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मेरी सेक्स कहानी के पिछले भाग में आपने पढ़ा था कि मैं और मेरे जेठजी, हालात की वजह से रसोई में एक दूसरे से चिपक कर खड़े थे. मैं मन ही मन में जेठजी की पहल का इंतजार कर रही थी. पर जेठजी ने कोई पहल नहीं की. अब आगे:
मैं समझ गयी थी कि शायद जेठजी भी मेरी तरह अभी भी उलझन में ही हैं. इसलिए मैंने फिर से अपना सर उनके सीने से लगा दिया. ये मेरी तरफ से जेठजी के लिए एक इशारा था और जेठजी भी शायद मेरा इशारा समझ गए.
कुछ देर तक जेठजी ने कोई हरकत नहीं की और मैं भी वैसे ही खड़ी रही. उसके कुछ देर बाद मैंने जेठजी के हाथों में हलचल को महसूस किया. पहले जेठजी अपना हाथ सिर्फ मेरे कंधे और पीठ पर ही सहला रहे थे, पर अब उनका हाथ मेरी पीठ से होकर मेरी कमर और कूल्हों तक आने लगा था. उनका हाथ जैसे जैसे मेरी कमर और कूल्हों पर आने लगा, वैसे वैसे मेरी धड़कन और सांसें बढ़ने लगीं.
मैंने एक बार फिर अपना सर उठाकर जेठजी के चेहरे को देखा. जेठजी भी मेरे चेहरे को देख रहे थे. उनकी आंखें जैसे मुझसे आगे बढ़ने की इजाज़त मांग रही थीं. उनका हाथ मेरे कूल्हे पर रुक सा गया था. मैं फिर से अपना चेहरा नीचे करने ही वाली थी कि जेठजी ने मेरे चेहरे को दूसरे हाथ से रोक लिया. कुछ देर तक हम बस एक दूसरे की आंखों में देखते ही रहे, जैसे एक दूसरे की मन की बात समझने की कोशिश कर रहे हों.
मैं तो जेठजी के मन की बात नहीं समझ सकी, पर शायद जेठजी मेरे मन की बात समझ गए और उन्होंने आगे बढ़कर अपने होंठों को मेरे होंठों से लगा दिया.
सच कहूं तो उस वक़्त मुझे अच्छा भी और अजीब भी लगा क्योंकि मन तो मेरा भी आगे बढ़ने का कर रहा था, पर जेठजी के साथ कैसे करूं इसलिए मैं कुछ समझ ही नहीं सकी कि क्या करूँ? मैं तुरंत ही जेठजी से अलग होकर दूर खड़ी हो गयी और उनकी तरफ पीठ करके खुद को संभालने लगी.
अभी मैं अपनी सांसों को संभाल भी नहीं पायी थी कि इतने में जेठजी फिर से पीछे से आकर मुझसे चिपक गए और मेरी गर्दन के पीछे वाले हिस्से को चूमने लगे. मुझे अपने कूल्हों के पास हल्के हल्के झटके भी महसूस होने लगे. मेरे जेठजी का लंड शायद अपने रौद्र रूप में आने लगा था.
अब मेरा खुद को कंट्रोल कर पाना मुश्किल होने लगा. मेरी सांसें फिर से उखड़ने लगीं. पर अभी भी मेरे दिल और दिमाग में सही और गलत के बीच जंग सी चल रही थी. दिल कह रहा था कि आगे बढ़ कर चूत की खुजली मिटा लूं और दिमाग कह रहा था कि रिश्ते की मर्यादा बनी रहने दूं.
इतने में जेठजी ने मुझे घुमा कर अपनी तरफ सीधा कर लिया और मुझसे चिपक गए. मैं अपने कमर के नीचे के भाग पर जेठजी का लंड महसूस कर रही थी, जो बार बार झटके ले रहा था.
आप सब तो उस वक़्त की मेरी मनोदशा समझ ही सकते हो कि जो औरत रोज़ मज़े से लंड की सवारी करती हो और पिछले 6-7 दिनों से उसकी चूत लंड के लिए तरस रही हो. उस पर से रोज़ रोज़ पति से बातों के दौरान, जिसकी चूत गीली होती हो, उसके सामने खड़ा लंड फुफकार रहा हो, तो वो चुदासी औरत क्या करती.
फिर भी मैंने अधूरे मन से जेठजी को रोकने की कोशिश की, पर गीली चूत और जबान लड़खड़ाने की वजह से मैं सिर्फ इतना ही बोल सकी- जेठजी प्लीज … रुक जाइये!
पर मेरी बात का जेठजी पर बिल्कुल भी असर नहीं हुआ. जेठजी पर कामवासना सवार हो चुकी थी और उन्होंने मुझे और कसकर अपने से चिपका लिया. वो मेरे गाल कान और गर्दन को चूमते हुए बोले- ओह्ह जस्सी, प्लीज अब मत रोको.
इतना बोल कर जेठजी ने मेरी नाइटी के ऊपर का बटन खोल कर नाइटी को कंधे से सरका दिया और मेरे कंधे को भी चूमने लगे. थोड़ी गरम तो मैं पहले से ही थी, पर उनकी इस हरकत की वजह से और गर्म हो गयी. मैंने भी जेठजी का चेहरा पकड़ा और उनके होंठों पर अपने होंठ रख दिए.
उसके बाद तो जैसे मेरे और जेठजी के होंठों के बीच जंग सी छिड़ गई. कभी मैं उनके होंठों को चूसती, तो कभी जेठजी मेरे होंठों को चूसते. कभी जेठजी अपनी जीभ मेरे मुँह में डाल देते, तो कभी मैं उनके मुँह में अपनी जीभ घुसेड़ देती. हम दोनों एक दूसरे की जीभ और होंठों को चूसने में लग गए थे.
मेरे हाथ तो अभी भी जेठजी के चेहरे पर ही थे, पर जेठजी के हाथ मेरे पिछवाड़े का अच्छे से माप ले रहा था. कभी पीठ का तो कभी कमर तो कभी कूल्हों का इलाका चैक किया जाने लगता था. बीच बीच में जेठजी मेरे कूल्हों को अपने मुठ्ठी में भरने की कोशिश भी करते, पर मेरे कूल्हे उनकी मुठ्ठी में आ नहीं पा रहे थे तो वो मेरे कूल्हों को दबा देते.
ये सिलसिला करीब 5-7 मिनट चला, उसके बाद मैं उनकी बांहों में घूम गयी ताकि अब वो मेरे पिछवाड़े को भी अपने होंठों से प्यार कर सकें. मेरा इशारा जेठजी समझ गए और वो मेरी गर्दन से शुरू हो गए, साथ ही उनका हाथ अब मेरे पेट को सहलाने लगा.
थोड़ी ही देर में जेठजी के हाथ पेट से सीधा मेरे चूचों पर आ गए और वो मेरे चूचों को कपड़ों के ऊपर से ही अपनी मुट्ठी में भर कर दबाने और मसलने लगे.
जेठजी का लंड मेरे कूल्हों के बीच अपनी जगह बनाने में लगा हुआ था, पर कपड़ों की वजह से जगह ना मिल पाने से शायद गुस्से में बार बार अकड़ भी रहा था. जेठजी कभी गर्दन तो कभी कंधे को चूमने और चाटने में लगे थे. उनकी इन सब हरकतों को मैं भी एन्जॉय कर रही थी.
मेरी मैक्सी के ऊपर का बटन खुला होने की वजह से मेरी पीठ आधी नंगी हो चुकी थी, तो बीच बीच में जेठजी मेरी ब्रा के स्ट्रिप को अपने दांतों से पकड़ कर खींचते, फिर छोड़ देते जो चट की आवाज के साथ मेरी पीठ से फिर से चिपक जाता. इससे थोड़ा दर्द तो होता, पर उस दर्द में भी मज़ा आ रहा था.
करीब 10 मिनट तक मेरी आधी खुली पीठ, गर्दन और कंधों को अच्छे से चूमने और चाटने के बाद जेठजी ने मुझे फिर से अपनी तरफ घुमा लिया और मेरे होंठों को चूसने लगे. मैं भी ‘क्या गलत है और क्या सही’ इस सबके बारे में सोचना छोड़ कर उनका पूरा साथ दे रही थी.
सच कहूं तो उस वक़्त मैं कुछ भी सोचने के मूड में भी नहीं थी. और जेठजी को देखकर लग रहा था कि उनका हाल भी मेरे जैसा ही है. हम दोनों ही कामवासना में अंधे हो चुके थे.
मैं जेठजी से चिपके चिपके ही उन्हें रसोई के स्लैब तक खींच कर ले गयी और स्लैब का सहारा लेकर खड़ी होकर जेठजी का साथ देने लगी. अभी भी हमारे होंठ एक दूसरे के होंठों से उलझे हुए थे और हाथ एक दूसरे के पिछवाड़े पर जमे थे.
कुछ देर बाद जेठजी एकाएक रुक गए और अपना चेहरा ठीक मेरे चेहरे के सामने करके मेरी आंखों में देखने लगे जैसे मेरी आंखों से मेरी मन की बात समझने की कोशिश कर रहे हों. कुछ सेकेंड्स तक मैंने भी उनकी आंखों से आंखें मिलाने की कोशिश की, पर जल्दी ही शर्म के मारे मैंने अपनी आंखें झुका लीं.
उसके बाद जेठजी ने मुझे कमर से पकड़ कर रसोई के स्लैब पर बैठा दिया और फिर से मेरे चेहरे को ठुड्डी के सहारे उठा कर मेरे होंठों को चूमने लगे. साथ ही अपने दोनों हाथों से मेरे मैक्सी के अन्दर से डाल कर मेरी कमर को सहलाने लगे. बीच बीच में वो अपनी उंगलियां मेरी पैंटी की इलास्टिक में फंसा कर मेरी कमर के चारों ओर घुमा देते.
मैं समझ रही थी कि अब जेठजी क्या चाहते हैं.. पर मैं अपनी तरफ से कोई पहल नहीं करना चाहती थी. इसलिए मैं अनजान बनकर किस करने में ही लगी रही. उधर जेठजी के शॉर्ट्स में बना तंबू मेरे घुटनों से रगड़ रहा था.
एक दो बार वैसे ही उंगलियां घुमाने के बाद जेठजी ने अपना पूरा पंजा मेरी पैंटी के अन्दर घुसा दिया और मेरे चूतड़ सहलाने लगे. कुछ देर तक मेरे चूतड़ों को सहलाने के बाद जेठजी की उंगलियां फिर से मेरे पैंटी की इलास्टिक पर आकर कुछ देर के लिए रुक गईं. फिर धीरे धीरे जेठजी मेरी पैंटी को नीचे की ओर सरकाने लगे. थोड़ा नीचे आने के बाद जेठजी को पैंटी को निकालने के लिए मेरे सहयोग की जरूरत थी. मैंने भी अपने हाथों का सहारा लेकर अपने शरीर को थोड़ा ऊपर उठा दिया. मेरा सहयोग मिलते ही जेठजी ने जल्दी से मेरी पैंटी को खींच कर निकाल दिया. और वहीं बगल में फेंक दी. अब मैं ऊपर से तो ढकी हुई थी पर नीचे से पूरी तरह नंगी थी. शर्म की मारे मैंने अपनी दोनों जांघों को आपस में चिपका लिया और खुद फिर से जेठजी से चिपक गयी.
कुछ देर बाद जेठजी ने मुझे खुद से अलग किया और मेरी गोरी गोरी जांघों को सहलाने लगे. उनके छूने से मुझे गुदगुदी होने लगी, इसलिए मैंने उनका हाथ पकड़ कर हटा दिया. अभी तक जेठजी दूसरे ऐसे इंसान थे, जिसने मुझे ऐसी हालत में देखा और मेरे खास अंगों को छुआ था.
जेठजी ने अपनी हाथ मेरी कमर के पीछे ले जाकर मुझे मेरे चूतड़ों से पकड़ कर स्लैब के किनारे तक खींच लिया और मेरी दोनों टांगों को घुटने से मोड़कर स्लैब पर टिका दिए. आप सब मेरी उस पोजीशन को इमेजिन तो कर ही सकते हैं और उस पोजीशन में मेरी चूत पूरी तरह खुल गयी थी. मैंने अपनी चूत छुपाने की कोई कोशिश भी नहीं की. जब जेठजी से चुदवाने का सोच ही लिया है, तो उनसे शर्माना कैसा.
मेरी आंखें अभी भी जेठजी का लंड देखने को लालायित थीं.. क्योंकि अभी तक मैंने उनका लंड नहीं देखा था, जो शॉर्ट के अन्दर से ठीक ठाक ही लग रहा था. मैं उम्मीद कर रही थी कि जेठजी का लंड मेरे पति के लंड से बड़ा और मोटा ना सही.. पर उनके जैसा होना चाहिए. वैसे आप सबको बता दूं कि मेरे पति का लंड साढ़े सात इंच लंबा और तीन इंच मोटा है.
जेठजी ने अब अपना हाथ ठीक मेरी चूत की भगनासा पर रख दिया और उसे हल्के हाथों से मसलने लगे. लंड से मिलने के उम्मीद में मेरी चूत की हालत तो पहले से ही खराब थी, बेचारी पिछले 15-20 मिनट से पानी पानी हुई थी क्योंकि पिछले 15-20 मिनट से ही चुम्मा-चाटी का दौर चल रहा था. उस पर जेठजी अब चूत से खेलने भी लगे थे.
मैं और मेरी चूत कब तक बर्दाश्त करते … और कब तक मैं अपनी फीलिंग छुपा कर रख पाती. आखिरकार मेरे सब्र का बांध टूट गया था. मेरे मुँह से सिसकारी निकलने लगी थी.
धीरे धीरे जेठजी अपने उंगलियों का दबाव मेरी चूत के दाने पर बढ़ाते गए और मेरी सिसकारियां अपने आप ही बढ़ती गयी. बीच बीच में जेठजी अपनी उंगली चूत की छेद में घुसा देते या चूत की फांकों के बीच ऊपर नीचे कर देते जो मेरे आनन्द को और बढ़ा देता.. और मेरे मुँह से कभी आह तो कभी सिसकारी निकल जाती. मैं अपनी आंखें बंद करके उस आनन्द को महसूस कर रही थी. आनन्द के मारे ऐसा लग रहा था कि मैं किसी भी वक़्त झड़ जाऊंगी.
कुछ देर तक मेरी भगनासा को मसलने और रगड़ने के बाद अचानक जेठजी रुक गए और थोड़ा दूर होकर कुछ करने लगे. मैं आंखें खोलकर देखती, उससे पहले ही जेठजी फिर से मेरे पास आ गए. अब मैं अपनी कमर के नीचे के हिस्सों पर जेठजी का नंगा स्पर्श महसूस कर रही थी. मतलब जेठजी भी अब नीचे से पूरे नंगे हो चुके थे.
मैं सोच रही थी कि जेठजी अब मुझे अपना लंड चूसने को बोलेंगे या फिर मेरी चूत को चाटेंगे. जेठजी का तो पता नहीं, पर मुझे लंड चूसने में और चूत चटवाने दोनों में बहुत मज़ा आता है. पर अभी शर्म और झिझक की वजह से मैं अपने मन की बात जेठजी को कह न सकी और जेठजी ने ऐसा कुछ किया ही नहीं.
उन्होंने हाथ से अपना लंड पकड़ कर मेरी चूत की छेद पर रख कर दो तीन बार अपना लंड चूत के फांकों में ऊपर नीचे किया. इतने से ही मेरे पूरे बदन में जैसे सनसनी सी दौड़ गयी और चूत झरने के जैसे बहने लगी. सीत्कार के रूप में मेरे मुँह से बस ‘आह..’ ही निकल सका. एक हल्के से धक्के के साथ वो मुझमें समा से गए. चूत गीली होने के कारण न तो उन्हें कोई दिक्कत हुई और न ही मुझे.
फिर 4-5 हल्के धक्कों में ही जेठजी का लंड पूरी तरह मेरी चूत में समा गया.
‘आह हहहा …’ उस पल को शब्दों में बयान नहीं किया जा सकता. अब जाकर मुझे और मेरी चूत दोनों को सुकून मिला. जब जेठजी का लंड पूरी तरह से मेरी चूत में घुसा, तब मुझे अहसास हुआ कि जेठजी का लौड़ा मेरे पति से बड़ा है. अब मेरे मन को और भी ज्यादा शांति मिली.
अभी तक हम दोनों एक दूसरे की आंखों में ही देख रहे थे. मनमाफिक लंड मिलने की खुशी में मैं खुद अपना चेहरा आगे बढ़ा कर जेठजी के होंठ चूमने लगी. जेठजी शायद मेरी ख़ुशी समझ गए और वो अपनी कमर थोड़ा तेज़ चलाने लगे.
जैसे जैसे लंड के धक्कों की स्पीड बढ़ने लगा, वैसे वैसे मेरा शरीर भी हिलने लगा और उस वजह से एक दूसरे के होंठों पर एकाग्रता बनाना मुश्किल होने लगा. इसलिए मैंने खुद ही अपने होंठ जेठजी के होंठ से हटा लिया और उस पल को एन्जॉय करने लगी.
जैसे जैसे टाइम बीत रहा था, मेरी चूत की चिकनाहट बढ़ती जा रही थी और जेठजी का लंड पिस्टन की तरह मेरी चूत में अन्दर बाहर हो रहा था. मेरे मुँह से बस ‘आहह उम्म्ह… अहह… हय… याह… उम्ह ईईई …’ निकल रहा था.
कुछ देर तक उसी पोज़ में चोदने के बाद जेठजी ने चूत में लंड डाले डाले ही मुझे गोद में उठा लिया और मेरे पैरों में अपने हाथ फंसा कर खड़े हो गए. मैंने भी खुद को संभालने के लिए अपने हाथों का घेरा बनाकर जेठजी के गले में डाल दिया. अब मैं हैंगिंग पोजीशन में आ गयी. जेठजी ने मुझे थोड़ा ऊपर नीचे करके एडजस्ट किया ताकि मेरी चूत का छेद उनके लंड के ठीक सामने आ जाए. और जैसे ही ये हुआ, जेठजी फिर से शुरू हो गए.
अब ठप ठप और फच फच की आवाज के साथ जेठजी का लंड मेरी चूत की गुफा में फिर से सैर करने लगा और वो आवाज पूरे माहौल को और ही गर्म बना रहा था. जैसा कि आप सब जानते हैं कि भले ही ये पोज़ इंटरेस्टिंग है, पर इस पोज़ में थकान भी जल्दी लगती है. और हुआ भी वही.
चुदाई की कहानी का ये भाग आपको कैसा लगा, प्लीज़ कमेंट करके जरूर बताइएगा. सेक्स कहानी से संबंधित आप अपने विचार और सुझाव मुझे मेरे मेल आईडी पर मेल करके भी बता सकते हैं. [email protected] मेरी जेठ जी के लंड से चूत चुदाई की कहानी जारी रहेगी.
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