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प्रेषिका : श्रेया अहूजा
मैं और मधु बचपन में घर-घर, लुक्का-छिप्पी, डॉक्टर-डॉक्टर खेलते थे …
बचपन ने जवानी का कब रुख लिया पता ही नहीं चला …
अब मैं इंटर में हूँ और मधु भी.
बस यह फर्क है कि वो हिंदी सरकारी कॉलेज में और मैं इंग्लिश कॉलेज में बस ..
हम आज भी वैसे हैं जैसे बचपन में थे ..
एक दिन हम एक कमरे में टीवी देख रहे थे,
तभी मैंने पूछा….
मधु तुम्हारे चूचे कितने बड़े हो गए हैं … ?
मधु ने हंसकर कहा- क्यूँ तुम्हारा भी बड़ा हो गया होगा ना?
मधु चलो ना डॉक्टर-डॉक्टर खेलते है ? मैंने पूछा..
ठीक है ..पर मुझे अभी कोचिंग जाना है .. मधु कहकर जाने लगी …
यार मज़ा आयेगा ! बैठ ना यहाँ… मैंने जबरदस्ती उसे पास बिठाया …
फिर मैंने उसकी कुर्ती का बटन खोला और चूची दर्शन करने लगा …
उसके निप्पल को निचोड़ा …
चलो अपना बुर का चेकअप कराओ …
उसकी कच्छी नीचे खींची …
मैंने देखा उसकी योनि में झांट उग चुके थे ..
जवान कुंवारी बुर मेरी मधु की …
मैंने जैसे उसमे ऊँगली डाली …
ऊउई अम्मा आह्ह्ह सुनील ! बस ! मत करो ! कुछ होता है …
मैंने ऊँगली निकाली ..
मेरी ऊँगली गीली थी …
अरी मधु बचपन में तो यह गीली नहीं हुआ करती …
सुनील अब हम बच्चे नहीं रहे … उसने कहा ..
तभी मेरी मम्मी ने मधु को अर्धनग्न देख लिया …
सुनील क्यूँ परेशान कर रहे हो बेचारी को …
चलो दोनों टेबल पर रखे रसगुल्ले खा लो …
मधु अपने कपड़े पहन कर जैसे जाने लगी, मैंने उसे कहा- आज रात को आना ! घर पर पापा नहीं रहेंगे …
रात हो चली थी ..
मैं और मधु पढ़ाई कर रहे थे …
तभी मैंने मधु की गांड को छुआ ..
अहह ऐसा मत करो सुनील !
मैं तुम्हारे नौकर की बेटी हूँ …
मालकिन को पता चल गया फिर ?
मैंने मधु को गोद में बैठा लिया ….
मेरी प्यारी दोस्त ! कुछ नहीं होगा !
फिर हम दोनों एक दूसरे को पप्पी देने लगे …
हम दोनों वस्त्रो से मुक्त हो गए…
मधु मेरे लण्ड को छू रही थी …
ओह्ह कितना कठोर हो गया है …
कितना मुलायम हुआ करता था …
अन्दर लोगी क्या ?
ना बाबा ना दर्द होगा मधु ने कहा…
यार मधु ! मैं तुम्हारा दोस्त हूँ !क्या तुम्हे दर्द दे सकता हूँ क्या? …
आ जा ! दर्द होगा तो नहीं करूँगा …
मैंने उसके रसभरी जांघें फैलाई …
और अपने लुंड का गुलाबी टोपा डाला ….
ई… ई नहीं लगता है …
मैं उसकी चूची चूसने लगा …
यह ठीक नहीं है सुनील ! हम बचपन के दोस्त है !
और ऊपर से तुम मालकिन के बेटे … !
जाने दे ! अह्ह्ह उई अम्मा …
मेरा लंड मधु के अन्दर घुसने लगा !
लेकिन कोई झिल्ली सी चीज ने उसके योनिद्वार पर मेरे लंड को रोक दिया !
आह ! नहीं सुनील ! बस अब और अन्दर गया तो मेरी कुंवारी चूत फट जायेगी ….
मुझसे कौन शादी करेगा ?
आह ..
चीख सुनकर मम्मी आ गई और बेड में मधु के पास बैठ गई ….
बस बेटी हो गया …
लम्बी लम्बी सांसें लो और अपनी चूत ढीली रखो ….
मुझे लगा कि मैं गया काम से !
लेकिन मम्मी का ये व्यव्हार देख मैं और जोश में आ गया ..
मैंने जैसे और अन्दर डाला .. मुझे कुछ रुकावट से महसूस हुई ….
उसकी झिल्ली थी शायद …
आह ! आह ! नहीं मेमसाब !
सुनील से बोलो कि अब निकाल ले !
और नहीं सह सकती मैं…
बहुत दर्द हो रहा है …
मम्मी ने पूछा …
क्यूँ पहली बार कर रही हो क्या?
हाँ मेमसाब …
ठीक है बेटे … एक हे झटके में डाल दे …
और तू चुपचाप मेरा हाथ पकड़े रह …
मैंने उसकी बुर को फाड़ दिया
और दना-दन दना-दन घस्से मारने लगा ….
आह बस आ उई अम्मा ….
क्यूँ मज़ा आ रहा है ना … मम्मी ने पूछा ….
मैं उसकी बुर में स्खलित होने लगा …
आह ! मम्मी निकल रहा है ….
बह जाने दे बेटा ….
कुछ देर तक मैं और मधु एक दूसरे को पकड़े रहे …..
मम्मी उठ कर जाने लगी ….
पीछे से मैंने देखा कि उसकी चूत का पानी छूट गया था …
भाइयो और भाभियो !
अगर आपका भी स्राव हुआ है
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