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नमस्कार मेरे प्यारे दोस्तो और पाठको, कैसे है आप सब? उम्मीद करती हूँ कि सब मजे में होंगे, ऐसे ही खुश रहिए और मजे करते रहिए!
मैं सुहानी चौधरी आप सबका अपनी अगली कहानी में स्वागत करती हूँ। आप सबसे निवेदन है कि कृपया कहानी को पूरा पढ़िये! हो सकता है मैं आप सबके ई-मेल का तुरंत रिप्लाई नहीं कर पाऊँ, क्योंकि मैं 3-4 दिन में चेक करती हूँ. कॉलेज के काम की वजह से और मुझे कई बार पता भी नहीं चल पाता कि मेरी कहानी प्रकाशित हो चुकी है अन्तर्वासना पे क्योंकि कहानी प्रकाशित होने में कुछ महीनों का समय लग जाता है.
इसके अलावा आप सब से निवेदन है कि कहानी पूरी पढ़िये और अंत में मैंने आप सब पाठकों के लिए एक संदेश भी दिया है तो उसे भी जरूर पढ़ें, ज्यादा बड़ा नहीं है संदेश … पर हाँ कहानी कुछ लोगों को लंबी लग सकती है. तो उसके लिए क्षमा चाहती हूँ।
तो चलिये आज की कहानी पे आगे बढ़ते हैं।
दरअसल यह कहानी मेरी एक बहुत अच्छी सहेली की है जिसे उसने मेरे द्वारा लिखवाया और प्रकाशित करवाया है। अब क्योंकि उस सहेली ने ये शर्त रखी है कि मैं उसका असली नाम उजागर ना करूँ इसलिए मैं कहानी में उसके नाम की जगह अपना नाम ही लिखूँगी। तो अब कहानी पढ़िये मेरी ही जुबानी।
सबसे पहले तो मैं आप सबको थोड़ा अपने और कहानी के बारे में बता देती हूँ। मेरा नाम सुहानी चौधरी है। मेरी हाइट 5’4″ है और शरीर भी अच्छा है, मैं ना ज्यादा पतली हूँ, ना ही ज्यादा मोटी। मेरा रंग बिल्कुल गोरा है और चेहरा बिल्कुल चिकना, इसके अलावा गोल गोल गाल, बड़ी बड़ी आँखें और प्यारा सा मासूम सा चेहरा है।
मेरे पापा रेलवे में काम करते हैं। यह कहानी तब की है जब मैं 19 साल की थी और 12वीं क्लास में थी। हमें सरकारी मकान मिला हुआ था रहने के लिए और हम काफी साल से वहीं रह रहे थे। हमारे बगल वाले घर में मेरा दोस्त सचिन रहा करता था और हम दोनों एक ही स्कूल में और एक ही क्लास में थे।
सहपाठी और पड़ोसी होने के नाते हम दोनों बहुत ही अच्छे दोस्त थे। हमारी दोस्ती लगभग 4-5 साल पुरानी थी, तो ये कहा जा सकता है कि हम दोनों बचपन के ही दोस्त थे और अब जवानी में भी एक साथ ही कदम रखा था।
हम दोनों लगभग हर बात एक दूसरे को बताते थे और एक दूसरे को खूब छेड़ते भी थे, मज़ाक भी उड़ाते थे, लड़ते थे, झगड़ते थे पर अगले दिन ही सब भूल जाते थे।
हम दोनों का घर अगल बगल में था, हम दोनों के कमरे ऊपर की मंजिल पे थे और किस्मत से हम दोनों के कमरे भी छज्जे की तरफ वाले थे। कभी कभी हम दोनों ही छुप छुप के छज्जे की दीवार कूद के एक दूसरे के कमरे में चले जाते थे बात करने या ऐसे ही टाइमपास करने, मस्ती करने।
वैसे तो मैं बिल्कुल भी मोटी नहीं हूँ पर क्योंकि मेरे गाल गोल गोल और चिकने हैं जैसे सारा अली खान के गाल हैं, इसलिए सचिन मुझे मोटी कह के चिढ़ाता था कभी कभी। मैं उसकी इस बात का बुरा नहीं मानती थी और खुद उसे मोटा मोटा कह के बुलाती थी। हालांकि वो हल्का सा मोटा था भी पर ज्यादा नहीं। उसकी हाइट 5’7″ होगी।
तो कहानी कुछ यूं शुरू होती है।
अब 12वीं क्लास में छात्र नए नए जवान होते हैं तो जज़्बातों को काबू नहीं रख पाते। हमारी क्लास में काफी लड़के-लड़कियों के आपस में ही प्रेम संबंध बन गए थे. या यूं कहिए कि सेटिंग हो गयी थी. पर मैं इस सब से बची रही थी।
यहाँ तक कि मेरी सहेली आरुषि की भी एक लड़के से सेटिंग हो गयी थी और वो मुझे बताती रहती थी कि क्या क्या हरकतें होती रहती हैं उसके और उसके बॉयफ्रेंड के बीच में! पर वो ज्यादा विस्तार में नहीं बताती थी लेकिन मुझमें उत्सुकता रहती थी जानने की।
सचिन मुझे ज़्यादातर उनकी बातें बता देता था क्योंकि मेरी सहेली का बॉयफ्रेंड उसका दोस्त था. तो वो उसे सब बता देता था।
एक दिन क्लास में मेरी सहेली और उसका बॉयफ्रेंड नहीं आए तो हमें समझने में देर नहीं लगी कि दोनों कहीं घूमने निकल गए होंगे।
शाम को मैंने अपनी सहेली को फोन करके पूछा- कहाँ गयी थी घूमने? हमें भी तो बता दे? तो उसने साफ साफ जवाब नहीं दिया और मुझे टाल दिया।
फिर भी मुझे उत्सुकता रही जानने की। मुझे पता था कि सचिन को जरूर बताया होगा उसके दोस्त ने … तो मैंने सोचा की उससे पूछ लूँगी रात में।
रात के लगभग 11 बजे जब सब लोग सो गए तो मैं चुपचाप अपने कमरे की लाइट बंद कर के छज्जे पे आई और देखा कि गली में कोई नहीं है तो दीवार कूद के सचिन के छज्जे पे पहुँच गयी। सचिन अपना दरवाजा अकसर खुला ही छोड़ता था ताकि मैं आ जा सकूँ।
जैसा कि मुझे उम्मीद थी, सचिन भी जगा हुआ था। उसने बोला- आ जा सुहानी, क्या हुआ नींद नहीं आ रही क्या? मैंने कहा- यार, आरुषि ने ढंग से नहीं बताया कि कहाँ घूमने गए थे वो दोनों, तुझे पता है क्या? सचिन ने कहा- नहीं तो, मेरी बात तो नहीं हुई आकाश से, कल पूछ के बता दूंगा।
मैंने बोला- अभी पूछ ना यार, प्लीज मुझे नींद नहीं आएगी वरना! और मैं ज़िद करने लगी। सचिन ने कहा- अच्छा बाबा … पूछता हूँ।
उसने अपने मोबाइल की लीड लगाई और एक इयरफोन मेरे कान में और एक अपने कान में लगाया। उसने कहा- मैं फोन मिला रहा हूँ, तू चुप रहियो बस।
फिर उसने फोन मिलाया और कुछ देर उससे इधर उधर की बातें करी। फिर सचिन ने उससे पूछा- तू आज स्कूल क्यूँ नहीं आया, कहाँ घूमने गए थे तुम दोनों? आकाश ने बिना झिझके उसे सब बता दिया कि वो दोनों एक दोस्त के रूम पे गए थे और आज उन दोनों ने अपनी जवानी की आधिकारिक शुरुआत कर दी है।
सचिन थोड़ा सकपका गया मेरे सामने ये बात सुन के और फोन काटने को हुआ. पर मैंने उसका हाथ रोक दिया और इशारा किया कि चालू रखे बात को। आगे आकाश ने बताया कि कैसे उसने आरुषि के साथ सेक्स किया और लगभग हर बात विस्तार में बताई।
मैंने इस बात पर भी गौर किया कि सचिन के पजामे में हलचल भी शुरू हो गयी थी पर उसने टाँगें क्रॉस कर ली मुझसे छुपाने को।
फिर आकाश ने सचिन को बोला- भाई बहुत मजा आता है जब होंठ से होंठ रगड़ते हैं, जब नंगे जिस्म आपस में रगड़ खाते हैं, जब खड़ा लंड गर्म गर्म चूत में घुसता है पहली बार! जब धक्के लगते हैं तो लड़की की चीखें सुन के, उसकी सिसकारियाँ सुन के, मैं बता नहीं सकता कि कितना मजा आता है। मैं तो बोलता हूँ कि तू भी सेक्स कर ले किसी के साथ।
सचिन ने कहा- नहीं यार, मेरे पास कोई गर्लफ्रेंड नहीं है, मैं ऐसे ही ठीक हूँ। आकाश तुरंत बोला- गर्लफ्रेंड की क्या जरूरत है? इतनी सुंदर लड़की तो है तेरी बेस्ट फ्रेंड, सुहानी को ही चोद ले, तेरे पड़ोस में ही तो रहती है। गोल गोल गाल, बड़ी बड़ी आँखें, रेशमी से बाल, दूध की तरह गोरा जिस्म, ऊपर से अनचुदी है अभी तक, फुल मजा देगी।
मैं और सचिन दोनों ही सकपका गए ये सुन के … मेरे हाथ पैर ठंडे हो के सुन्न पड़ गए। सचिन भी बहुत नर्वस हो गया। हम दोनों ने कभी एक दूसरे के बारे में ऐसा नहीं सोचा था तो हम दोनों ही असहज महसूस कर रहे थे।
अब सचिन ने आकाश से कहा- नहीं यार, वो मेरी सबसे अच्छी दोस्त है, मैं उसके साथ ये सब करने का सोच भी नहीं सकता। उधर आकाश सचिन में और चाबी भरने में लगा था मेरे साथ सेक्स करने को, इस बात से अंजान की मैं सब सुन रही हूँ।
सचिन उसे टालता गया और बाद में बात जल्दी खत्म की और फोन काट दिया।
फोन कटते ही सचिन मुझे हकलाते हुए समझाने की कोशिश करने लगा पर मैं चुपचाप बिना बोले छज्जे से होती हुई अपने कमरे में आ गयी।
उस रात मुझे बहुत देर तक नींद नहीं आई, मैं बेड पे करवटे बदलती हुई पहली बार सचिन के बारे में सोच रही थी वो भी उस तरीके से।
अब नयी नयी जवानी ऐसी ही होती है, मन काबू में नहीं होता और उल्टे सीधे ख्याल आते रहते हैं और वैसे भी जितना सेक्स के बारे में लड़के सोचते हैं, उतना ही लड़कियां भी सोचती हैं, बस लड़के खुले आम ज़ाहिर कर लेते हैं और हम लड़कियां छुपाने में माहिर होतीं हैं।
मेरे मन में उत्तेजना भरे ख्याल भी आ रहे थे। शुरू में तो मैं ये सोच रही थी कि ‘नहीं नहीं … सचिन मेरा सबसे अच्छा दोस्त है, हम लोग आपस में सेक्स कैसे कर सकते हैं।’
अगले ही पल मैं सोच रही थी कि कैसा लगेगा जब मैं और सचिन एक-दूसरे के होंठों को चूमेंगे. कैसा लगेगा जब वो मेरे सामने नंगा खड़ा होगा और मैं उसके सामने नंगी हो जाऊँगी. कैसा लगेगा जब उसका मर्दाना अंग यानि लंड मेरी नंगी टांगों के बीच मेरी चूत में जाएगा।
यही सोच सोच के मेरा दिमाग घूम रहा था, मेरा जिस्म गर्माने लगा था और मेरा हाथ मेरी योनि को यानि चूत पे कब पहुँच गया और उसे सहलाने लगा मुझे पता ही नहीं चला और फिर मैंने गौर किया मेरी कच्छी भी गीली हो चुकी है।
फिर बाद में मैं सोचने लगी कि सचिन तो मेरे बारे में ऐसा नहीं सोचता, वो क्यूँ नहीं चोदना चाहता मुझे, क्या कमी है मुझमें? सब तो बोलते हैं कि मैं इतनी सुंदर और प्यारी हूँ. फिर सचिन क्यूँ नहीं कर सकता मेरे साथ सेक्स?
हम इतने अच्छे दोस्त हैं, इतने सारे काम एक साथ किए हैं, तो इसमें क्या बुराई है?
मैं उस वक़्त ख्यालों में खोयी हुई थी और वास्तविक दुनिया के नियमों को दरकिनार करते हुए अपनी काल्पनिक दुनिया में खोयी हुई बस सेक्स के बारे में सोच रही थी. वो भी अपने सबसे अच्छे दोस्त के साथ … ना की बॉयफ्रेंड या पति या कोई और!
मेरा सचिन से कोई भी प्रेम या रोमांस वाला लगाव नहीं था और हमेशा से ही उसे अपना अच्छा दोस्त ही समझती थी।
अगले 2-3 दिन मैं अपने-आप में ही कन्फ्यूज रही और सचिन से भी बहुत कम बात की। सचिन को ये लगने लगा कि मैं उस दिन की बात का बुरा मान गयी हूँ। उधर आरुषि और आकाश की चुदाई का किस्सा पूरी क्लास में फैल गया था।
कहानी जारी रहेगी. आपकी प्यारी सुहानी चौधरी [email protected]
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