इन बीस दिनों की कसर पूरी निकालूंगी।
मेरे समीप आते ही उसने मेरे शरीर को मसलना और दबाना शुरू कर दिया, बेतहाशा चूमना शुरू कर दिया।
‘भाभी फिर इतने नखरे क्यूँ…?’
‘साला मुझे रण्डी समझता है क्या… जो झट से झोली में आ जाऊँ, नखरे तो करने ही पड़ते हैं ना!’
‘ऐ साली! मां की लौड़ी! मुझे बेवकूफ़ बना दिया? तभी तो कहूँ रोज रात को अपनी टांगें उठा अपना गुलाबी भोसड़ा मुझे दिखाती है, जब मैं हिम्मत करके चोदने आया तो, हाय, मम्मी, देय्या री चालू हो गई?’
‘अब ज्यादा ना बोल, साला रोज सुबह मेरे नाम की मुठ्ठी मारता है, और फिर माल निकालता है वो कुछ नहीं?’
‘भाभी, अब तुम्हारे नाम की ही तो मुठ्ठी मारता हू, साली तू सोलिड माल जो है!’
‘सोलिड…हुंह… अरे चल, अब मेरी चूत चूस के तो बता दे!’
उसने मुझे फ़ूल की तरह से उठा लिया और बिस्तर पर ऐसे लेटा दिया कि वो बिस्तर के नीचे बैठ कर मेरी चूत को खुल कर चूस ले। वो मेरी टांगों के मध्य आकर बैठ गया, मेरे दोनों पैर फ़ैला दिए, मेरी गुलाबी चूत उसके सामने फ़ूल की तरह खिल कर उसके सामने आ गई।
उसके दोनों हाथ मेरी दोनों चूचियों पर आ गये और हौले हौले से उसे सहलाने और दबाने लगे थे।
मेरी सांसें खुशी के मारे और उत्तेजना के मारे तेज होने लगी। शरीर में मीठी मीठी सी जलन होने लगी।
तभी मेरी गीली चूत की दरार पर उसकी जीभ ने एक सड़ाका मारा। मेरा सारा रस उसकी जीभ पर आ गया। मेरी यौवन कलिका पर अब उसने आक्रमण कर दिया। उसकी जीभ ने हल्का सा घुमा कर उसे सहला दिया। जैसे एक बिजली का करण्ट लगा।
तभी मैं उछल पड़ी! उसकी दो-दो अंगुलियाँ एक साथ मेरी चूत में अन्दर सरक गई थी! मेरा हाल बेहाल हो रहा था।
कुछ देर अंगुलियाँ अन्दर बाहर होती रही। मैं तड़प सी गई। उसकी अंगुलियों ने मेरी चूत के कपाटों को चौड़ा करके खोल दिया, उसकी पलकों के बीच उसकी जीभ लहराने लगी। फिर उसकी जीभ हौले से मेरी चूत में घुस गई, चूत में वो लपपाती रही, उसकी अंगुलियाँ भी अन्दर मस्ताती रही।
मैंने अपनी दोनों चूचियाँ जोर से दबा कर एक आह भरी और अपना जवानी का सारा रस छोड़ दिया। कुछ देर तक तो वह चूत के साथ खेलता रहा फिर मैंने जोर लगा उसे हटा दिया।
‘क्या भाभी, कितना मजा आ रहा था!’
‘आह देवर जी, मेरी बाहों में आ जाओ, मेरी चूचियों में अपना सर रख कर सो जाओ।’ मैं संतुष्टि से भर कर बोली।
मैं नींद के आगोश में बह निकली थी। पता नहीं रात को कितना समय हुआ होगा, मेरी नींद खुल गई। मुझे लगा मेरी गाण्ड में शायद तेल लगा हुआ था और मेरे पीछे मेरा देवर चिपका हुआ था। उसका सुपारा मेरी गाण्ड के छेद में उतर चुका था।
‘क्या कर रहे भैया?’
‘मन नहीं मान रहा था, तुम्हारी गाण्ड से चिपका हुआ लण्ड बेईमान हो गया था। और देखो तो तुम्हारा यह तेल भी यही पास में था, सो सोने पर सुहागा!’
‘आह, सोने दो ना भैया, अब तो कभी भी कर लेना!’
‘हाँ यार, बात तो तुम्हारी सही है, पर इस लौड़े को कौन समझाये?’
उसका लण्ड थोड़ा सा और अन्दर सरक आया।
ओह बाबा! कितना मोटा लण्ड है! पर लण्ड खाने का मजा तो आयेगा ही!
मैंने अपना शरीर ढीला छोड़ दिया। उसका लण्ड काफ़ी अन्दर तक उतर आया था। मुझे अब मजा आने लगा था।
‘भाभी तुम तो खाई खिलाई हो, दर्द तो नहीं हुआ?’
‘देय्या री, गाण्ड में लण्ड तो कितनी ही बार खाई खिलाई है तो उससे क्या हुआ, लण्ड तो साला मुस्टण्डा है ना!’
मुझे पता था कि चिल्लाऊँगी तो उसे मजा आयेगा। वरना हो सकता है वो बीच में ही छोड़ दे। ‘ओह तो ये ले फिर!’
‘धीरे से राजा, देख फ़ाड़ ना देना मेरी गाण्ड!’
‘अरे नहीं ना… ये और ले!’
‘ओह मैया री, दर्द हो रहा है, जरा धीरे से!’ ‘ऐ तेरी मां का भोसड़ा…’
उसने फिर जोर का झटका दिया। मैं आनन्द के मारे सिकुड़ सी गई। वो समझा कि दर्द से दोहरी हो गई है। उसने मेरी खुली गाण्ड में अब जोर से पेल दिया। मैं खुशी से चीख उठी।
‘ओह मर गई राजा, क्या कर रहा है?’
‘तेरी तो मां चोद दूंगा आज मैं! साली बड़ी अपनी गाण्ड मटकाती फ़िरती थी ना!’
आह! साले जोर से गाण्ड को चोद दे!
वो क्या जाने मैं तो गाण्ड चुदवाने में माहिर हूँ। उसके जोरदार झटके मुझे आनन्दित कर रहे थे। अविनाश यूँ तो नियम से मेरी गाण्ड चोदता था। पर इस बार लण्ड थोड़ा मोटा होने के कारण अधिक मजा आ रहा था।
‘बस कर राजा, मेरी गाण्ड की चटनी बन जायेगी, रहम कर भैया!’
वो तो और जोश में आ गया और मेरी गाण्ड को मस्ती से चोदने लगा। तभी मस्ती में मेरी चूत से रस निकल पड़ा। कुछ देर में वो भी झड़ गया। उसके झड़ते ही मैंने भी चीखना बन्द कर दिया। मैं हाँफ़ती हुई अक्कू से लिपट गई।
‘भैया, बहुत मस्त चोदता है रे तू तो! रोज चोद दिया कर, मेरी गाण्ड को तो तूने मस्त कर दिया।’
वो मुझसे लिपट कर सो गया। मैं फिर सो गई। सुबह उठे तो देखा आठ बज रहे थे। मैं जल्दी से उठने लग़ी। तभी अक्कू ने मुझे फिर से दबोच लिया।
‘यह क्या कर रहे हो, अब तो चोदते ही रहना, चाय नाश्ता तो बना लें!’
‘सुबह सुबह चुदने से अच्छा शगुन होता है, चुदा लो!’
‘अच्छा किसने कहा है ऐसा?’ ‘… उह… मैंने कहा है ऐसा!’
मैं खिलखिलाती हुई उस पर गिर पड़ी। ‘साला खुद ही कहता है और फिर खुद चोद भी देता है!’
‘तो और कौन चोदेगा फिर?’ कह कर उसने मुझे अपने नीचे दबा लिया।
मैं खिलखिला कर उसे गुदगुदी करने लगी।
उसका लण्ड बेहद तन्नाया हुआ था। लग रहा था कि चोदे बिना वो नहीं मानने वाला है। पर सच भी तो है कि मुझे उसके लण्ड का मजा अपनी चूत में मिला ही कहाँ था।
मैंने अपनी टांगें धीरे से मुस्कराते हुए ऊपर उठा ली, वो मेरे ऊपर छाने लगा, मैं उसके नीचे उसके सुहाने से दबाव में दबती चली गई। फ़ूल सा उसका बदन लग रहा था। उसके होंठ मेरे होंठो से मिल गये। मेरी दोनों चूचियाँ उसके कठोर हाथों से दबने लगी। लण्ड लेने के लिये मेरी चूत ऊपर उठने लगी।
उसका लण्ड मेरी चूत के आसपास ठोकर मारने लगा था। लण्ड के आस पास फ़िसलन भरी जगह थी, बेचारा लण्ड कब तक सम्भलता। लड़खड़ा कर वो खड्डे में गिरता चला गया। मेरी चूत ने उसके मोटे लण्ड को प्यार से झेल लिया और आगोश में समा लिया। मेरे मुख से एक प्यार भरी सिसकी निकल पड़ी। अक्कू के मुख से भी एक आनन्द भरी सीत्कार निकल गई।
अब अक्कू ने अपनी कमर का जोर लगा कर अपने लण्ड को चूत के भीतर ठीक से सेट कर लिया और दबा कर लण्ड को अन्दर बाहर खींचने लगा।
मेरी तो जैसे जान ही निकली जा रही थी। कसावट भरी चुदाई मेरे मन को अन्दर तक आह्लादित कर रही थी। उसका लण्ड खाने के लिये मेरी चूत भी बराबर उसका साथ उछल उछल कर दे रही थी।
मैं दूसरी दुनिया में खो चली थी… लग रहा था कि स्वर्ग है तो मेरे राजा के लण्ड में है। जितना चोदेगा, जितना अन्दर बाहर जायेगा उतनी ही जन्नत नसीब होगी। आह, मेरा मन तो बार बार झड़ने को होने लगा था। ‘मेरे राजा… चोदे जाओ… बहुत मजा आ रहा है, मेरे राजा, मेरे भैया!’
‘रानी, मेरी अंजू, तुम रोज चुदाया करो ना… मेरी जान निकाल दिया करो… आह मेरी रानी!’
जाने कब तक हम लोग चुदाई करते रहे, झड़ जाते तो फिर से तैयार होकर चुदाई करने लग जाते।
‘ओह, बाबा, अब नहीं, अब बस करो, अब तो मैं मर ही जाऊँगी!’ ‘हाँ भाभी… मेरी तो अब हिम्मत ही नहीं रही है।’
हम पर कमजोरी चढ़ गई थी। मुझे पता नहीं मैं कब फिर से सो गई थी। पास ही में अक्कू भी पड़ा सो गया था।
जब नींद खुली तो कमजोरी के मारे तो मुझसे उठा ही नहीं जा रहा था। अक्कू उठा और नहा धोकर वापिस आया और मुझे ठीक से कपड़े पहना कर कुछ खाने को लेने चला गया।
उसके आने के बाद हम दोनों ने दूध पिया और एक एक केला खा लिया। खाने से मुझे कुछ जान में जान आई और मुझे फिर से ताजगी आते ही नींद आ गई।
मुझे नींद ही नींद में अक्कू ने फिर मुझे कई बार चोद दिया। पर मैं इस बार एक भी बार नहीं झड़ी।
मुझे अब इतना चुदने के बाद बिल्कुल मजा नहीं आ रहा था। रात को दस बजे जब नींद खुली तो अक्कू ने मुझे थोड़ी सी शराब पिलाई। तब कहीं जाकर मेरे शरीर में गर्मी आई। मेरी चूत और गाण्ड में बुरी तरह दर्द हो रहा था। तौबा तौबा इस चुदाई से। मेरा तो बाजा ही बज गया था।
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