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प्रेषिका : लक्ष्मी बाई
राजस्थान में मैं जयपुर, बीकानेर और उदयपुर में घरों में काम कर चुकी थी। यहाँ उदयपुर में मुझे इस घर में काम करते हुए करीब दो महीने हो गये थे। राज सिन्हा साहब की पत्नी नहीं थी, उनका स्वर्गवास हुए कई वर्ष गुजर चुके थे। वे राजपूत थे, सभी राज साब को बन्ना सा कहते थे। उनके दो लड़कियाँ थी जो अजमेर में कॉलेज में पढ़ती थी। घर में वो अकेले ही रहते थे। राज की उम्र लगभग पचास वर्ष की थी। वो अक्सर मुझे घूरते रहते थे। मैंने उस तरफ़ ज्यादा ध्यान नहीं कभी नहीं दिया।
मेरे पति मजदूरी के काम से आस पास के शहर में चले जाया करते थे। घर पर भी मैं अकेली ही रहती थी। चुदाने आस और प्यास की ललक बढ़ती ही जा रही थी। जवानी का आलम मुझ पर भी चढ़ा हुआ था। जब डाली फ़लों से लद जाती है तो स्वमेव ही झुकने लग जाती है। मेरे भी अंग-अंग में से जवानी छलकती थी। मेरे फ़ल भी लद कर झूल रहे थे। मन करता था कि इन फ़लों का रस कोई चूस ले, कोई मेरे फ़लों को खींचे, मसले और मरोड़ डाले। मेरे चूतड़ों की गोलाईयां मस्त लचकदार थी, दोनों चूतड़ चिकने और अलग अलग खिले हुए थे। दरार तो मानो दूसरों के लण्ड को अन्दर समाने के लिये आमन्त्रित करती थी। मेरे मन की बैचेनी भला कोई क्या जाने ?
इसी प्यास में कभी कभी मेरी नजर उनके पजामे पर भी चली जाती थी और उनके झूलते हुए लण्ड को पजामे के ऊपर से ही महसूस कर लेती थी। जब राज मूड में होता था तब वो सोफ़े पर बैठ कर अखबार पढ़ने का बहाना करता था और अपना खड़ा हुआ लण्ड पजामे में से मुझे दिखाने की कोशिश करता था। अपनी अन्डरवियर जिसमें वीर्य भरा हुआ होता था, मुझे धोने के लिये देता था। उसकी इस हरकत पर मुझे हंसी आती थी। मुझ पर डोरे डालने के तरीके मैं जानती थी। मेरे मन में कसक भी उठती थी कि इस पचास साल के जवान को पकड़ लूँ और उसकी ढलती जवानी को चूस डालूँ। मुझे भी जब वो अपनी हरकतों पर मुस्कुराते देखता तो उसकी हिम्मत बढ़ जाती थी।
पर एक दिन ऐसा समय आ ही गया कि वो चक्कर में आ ही गया। क्यों ना आता, आग जो दोनों तरफ़ बराबर सुलग रही थी। उसका लण्ड मुझे चोदने के लिये बेताब हो रहा था और मेरी चूत उसे देख कर पानी छोड़ रही थी और लार टपका रही थी।
उस दिन मुझे यह भी पता चला कि काम करते समय मेरे ब्लाऊज में से मेरे बोबे को वो झांक-झांक कर देखता था। मेरा ध्यान ज्योंही मेरे ब्लाऊज की तरफ़ गया, मैं शरमा गई। मेरे बैठ के काम करने से मेरे चूतड़ों की गोलाईयां उभर कर दिखती थी, जिन्हें वो बडे शौक से निहारता था। उसकी बैचेनी मैं समझने लगी थी कि बिना औरत के आदमी की इच्छायें कितनी बढ़ जाती हैं। मुझे उन पर दया आने लगती थी। कभी कभी उसकी यह हालत देख कर मेरी चूत भी गरम हो उठती थी, तो गीली हो कर मेरी चड्डी भिगा देती थी। मैं उसकी बैचेनी बढ़ाने के लिये अपने स्तनों के दर्शन उसे रोज़ कराने लगी, उसे उत्तेजित करने लगी। बस इस दया ने मेरी चुदाई करवा दी।
उसका लण्ड खड़ा था और उस पर उनका हाथ कसा हुआ था। बस देखते ही मेरी चूत फ़डक उठी। मेरी वासना भी जाग उठी। इच्छा हुई कि उसका लौड़ा पकड कर मसल डालूँ।
“बाबूजी, नीचे तो देखो… ” राज ने कुछ ओर समझा और झट से लण्ड पर से हाथ हटा लिया,”क्या हुआ…?”
“वो सोफ़े के नीचे से सफ़ाई करना है…” उसकी बौखलाहट पर मैं हंस पडी…
“ओह्ह… मैं कुछ और समझा…”
“मैं बताऊं… आप समझे कि आप रे नीचे…” मैंने मुँह दबा कर हंस दी।
“चल हट… अब अकेला हूं तो मजाक बनाती है !”
” आप अपने आप को अकेला मती समझो जी… मैं भी तो हूँ ना !” मैंने उसके खडे लण्ड को देख कर मसखरी की।
“सच लच्छी… ” उसने मेरा हाथ पकड़ लिया, मेरे शरीर में करण्ट दौड़ गया। उसका उतावलापन भड़क उठा।
“साब… हाथ छोड़ दो…” पर मैंने हाथ छुड़ाया नहीं।
वो और आगे बढ़ा और मुझे अपनी तरफ़ खींचा। उसके जिस्म में जैसे ताकत भर गई। मैंने उसकी तरफ़ देखा, उसकी आंखो में वासना की प्यास और दया की भावना दिखी।
“देख लच्छी, तू भी जवान है और मैं भी, देख मुझे खुश कर दे… मैं तुझे पैसे दूंगा !”
मैं लड़खड़ाती हुई उसके सीने से टकरा गई। पैसे का लालच भी आ गया, और चुदाने की इच्छा भी जागृत हो उठी। दबी जुबान से नीचे देखते हुए बोली,”साब पूरे सौ रूपिया लूंगी…फ़ेर तो जो मर्जी हो आपरी !” मेरे इतना कहते ही उसने मुझे अपने सीने से लगा लिया और लण्ड मेरी चूत में दबाने लगा।
“साब अभी नहीं … माने तो सरम आवै…रात ने आ जाऊंगी…!” दिन को चुदने में शरम आती थी सो धीरे से बोली।
“दिन को यहाँ कौन है… !”
मैंने उसके जिस्म को सहलाया। राज ने भी मेरे स्तनों पर हाथ रख कर उन्हें सहलाना आरम्भ कर कर दिया। मेरे जिस्म में बिजलियाँ दौड़ने लगी। मैंने यह तो कभी सोचा ही नहीं था कि बात सीधे ही चुदाई तक आ जायेगी। पर उसका कई दिन का प्यासा लण्ड कुलांचे मारने लगा था। उसकी ऐसी हालत देख कर मुझे दया आ गई और धीरे से उसका लण्ड थाम लिया। उसका लण्ड फ़ड़क उठा और जोर मारने लगा। मेरी चूत भी चुदने के लिये लपलपाने लगी।
“बाबू जी, ये तो घणों मोटो है … माने तो डर लागे…!”सच में उसका लण्ड मोटा था।
“लच्छी, अब कुछ ना बोल, बस मेरे गले से लग जा…!”
राज ने मुझे जोर से भींच लिया। मेरी पीठ पर उसके हाथ खरोंचे मारने लगे। मेरा बदन भी वासना से जल उठा। मैं धीरे धीरे रंगत में आने लगी और मेरी नौकरों वाली भाषा पर आ गई
“बाबू जी, आपरो लौड़ो तो मस्त हो गयो है … अब तो मने चोद ही मारेगो…!” मैं आह भरती हुई बोली।
मेरी भाषा सुन कर उसके शरीर में सनसनी दौड़ गई। उसके जिस्म में जोश भर गया। मेरा ब्लाऊज के बटन खुलने लगे, ब्रा का हुक भी खुल गया। कुछ ही समय में मेरा ऊपर का तन नंगा हो गया। मेरे तने हुए सुन्दर गोल उभार उसके सामने थे। उसके कपड़े मुझे अब नहीं सुहा रहे थे।
“थारी कच्छी भी तो उतार नाक नी… कई सरमाने लागो है !” मैं हंस कर बोली।
“ले मैं तो चड्डी बनियान सभी उतार देता हू… पर तेरा पेटीकोट…” उसने भी नंगी होने की फ़रमाईश कर दी।
“ना रे बाबू जी, मारो भोसड़ो दीस जावेगो…” मैं नंगी होने को उतावली हो रही थी।
“क्या… भोसड़ा…” राज को हंसी आ गई। “साली बड़ी बेशरम है !”
मैंने अपना पेटीकोट उतार दिया। और अपनी चूत राज के सामने उभार दी। राज देखता ही रह गया।
“अब उतारो नी… आपरो लौड़ो रो दर्सन कर लूँ… मोटो और लाम्बो है नी, म्हारो भोसड़ो पसन्द आयो…?” राज को हंसी आ गई, उसने अपने पैन्ट और चड्डी उतार दिये। सच में उसका लण्ड मोटा और लम्बा था। हम दोनों अब पूरे नंगे थे और आपस में लिपटने की कोशिश कर रहे थे। उसका लण्ड मेरी चूत के आस पास ठोकर मार रहा था पर मुख्य द्वार पर से फ़िसल जा रहा था। मैं भी अपनी चूत को लण्ड के निशाने पर ले रही थी कि छेद पर लगते ही भीतर समा लूँ। राज ने मुझे मेरी कमर में हाथ डाल कर मुझे कस लिया। तभी लण्ड छेद से टकरा गया और मेरी चूत खुल गई। दोनों ही निशाने पर थे। मैंने चूत पर जरा सा जोर लगाया और लण्ड ने मेरी चूत चीर कर भीतर झन्डा गाड़ दिया।
“आह, बन्ना सा… घुसेड़ मारियो…यो तो घणों तगड़ो है… कांईं तेल पिला राख्यो है… आह्ह !”
“ले आजा पलंग पर चुदाई करे…”
मैं अपनी चूत हिलाते हुए लण्ड को अन्दर बाहर करने लगी,”बाई रे… भीतर मारो नी… भोसड़ो मार दो बन्ना सा… हाय बाबूजी…”
राज ने मुझे पास ही लण्ड घुसाये ही पलंग पर धीरे से लेटा दिया… और मुझे नीचे दबा डाला,”तू तो बिलकुल नयी लगे है रे… तेरी चूत तो टाईट है…फिर भोसड़ा क्यों कहती है?” उसने वासना भरी नज़र से मुझे देखा।
“इसे कूण चोदे ! साली भुक्खी है लौड़े की… भोसड़ा तो म्हारी भासा है बन्ना सा !” मैं उसके मोटे लण्ड को पाकर निहाल हो गई थी। दीवारों को रगड़ता हुआ लण्ड भीतर समा रहा था। दर्द उठने लगा था। चूत से लण्ड की मोटाई सहन नहीं हो रही थी। राज तो मस्ती में अपना लण्ड अन्दर बाहर करने में लगा था।
“थारा लौड़ा है या लक्कड़… धीरे धीरे चूत मारो जी…”
मेरी भाषा सुनकर वो और जोश में आ गया और मुझे दबा कर लण्ड पूरा जोर लगा कर पेल दिया। मैं चीख उठी… उसने फिर एक और झटका दिया पूरा लण्ड निकाल कर पूरा ही फिर से घुसेड़ मारा…
मैं फिर से चीख उठी… मेरी चीखे शायद उसकी उत्तेजना बढ़ा रही थी, उसने जोर जोर से लण्ड चूत पर पटकना चालू कर दिया… मैं चीखती रही और अब धीरे धीरे मजा आने लगा। मैं सीधी लेट गई और अपनी सांसे ठीक करने लगी। अब मैंने नीचे से हौले हौले कमर हिला कर उसका साथ देना चालू कर दिया। मुझे अब मजा आने लगा था। मोटे लण्ड ने मेरी टाईट चूत को खोल दिया था। अब मैं भी राज से चिपकने लगी थी। मेरे शरीर में रंग भरने लगा था। तबीयत मचल उठी थी। चूत में चिकनाई और खून मिल कर लण्ड को चिकना रास्ता दे रही थी।
“मारो… भोदी ने चोद मारो… हाय रे बन्ना सा… म्हारी तो फ़ाड़ डाली रे…” मैं चिहुंकती हुई सिसकारियाँ भर रही थी। राज के चेहरे पर पसीने की बून्दें छलक आई थी जो मेरे चेहरे पर टपक रही थी। मैं चुदाई से मदहोश होती जा रही थी। ऐसे मस्त और जानदार लण्ड जब जम के चोदे तो समझ लो जन्नत तो दिख ही जायेगी और मजा तो भरपूर आ जायेगा। राज की कमर अब मस्ती से चल रही थी और लण्ड मेरी चूत को भरपूर मजा दे रहा थ। हाय राम कब तक झेलती इस मोटे लौड़े को मेरी जान निकली जा रही थी… और अम्मां रे … मैं तो गई…। मेरा रस छूट गया…
” बन्ना सा, म्हारो तो पाणी निकली गयो रे… थां को पाणी निकाल मारो नी…” मैंने हांफ़ते हुए कहा।
“ये लो मैं तो अब कितनी देर का हूँ मेरी लच्छो रानी… ये ले … मुँह खोल दे रे अपना… मेरा माल चूस ले !” वो लगभग ऐठता हुआ बोला और उसने अपना लण्ड खींच के बाहर निकाल लिया और अपनी मुठ्ठी में भींचता हुआ वीर्य निकाल दिया। सारा वीर्य मेरे चेहरे पर फ़ैल गया। उसका वीर्य निकलता ही रहा… हाय रे इतना ढेर सारा… उसने अपने हाथ से सारा वीर्य मेरे चेहरे पर मल दिया। मुझे पहले तो घिन आ गई पर जब उसने अपनी जीभ से मेरा चेहरा चाटना आरम्भ कर दिया तो मुझे उस पर प्यार उमड़ पड़ा। हम एक दूसरे पर अब निढाल से पड़े थे।
“लच्छी, बहुत सालों से मैंने चुदाई का आनन्द नहीं उठाया था… तूने तो मुझे स्वर्ग का मजा दे दिया रे !”
“हाँ बाबू जी, औरत की कमी तो औरत ही पूर कर सके है… और आपरो लौड़ो तो क्या ही मस्त है !”
“ये लो लच्छी पूरे सौ रुपये और ये सौ रुपये तुम्हें तकलीफ़ हुयी उसके !”
मैं उसकी तरफ़ देखती ही रह गई। सौ की जगह दो सौ रुपये… मैंने राज का एक चुम्मा लिया और शरमा कर मुड़ गई।
“बन्ना सा, सान्झे फ़ेर आंऊगी… थाने फ़ेर खुस कर दूंगी, अबार के रुपया भी को नी लूंगी…” मैंने पीछे मुड़ कर देखा और मुसकरा कर भाग खड़ी हुई।
मेरी चूत उस भारी लण्ड से चुदने के कारण दर्द कर रही थी, शायद सूजन भी आ गई थी। देखा तो चूत लाल हो रही थी। मैंने एन्टीसेप्टिक क्रीम लगा ली। दो सौ रुपये को प्यार से देखा और सम्भाल कर रख दिये। शाम के बर्तन करने मैं ज्योंही पहुंची तो राज ने मुझे मुस्करा कर देखा और बिस्तर पर धकेल दिया।
“ये काम को छोड़, आज मेरी सेवा कर दे… खूब रुपया दूंगा !” यह कहानी आप अन्तर्वासना डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं।
“ना बन्ना सा, मारी तो भोसड़ी का कचूमर निकली गयो है, जबरी मत करना जी, अबार को नी चोदो…दर्द करे है जी…फिर पैइसा … ना जी, अब नाहीं !”
“लच्छो रानी… चूत में दर्द है तो गाण्ड मरवा ले… पर ना मत कर…”
“मैंने गाण्ड ज्यादा नहीं मरवाई नहीं है… पर वा जी… आप मार लो म्हारी गाण्ड…”
“चल फिर घोड़ी बन जा…”
मैंने पैसे के लिये तो मना किया था पर मुझे पता था कि वो देगा जरूर…मैं घोड़ी बन गई…और अपना घाघरा ऊँचा कर लिया। मेरी चिकनी गाण्ड की खूबसूरती देख कर उसका लण्ड तन्ना उठा।
“ये नीचे देखो बन्ना सा, मेरी भोसड़ी को तो आपने पकौड़ा बना दिया !” मैंने शिकायत करते हुए कहा। पर गाण्ड के दर्शन होते ही जैसे उसने कुछ नहीं सुना। उसने तेल में अंगुली डाल कर मेरी गाण्ड में घुसा दी और उसे चिकनी करने लगा। फिर लण्ड पर तेल मल कर तैयार हो गया। मेरी गाण्ड चुदने के लिये तैयार थी…
“लच्छो, तैयार हो जा… ये लण्ड गया तेरी गाण्ड में…”
“हाय रे बन्ना सा… धीरे से डालना…”
पर कौन सुनता मेरी, लण्ड का सुपाड़ा अन्दर बैठते ही उसने तो पूर जोर लगा डाला। और तेज धक्का दे कर लण्ड पूरा घुसेड़ मारा।
मेरे मुख से चीख निकल पड़ी…”आईईई …… आप तो मेरी गाण्ड भी फ़ाड़ डालेंगे… राम रे…” मैं लगभग चीख सी उठी।
“चुप बे साली… मुझे तो मजा आ रहा है… बहुत सालों बाद कोई मिली है… मजा तो लेने दे…”
उसका दूसरा बेदर्द धक्का मुझे अन्दर तक हिला गया। हरामजादे का लौड़ा गाण्ड के हिसाब से बहुत ही भारी और मोटा था। उसके दिल में जरा भी रहम नहीं था। तेल की चिकनाई भी ज्यादा काम नहीं कर रही थी। गाण्ड की अन्दर से दीवार शायद, रगड़ से छिल चुकी थी। उसके धक्के बढ़ने लगे। उसके लण्ड पर भी शायद चोट लगने लगी थी। दर्द के मारे आंखों से आंसू निकल पड़े। मैंने होंठ सिल लिये। दर्द बर्दाश्त करने लगी।
लण्ड को पेलते हुए अचानक उसे लगा कि उसने कुछ अधिक क्रूरता दिखा दी है, उसने अपना लण्ड धीरे से बाहर निकाल लिया। मैं निढाल सी एक तरफ़ लुढ़क पड़ी। पर राज का वीर्य तो छूटा ही नहीं था। पर उसका लण्ड बहुत जोर मार रहा था।
मैंने आंखो में आंसू लिये उसे अपने मुख की ओर इशारा किया। उसने अपना लण्ड मेरे मुख में डाल दिया। और धीरे धीरे मेरा मुख चोदने लगा। मैंने भी उसका लण्ड पकड़ कर मुठ मारते हुए चूसना चालू कर दिया।
उसका लण्ड मस्ती में आ गया और फ़ूल उठा। मौका देखते हुए मैंने उसके लण्ड को मुठ्ठी में जोर से कस लिया और उसे घुमा घुमा कर मोड़ने लगी, उसके मुँह में धक्के की रफ़्तार बढ़ गई। मेरे मुख में चोट लगने लगी। उसका लण्ड कभी कभी तो मेरी हलक में भी उतर जाता था। मैं उसका लण्ड दबा दबा कर उसका वीर्य निकालने की भरपूर कोशिश करने लगी। अन्त में उसके लण्ड ने जोर से ऐंठन भरी और मेरी हलक में अपना वीर्य निकाल दिया। मैं कुछ ना कर सकी, वीर्य मेरे गले में उतरता चला गया। उसका लण्ड रह रह कर वीर्य की फ़ुहारे छोड़ता रहा और सारा माल मेरे हलक में सीधे ही उतर गया। राज ने लण्ड मेरे मुख से बाहर निकाल कर झटका और मेरे होठों से बाकी का वीर्य पौंछ डाला। मैंने उसे भी जीभ निकाल कर चाट लिया। अब राज धीरे से मुझ पर लेट गया और प्यार से चूमने लगा। मुझे आत्मा तक ठण्डे प्यार का आभास हुआ। मैंने अपनी आंखें आत्मविभोर हो कर बंद कर ली और अलौकिक आनन्द का मजा लेने लगी। उसके जिस्म का प्यारा सा भार जैसे ही कम हुआ मेरी तन्द्रा टूट गई। मेरी गाण्ड और चूत आज बहुत दर्द कर रही थी। पर जिस्म का आनन्द अपूर्व ही था।
राज ने मुझे पांच सौ रुपये दिये जिसे मैंने मना कर दिया। पर वो नहीं माना… मेरे दिल में इच्छा तो लेने की थी पर जो आनन्द मिला था उसका कोई मोल नहीं था। मैंने चुप से पैसे ले कर रख लिये।
“बन्ना सा, मुझे आपने तो आसमान पर बैठा दिया… पर देखो तो मेरी अगाड़ी और पिछाड़ी का क्या हाल कर दिया है !”
“लच्छी, जाओगी कहां, अब तो आप बन्ना सा री लाडली बन चुकी हो। अब कुछ दिन का आराम… फिर आपकी मरजी हो तो … तन और मन को एक बार नहीं रोज ही स्वर्ग की सैर करायेंगे !”
मैं राज से लिपट गई और उन्हें चूमते हुए बोली,”आप कितने भले हो साब, मैं तो आपकी दासी बन चुकी हूँ… आपरी लाडली को आपणे सीने में छुपा लो, मती छोड़जो मने !”
राज ने मुझे अपने से चिपका लिया और बिस्तर पर सुला कर मुझे प्यार करने लगे… मैं फिर से प्यार में खो गई… और आने वाले दिनों के सपने संजोने लगी…
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