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प्रेषक : हर्ष
हेल्लो दोस्तो,
सभी को प्यार भरा नमस्कार !
मैं हर्ष मध्यप्रदेश के एक महानगर में रहता हूँ। मैं अन्तर्वासना की लगभग सारी कहानियाँ पढ़ चुका हूँ और हमेशा सोचा करता था कि अपने यौन-अनुभव भी कभी अन्तर्वासना में भेजूंगा।
यूँ तो मैं सेक्स कई बार कर चुका हूँ पर मैं अपने जीवन के कुछ सर्वोत्तम पल आपके साथ बांटना चाहूँगा।
यह मेरा पहला सेक्स अनुभव था जब मैं गयारहवीं कक्षा में था। मैं एक आकर्षक व्यक्तित्व का मालिक हूँ मगर तब तक जीवन में कभी कोई लड़की नहीं पटाई थी। मेरा एक दोस्त था विवेक ! हालांकि हम एक स्कूल में नहीं पढ़ते थे मगर बचपन में साथ खेले और घर पास-पास होने की वजह से हमारी दोस्ती काफी अच्छी थी। हम अक्सर एक दूसरे के घर आते जाते रहते थे। विवेक की एक छोटी बहन थी जो गजब की खूबसूरत थी। मगर हाय री मेरी किस्मत- वो भी मेरे एक दोस्त नीरज से पटी हुई थी।
जब भी उसको देखता था, तो लगता था कि एक मौका तो मिले अभी पकड़ कर बस चोद डालूँ ! दिखने में जितनी सेक्सी थी उतने ही तीखे उसका तेवर थे, चलती थी तो कमर ऐसे मटकाती थी जैसे कोई फ़िल्मी हिरोइन रैंप पर मॉडलिंग करने उतरी हो ! गोरा रंग, लम्बाई ५ फ़ुट ४ इंच के लगभग थी, लम्बे बाल, भरा हुआ बदन, वक्ष-आकार 34 और एकदम चिकनी थी। हाथ रखो तो फिसल जाये ! नीरज एक रईस बाप की औलाद था और उस पर खूब पैसे लुटाता था। दिव्या और नीरज जब भी साथ में होते, या विवेक के गैरहाजिरी में जब कोई मेसेज पहुँचाना होता तो नीरज के लिए मैं ही पोस्टमैन का काम करता।
शुरू शरू में तो मज़ा आता था, बाद में मुझे गुस्सा आने लगा। यह बात दिव्या भी समझ रही थी कि मैं उसके प्रति आकर्षित हूँ, मगर कहती कुछ नहीं थी, शायद इसलिए कि मेरा उसके घर आना-जाना था, और वो हमेशा अपने प्यार को सच्चा प्यार दिखाती थी और कहती थी कि मैं शादी नीरज से करूंगी। सो मैं भी कुछ नहीं कहता, बस अपने काम से मतलब रखता था। कभी कभी मौका मिलता तो इधर उधर से ताक-झांक कर लेता था जैसे कभी मेज़ पर बैठी तो नीचे झुक के चड्डी का रंग देखना, या सामने बैठ के उसके वक्ष को घूरना, मौका मिले तो हाथ भी लगा देता था, मगर कभी उसने कुछ कहा नहीं, बस घूर के देखती थी। भाई का दोस्त होने की वजह से कुछ कहती नहीं थी। शायद डरती थी कि कहीं मैं उसके और नीरज के बारे में विवेक को बता न दूँ।
सब कुछ ऐसे ही चल रहा था, परीक्षा ख़त्म हो गई थी और अब करियर बनने का समय था। इत्तेफाक से मैंने और दिव्या ने एक ही कोचिंग में प्रवेश लिया और हम दोनों साथ में आते-जाते थे। इसी बीच मैंने एक बार उसको प्रोपोज़ किया मगर उसने मुझे नीरज से पिटवाने की धमकी दी और मैं चुप हो गया। मगर सोचा कि जब मौका मिलेगा तो देख लूँगा !
एक दिन मेरी किस्मत खुल गई।
स्कूल शुरु हो चुके थे और बारिश का मौसम था। मैंने अपने स्कूल के दोस्तों के साथ फिल्म देखने की योजना बनाई। फिल्म थी दिल !
जल्दी पहुंचने की वजह से हम लोगों को पीछे की सीट मिल गई। फिल्म का इंटरवल हुआ लाइट जली तो देखा दिव्या सामने की सीट में थी मगर नीरज के साथ नहीं, किसी और के साथ !
पहले तो मेरी समझ में कुछ नहीं आया मगर बाद में समझ में आ गया कि यह तो बड़ी चालू है।
खैर मैं भी चुप रहा और ऐसे बैठ गया कि वो मुझे ना देख पाए लेकिन मैं उसे देख सकूँ।
फिल्म के मध्यांतर के बाद मैंने देखा कि वो लड़का उसको इधर-उधर हाथ लगा रहा था और वो हिल-डुल रही थी। समझते देर नहीं लगी कि उनकी चूमा-चाटी चल रही है।
फिल्म ख़त्म हुई तो मैंने अपने दोस्तों से बहाना बना लिया कि मुझे कुछ खरीदना है, तुम लोग घर निकल जाओ।
अब मैंने अपनी बाइक स्टैंड से निकाली और दिव्या और उसके दोस्त का गेट से निकलने का इंतज़ार करने लगा। वो निकले, मैं उनका पीछा करने लगा। थोड़ी दूर ही एक पार्क है, जहाँ दिन के समय कोई आता जाता नहीं है, वो लोग उसमें चले गए, मैंने भी साइड में गाड़ी लगा दी।
मैंने देखा कि वो दोनों कोने में बैठ गए। मैं भी एक पेड़ पर चढ़ कर तमाशा देखने लगा कि देखें क्या करते हैं।
थोड़ी देर बाद लड़का उसके स्तन दबाने लगा। वो भी गरम हो गई थी, लड़के ने उसकी शर्ट अस्त-व्यस्त कर दी थी और उसका एक स्तन बाहर निकाल के चूस रहा था।
मैंने मौका देखा और एकदम से उनके सामने आ गया और दिव्या को एक झापड़ रसीद किया। वो एकदम से सकते में आ गए। दिव्या का एक स्तन अभी भी बाहर था। मैंने उस लड़के को भी दो झापड़ मारे और सीधे दिव्या को डाँटने लगा, कहा- घर चल ! मम्मी पापा और सबको बताऊँगा !
उस लड़के ने सोचा कि मैं कोई उसके घर का हूँ, वो वहाँ से भाग गया। अब मैं और दिव्या वहाँ अकेले रह गए। उसने बहाना बनने की कोशिश की तो मैंने पिक्चर हाल से लेकर अब तक का पीछा करने की सारी बात बता दी और यह भी कहा कि नीरज को सारी बात बता दूँगा और तेरे घर में भी !
वो डर गई और मुझसे माफ़ी मागने लगी।
अब मेरी बारी थी, मैंने उसको धीरे से सहलाया और कहा- ठीक है, पर जो कहूँगा वो करना पड़ेगा !
उसने मुझे तिरछी निगाहों से देखा और कहा- ठीक ! फिर नीचे देखकर कहा- ठीक है, मगर वादा करो कि किसी को कुछ नहीं कहोगे !
मैंने बिना कुछ सोचे समझे उसके वक्ष पर हाथ रख दिया और दबाते हुए कहा- अब बोलो क्या सब कुछ?
तो उसने कहा- हाँ !
अरे मेरी तो लॉटरी निकल पड़ी। उसको बाइक पर बिठाया और सीधे उसको लेकर उसके घर पहुँचा। मुझे पता था कि अंकल- आंटी जॉब पर गए होंगे और विवेक चार बजे स्कूल से आएगा… मतलब लगभग दो घंटे थे मेरे पास…
अब हम घर के अन्दर आये, तब तक वो सामान्य हो गई थी। मैंने उससे कहा- एक ग्लास पानी ला दो !
उसके जाते ही मैंने दरवाजा बंद कर लिया और सीधे उसके पीछे रसोई में चला गया। उसके हाथ में ग्लास था, मैंने पानी पिया और उसको पकड़ लिया।
उसने कहा- हर्ष नहीं, मुझसे गलती हो गई, मुझे माफ़ कर दो और यहाँ से जाओ…
मैंने कहा- अच्छा ठीक है, जाता हूँ, शाम को आऊँगा और सबको सब कुछ बता दूंगा !
यह कह कर मुड़ गया…..
उसने कहा- तुम ऐसा नहीं करोगे….
तो मैंने कहा- तू कुछ भी करे तो ठीक ! और मैं तुमको प्यार करना चाहता हूँ तो तुमको गलत लगता है…….
वो रोने लगी, मैंने आगे बढ़कर उसके आँसू पौंछे और कहा,”पगली… मैं भी तुमको बहुत चाहता हूँ…. मगर तुमने कभी समझा ही नहीं…….
तो उसने कहा कुछ नहीं मगर प्यार से मुझे पप्पी दे दी……
अब क्या था ! हो गई बल्ले बल्ले……..
मैंने उसको बेडरूम में चलने को कहा तो उसने बोला- कोई आ जायेगा तो क्या करेंगे?
मैं बोला- बोल देना कि ट्यूशन का होमवर्क कर रहे थे।
इसके पहले वो कुछ कह पाती, मैंने उसको अपनी बाहों में उठा लिया और बेडरूम में ले आया।
उसने कहा- हर्ष ! कोई आ गया तो क्या होगा? मैंने कहा- मैंने दरवाजा बंद कर दिया है और अब तुम कुछ मत सोचो !
फिर मैंने उससे बेड पर बैठाया और उसके वक्ष पे हाथ फ़ेरते हुए उसके शर्ट के बटन खोल दिए। दिव्या शांत लेटी हुई थी, उसके बदन में कोई भी हरक़त नहीं हो रही थी। अच्छा तो नहीं लग रहा था, मगर मैं यह अवसर जाने नहीं देना चाहता था, सो शर्ट खोलने के बाद उसका स्कर्ट भी खोल दी और अब वो सिर्फ मेरे सामने ब्रा-पेंटी में थी। देर न करते हुए मैंने उसके दोनों अधोवस्त्र भी अलग कर दिए।
वाह, क्या सीन था ! वो मेरे सामने एकदम नंगी पड़ी थी, उसके दोनों स्तन लाजवाब थे, गोल-गोल और उन पर गुलाबी चुचूक देख कर मज़ा आ रहा था।
मैंने अपने कपड़े भी उतार फेंके और उसके पास लेट गया और उसके बालों को सहलाया और गाल पर चूम लिया। मैं यह जान गया था कि अब बाज़ी मेरी है।
मैंने उससे कहा- दिव्या ! अब मेरे तुम्हारे बीच कोई पर्दा नहीं रहा ! तुम मेरा साथ दो और जीवन के मज़े लूटो ! आखिर तुम भी तो यही करना चाहती थी !
ये कहते ही मैं उसके रसीले होंठों को चूमने लगा एक हाथ से उसके गोले मसल रहा था और दूसरे से उसकी जांघ ! और चूत से खेलने लगा।
धीरे धीरे उसके बदन में भी हरक़त होने लगी। तब मैंने उसे कहा- अपनी टाँगे फ़ैलाओ !
तो उसने साथ दिया, मैंने भी देर न करते हुए अपनी जीभ सीधे उसकी चूत में डाल दी और चाटने लगा। थोड़ी देर में वो कसमसाने लगी और उसका पानी चूने लगा।
मैं बोला- तुम भी मेरा पप्पू मुँह में लो !
और यह कहते ही उसके होंठों में मैंने अपना लण्ड रख दिया। मेरे लण्ड को देखते ही वो डर गई क्योंकि मेरे लण्ड का आकार सात इंच का है और काफी तगड़ा है।
वो वोली- इतना मोटा? क्या तुमको कोई बीमारी है?
मैंने कहा- नहीं पगली, यह तो सामान्य है !
तो उसने कहा- नीरज का तो छोटा सा है ! ( दिल में ख़ुशी हो रही थी कि अब वो मुझसे खुल रही है और बात भी कर रही है)
मैंने कहा- तो तुमने उसके साथ सेक्स कर लिया है?
तो वो बोली- नहीं, एक बार उसको सु-सु करते देखा था।
मैंने कहा- अच्छा !
फिर वो बोली- तुम कुछ करना नहीं ! नहीं तो मैं मर जाऊंगी ! तुम्हारा मेरे हिसाब से बहुत बड़ा है !
मैंने कहा- कोशिश करने में क्या जाता है, वैसे लड़कियों की योनि में यह आराम से फिट हो जाता है, प्रकति का नियम है।
तो बोली- नहीं हर्ष ! मुझे डर लग रहा है।
मैंने कहा- अच्छा इसको चूसो तो सही !उसने मुँह खोला और धीरे धीरे करते हुए पूरा का पूरा अपने मुँह में ले लिया। मैं तो सातवें आसमान पर पहुँच गया। मेरा एक हाथ अब भी उसके स्तन मसल रहा था और मेरे मुँह से सिसकियाँ निकलने लगी।
लगभग पाँच मिनट के बाद मैंने बोला- अब लेटो !
तो वो मना करने लगी।
मैंने बोला- कुछ नहीं होगा !
थोड़ा मनाने के बाद वो मान गई और टाँगें फैला ली, मैंने ऊँगली से उसकी चूत को चौड़ा किया और अपना सुपारा उसमें टिका दिया और धीरे से अन्दर डाला। लगभग एक इंच तक वो वोली- नहीं ! दर्द हो रहा है !
मैंने बोला- पप्पू राजा अपनी जगह बना रहा है, अब मज़ा आएगा ! और बोलते ही तेज़ झटका दिया। लगभग आधा लण्ड अंदर था। वो चीख पड़ी- हाय मर गई ! मरी मैं तो !
मैंने अपना हाथ उसके मुँह पर रख दिया और उसके ऊपर लेट कर धीरे धीरे हिलने लगा।
अब उसको भी अच्छा लग रहा था, मगर मुझे अन्दर कोई चीज़ अड़ सी रही थी। फिर मैंने उसके होटों पे अपने होंठ रख दिए और पूरा जोर का धक्का मारा। मेरा लण्ड एकदम अन्दर चला गया, वो चीख रही थी, उसकी आँखों से आंसू आ गए थे।
मैं शांत हो गया और उसके ऊपर हाथ फेरने लगा। दो-तीन मिनट तक वैसे ही पड़े रहने के बाद मैंने अपना मुँह उसके मुँह से अलग किया तो वो बोली- बहुत दर्द ही रहा है ! प्लीज़ निकाल लो !
मैंने कहा- हाँ ! पर अब तो जो होना है हो गया ! तुम मेरी हो गई हो !
उसने भी मुस्कुराते हुए अपनी मुंडी साइड में छिपाने की कोशिश की।
मैंने कह दिया- अब चलो, जिन्दगी के मज़े लूटते हैं !
वो कुछ नहीं बोली। मैं अब अपना शरीर आगे-पीछे करने लगा, वो भी मेरा साथ देने लगी और अजीब अजीब सी मुखाकृतियाँ बनाते हुए सिसकियाँ ले रही थी। मेरे शरीर के धक्कों के साथ उसके स्तन भी ऊपर-नीचे हो रहे थे। मुझे बहुत मज़ा आ रहा था।
लगभग 15 मिनट के बाद मुझे कुछ होने लगा। इससे पहले कि कुछ समझ पाता, मेरे लण्ड से पिचकारी फ़ूट पड़ी। मेरा वीर्य उसकी चुद में ही गिर गया।
अब मैं निढाल हो गया, धीरे से अपना लण्ड बाहर निकाला तो देखा उसका बिस्तर खून से लाल था, मेरे लण्ड में भी काफी जलन हो रही थी, दोनों ने एक साथ जो अपना कुवांरापन खोया था और दुनिया के सबसे कीमती सुखों में से एक प्राप्त कर लिया था।
हम दोनों एक दूसरे को देख रहे थे और अब उसने अपना सर मेरी छाती पर रख दिया और दोनों आराम से लगभग दस मिनट तक वैसे ही पड़े रहे। बातों ही बातों में मैंने उससे उस लड़के के बारे में जानकारी हासिल कर ली और उसको कहा- मैं किसी को कुछ नहीं बताऊंगा और यदि तुम ठीक रही तो आगे चल के तुमसे शादी भी कर लूँगा।
उसने मुझे पहली बार अपने मन से एक पप्पी दी, मुझे बहुत अच्छा लगा।
तभी समय देखा तो साढ़े तीन हो रहे थे। मैं उठा और कहा- अब विवेक आने वाला है, अब मुझे जाना चाहिये !
वो भी उठी मगर लड़खड़ा गई, मैंने उसे सहारा दिया, वो सीधे बाथरूम गई, मैं भी साथ-साथ गया, देखा कि वो बैठ के मूत रही थी। फिर उसने सबसे पहले बेडशीट उठाई और पानी में डाल दी।
मैंने पूछा- क्या तुम नोर्मल हो?
उसने कहा- हाँ, थोड़ा दर्द है !
मैंने कहा- ठीक है ! मैं जाता हूँ ! और चला गया।
शाम को मैं विवेक और नीरज से मिला, उनको कहा- दिव्या को एक लड़का छेड़ता है, जो उसके साथ पास वाली ट्यूशन में है।
हम लोग मिल गए और फिर अगले दिन तीन चार और दोस्तों को लेकर उस लड़के की जम से धुनाई की। वो मुझे दिव्या का भाई समझ रहा था और माफ़ी मांग रहा था।
इस तरह रास्ते का एक कांटा साफ़ हो गया। अब नीरज की बारी थी… मुझे मालूम था कि बहुत जल्द उसके मम्मी पापा उसका पढ़ने के लिए दिल्ली भेजने वाले हैं और वो यदि चला गया तो दिव्या मेरी कही कोई बात नहीं टालेगी।
और फिर हुआ भी वही… अगले साल वो दिल्ली चला गया। फिर मैंने लगभग तीन साल तक दिव्या के साथ मज़े किये, मगर हम दोनों अलग अलग कॉलेज में ले लिए।
एक दिन मैंने फिर उसको किसी और के साथ देखा, उसी समय उसके पास गया और दो तमाचे जड़े और कहा- अब सब ख़त्म ! हालांकि उसके बाद भी हम जिंदगी मज़े लेते रहे !
फ़िर उसकी शादी हो गई, मेरी भी शादी हो चुकी है…
मगर साल में मुझे उससे एक बार सम्भोग करने का मौका मिल ही जाता है ! वो भी मज़े में और मैं भी !
बाय दोस्तो ! अगली कहानी के साथ मैं बहुत जल्द आऊँगा।
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