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आगे की कहानी दोस्तों..
मैं गूगल मैप की सहायता से अदीला के घर के सामने पहुँचा। ये तीन मंझिला इमारत थी। मैंने बाहर पहुँच कर अदीला की अम्मी को फोन किया, वो बोली फर्स्ट फ्लोर पर आ जाओ। मैंने फर्स्ट फ्लोर पर पहुँचा ,मेरे बेल बजाने से पहले ही दरवाजा खुल गया।
सामने एक बेहद खूबसूरत महिला खड़ी थी, जो हूबहू अदीला जैसी लग रही थी। केवल फर्क ये तो ये बहुत गोरी थी, और उम्र में अदीला से थोड़ी बड़ी लग रही थी।
मैं- जी मैं नीरज, अदीला की अम्मी हैं क्या?
महिला- जी आइये, मैं ही अदीला की अम्मी हूँ। मेरा नाम नाज़नीन है।
मैं- जी मज़ाक मत करिए, आप तो अदीला की बड़ी बहन लग रही हैं
(दोस्तों ये मैं उनसे सच कह रहा था)
नाज़नीन- अरे नहीं, ये आपका बड़पन है। आप बैठिए। उसने सोफे की ओर इशारा करते हुए कहा।
मैं- जी।
मैं सोफे पर बैठ गया।
थोड़ी देर में वो शर्बत ले आई।
मैंने शर्बत पिया। वो बगल वाले सोफे में बैठ गई। सोफा एल टाइप था। बीच मे कांच की कॉफ़ी टेबल थी। जिस पर एक फूलदान लगा था। सामने एक बड़ी सी तस्वीर थी।
जिसमे अदीला, नाज़नीन एक अधेड़ उम्र का शख्स, दो नोजवान और एक लड़की थी।
मैं शर्बत पीते पीते तस्वीर को देख रहा था।
नाज़नीन- आपको घर मिलने में कोई तकलीफ तो नहीं हुई।
मैं- जी नहीं, आपने सही लोकेशन भेजी थी।
मैं अभी तक ये निश्चित नहीं कर पा रहा था कि मैं अदीला की अम्मी को क्या सम्बोधित करूँ, क्योंकि वो अदीला की अम्मी की उम्र जैसी नहीं लग रही थी। तो मैंने सोचा मैडम ही बोलता हूँ।
नाज़नीन- जी टेक्नोलॉजी का ये तो फायदा है।
मैं- जी मैडम ।
नाज़नीन – अरे ये मैडम क्यों बोल रहे हैं। आप मुझे नाज़नीन कह सकते हैं, या आपा बोल सकते हैं।
मैं- जी बेहतर , आपा ये तस्वीर में कौन कौन हैं।
नाज़नीन-ये अदीला के अब्बू, ये मैं , अदीला ये मेरा बड़ा बेटा खालिद, ये छोटा रहमान , और सबसे छोटी बेटी आसमा।
मैं- तो ये सब लोग कहाँ हैं?
नाज़नीन – अदीला के अब्बू और ख़ालिद सऊदी में हैं। रहमान का मन पढ़ाई में नहीं लगता था तो उसे एक मोबाइल की दुकान दे दी वही है ,अब रात को 10 बजे के बाद आएगा।
आसमा ऊपर चाची के पास । उसके शौहर और बेटा भी सऊदी में हैं। दो बेटी हैं वो आजकल नानी के यहाँ गई है।
और अदीला का तुम्हे पता ही है वो बेंगलुरु में है।
मैं- आप तो बहुत खुशकिस्मत हैं। सब लोग सही जगह पर हैं।
नाज़नीन – हर खुशी सबको कहाँ मिलती है।
मैं- आप ऐसा क्यों बोल रही हैं।
नाज़नीन – कुछ नहीं , अपना अपना नसीब, अरे मैं बातों में आपको चाय पूछना ही भूल गई।
मैं- अरे नहीं। ये आपका पार्सल। अब मैं निकलता हूँ।
नाज़नीन – अरे ऐसे कैसे , मैने आपके लिये बिरयानी बनाई है, वो तो खाकर ही जाने दूँगी। अभी दम पर है, आधे घण्टे में तैयार हो जाएगी।
मैं- अरे आपको इतनी तकलीफ करने की क्या ज़रूरत थी।
नाजनीन- अरे इस मे तकलीफ कैसे, मुझे तो इसमें खुशी मिलती है।
(आगे बढ़ने से पहले मैं आपको नाजनीन के बारे में बता दूँ।
जैसा कि मै पहले ही बता चुका हूँ कि दिखने में वो बिल्कुल अदीला जैसी थी।बस रंग उसका एकदम गोरा था। बाल लंबे थे जो कूल्हे तक आ रहे थे। हल्की गुलाबी रंग की लिपस्टिक लगा रखी थी।
उसने एक प्रिंटडे कुर्ती पहनी थी औऱ काली लेगिंग। बूबस लगभग 36 तो होंगे ही। बड़े बड़े चूतड। उसकी कुर्ती के ऊपर के दो बटन खुले थे, जिससे उसके उरोजों की गहराई के दर्शन हो रहे थे। गले मे एक सोने की चैन , कानो में भी सोने की रिंग्स थे )
नाज़नीन- तो आप अदीला को कैसे जानते हैं?
वो 10-15 मिनट ऐसे ही कुछ पूछती रही और मैं भी इधर उधर की बात पूछता रहा। फिर मैंने पूछा
मैं- आपा, आपका इतना अच्छा परिवार है फिर आपने ऐसा क्यों कहा, सबको सब कुछ नहीं मिलता।
नाज़नीन – अरे रहने दो अब तो ये उम्र भर का है।
मैं- अरे बोल दो आपा, बोलने से दिल हल्का होता है।
नाज़नीन- ये बात तो ठीक है, मग़र ये बात आप अदीला को भी नहीं बताओगे।
मैं- जी ये हमारे बीच रहेगा।
नाज़नीन उठकर मेरे बगल में बैठ गई, मग़र हमारे बीच मे जगह थी।
नाज़नीन- मैं लखनऊ से हूँ, जब मैं 18 साल की थी तभी मेरा निकाह फ़िरोज़ से हो गया, और मैं हैदराबाद आ गई।
तब हम इस घर मे नहीं रहते थे।
इनका पुस्तैनी घर है वहीं। सब अच्छा था , घर के लोगों से मुझे बहुत प्यार मिला। सब कहते थे फ़िरोज़ का नसीब खुल गया जो चाँद से बीबी मिली है।
फ़िरोज़ भी मुझसे बहुत प्यार करते हैं। एक साल बाद अदीला पैदा हुई। उसके बाद ख़ालिद हुआ।
फिर इनका कुवैत का वीसा लग गया। हम सब बहुत खुश हुए। अब साल में ये एक बार आते ,पहले तो सब ठीक था मगर धीरे धीरे इनकी कमी खलने लगी।
पिछले 23 साल से ऐसा ही चला आ रहा है। दो साल पहले ये कुवैत से सऊदी चले गए। तब से अभी तक आये नहीं।
ये बोलते हुए उनकी आँखों में आँसू थे ।
मैं उनके पास सरका और उनके हाथों में हाथ रखकर बोला। आप दिल छोटा मत कीजिए, वो जल्दी आएंगे।
नाज़नीन- जानती हूँ, मग़र आएंगे तो एक महीने के लिये। पता नहीं पहले ऐसा नही था मगर कुछ सालों से उनकी कमी ज्यादा महसूस हो रही है।
मैं समझ गया कि इनको चुदाई की तलब लगी है। मुझे लगा थोड़ी कोशिश करूँगा तो आज एक और चुदाई का मौका मिल सकता है। मैंने नाज़नीन का मन टटोलने के लिये उसकी जांघ पर हाथ रखा।
मैं – आप फिक्र मत करिए। वक़्त सबकुछ ठीक कर देगा।
नाज़नीन – क्या ठीक कर देगा , जब उम्र ही चली जायेगी तब क्या फायदा।
मैं धीरे धीरे उसकी जांघ पर हाथ फेरने लगा। उसने कोई विरोध नहीं किया तो मेरी हिम्मत बढ़ गई।
मैं- आपा, आपने मुझे आपा कहने के लिये बोला, मैं आपके छोटे भाई जैसा हो गया। मेरे रहते आपको फिक्र करने की कोई ज़रूरत नहीं।
नाज़नीन- नीरज तुम मेरी मदद नहीं कर सकते। कोई भी मेरी मदद नहीं कर सकता।
उसकी आँखों से आँसू बहने लगे।
मैंने उसके आँसू पोछें, और मैने एक दम से नाज़नीन का सर पकड़ा, और उसके गुलाब सी पंखुड़ियों की तरह नाज़ुक होंठो पर अपने होंठ रख दिये। वो एकदम से सकपका सी गई। उसने मुझे पीछे किया।
नाज़नीन – ये ठीक नहीं। ये ठीक नहीं। बिरयानी बन गई होगी। मैं बिरयानी लाती हूँ।
वो उठकर किचन में चली गई। उसके शब्द कुछ और बोल रहे थे, और आँखे कुछ और।
मैं ये मौका खोना नहीं चाहता था, मैं पीछे पीछे चला गया। वो स्टोव पर पतीले में बिरयानी चेक कर रही थी।
मै पीछे से नाज़नीन को निहारने लगा। उसके कूल्हे तक आते काले बाल।उसकी मस्त गाँड़ जैसे मुझे आमंत्रित कर रही हो आओ अपना लन्ड मुझ में गुस्सा दो। ये सोच के ही मेरा लन्ड पेंट में सख्त हो गया।
मैं पीछे से गया और उसकी कमर को बाँहो में जकड़ लिया, वो एक दम से चौंक गईं।
नाज़नीन – ये तुम क्या कर रहे हो, ये ठीक नहीं।
मैं धीरे से उसके कान में बोला , आप ने मुझे छोटा भाई बोला, तो मेरा फ़र्ज़ है आपा की तकलीफ को कम करना।
ये बोल के मैंने उसके कान को हल्के से काटा, फिर जीभ से उसे चाटने लगा।
नाज़नीन ने आँखे बंद कर ली , वो बोली- ये ठीक नहीं, ये ठीक नहीं।
मैं अब तक उसकी गर्दन पर आ गया, उसकी गोरी गर्दन को मेरे होंठ और दाँत गुलाबी कर रहे थे ,और प्यार की निशानी छोड़ रहे थे। अब तक मेरे हाथ उसकी छाती की ऊँचाई नापने लगे थे।
मेरा कड़क लन्ड उसकी गाँड़ से रगड़ रहा था। नाज़नीन की आँखे अब तक बंद थी। मैंने अपने एक हाथ से जीन्स की जीप खोली और अपने लन्ड को आजाद किया।
अब नाज़नीन मेरे लन्ड को और ज्यादा महसूस कर रहा था। उसकी बढ़ती हुई धड़कन मुझे महसूस हो रही थी। मैंने उसकी कुर्ती को थोड़ा ऊपर उठाया ,उसकी काली लेगिंग से उसकी पैंटी साफ महसूस हो रही थी।
मैं ने उस पर अपना लन्ड रगड़ने लगा। और दोनों हाथों से उसके उरोजों को टटोलने लगा। मेरे होठ अपने काम पर लगे हुए थे। अब नाज़नीन का सब्र जवाब देने लगा था। उसने अपना एक हाथ पीछे किया और मेरा लन्ड सहलाने लगी।
उसके हाथ के स्पर्श से मेरा लण्ड और सख्त हो गया। थोड़ी देर बाद मैंने उसे अपनी तरफ पलटाया और मैंने अपने गरम होंठ उसके नरम होंठो पर रख दिये। नाज़नीन ने अब तक एक बार भी आँखे नहीं खोली थी।
मैं उसके निचले होंठो को चुसने लगा। उसके मस्त चुचे मेरी छाती में गढ़ रहे थे। मेरा कड़क लन्ड उसकी नाभी को छू रहा था। मेरे हाथ उसके लेगिंग के अंदर जाकर उसके चूतड़ों से खेल रहे थे।
मेरे हाथ धीरे धीरे आगे बढ़े, उसकी पैंटी में गीलापन मेरी उंगलियों में महसूस हो रहा था। आखिर नाज़नीन ने चुपी तोड़ी।
नाज़नीन- नीरज मुझसे अब बर्दास्त नहीं होता। बहुत दिनों से प्यासी हूँ, डाल दो अपना।
मैने नाज़नीन को छेड़ते हुए बोला, क्या डाल दूँ औऱ कहाँ डाल दूँ।
नाज़नीन के गाल गुलाबी हो रहे थे।
वो बोली- अपना लन्ड मेरी चूत में डाल दो।
मैं- हाय आपके मुँह से ये सुनकर मज़ा आ गया।
मैंने उसे एक झटके से फिर पलटाया , उसने अपने हाथ काउंटर पर टिका दिये। मैंने उसकी लेगिंग पेंटी समेत नीचे उतार दी। उसका गाँड़ का छेद और चूत मेरे सामने आ गई।
उसकी चूत बहुत गीली थी। सच मे बहुत दिनों की प्यासी।
मैं झुका और उसके निचले दरवाजे पर अपनी जीभ से दस्तक दी। मेरी दस्तक से नाज़नीन की आह निकल गई।
नाज़नीन- आज तक मेरे शौहर ने कभी मेरी चूत को नहीं चाटा।
मैं उसकी चूत को चाटने लगा, फिर मुझे लगा कहीं ये मेरे चाटने से ही ना झड़ जाए।
मैं खड़ा हुआ, और अपना लन्ड उसकी चूत में टिका दिया, उसके घने बालों में भी उसका छेद दिख रहा था। फिर मैं धीरे धीरे अपना लन्ड अंदर डालने लगा। नाज़नीन की सिसकियां अब तेज हो रही थी।
फिर मैंने अपना पूरा लन्ड अंदर डाल दिया। मैं लन्ड अंदर बाहर करने लगा।
नाज़नीन- आह आज कितने साल बाद मेरी चूत में कुछ गया है। नीरज मेरी प्यास बुझा दे।
मैं- आपा जान आप फिक्र ना करो मैं आपकी चूत की ऐसी सेवा करूँगा की आप कभी नहीं भूलेंगी।
मैने धक्कों की रफ़्तार थोड़ी तेज किये एक मिनट बाद ही,
नाज़नीन- आह नीरज मुझे हो रहा है मुझे हो रहा है आह आह हाँ आह।
उसका बदन काँपने लगा और वो झड़ गई, मैंने फिर भी चोदना जारी रखा , उसकी टाँगे कांप रही थी। मैंने उसे वहीं फर्श पर लिटा दिया। और उसकी टाँगे ऊपर उठाकर अपना लन्ड फिर से उसकी चूत में डाल दिया।
उसकी आँखें अभी भी बंद थी। मैं उसके टाँगे पकड़ कर उसे चोदने लगा। फिर मैंने अपनी रफ़्तार बड़ाई, नाज़नीन फिर से गर्म हो गई। मैं उसकी कुर्ती के ऊपर से ही उसके उरोज दबा रहा था।
पुच्च पुच्च की आवाज किचन में गूँज रही थी।
मैं- आपा जान आपकी चूत तो किसी कमसिन लड़की से भी मस्त है। बहुत मज़ा आ रहा है।
नाज़नीन – नीरज तुम भी मस्त चोद रहे हो, झड़ जाओ मेरी चूत में , बुझा दो इसकी प्यास।
मैंने और रफ़्तार बढ़ा दी, फिर थोड़ी देर बाद हम दोनों एक साथ झड़ गए। मैं उसके ऊपर ढेर हो गया।
नाज़नीन के चेहरे पर संतुष्टि साफ नजर आ रही थी। आगे कहानी जारी रहेगी।
आपको ये कहानी कैसे लगी, ज़रूर बताये!
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