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उसकी चूत पहले से ही बहुत पानी छोड़ रही थी और मेरा मुंह उस पर लगते ही वो और पागल हो गयी और कुछ देर चाटने के बाद वो ज़ोर से कसमसायी और अकड़ने लगी. उसका पानी छूट रहा था शायद … मेरे मुंह में ही उसकी चूत ने अपना सारा पानी उगल दिया और वो ढेर हो गयी।
क्या स्वाद था उसके पानी का … जैसी उसकी शरीर की खुशबू, वैसा ही उसके चूत के पानी का स्वाद … मज़ा आ गया। फिर भी मैं उसकी चूत चाटता रहा.
कुछ देर तक और वो वैसे ही पड़ी रही. लेकिन अब बारी मेरी थी.
वो कुछ देर बाद उठी, मेरा अंडरवीयर निकाला और मेरे लंड से खेलने लगी. मैंने उससे पूछा- पहले कभी लंड देखा है? उसने कहा- हाँ मूवी में देखा है. इतने नजदीक से पहली बार देख रही हूँ।
तो मैंने कहा- फिर चूसो इसे अपने मुँह में लेकर … बड़ा मज़ा आएगा. उसने कहा- मुंह में नहीं लूँगी बस जीभ से चाटूँगी. मैंने कहा- जैसे तुम्हारी मर्जी!
और उसने अपनी जीभ से धीरे धीरे मेरा लंड चाटना शुरू कर दिया. पहले शायद उसे अच्छा नहीं लगा लेकिन बाद में उसने थोड़ा थोड़ा मुंह में लेना शुरू किया और फिर कुछ देर बाद पूरा का पूरा लंड अपने मुँह में ले लिया और लोलीपॉप की तरह चाटने लगी।
वो शायद पहली बार लंड चूस रही थी लेकिन लग नहीं रहा था कि उसे लंड चूसना नहीं आता. क्या पकड़ थी उसके मुँह की मेरे लंड पर … वो ऐसे मेरा लंड चूस रही है जैसे उसे खा जाएगी. और अब तो मुझ पर भी खुमारी आ गयी थी.
मैंने उसका सर अपने हाथ से पकड़ा और उसका मुँह जमकर चोदने लगा. अब धीरे धीरे मेरी स्पीड बढ़ती जा रही थी और उसे भी मजा आ रहा था. अब मुझसे और कंट्रोल नहीं हो रहा था, मैंने कहा- मेरा गिरने वाला है, कहाँ लोगी, मुंह में या कहीं और? उसने कहा- मेरे बूब्स पे गिरा दो। मैंने कहा- एक बार टेस्ट तो करो, अच्छा लगेगा.
अभी हम बातें ही कर रहे थे, तब तक मेरा लावा फूट पड़ा. अपने वीर्य से मैंने उसका मुँह पूरा भर दिया और लंड उसके मुँह में ही डाले रहा जिससे मेरा रस उसके अंदर तक चला जाए. पहले तो उसने थोड़ा सा विरोध किया फिर बाद में वो सारा चाट गयी।
अब हम दोनों ही पस्त होकर एक दूसरे के अगल बगल लेट गए और एक दूसरे के शरीर से खेलने लगे।
इतने के बाद मैंने सोचा क्यों ना थोड़ा रोमांच लाया जाए।
मैंने फ्रिज से आइसक्रीम निकाली और बेड पर चला गया. आइसक्रीम को किनारे रखकर मैंने वाइन की बोतल खोली और उपासना के बगल में बैठ के पीने लगा. वो अभी भी लेटी हुई थी और मेरी तरफ बड़ी ही प्यार भरी नज़रों से देख रही थी.
मैंने उसे टोकते हुए कहा- क्या बात है आज बड़ा प्यार आ रहा है मुझ पर? वो मुस्कुराई लेकिन कहा कुछ नहीं और उठ कर बैठ गयी।
अब समय था रोमांच का … पहले मैंने वाइन से अपना पूरा मुंह भरा और और उसके होंठों की चूमते हुए उसे सारी वाइन पिला दी. फिर बोतल उठा कर उसके मुंह में धीरे धीरे गिराने लगा. उसका मुंह खुला हुआ था, थोड़ी वाइन उसके मुंह के अंदर जा रही थी और आधी से ज़्यादा वाइन उसके मुंह से बाहर निकल कर उसकी चूचियों से होते हुए उसके पेट, फिर नाभि को छूते हुए उसकी चूत पे जा कर गिर रही थी।
क्या नज़ारा था वो … मानो उसके मुंह से झरना गिर रहा हो मुझे मदहोश करने के लिए। मैंने अपना मुंह उसकी चूत के पास लगा दिया और और सोमरस के साथ साथ उसके चूत रस का भी पान करने लगा।
सच में बड़ा ही अच्छा और अलग स्वाद था उस शराब का जो उपासना की चूत में से होते हुए मेरे मुंह में जा रही थी। मैं तो ऐसी कल्पना में खोया हुआ था उस वक़्त … मानो मैं स्वर्ग में हूँ और कोइ बहुत ही खूबसूरत अप्सरा अपने चूतनुमा बर्तन से मुझे शराब पिला रही हो.
फिर मैंने वाइन की बोतल को किनारे रखा और चाट चाट कर सारी वाइन उसके शरीर से साफ कर दी. फिर मैं उसकी चूचियों से खेलने लगा. अब वो भी फिर से मदहोश होने लगी थी और मेरे बालों में बड़े ही प्यार से अपनी उँगलियाँ फेर रही थी.
अभी कुछ ही देर हुई थी, मैं उसके बदन से खेल रहा था कि उसने मुझे धक्का देकर नीचे कर दिया और खुद मेरे ऊपर आ गयी और मेरे होंठों को और सीने पर पागलों की तरह चूमने लगी. चूमते चूमते ही उसने हाथ बढ़ा कर आइसक्रीम का कटोरा उठाया और मेरी जांघों के पास चली गयी और मेरे लंड को जो अर्धनिद्रा में था, अपनी मुट्ठी में लेकर हिलाने लगी.
सच बताऊँ तो मुझे बहुत मज़ा आ रहा था लेकिन मुझे ये नहीं पता था कि वो आगे क्या करने वाली है. अभी मैं इसी सोच में था कि मुझे मेरे लंड पे कुछ ठंडा महसूस हुआ. मैंने देखा तो वो उस पर आइसक्रीम लगा रही थी। अभी मैं कुछ समझता, तब तक मेरा आधा लंड उसके मुंह में था.
यह बात तो मेरे दिमाग में ही नहीं आई थी क्योंकि कुछ देर पहले उसने इसी काम के लिए मना किया था। मैंने आश्चर्य भरी नज़रों से उसे देखा तो उसने कहा- जान, तुम्हें जिसमें खुशी मिले मैं वो हर काम करूंगी. मैंने आज से आपको अपना पति मान लिया है. मेरी शादी चाहे किसी से भी हो, मेरे पति हमेशा आप ही रहोगे. आज से जो मेरा है वो आपका है, मेरा दिल मेरा शरीर और ये घर भी। आप जब चाहो यहाँ आओ, जितने दिन चाहो यहाँ रहो, मुझे प्यार करो. बस मुझे अपने दिल में जगह दो. मैं आज सब कुछ होने से पहले चाहती हूँ कि आप मेरी मांग भरो।
मैं स्तब्ध एकटक उसको सुन रहा था. मैं क्या कहूँ … मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था. फिर भी मैंने कहा- मैं तुम्हारी मांग भर भी दूँ और कभी तुम्हें प्यार नहीं दे पाया या तुमसे अलग हो गया तो क्या होगा?
उसका बड़ा ही साधारण सा उत्तर पाकर मैं सोचने लगा कि ये इसी लोक की है या कहीं और से आई है. खैर उसका उत्तर था ‘जान तुम मेरे साथ शारीरिक रूप से भले ही ना रहो … मेरे दिल में, मेरे दिमाग में, मेरी यादों में हमेशा ही रहोगे. लेकिन अगर तुम कहीं जाना चाहो तो तुम आज़ाद हो, मेरी तरफ से तुम कोई भी रोक टोक, बंदिश, पाबंदी कुछ भी नहीं होगी।’
मैं उठा और उसे अपनी बांहों में भर कर चूम लिया और कहा- ठीक है जान, जैसा तुम कहो।
फिर वो उठ कर गयी और एक छोटी सी सिंदूर की डिबिया ले कर आई और मेरे सामने बढ़ा दी. मैं भी उसे लिया और उसमें से सिंदूर निकाल कर उसकी मांग भर दी।
मैंने जैसे ही उसकी मांग भरी, वो मुझसे लिपट गयी. उसकी आँखों में आँसू थे. मैंने उसका चेहरा अपने हाथों में लेकर उसके आँसू पौंछे और पूछा- क्या हुआ? उसने कहा- कुछ नहीं … आज मेरी ज़िंदगी का सबसे बड़ा दिन है. ये खुशी के आँसू हैं.
उसके बाद वो मुझे दीवानों की तरह चूमने लगी और चुम्बन करते करते उसने मेरे शरीर पर कई लव बाइट भी दे दिये.
और फिर से मुझे बिस्तर पे धकेल कर मेरा लंड पकड़ा और उसे पूरा अपने मुंह में ले लिया और चूसने लगी, कभी ऐसे ही तो कभी आइसक्रीम लगा के। अब मुझसे सहन नहीं हो रहा था तो मैंने उसे बिस्तर पर खींचा और कहा- क्यों पत्नी जी, अब सुहागरात मनाई जाए या रात भर यही करने का इरादा है? वो थोड़ा शरमाई और मुझे किस करने लगी.
मैंने उसे एक बगल में लिटाया और उसके पूरे बदन को चूमते चाटते हुए उसकी चूत पर जा पहुंचा. उसकी चूत के दाने को अपने होंठों में लेकर चूसने लगा. और वो भी अपनी गांड उठा उठा कर अपनी चूत चुसवा रही थी। चूत के दाने को मैं मुंह में लेकर चूस रहा था और अपने एक उंगली से उसके छेद को सहला भी रहा था. सहलाते हुए कई बार मैंने अपनी उंगली उसके चूत में डालने की कोशिश की मगर उसने ऐसा करने नहीं दिया, शायद उसे दर्द हो रहा था।
अब उससे बर्दाश्त नहीं हो रहा था जिसका उसकी सिसकारियों से पता चल रहा था, अब वो पागल सी होती जा रही थी और अपने दोनों हाथों से मेरा सर पकड़ कर अपनी चूत में ऐसे दबा रही थी जैसे मुझे ही अपने अंदर समा लेगी.
अब जब उससे नहीं रहा गया, तब उसने कहा- प्लीज बाबू, अब मत तड़पाओ, अब नहीं रहा जाता, अब डाल दो अपना लंड मेरे अंदर जान … चोद दो मुझे, अपनी पत्नी को अब पूरी तरह से अपना बना लो शोना। वो जैसे जैसे चिल्ला रही थी, मैं वैसे ही और तेज़ उसके दाने को रगड़ रहा था.
अब लग रहा था कि लोहा गर्म है … अब देर नहीं करनी चाहिए. तो मैं उठ कर उसकी जांघों के बीच आ गया और उसकी दोनों टाँगों को फैला कर बीच में बैठ गया. अपने लंड को उसकी बुर के ऊपर रखा. मेरे रखते ही मानो उसके बदन में बिजली दौड़ गयी।
अब मैंने धीरे धीरे अपने लंड से उसकी चूत के दाने को रगड़ते हुए चूत के मुंह पे लगा दिया और हल्का सा धक्का दिया. पर शायद उसका छेद बहुत छोटा था इसलिए मेरा लंड फिसल कर किनारे हो गया. मेरे दो तीन बार कोशिश करने के बाद भी मैं उसके चूत में अपना झण्डा नहीं गाड़ पाया।
अब रहम करने की बारी नहीं थी. आखिर दर्द तो उसको वैसे भी होता … लेकिन बिना मतलब के कोशिश करने का कोई फायदा नहीं था. इसलिए मैंने अपना लंड उसके चूत के मुंह पर सेट किया और उसके ऊपर लेट कर उसके होंठों को अपने होंठों से लॉक कर दिया और किस लेने लगा. जब उसका पूरा ध्यान चुम्बन की तरफ था, तभी मैंने एक ज़ोर का धक्का उसकी चूत में मारा. मेरे लंड का सुपारा उसकी बुर में जा चुका था.
उपासना तड़पने लगी और अपने आप को मुझसे छुड़ाने की नाकाम कोशिश करने लगी. लेकिन मुझे पता था कि ऐसा ही होने वाला है तो मैंने अपनी पकड़ उस पर पहले से ही मजबूत रखी थी कि वो छुड़ा न सके. उसकी हालत अब जल बिन मछली जैसी हो गयी थी, उसकी आंखों से आँसू छलक उठे थे, लग रहा था कि उसे बहुत दर्द हो रहा था जो उसके चेहरे से जाहिर हो रहा था। इसलिए मैं भी वहीं रूक गया और उसके आंसुओं को अपने होंठों से साफ करने लगा. फिर एक प्यारी सी और लंबी किस में हम दोनों लिप्त हो गए.
मुझे लगा जैसे अब उसका दर्द कुछ कम है, वो अपनी गाँड को भी थोड़ा थोड़ा हिला रही है तो फिर से उसे किस करते हुए उस पर पकड़ बनाई और फिर एक ज़ोर का धक्का उसकी बुर में मारा और मेरा आधा लंड उसके बुर को चीरता हुआ उसमें घुस गया.
उसी के साथ वो बहुत तेज़ चीख उठी- ऊईई ईईई म्मम्मम्म माँ आ … मरर र र गईई ईई … प्लीज बाआआ हरर निकालो ओ ओ ओ इसे। साहिल अब नहीं रहा जा रहा … मर्र र्र र्र जाऊँगी … ज़ ज़ छो ओ ओ ड़ दो बा आ बूउउ.
लेकिन उसकी बातों को अनसुना करते हुए मैं एक ज़ोर का धक्का और मारा और अपना लंड उसके चूत में अंदर तक घुसा दिया और शांत हो गया. ऐसा लग रहा था जैसे अब वो बेहोश हो जाएगी. उसकी आँखें उल्टी होने लगी.
अब मैं अपने आपको कंट्रोल करते हुए उसे चूमने और और उसकी चूचियों को सहलाने लगा। बड़े ही प्यार से उसके चूचियों के साथ करीब 10 मिनट तक खेलता रहा … तब जाकर ऐसा लगा कि अब वो नॉर्मल हो रही है. उसने अपनी बांहों का हार मेरे गले में पहना दिया.
अब भी मुझे जल्दबाज़ी नहीं करनी थी. मैंने पूछा- जान अब ठीक लग रहा है? पर वो कुछ बोली नहीं और बस इशारे में जवाब दिया कि हाँ अब ठीक है.
अभी भी मैं उसे चूम और चाट ही रहा था. तभी उसकी कमर में हरकत हुई और मैं समझ गया कि मेरी माल अब चुदने के लिए तैयार है। अब देरी ना करते हुए मैंने धीरे धीरे अपने लंड को गति दी, मैं उसे पहले बहुत धीरे धीरे चोद रहा था.
लेकिन कुछ देर बाद उसने मुझसे कहा- अब सब ठीक है, अब जैसे चाहते हो, चोदो मुझे। मैंने पूछा- क्यों दर्द नहीं रहा क्या? “जो होना था … हो गया. अब बस तुमसे रात भर चुदना है।”
उसका जवाब मिला मुझे और फिर मैंने अपनी स्पीड धीरे धीरे बढ़ानी शुरू कर दी। अब उसको भी मज़ा आने लगा था वो भी अपनी गांड को पूरे ज़ोरों से हिला कर मेरा साथ दे रही थी. जैसे जैसे मेरी स्पीड बढ़ रही थी, वो उतनी ही जोश में आती जा रही थी.
और सोने पे सुहागा … उसकी बातें भी वाइल्ड होती जा रही थी. इतना खुलकर उसे बोलते मैंने अभी तक नहीं सुना था.
लेकिन वो कहते हैं ना … जब सेक्स का जादू चढ़ता है, अच्छे अच्छे बदल जाते हैं। वैसी ही हालत उसकी भी थी. मेरे हर धक्के के साथ वो चिल्लाये जा रही थी- हाँ ह हाँ … और ज़ोर से हाँ … साहिल आज मुझे पूरी अपनी बना लो, बुझा दो मेरी प्यास … चोदो और ज़ोर से प्लीज! और ऐसे ही चिल्लाते हुए वो अकड़ने लगी और झड़ गई.
लेकिन मेरा जोश और बढ़ता जा रहा था और उसी के साथ मेरे धक्के भी अब उससे सहन नहीं हो रहे थे। फिर भी मैं धक्के लगाता रहा और करीब 5 मिनट बाद ऐसा लगा कि अब मेरा पानी भी निकलने वाला है. तो मैं अपने पूरे जोश में आ गया और खूब तेज़ तेज़ धक्के मारने लगा.
अब तो उसका बहुत बुरा हाल हो चुका था. अब तक वो एक और बार तैयार हो चुकी थी और ज़ोरों से चुद रही थी. मेरे हर धक्के का जवाब भी उतनी ही तेज़ दे रही थी जितनी तेज़ मेरे धक्के थे। मेरे अंदर का तूफान आ चुका था, मैंने उससे पूछा- कहाँ निकालूं? उसने कहा- अब मैं तुम्हारी हूँ, जहां मन करे, निकाल दो!
और इतना कहते ही मैं और वो एक ही साथ झड़ने लगे. मैंने अपनी मलाई से उसकी पूरी चूत को लबालब कर दिया और उसके ऊपर पस्त हो गया।
हम दोनों एक दूसरे की बांहों में थे और एक दूसरे को प्यार से थामे हुए थे।
कुछ देर गुजरने के बाद मैंने कहा- जान भूख लगी है! तो वो उठी जा कर कुछ खाने को और बीयर की बोतल लेकर आई. हम दोनों ने खाना खाया और बीयर भी पी और एक साथ लेट गए और फिर गुंथ गए एक दूसरे में।
उस रात हमने 3 बार चुदाई की और थक कर एक दूसरे के गले में बांहें डाले सो गए।
दूसरे दिन जब हमारी आँख खुली तो दिन के 11 बज रहे थे. टेंशन तो कोई थी नहीं क्योंकि ऑफिस नहीं जाना था. हम उठे, मुंह धोया और नाश्ता किया और एक दूसरे के बगल में बैठे बातें करने लगे. हम इतने पास थे कि हमारी साँसें आपस में टकरा रही थी.
और फिर से मुझे सेक्स का खुमार चढ़ने लगा, मैंने तुरंत ही उसको बालों से पकड़ कर खींचा और उसके होंठों से होंठों को सटा दिया. मैंने एक जोरदार चुम्बन किया. मेरी ऐसे हरकत के लिए वो अभी तैयार नहीं थी, फिर भी नॉर्मल होकर वो बोली- इरादे नेक नहीं लग रहे जनाब के!
मैंने कहा- मुझे तुम्हें फिर से मसलने का मन कर रहा है. उसने कहा- हाँ तो मसलो ना … रोका किसने है।
उसके इतना कहते ही मैं उस पर टूट पड़ा और अभी तक उसने जो ब्रा और पैंटी पहनी थी, उसे उसके शरीर से अलग करके उसके ऊपर छा गया और उसके चूचियों को मसलने लगा.
मैं अपना मुंह उसके बुर पर लगाकर उसे चूसने और काटने लगा. मेरी हर हरकत पर उसकी आह निकल जा रही थी. अब वो भी गर्म हो चुकी थी. मैंने भी न देर करते हुए उसके बुर में अपना लंड एक ही झटके में जड़ तक उतार दिया.
शायद उसे भी अब आदत हो गयी थी इसलिए उसे ज़्यादा दर्द नहीं हुआ और वो भी मजे से अपने चूतड़ उठा उठा कर चुदवाने लगी. अब मैंने भी अपनी रफ्तार काफी तेज़ कर दी और चोदने लगा उसे हैवान की तरह!
थोड़ी देर बाद हम दोनों ने ही एक दूसरे के ऊपर अपना पानी उगल दिया। हम दोनों की ही साँसें उखड़ी हुई थी.
जब तूफान ठहरा तब उसने कहा- तुम तो ऐसे मुझे चोद रहे थे जैसे मेरी जान ही निकाल दोगे। मैंने कहा- क्या करूँ … अपनी पत्नी को चोद रहा हूँ किसी और को नहीं!
हम दोनों ही हंसने लगे और फिर उसके हम बाथरूम चल दिये फ्रेश होने!
वहाँ भी फिर एक बार तूफान आया और फिर हम फ्रेश हो कर निकले.
मैं उस दिन भी वहीं रुक गया और उस रात उसको मैंने 3 बार चोदा।
सोमवार के दिन उसकी हालत ऐसी थी कि वो चल भी नहीं पा रही थी. मैंने कहा- आज ऑफिस नहीं जाते हैं, आराम करते हैं. तो उसने कहा- नहीं यार … मेरा मैनेजर नाराज़ होगा.
फिर कुछ देर समझाने के बाद वो मान गयी। उस दिन भी हमारे बीच 2 बार सेक्स हुआ था। उसी दिन शाम को मैं मेडिकल की दुकान जाकर उसके लिए कुछ पेनकिलर लेकर आया और उसे खाना खिला कर एक गोली खिला दी और दोनों एक दूसरे की बाँहों में सो गए।
फिर रात में हमारे बीच सब्र का बांध टूट गया और हम एक दूसरे में लिप्त हो गए। अब तो वो भी पूरी चुदक्कड़ हो गयी थी मैं न भी कहूँ तो मेरे लंड से खेलने लगती थी।
ऐसा करते करते 10 दिन बीत गए और मैं अपने रूम पर तक नहीं गया वहीं उसके साथ था। हम वहाँ एक साथ रहते थे, एक साथ ऑफिस जाते थे और एक साथ सब चीजें एंजॉय करते थे। हम वहाँ एकदम पति पत्नी की तरह रहते थे। और वो ऑफिस भी जाती तो एकदम दुल्हन की तरह सजधज के। मुझे किसी से भी मिलाती तो कहती- ये मेरे पति हैं।
हमें ऐसे रहते 6 महीने बीत गए. जब भी उसके घर से कोई आता तो मैं अपने रूम पे चला जाता. समय निकाल कर वो भी मेरे रूम पर चली आती और हम एक दूसरे में लिप्त हो जाते, हमारे बीच चूत लीला शुरू हो जाती.
ऐसा करते करते हमें करीब एक साल हो गया। सब कुछ सही चल रहा था तभी एक दिन अचानक वो ऑफिस से घर जल्दी चली गयी और जब मैं घर पहुंचा तो घर पर भी नहीं थी. काफी ढूँढने के बाद मुझे उसका एक नोट मिला कि वो अपने घर जा रही है, एक एमेरजेंसी है और वो घर पहुँचकर वो फोन करेगी।
करीब दो दिन बीत गए लेकिन उसका कोई फोन नहीं आया, मुझे कहीं भी अच्छा नहीं लग रहा था. चौथे दिन मुझे उसका फोन आया और उसकी आवाज़ सुनकर मेरे जान में जान आई।
लेकिन वो कुछ उदास लग रही थी. मेरे कई बार पूछने पर उसने बताया कि उसके घर वालों ने उसकी शादी तय कर दी है और वो शायद अब दिल्ली कभी नहीं आ पाएगी। उसने कहा- कोई बात नहीं, मेरी शादी चाहे किसी से भी हो जाये, मेरे पति तो सिर्फ तुम्ही रहोगे, मेरा शरीर उसका होगा लेकिन मेरी आत्मा सिर्फ और सिर्फ तुम्हारी होगी।
अब हम फिर फोन पर बातें करने लगे और एक दूसरे से मिलने को तड़पने भी लगे.
ऐसा करते करीब 2 महीने बीत गए और फिर उसने मुझे एक आश्चर्यचकित कर देने वाली बात बताई कि वो मेरे बच्चे की माँ बनने वाली है। मैंने पूछा- कैसे? तो उसने बताया- जब अंतिम बार हमारे बीच में सेक्स हुआ था तो मैंने उसके बाद कोई दवा नहीं ली थी क्योंकि मुझे पहले से ही पता था कि मेरी शादी की बात कहीं और चल रही है और हमारी शादी सम्भव नहीं है. तभी मैंने फैसला कर लिया था कि मुझे तुम्हारी निशानी चाहिए और इसीलिए मैंने ये सब किया।
फिर हमारी कुछ और दिन बात हुई और फिर हम हमेशा के लिए अलग हो गए।
आज मुझे उससे अलग हुए तीन साल हो गए है लेकिन आज भी जब मैं अकेला होता हूँ तो मुझे उसकी याद तड़पा के चली जाती है। ऐसा लगता है वो यहीं कहीं मेरे आसपास ही है और अभी कहीं से आकर मुझे अपने गले से लगाकर बोलेगी- बाबू आई लव यू शोना। पर यह महज़ एक ख्याल है. फिर भी इंतज़ार है कि कभी तो शायद वो आएगी और फिर से मुझसे लिपट कर मेरी हो जाएगी।
यहीं अपनी लेखनी को विराम देते हुये आप सभी पाठकों से निवेदन है कि आपको मेरी रचना पसंद आई या नहीं, मुझे लिखना ना भूलें. साथ ही भाभियों और आंटियों से अनुरोध है कि अगर उनको मेरी इस कहानी में कहीं भी अपनी कोई छाप मिलती है तो अपने विचार मुझे ईमेल ज़रूर करें. अगर मुझसे कुछ बातें करके अपना अनुभव बांटना चाहती हैं तो मुझे लिखना न भूलें। मुझे आपके पत्रों का इंतजार रहेगा।
इसी के साथ आप सभी पाठकों का सहृदय धन्यवाद। आपके पत्रों की प्रतीक्षा में आपका अपना विंश शंडिल्य। [email protected]
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