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इस सेक्स कहानी के पिछले भाग में अब तक आपने पढ़ा कि मैंने शान्ति भाभी की बेटी पिंकी के सामने अपने आपको बेबस पाया था. वो मुझसे लंड दिखाने के लिए कह रही थी और मैं शान्ति भाभी के संग चुदाई की अपनी पोल खुल जाने के बाद अपनी पुरानी यादों में खो गया था.
अब आगे:
शांति भाभी ने तब तक कपड़े साफ कर लिए थे. वो गीले कपड़े सूखने डालने के लिये साथ ले गईं और अपने घर से पिंकी की दूसरी ड्रेस ले आयी.
मेरी टांग खिंचाई को देखते हुए उन्होंने सभी को डांट लगा कर भगा दिया.
इसके बाद मेरी इज्जत उस मोहल्ले में बढ़ गयी. पहले केवल मर्द लोग ही घर का बना कुछ ले आते, पर धीरे धीरे औरतें भी आकर दे जातीं. इससे हुआ ये कि मुझे अब रोज ही खाने में कुछ अच्छा मिलने लगा.
उन महिलाओं में मेरे बारे में जानने की उत्सुकता बढ़ने लगी. उन सभी को मेरी हर खबर मेरी कामवाली बाई सबको देती थी. वो मेरे घर के बारे में, मेरे बारे में कुछ नमक मिर्च लगा कर ही बोलती, पर साथ ही आह भी भरती कि इतने घरों में काम किया, पर ऐसा भौंदू राम न देखा. साला मेरे तरफ देखता तक नहीं, जबकि मैं आधी साड़ी पेटीकोट उठा कर कमर में खौंस कर काम करती हूँ, तब भी उसका मन नहीं होता.
एक औरत ने उसको चने के झाड़ पर भी चढ़ाया कि सुन … जब तुझे ही चुल्ल उठे तो तू ही एकाध मौका देख कर उससे लिपट जाना.
वो बोली- मैं वो भी करके देख चुकी हूँ. एक बार तिलचट्टे को देख उनसे लिपटी भी थी … पर वो कहते हैं न सारी सारी. उसकी बात पर दूसरी औरत हंस कर बोली- सारी नहीं … सॉरी. “हां … हां बस वही कह कर दूर हट गए थे.”
अब तो शाम में मर्द लोग भी मेरे घर में जमने लगे थे, पर मैं दारू सिगरेट एकदम से बंद कर रखा था. सो धीरे धीरे उनका आना कम हो गया, पर मेरा कद औरतों में और बढ़ गया था.
एक दिन दोपहर के समय शांति भाभी गाजर का हलुवा लेकर आईं. लाल साड़ी पहने वो गजब ढा रही थीं.
मैं उनको देख कर बोला- भाभी जी, गजब ढा रही हैं, ये बिजली कहां गिरेगी? वो मुस्कुरा कर बोलीं- अरे वाह … घोंघा आज बोल रहा है … तो देवर जी रिश्ता बनाने के लिये धन्यवाद और मैं ये वाली साड़ी पहन कर कई बार आ चुकी हूँ. बात क्या है. … क्या लाइन मार रहे हैं?
मैं कुछ बोल नहीं पा रहा था.
वो बात बढ़ाते हुए बोली- देवर जी, जब आपने अपना भाभी बना ही लिया, तो ये बताओ कि क्या सचमुच आपकी कोई गर्लफ्रेंड नहीं है. क्या आपने सचमुच में अब तक किसी लड़की का गेट वे ऑफ इंडिया नहीं देखा? मैंने न में सर हिलाया.
वो मेरे नजदीक आईं और मेरे माथे पर चुम्मी ले ली. मैं सिहर गया. उसके बाद भाभी ने मेरी आंखों के ऊपर चुम्मी ली. फिर मेरी आंखों में आंखें डालते हुए बोलीं- अगर बुरा न लगे तो एक ट्राय करोगे? चलिये आज आपका फीता मैं काट देती हूँ.
मैं तो उनकी गर्म सांसों के कारण ही मदहोश हुआ जा रहा था, केवल फुसफुसा कर बोला- अहोभाग्य भाभी जी, अंधा क्या मांगे … दो आंखें.
बस फिर क्या था, दोनों फड़फड़ा उठे. शान्ति भाभी ने मेरे सारे कपड़े उतरवा दिए. मुझे नंगा करके अपने नजदीक खींचते हुए कान के नीचे चुम्मी ली. चुम्मी लेते लेते अपने ब्लाउज और ब्रा को खोलने का तरीका भी बताती गईं.
ब्लाउज और ब्रा हटते ही भाभी की उन्नत चूचियां मेरी आंखों के सामने उछल रही थीं. “चल शुरू हो जा..” भाभी दूध हिला कर बोलीं.
मैं भूखे बच्चे की तरह उनकी चूचियों पर टूट पड़ा. वो बोलीं- आह … क्या बच्चे हो जो दूध पी रहे हो. अरे अपने जीभ से सहलाओ पहले … दम से मसलो.
मैंने उनकी तरफ चूतियों की तरह आंखें झपकाईं. तो शान्ति भाभी ने मेरे निप्पल के चारों तरफ जीभ सहला कर बताया. मैं उनकी चूचियों को पीता, सहलाता, मसलता रहा. शान्ति भाभी के गोरे दूध एकदम से सुर्ख गुलाबी हो गए थे. भाभी उस मीठे दर्द का मजा ले रही थीं.
शान्ति भाभी ने पूछा- और आगे नहीं बढ़ेगा क्या?
दोस्तो, अभी मैं शान्ति के साथ हुई अपनी चुदाई की शुरुआत के बारे में ही सोच रहा था और ये सब घटना क्रम अभी मेरी खुपड़िया में चल ही रहा था कि तभी एक आवाज ने मेरी तन्द्रा को तोड़ दिया.
“क्या सोच रहे हैं अंकल? क्या सोच रहे हैं?”
मैं यथार्थ में लौट आया. आज उन्हीं शान्ति भाभी की बेटी, जो कुत्ते से डर कर भागी थी, आज मेरे सामने ही मुझे ही बकरा बना रही थी.
“अंकल जल्दी से मुझे ठोकिए न … अब बर्दाश्त नहीं हो रहा है.” मैं- पगली उसे ठोकना नहीं, चोदवाना कहते हैं. “आज नहीं … अगली बार से जो कहियेगा, बोल दूँगी … पर अभी जल्दी ठोकिए.”
मैंने उसे पलंग पर पटकते हुए उसकी पेंटी को खींचते हुए उतार दिया. पिंकी की छोटी सी चूत पूरी तरह से चिपचिपी हो चुकी थी. मैं उसकी ब्रा उतारने लगा, तो उसने मुझे रोक दिया- ये सब अगली बार करना.
मैं समझ गया कि इसे फिलहाल लंड ही चाहिए. मैंने उसकी चूत को थोड़ा फैला कर देखा, तो झिल्ली गायब थी. वो मेरी दुविधा समझते हुए बोली- मैं पहले ही बोली थी कि अभी तक उंगली करके संतुष्ट हो रही थी.
उसका छेद अभी भी छोटा था. रस से पूरी चूत भीगी हुई थी. चूत से आंसू की एक बूंद की तरह का एक बूंद रस निकल कर चूत और गांड के बीच में चमक रहा था.
मैंने उसे सहलाते हुए पूछा- दर्द होगा … तैयार हो? “हां अंकल, मेरी फ्रेंड ने बताया है. मैं तैयार हूँ, अब जल्दी से कुछ करो भी … मुझसे रहा नहीं जा रहा है.”
मैंने एक निगाह चुत पर मारी, तो उफ्फ … उसकी क्या चूत थी. गुलाबी आभा लिए एकदम मासूम सी ओस युक्त कली लपलप कर रही थी. जिससे उसके भीतर का सुर्ख गुलाबी रंगत लिए हुए भाग ऐसा लग रहा था कि जैसे थोड़ा भी ठेस लगे, तो उसकी गुलाबी रंगत खून निकल आने से लाल हो जाए. उसकी चूत पर अभी भी काले बाल नहीं आए थे, जो थे वो भी अभी भूरी रंगत लिए रेशमी से दिख रहे थे.
आज मुझे एक ऐसी चूत का दीदार हो रहा था, जिसने अब तक लंड का स्वाद ही नहीं चखा था. मैंने उसकी चूत पर जीभ रखकर उसकी कुंवारी चूत को प्यार किया. मैंने एक बार ही उसकी फुद्दी को सहलाया ही था कि उसने ‘उफ्फ अंकल …’ कह कर अपने दोनों हाथ से मेरे सर को अपनी चूत पर दबा दिया. मेरे सर को पूरी तरह से अपनी बुर पर दबाने के बाद वो अपनी कमर को हिलाते हुए चुत को मेरे मुँह पर रगड़े जा रही थी.
मैं धीरे धीरे उसके शरीर पर ऊपर की तरफ बढ़ रहा था. उसी रफ्तार से उसका शरीर अकड़ता जा रहा था. उसके ऊपर की तरफ बढ़ने से मेरा लंड उसकी चूत के ऊपर आ गया था.
मैंने चुत की फांकों का अहसास अपने लंड के सुपारे पर किया और उसको चूम कर एक बार फिर से पूछा- तैयार हो? उसने अपने हाथों से मेरी कमर को पकड़ कर चुत उठाते हुए लंड के सुपारे से टच किया और कहा- हूँ … पेल दो.
मैंने थोड़ा दबाव दिया, तो लंड का सुपारा फांकों में अन्दर घुस गया. अभी सुपारे की मोटाई को ही चुत ने झेला था कि उसने अपने हाथों से मेरी कमर को वहीं रोक दिया. उसका शरीर पूरा अकड़ा हुआ था. मैं आगे बढ़ गया, तो मुझे उसकी चूत का कसाव अपने लंड पर महसूस होने लगा था.
उसका छेद फैलता, पर दर्द होने पर फिर सिकुड़ा जा रहा था. ‘उम्म्ह… अहह… हय… याह…’ उसके मुख से निकला. कुछ देर की मशक्कत के बाद जब पिंकी का दर्द कम हुआ, तो उसने अपने हाथों से मेरी कमर को थाम लिया. फिर धीरे धीरे वो मुझे अपनी चूत की तरफ खींचते हुए लंड को अपनी सुविधानुसार अन्दर कर रही थी. जब लंड महादेव पूरी तरह से अन्दर चले गए तो उसने आंखें खोल कर मेरी तरफ देखा. उसके चेहरे पर संतुष्टि का भाव था.
मैंने उसको आंख के इशारे से पूछा तो उसने हंस कर कहा- मजा आ गया. मैं समझ गया कि लौंडिया अब पूरा खेल शुरू करने के लिए सैट हो गई है.
मैं धकापेल चुत चुदाई में लग गया. मैंने देखा कि उसकी आंखों की कोर से आंसू निकल रहे थे. पर वो अपने दर्द को छुपाते हुए होंठों को दांतों से दाबे हुए थी.
मेरा लंड अब अपनी पूरी गति से चूत के छक्के छुड़ाने पर तुला हुआ था. उधर चूत भी हार नहीं मान रही थी.
हम दोनों के अंतिम मिलन स्थल पर चट चट की आवाज होती. नीचे चौकी भी चर्र चर्र के साथ-साथ संगत दे रही थी.
ज्यों ज्यों पिंकी अपने चरम पर पहुँच रही थी, वो अपनी रफ्तार बढ़ाए जा रही थी. पिंकी अपनी गांड उठाते हुए कहते जा रही थी- आह … अंकल और जोर से … और जोर से … वो अपने हाथ से भी मेरी कमर को सहारा देकर मुझे बता रही थी कि लंड को किस तरफ से अन्दर करने पर उसे ज्यादा मजा आ रहा था.
अपने चरमोत्कर्ष के समय वो मेरे गले में हाथ डाल कर तथा पैरों को कमर के चारों तरफ से घेर कर झूल गयी. मैं पुशअप करने की मुद्रा में आ गया. उसकी चूत के चारों तरफ से निकलता गर्म रस तथा उसके संकुचन और फैलने की गति से मालूम हो रहा था कि वो झड़ रही है.
थोड़ी देर में वो शांत हो कर अपना हाथ ढीला करते हुए बेड पर गिर पड़ी, पर उसकी कमर अभी भी मेरी कमर से सटी हुई थी … जिस कारण से मेरा लंड अभी भी चूत के अन्दर था. उसी अवस्था में रहते हुए, वो पलटी मारते हुए मुझे नीचे करके खुद मेरे ऊपर आकर छाती पर आ गई.
उसके पलटी मारते समय लंड निकलने ही वाला था कि उसने लंड को हाथ से पकड़ कर फिर से अन्दर कर लिया. जब लंड धीरे धीरे शांत हो गया, तो फच्च से बाहर आ गया. वो भी परम संतुष्टि के भाव से हट कर बाथरूम में जाकर फ्रेश होकर बाहर आ गयी.
सैकड़ों जगह चुम्मियां लेते हुए पिंकी बोली- वाह अंकल आज की चुदायी में मजा आ गया. आपके लंड ने तो कमाल कर दिया … मेरी चूत के कोने कोने में जाकर मेरी प्यास को शांत कर दिया. अब मैंने जाना कि मम्मा के चेहरे पर परमसुख का दर्शन क्यों होते थे. अगली बार में मेरी चूचियां भी आपके लिए हाजिर रहेंगी. उसकी आंखें नीची थीं, चेहरे पर शरारती मुस्कान थी.
वो बोली- यही सुनने के लिये आप लोग परेशान रहते हैं न? चलिये उठिये अब अपने कपड़े पहन लीजिये.
मैं उठा, तो देखा चादर पर कुछ खून के धब्बे भी गिरे हुए थे. मैंने कपड़े पहन कर चादर को मशीन में डाल दिया. गुडबाय किस करके वो फिर से मिलने कह कर निकल गयी.
इस पूरे चोदन के लिये मैं शांति भाभी को धन्यवाद दे रहा था, जिनकी कृपा से आज एक नौसिखिया लंड अपना पूरा अध्याय खत्म कर सका.
पहली बार शान्ति भाभी जब मुझे चोदने का ज्ञान दे रही थीं, तो मैंने उनके मम्मों को पीते पीते ही सुर्ख गुलाबी कर दिए थे. उस समय मेरा लंड पूरा तना हुआ था … और खून के उच्चतम संचार से फूला हुआ था.
जब भाभी ने पूछा था कि दूध पीकर ही खत्म करना है … या कुछ आगे भी बढ़ोगे. तब मैंने उनका पेटीकोट हटा दिया. वो जानबूझ कर पेंटी पहन कर नहीं आयी थीं, सो उनका साफ सुथरा छेद मेरे सामने था.
ये भाभी की चूत का सीधा दीदार का मेरा प्रथम अहसास था. मेरा मुँह खुला हुआ था और एकटक नजरों से मैं उनकी चुत को देख रहा था. भाभी ने मेरे इस तटस्थ भाव का पहले मजा लिया, फिर बोलीं- अभी ये छेद आपका हुआ … चलिये शुरू हो जाइए. बीच में और भी क्रियाएं होती हैं, वो बाद में कर लेंगे.
मेरी इस चुदाई की गर्मी से लबरेज सेक्स कहानी में आपको कितना मजा आ रहा है, प्लीज़ मुझे मेल करके जरूर बताएं. [email protected] कहानी जारी है.
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