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प्रेषक – सेक्सी
कुछ दिनों पहले हमारी पुरानी कामवाली भगवान को प्यारी हो गई। तो मम्मी ने एक नई कामवाली रख ली, जिसका नाम शीला है। पुरानी कामवाली तो एक बुढ़िया थी, लेकिन शीला एक जवान नेपालिन थी। उसका पूरा बदन काफी छरहरा था। विशेषकर उसकी कमर बहुत ही पतली और लचीली थी। उसके चूतड़ देखकर ही उन्हें मसलने का दिल करता था। उसके होंठ काफी भरे हुए थे। उसका बदन बिना किसी हेयर-रिमूवर के ही बिना बालों के, चिकना था। हालाँकि उसकी चूचियाँ कुछ ख़ास नहीं थीं मेकिन फिर भी उनमें एक अजीब सा आकर्षण था। जब भी वह काम कर रही होती तो मैं उसकी पसीने से भींगी हुई पीठ देखा करता था।
धीरे-धीरे मुझे वह अच्छी लगने लगी (मेरा मतलब उसका जिस्म भाने लगा।)। लेकिन वह सामान्यतः बड़ा रूखा व्यवहार करती थी। वह मुझे उस नज़र से नहीं देखती थी जिस नज़र से मैं उसे देखा करता था। इसलिए मैं मन-ही-मन उसे अपने जाल में फँसाने की तरक़ीब सोचता रहा और अन्ततः एक दिन मुझे सही तरक़ीब मिल ही गई। शाम का समय था, मेरे सिवा घर के सभी लोग सो रहे थे। शीला काम कर रही थी। मैंने सोचा अपनी चाल चलने का यह सही समय है। शीला हमारे बाहर की गैलरी में झाड़ू लगा रही थी। मैं चुपके से गया और १०० रुपए का एक नोट फर्श पर गिराकर छिप गया। झाड़ू लगाते-लगते जब शीला की नज़र १०० के नोट पर पड़ी, तो उसने आस-पास देखा और वह १०० का नोट उठाकर अपनी ब्लाऊज़ में डाल लिया।
इस पर मैं एकदम से बाहर आ गया और उससे कहा, “मैंने सब देख लिया है, तुमने मेरा १०० का नोट उठा लिया है, तुमने चोरी की है।”
इसपर वह घबरा गई, “जी? मम्म्म…मैंने… तो कुछ नहीं… उउउ?उउ?ठाया”
“झूठ मत बोलो, मैंने तुम्हें नोट उठाते हुए अपनी आँखों से देखा है, मैं अभी मम्मी को बुलाता हूँ।”
“ऐसा मत करो!… मेरी नौकरी चली जाएगी।”
“तुम्हारे साथ ऐसा ही होना चाहिए।”
“मुझे माफ़ कर दीजिए! आईंदा ऐसा फिर कभी नहीं होगा।”
“बिल्कुल नहीं, मैं मम्मी को बुलाता हूँ, तुम्हारी नौकरी जाएगी, बदनामी होगी तभी तुम्हें अक्ल आएगी।”
“देखिए, मेरी बद़नामी होगी तो मुझे कोई भी नौकरी नहीं देगा।”
“तो मैं क्या करूँ?”
“मुझे माफ़ कर दीजिए।”
“क्यों माफ़ कर दूँ?… इससे मुझे क्या मिलेगा?”
“तुम्हारा अहसान होगा! मैं ग़रीब आपको क्या दे सकती हूँ?”
“तुम्हारी नौकरी बच सकती है अगर तुम मेरे कुछ काम कर दो तो!” – मैंने पासा फेंक दिया था।
“यहाँ कोई हमारी बातें सुन लेगा, तुम काम करने के बाद छत पर आ जाओ।” – मैंने आगे कहा
“ठीक है।”
फिर शीला कुछ ही देर में छत पर आ गई।
“हाँ! क्या कह रहे थे तुम?” – आते ही उसने पूछा।
“अगर तुम मेरे लिए कुछ काम कर दो तो तुम बद़नाम और बेरोज़गार होने से बच सकती हो।”
“कैसे काम?”
“मेरी ज़रूरत पूरी कर दो।”
“कैसी ज़रूरत?”
“मैं बहुत प्यासा हूँ! आज बुझा दो मेरी प्यास।”
“तुम्हारा मतलब है, मैं तुम्हारे साथ वो गन्दे काम करूँ? देखो, यह बात ठीक नहीं है।”
“हाँ, और जो तुमने १०० रुपयों की चोरी की, क्या वह बात ठीक है? देख लो… सोच लो… मुझे मम्मी को.. और मम्मी को पूरे मुहल्ले को इकट्ठा करने में समय नहीं लगेगा।”
यह कहकर मैं उसके बद़न के बहुत क़रीब आ गया, “देखो, मुझे तुम्हारी सबसे अच्छी चीज़ तुम्हारी कमर लगती है! वैसे तो तुम पूरी तरह चिकनी हो, पर तुम्हारी कमर कुछ ज्यादा ही चिकनी है।”
“एक काम करने वाली तुम्हें चिकनी लगती है?”
“हाँ… मुझे अपनी कमर चूमने दो, तो शायद मैं तुम्हारी चोरी की बात भूल जाऊँ।”
“क्या…? मेरी कमर चूमना चाहते हो?… ठीक है, लेकिन फिर १०० रुपये वाली बात किसी से नहीं कहोगे?”
“नहीं कहूँगा… तुम यहाँ लेट जाओ।”
“ठीक है… लेकिन ज़रा ज़ल्दी करना… कहीं तुम्हारे घर वालों में से कोई जाग ना जाए।”
वह फिर लेट गई और मैं उसकी कमर चूमने लगा। फिर मैंने उसकी नाभि चाटनी शुरू कर दी – “तुम ज़रा उल्टी हो जाओ, मुझे तुम्हारी पीठ बहुत अच्छी लगती है – ख़ास कर जब पसीने में भींगती हो तो…”
“हाय रब्बा…, तुम मुझे छुप कर देखते रहते हो क्या?”
“हाँ!” – मैं उसकी पीठ चाटने लगा। उसे पसीना आ रहा था और मैं उसका पसीना चाट रहा था।
“तुम्हारा पसीना बहुत स्वाद दे रहा है।”
“तुम कैसे हो? तुम्हें मेरा पसीना अच्छा लग रहा है?”
“हाँ.. अब तुम सीधी लेट जाओ।”
“लो… सीधी लेट गई! जल्दी करो>”
“अपनी साड़ी का पल्लू हटाओ।”
“नहीं। तुमने कहा था कि तुम कमर चूमोगे।”
“मम्मी को लगाऊँ आवाज़ और बताऊँ कि तुमने चोरी की है।”
“नहीं… नहीं… हटाती हूँ पल्लू।”
फिर उसने अपना पल्लू हटा दिया, मैंने उसका पूरा पेट चाटना शुरू कर दिया। मुझे लड़कियों की काँख बहुत आकर्षित करतीं हैं, बड़ी अच्छी लगतीं हैं। मैंने उसके पेट पर हाथ फेरा और कहा – “चलो, अब अपनी बाँहें ऊपर करो।”
“क्या? तुम तो बहुत अजीब हो… लो।”
मैं उसके ब्लाऊज़ के ऊपर से ही उसकी काँख चाटने लगा, उसकी ब्लाऊज़ काफ़ी गहरे गले की थी।
“तुम्हारी ब्लाऊज़ इतने गहरे गले वाली क्यों है?
“क्या है?”
“मतलब तुम्हारी ब्लाऊज़ मे इतनी गहराई क्यों है?”
“मुझे ऐसे ही अच्छे लगते हैं।”
“और मुझे तुम्हारी ब्लाऊज़ की गेन्दें अच्छी लगतीं हैं। चलो अपनी ब्लाऊज़ उतारो और मुझे उनसे खेलने दो।”
“तुम बहुत आगे बढ़ रहे हो।”
“इसे तुम अपनी चोरी की सज़ा समझ सकती हो! आज मैं जो कहता हूँ, करो तो मैं किसी से भी कुछ नहीं कहूँगा।”
“ब्लाऊज़ के हुक सामने ही लगाए हैं, खोल लो।”
फिर मैंने उसकी ब्लाऊज़ के हुक खोल दिए। उसमें से मेरा १०० रुपयों का नोट निकला – “ये रहा मेरा १०० का नोट।”
“इसे मेरे पास ही रहने दो। आख़िर इसकी वज़ह से ही तो यह सब करवा रही हूँ।”
उसने ब्रा नहीं पहन रखी थी। मैं उसकी चूचियाँ अपने हाथों से मसलने लगा। अब उसको भी मज़ा आने लगा था – “मसलोगे भी, या चूसोगे भी? लेकिन जल्दी।”
मैंने उसकी घुण्डियों को मुँह में लिया और चूसने लगा – “आआआआहहह… चूसो। चूसो इन्हें.. दबाओ… मसल डालो। आहह्ह्ह्हहहह।”
कुछ देर तक तो मैं उसकी घुण्डियाँ चूसता रहा। फिर उसने ख़ुद ही मेरा सिर पकड़ कर अपनी साड़ी ऊपर कर के, मेरा सिर अपनी टाँगों के बीच रख दिया – “असली जगह तो यहाँ है। चूसो मेरी योनि को… चाटो इसे।”
“नहीं, पहले तुम अपनी साड़ी उतार दो। मैं तुम्हारे चूतड़ देखना चाहता हूँ।”
“साड़ी नहीं उतारूँगी।” मैं साड़ी पूरी ऊपर कर लेती हूँ। लेकिन तुम मेरी योनि चूसते रहो।”
“क्या सिर्फ मैं ही चूसूँगा? तुम मेरा कुछ भी नहीं चूसोगी?”
“ओफ्फ्फोह। पहले तुम मेरी योनि चूसो, फिर मैं तुम्हारा हथियार चूस दूँगी।”
“नहीं, हम दोनों एक साथ चूसेंगे।
“वो कैसे?”
फिर हम दोनों 69 की मुद्रा में आ गए।
“आहह… आहह्ह्ह। तुम मेरे राजा हो। मेरी योनि के राजा।”
“तेरी योनि और गाँड पर सौ-सौ के सौ नोट क़ुरबान।”
काफ़ी चूसने के बाद वो बोली – “बस राजा बस… अब डाल दो अपना हथियार मेरी चूत में, और मार लो मेरी।”
मैंने अपना लंड उसकी चूत में डाल दिया। उसकी चूत काफ़ी सँकरी थी।
उईईई माँआआआआ… मर गईईईई… ओओओहहहह… ओओह। इतना मोटा लण्ड मेरी नाज़ुक चूत में डाल दिया… थोड़ा धीरे-धीरे डालो।”
“मेरी रानी की चूत कितनी टाईट है।”
“आआहहह…. आआआ.. . मेरे राजा… मेरी गाँड इससे भी अधिक टाईट है।” – उसने मुझे आँख मार कर कहा।
फ़िर बाद में मैंने उसकी गाण्ड भी मारी !
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