This website is for sale. If you're interested, contact us. Email ID: [email protected]. Starting price: $2,000
लेखिका : नेहा वर्मा
मैं गर्मी की छुट्टियों में रतलाम आ गई थी अपने पापा के पास। घर में छुट्टियों में बहुत पाबन्दी रहती थी ना। पापा तो ऑफ़िस चले जाते थे सो आराम से घर पर आराम करती रहती थी। घर में अकेले रहने में बड़ा आनन्द आता है। एक तो खाली दिमाग शैतान का घर होता है, दूसरे यह कि आपको कुछ भी करने से कोई रोकने टोकने वाला नहीं होता है। बिस्तर पर लेटे लेटे एक से एक मनभावन ख्याल आते रहते हैं। मन दूर कहीं सपनों में खो जाता है … कई ऐसे लड़कों की तस्वीरें मन में उभर आती हैं जिनके साथ मैं वासना का खेल अन्तरंग अवस्था में खेला करती थी। मुझे लगता था कि अब भी मेरे साथ वो मुझसे खेल रहे हैं, मेरी नर्म-नर्म छातियों में अपना मुख लगा कर मेर दूध पीने की कोशिश कर रहे हैं, मेरे गुप्तांगों से खेल रहे हैं। इसी ताने-बाने में उलझ कर मैं अपनी दोनों टांगें ऊपर उठा लेती हूँ और अपनी नर्म और गर्म हो चुकी फ़ुद्दी को सहलाने लगती हूँ। शेविंग के कारण मेरी झांट के बाल भी अब कड़े और कांटो की तरह निकल आते हैं, पर ये हाथ से सहलाने पर बहुत गुदगुदी करते हैं।
जितना भी मैं अधिक सहलाती, मेरी उत्तेजना और भी बढ़ती जाती, मेरी चूत गीली होने लगती थी, चिकनाई उभर आती। उसी चिकनाई का सहारा लेकर मैं अपनी गाण्ड का फ़ूल भी चिकना कर के उसे धीरे धीरे रगड़ती।
मेरी पाठक सहेलियो, आपने भी कभी ऐसा करके देखा है? जरूर किया होगा, ऐसा करने से जो मजा आता है वो अविस्मरणीय है। इस चिकनाहट का सहारा लेकर आप अपने इस छेद में अंगुली भी डाल सकती हैं। अब ऐसे माहौल में कोई आ जाये तो … आह ! क्या कहने … मैं तो बिना चुदे नहीं रह सकती … जवानी का रस निकाले बिन मजा ही नहीं आयेगा। मजा तो तब और भी ज्यादा हो जाता है जब चोदने वाला आपका ही मन पसन्द साथी हो … कड़क, मोटे लण्ड वाला … है ना !
घर में मैं अकसर एक हल्का रंग बिरंगा पजामा, और टाईट बनियान पहने रहती हूँ। अन्दर तो कुछ पहनने का सवाल ही नहीं है। मेरी इसी अवस्था में एक दिन पापा का एक जूनियर घर पर आ गया। मैं उसे पहचान गई !
ओह ये तो रवि है …
पर क्या करूँ ? यह तो साला तो मुझसे बात ही नहीं करता है, बात करो तो पसीना पसीना हो जाता है।
पर वो है बहुत सुन्दर, मस्त सा लड़का है, मुझे जाने क्यूँ उसमें बहुत आकर्षण नजर आता है।
मैंने उसे प्यार से बैठक में बैठाया।
“मुझे वर्मा जी से मिलना है, अभी तक वो ऑफ़िस नहीं पहुँचे हैं !” वो कुछ सकुचा कर बोला।
उसकी नजर तो मेरी तरफ़ उठ ही नहीं रही थी।
“हां जी, वो देरी से निकले हैं, फिर उन्हें रास्ते में काम भी है, पहुँचते ही होंगे, चाय तो ले लेंगे आप।” मैंने उसकी हिचक दूर करने में उसकी सहायता की।
वो ना नुकुर करता रहा, पर मैंने उसे जिद करके बैठा ही लिया। किचन में से रवि साफ़ नजर आ रहा था। मेरा पजामा मेरे चूतड़ों में घुसा हुआ उनका पूरा आकार दिखा रहा था। झुकने पर मेरे चूतड़ों की गोलाईयाँ भी अपनी गहराई के साथ उसे नजर आ रही होंगी।
दूर से ही मैंने भांप लिया कि उसकी नजरें मेरे शरीर का ही मुआयना कर रही थी। उसकी दिलचस्पी मुझमें हो चली थी। फिर तो मैंने उससे पन्द्रह मिनट में ही दोस्ती कर ली। अब उसकी झिझक खुल चुकी थी। उसका कहना था कि वो लड़कियों से बात करने में शरमाता है। मैंने उसे फिर समय काटने के लिहाज से उसके पास बैठ कर अपना एलबम दिखाया। उसे मेरा सामिप्य बहुत अच्छा लग रहा था। फिर मैंने उसकी मनःस्थिति का अन्दाजा लगा कर उसे जाने को कह दिया। उसका मन बिल्कुल भी जाने का नहीं हो रहा था।
“रवि जी, आप आते रहियेगा, आपका व्यवहार मुझे बहुत अच्छा लगा।” मैंने उसकी ओर अपना झुकाव दर्शाया।
“जी जरूर, समय निकाल कर जरूर आऊंगा …” वो मुझे बार बार मुड़ कर देखता रहा। मैं उसे हाथ हिलाती रही।
वो दूसरे दिन पापा के ऑफ़िस जाते ही आ गया।
“वर्मा जी हैं क्या ?”
“जी नहीं, मिस वर्मा है … मिलना हो तो और चाय पीना हो तो मिस वर्मा हाजिर है।” मैंने उसे हंस कर कहा।
वो हंसता हुआ अन्दर आ गया। बातों बातों में उसने मुझे बता दिया कि उसे पता था कि मेरे पापा को उसने जाते हुए देख लिया था और वो मुझसे मिलने ही आया था।
“तो रवि जी, तो फिर रोज ऐसे ही पापा के जाने के बाद आ जाया करो, खूब बातें करेंगे।” मैंने उसे और बढ़ावा दिया।
आज मैंने सिर्फ़ कुर्ता पहन रखा था, सलवार नहीं पहनी थी। सो मेरे कुर्ते में से मेरी चूचियाँ हिल हिल कर उसे बेहाल किये दे रही थी। मैं फिर से आज एक मेगजीन लेकर उसकी बगल में बैठ गई और उसे दिखाने लगी। पहले तो वो मेगजीन देखता रहा, मेगजीन नहीं जी, कुर्ते में से मेरे बोबे देख रहा था। कहीं पे निगाहें कहीं पे निशाना … और नतीजा ! उसका पैन्ट में से उभरता हुआ लण्ड …। मैं समझ गई कि अब वो मेरा समीप्य पा कर उत्तेजित हो रहा है। मैंने अपना चेहरा ज्योंही उठाया उसका चेहरा मेरे बिल्कुल नजदीक था। मेरी तो जैसे सांसें ही रुक गई। उसकी आँखें मेरी आँखों में कुछ ढूंढने लगी। मेरे हाथों से वो मेगजीन छूट गई, हाथ थरथराने लगे। मेरे चेहरे पर पसीना आ गया। वो मुझे एकटक देखता हुआ, मेरे और पास आ गया कि उसकी गरम साँसें मुझसे टकराने लगी।
“र…र… रवि … ” मैं सच में इस हमले से बेचैन सी हो गई थी।
“हां नेहा … तुम कितनी सुन्दर हो…” वह अपने हाथों से मेरे हाथ को पकड़ता हुआ बोला।
‘रवि, ऐसा मत बोलो …” मैं उसकी आँखों में देखने लगी।
“नेहाऽऽऽऽ …” उसके होंठ मेरे होंठों से छूने लगे। मेरे तन में जैसे बिजलियाँ तड़क उठी। तभी उसने अपने अधर मेरे अधरों से टकरा दिये और उन्हें चूसने लगा। मुझे भी दिल में बहुत सुकून मिला। मैं अपने आप को उसके हवाले करने की कोशिश करने लगी। उसने भी मौका देखा और मुझे बड़ी मधुरता से चूमने चाटने लगा। मेरा कुर्ता नीचे से ऊँचा हो गया। मेरी चिकनी मांसल जांघें उसे पिघलाने लगी। उसका लण्ड बहुत ही सख्त हो चुका था। लगता था कि पैन्ट फ़ाड़ कर बाहर आ जायेगा। मैंने भी उसे अपनी बाहों में समेट लिया और अपने कठोर स्तन उसके शरीर में दबा कर रगड़ने लगी। मेरे उत्तेजित स्तन के चुचूक कड़े होकर उसकी छाती में जैसे कील की तरह गड़ने लगे थे।
उसके हाथ मेरी पीठ को दबाने और मसलने लगे थे। मुझे उठा कर वो अपने लण्ड पर बैठाने की कोशिश कर रहा था। तब मैंने उसकी तड़प को और बढ़ा दिया। मैंने अपना हाथ उसके सख्त लण्ड पर रख दिया और धीरे धीरे उसे दबाने लगी। मुझे लण्ड दबाते देख कर उसने मेरी छाती पर हाथ डाल दिया और मेरे कठोर उरोजों को दबाने लगा। मेरी मन की कली खिल उठी। मैं अपना आपा खोने लगी। मैंने जान करके अपने कुर्ते को और ऊपर कर लिया। अंतर्वासना डॉट कॉम पर आप यह कहानी पढ़ रहे हैं।
‘रवि, बस अब नहीं … मैं मर जाऊंगी !” मेरी सांस धौंकनी के समान चल रही थी। मैं उसके चेहरे पर आते जाते भावों को देखने लगी। वो बहुत ही बेताब हो रहा था।
“और मैं ! मेरा तो बुरा हाल हो रहा है, अब क्या करूँ ?” वो पसीने में नहा चुका था, उसके दिल की धड़कन मेरे कानों तक सुनाई दे रही थी।
“कुछ नहीं, बस अब तुम जाओ !” मैंने उसे और अधीर करते हुये धकेला।
“नेहा ! ऐसा मत कहो … तुम्हारे बिना मैं मर जाऊंगा !” वो मुझसे और लिपटने लगा।
“ओह ! मरना ही है तो यहाँ नहीं, अन्दर बिस्तर पर चलो !” अब मुझे पता था कि मेरी लाईन साफ़ है। अब तो बस चुदना ही है। उसे भी कहाँ अब चैन था। उसने तो मुझे जल्दी से अपनी बाहों में उठा लिया और मेरा चेहरा चूमता हुआ बिस्तर पर ले चला। उसने मेरा कुर्ता खींच कर उतार दिया और मुझे पूरी नंगी कर दिया। मर्द के सामने नंगी होकर मुझे एक आलौकिक आनन्द सा आने लगा। फिर उसने अपने कपड़े भी जल्दी से उतार दिये और नंगा हो गया। बहुत महीनों के बाद मैं चुदने वाली थी और लण्ड भी बहुत दिनों के बाद देखा था इसलिये चुपचाप मैं उसे निहारने लगी। एक मर्द का सुन्दर सीधा सख्त लण्ड, मेरे दिल को घायल कर रहा था। बस बेचैनी चुदने की थी। वो बिस्तर पर जाकर सीधा लेट गया, उसका लण्ड हवा में सीधा तन्ना कर लहरा रहा था।
“आ जाओ नेहा, पहला मौका तुम्हारा ! अब तुम जो चाहे वो करो।” उसने मुझे ऊपर आ कर चोदने का न्यौता दिया।
मुझे तो एक बार शरम सी आ गई। कैसे तो मैं उसके ऊपर चढूंगी ? फिर कैसे अपने शरीर को उसके ऊपर खोल कर लण्ड लूंगी ! मुझे लगा कि यह बहुत अधिक बेशर्मी हो जायेगी। सारा शरीर, यानि कि मैं पूरी की पूरी ही अपने जिस्म को …
शेष कहानी दूसरे भाग में !
नेहा वर्मा
This website is for sale. If you're interested, contact us. Email ID: [email protected]. Starting price: $2,000