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मेरा नाम बिंदु है. मेरी फिगर 32-30-34 की है. मैं एक 28 साल की शादीशुदा औरत हूँ.
मेरी जब शादी हुई, उससे पहले भी मैं अपने एक ब्वॉयफ्रेंड से चुद चुकी हूँ. काफी ब्लू फिल्म भी देख चुकी हूं. मुझे लंड चूसना और चूत चटवाना पसंद है.
शादी के समय सोचा था कि मेरे पति का लंड बड़ा होगा, वो मुझे अच्छे से चोदेगा. पर ऐसा नहीं हुआ. पति का लंड बस 4 इंच का था. खैर जैसे तैसे मैंने दिन गुजारे. पति से मुझे एक बेटी भी हो गई.
मुख्य कहानी कुछ इस तरह से घटी. मेरे घर के बगल वाले घर में एक 40 साल के शादीशुदा अंकल रहते थे. उनका नाम संतोष था. उनकी नियत मेरे ऊपर ख़राब थी. आखिर मुझे भी लम्बे लंड की जरूरत थी. हम दोनों के घर की छतें मिली हुई थीं. मैं अपने कपड़े ऊपर ही सुखाती थी. अक्सर जब कपड़े सुखाने जाती, तो वो मुझे देखते थे. मैं अपनी ब्रा पैंटी भी वहीं सूखने डाल देती थी.
एक दिन शाम को नहा कर ब्रा पैंटी और भी कपड़े ऊपर सूखने को डाल दी. रात को मैं कपड़े उतार कर लाना भूल गयी.
जब सुबह कपड़े लेने गयी. मैंने सभी कपड़े उतारे. फिर मैंने अपनी पैंटी देखी, उसमें सफ़ेद सफ़ेद सा कुछ गाढ़ा सा लगा हुआ था. मैं समझ गयी कि ये वीर्य है. पहले तो मुझे गुस्सा आया, फिर मेरे मन में चुदास भी जग गयी. मैंने सोचा कि कौन है, जो मुझे चोदना चाहता है. मैंने देखा कि मेरे बगल वाले आदमी वहीं खड़े थे.
संतोष मुझे देख रहे थे. जब मैंने उनकी तरफ देखा, तो वो पलट कर चले गए.
फिर मेरा ध्यान उस वीर्य पर गया. वीर्य थोड़ा सूख चुका था. मैं नीचे आने लगी और सीढ़ी पर ही मैंने उस वीर्य को सूंघा. उसकी गंध मुझे बहुत मदहोश कर गयी. मेरी चूत पानी छोड़ने लगी. मैं सच बोल रही हूँ कि वीर्य की महक ने मुझे चुदास से भर दिया था.
मैं नीचे अपने कमरे के बाथरूम में आ गई और बाथरूम के अन्दर जा कर उस वीर्य वाली पैंटी को सूंघते हुए मैंने अपनी गर्म चूत में खूब उंगली की. जब मेरी चूत झड़ गयी, तब मैंने अपने चड्डी में लगे उस वीर्य को चाट लिया और फिर वही पैंटी पहन ली. उस वक्त वो पेंटी मुझे किसी लंड की छुअन का अहसास करने लगी थी.
मैंने शाम को ब्रा पैंटी फिर से सूखने को डाल दी. सुबह फिर से उस पर वीर्य लगा था. ये सिलसिला कुछ दिन चला. मैं उस पर मुठ मारने वाले को रंगे हाथ पकड़ना चाहती थी कि कौन है, जो ऐसा कर रहा है.
मेरे पति का टूर एंड ट्रावेल का बिजनेस है. कुछ दिन बाद उनको जयपुर जाना था तो वे चले गए.
मैंने हर बार की तरह शाम को ब्रा पैंटी और कपड़े सूखने को डाल दिए. मैंने तिरछी नजरों से देखा कि संतोष जी वहीं थे. रात को 2 बजे मेरी आंख खुली, मैं चुपके से छत पर गयी. मैंने ब्रा पैंटी देखी, वो वहीं टंगी थी. अभी उस पर कुछ नहीं लगा हुआ था. फिर मैं नीचे आ गयी. कुछ देर बाद मैंने फिर से छत पर जा के देखा कि मेरी पैंटी उधर नहीं थी. मैंने इधर उधर देखा, तो मैं ये क्या देखती हूं कि संतोष जी छत के ऊपर वाले कमरे के बगल में मेरी पैंटी सूंघते हुए मुठ मार रहे थे.
मैंने आवाज दी- कौन है उधर? वे एकदम से पलट गए. मैं उनका लंड देखते की देखते रह गयी. बहुत बड़ा हथियार था … करीब 8 इंच का करीब 2 इंच मोटा लंड था. वो मुझे देख कर लगातार लंड हिलाए जा रहे थे. मानो उनमें शर्म नाम की कोई चीज ही न बची हो.
संतोष ने लंड हिलाते हुए कहा- क्या देख रही हो … लेना है? मैं बोली- शर्म नहीं आती आपको ऐसी हरकत करते हुए? तो उन्होंने बोला- पहले आती थी … पर जब तू मेरे रस से भीगी चड्डी को बार बार शाम को सूखने डालने लगी, तो मुझे समझ आ गया कि तू मुझसे चुदना चाहती है. अब नखरे मत कर … खुल के बोल दे कि हां चुदना है.
ऐसे भी मैंने तो पहले ही ठान रखा था, जिसकी भी ये हरकत है, उससे चुद जाऊँगी. वैसे भी मेरी चूत की आग पति से ठंडी नहीं पड़ती थी. एक पल संतोष जी के लंड को देख कर मैंने भी बोल दिया- हां चोद लेना … पर अभी नहीं … कल आ जाना! संतोष जी बोले- अच्छा ठीक है … आज कम से कम लंड तो चूस कर जा.
मैं भी खुल चुकी थी और मैं पहले भी लंड चूस चुकी हूं. मैं उनके करीब आ गई और लंड के नीचे लंड चूसने को बैठ गयी. जब मैंने संतोष जी के लंड को हाथ में पकड़ा तो लंड बहुत गर्म था.
मैंने धीरे से उनके लंड के टोपे को जीभ से चाटा, थोड़ा नमकीन लगा. मैं मदहोश हो गयी, धीरे धीरे मैं उनके लंड को चाटने लगी. उनके मुँह से ‘आह … आह आह..’ की आवाज आने लगी. फिर मैं उनका पूरा लौड़ा मुँह में ले चूसने लगी. वो कराहने लगे.
मैंने उनका लौड़ा करीब दस मिनट तक चूसा. फिर उन्होंने कहा- आज तू अपनी चूची बाहर निकाल, ब्रा की जगह सीधे उसी पर माल गिरा देता हूँ. मैंने जल्दी जल्दी से ब्लाउज खोला और अपने मम्मे खोल दिए. उन्होंने सारा माल मेरी चूचियों पर गिरा दिया. मैंने उनके लंड को चाट कर अच्छे से साफ कर दिया.
उन्होंने लंड को मेरे चूचों पर झटकते हुए कहा- कल रात तेरी चूत का भोग लगाऊंगा. तू चाहे तो अभी चोद दूँ. मैंने ये कहते हुए मना कर दिया- जो भी करेंगे, आराम से करेंगे. तब संतोष जी ने कहा कि तुझे कैसी चुदाई पसंद है? मैं बोली- हर तरह की, जैसी आप करना चाहो. उन्होंने कहा कि रात को पेशाब मत करना … बाकी रात को बताता हूं.
मेरी चूचियों पर लगे अपने वीर्य से मेरे मम्मों की अच्छे से मालिश करके मेरी गांड पे हाथ मार कर संतोष जी बोले- चूत के बाल छोटे छोटे कर लेना, एकदम साफ मत करना.
मैंने अपनी सहमति दे दी. एक अनुभवी आदमी मेरी मनोदशा समझ गया था कि मुझे चुदने से पहले अपनी झांटों का जंगल साफ़ करना होगा, इसलिए मैं आज नहीं चुद रही थी.
इसी तरह मैंने उनको कल रात का बोल दिया. लेकिन वो दोपहर को ही मेरे घर पर आ गए. संतोष जी बोले- अभी मैं अपनी बीवी को मायके छोड़ने जा रहा हूँ. तुम अपनी चुचियों का साइज बताओ. मैंने पूछा- क्यों भला? क्या आपने ब्रा में साइज़ टैग नहीं देखा था? उन्होंने जिद सी करते हुए कहा- मैंने ध्यान नहीं दिया था … तुम बताओ न प्लीज. मैंने बता दिया कि मेरे चुचियों का साइज 32 इंच है.
संतोष जी- शाम को मैं खाना बाहर से ले कर आऊंगा, तुम बनाना मत. मैं 8 बजे तक वापस आ जाऊंगा. फिर तेरी ऐसी चुदाई करूँगा कि तूने कभी सोचा भी न होगी … और मैं भी वैसा कभी कर नहीं पाया होऊंगा. ये बोल कर वो चले गए.
उनके मुँह से चुदाई की सुनकर मैं रोमांचित हो गयी. मैं अपनी चुत में संतोष जी का 8 इंच का मोटा लंड लेने की कल्पना करने लगी.
जैसे तैसे दिन बीत गया. शाम को खाना बनाना नहीं था … तो मैंने शाम की तैयारी कर ली. अपनी चूत के बाल छोटे कर लिए. उसी दौरान मुझे चुदास चढ़ गई, तो अपनी चूत में एक खीरा डाल कर खूब अपनी चुदाई कर ली.
रात के 8 बजे गए. दरवाजे की घंटी बजी. मैंने खोल के देखा कि वहां कोई नहीं था. सिर्फ एक बॉक्स पड़ा हुआ था. उसमें चिट्ठी थी कि तुम तैयार हो कर छत का दरवाजा खोले रखना. उसी बॉक्स में एक ब्रा और पैंटी भी थी. वो भी नाम की ब्रा थी. पूरी जालीदार ब्रा और पैंटी थी. उस पेंटी में से मेरी चूत और गांड के छेद आराम से दिख जाएं. उस चिट्ठी में लिखा था कि छत का दरवाजा खोलने को सिर्फ इसे ही पहन कर आना है.
मैंने उसी वक्त वो ब्रा पेंटी सैट पहन लिया. ऊपर से नाईटी डाल ली. रात को छत की लाईट ऑफ थी. जैसे ही मैंने दरवाजा खोला, मैं देखती हूं कि संतोष जी बिल्कुल किसी बच्चे की तरह नंगे खड़े थे. उनके हाथ में सिर्फ एक बैग था. वो झट से अन्दर आ गए. उनके अन्दर आते ही मैंने दरवाजा बंद कर दिया.
वो मुझपे गुस्सा हो कर बोले- ये क्या पहन लिया … जल्दी खोल इसे.
मैंने झट से नाइटी खोल दी. मुझे ब्रा पैंटी में देख उनका लंड झटके खाने लगा. उन्होंने मुझे अपना लंड पकड़ कर कमरे में ले जाने को बोला. मैंने वैसा ही किया. जैसे ही मैंने संतोष जी के लंड को हाथ लगाया. मुझे उनके लंड की गर्मी पता चलने लगी.
हम लोग अब लिविंग रूम में आ गए. उन्होंने बैग से शराब की बोतल निकाली और मुझसे पूछा- तुम पीती हो? मैं बोली- शादी से पहले पी चुकी हूं.
सच में इस कहानी को लिखते लिखते मेरी चूत क्यों इतनी गीली हो जा रही थी … मुझे खुद समझ नहीं आ रहा है.
उनके इशारे पर मैं दो गिलास ले के आयी. उन्होंने दोनों गिलासों में शराब डाली, फिर बोले- चल मेरे और अपने पैग वाले गिलास में मूत. मैं बोली- छी: ये क्या करवा रहे हो? वो बोले- कर न … मजा बहुत आएगा.
मैंने अब तक कभी किसी मर्द के सामने पेशाब नहीं की थी. उन्होंने मेरी पैंटी खोली. मैंने गिलास हाथ में ले कर शरमाते हुए दोनों में मूत दिया. फिर बोले- पी जा इसे. मैं भी जोश में आ चुकी थी. हम दोनों ने अपने अपने पैग को खत्म किया. संतोष जी- तेरी पेशाब में बहुत मजा है यार … एक और वैसा ही पैग बना. मुझे भी अब चढ़ने लगी.
फिर संतोष जी एक एक और पैग बनाया, अपने और मेरे लिए. इस बार गिलासों में संतोष जी ने पेशाब की और मुझे पैग पिला दिया. इसके बाद मुझे सोफे पे लेटा कर पागलों की तरह मुझे किस करने लगे. हम दोनों एक दूसरे के होंठ को लगातार चूसे जा रहे थे. कभी जीभ, कभी होंठ चूसने का मजा ले रहे थे. संतोष जी तो बिल्कुल नंगे थे ही. मेरी भी चड्डी निकल चुकी थी. मैं उनका लंड सहला रही थी. वो मेरे मम्मों को दबा रहे थे. तभी अचानक उन्होंने मेरी ब्रा खींचते हुए फाड़ दी. मैं एकदम नंगी हो गई
अब संतोष जी बोले- चल अब लंड अच्छे से चूस. मुझे लंड चूसना पसंद है … इसलिए मैं इस काम की माहिर खिलाड़ी हूँ. मुझे लंड चूसने के कारण ही पेशाब पीने में भी कोई शर्म या हिचक नहीं आई थी.
मैंने संतोष जी का लंड चूसना शुरू किया. उनका बहुत टेस्टी लंड था. करीब दस मिनट तक लंड चूसने के बाद उन्होंने अपने लंड के लावा को मेरे मुँह में छोड़ दिया. मैं उनके लंड का सारा का सारा पानी पी गयी और अच्छे से चूस चूस के लंड को साफ़ कर दिया.
मुझे शराब के नशे में लंड चूसना बड़ा मजा दे रहा था. मैं संतोष जी के लड्डुओं को भी चूसने लगी.
खैर झड़ जाने के बाद संतोष जी का लंड अब छोटा होने लगा. तब संतोष जी भी मेरे निप्पलों को अपनी चुटकी से मसलने लगे. मैं चुदास से तड़पने लगी.
फिर उन्होंने मुझे सीधे लिटा कर मेरी चूत चाटना शुरू किया. इसके लिए मैं ना जाने कब से तड़प रही थी. मेरा पति मेरी चूत नहीं चाटता था. जब संतोष जी मेरी चूत चाट रहे थे … तो मैं तो मानो जैसे किसी और ही दुनिया में विचरने लगी थी.
दस मिनट की चूत चुसाई के बाद मैं कमर उठाते हुए झड़ गयी. अब मैं लंड के लिए तड़पने लगी.
उधर संतोष जी का लंड बिल्कुल सांप की फुंफकार मार रहा था. उन्होंने लंड मेरी चूत के दाने पर लंड घिसना शुरू किया. मेरी तो हालात और ख़राब होने लगी. मैंने संतोष जी से बोला- अब चोद भी दो इस चूत को. उन्होंने लंड घिसते घिसते अचानक से लंड चूत में डाल दिया. मैं बहुत जोरों से चिल्ला उठी ‘उम्म्ह… अहह… हय… याह…’
वो रुक गए और बोले- अबे साली, अभी तो सिर्फ सुपारा ही अन्दर गया है … अभी तो पूरा लंड बाहर है.
थोड़ी देर संतोष जी ने मेरे ऊपर चढ़े रह कर मेरे मम्मों को दबाया चूस चाटा. फिर एक धक्का दे मारा, जिससे मेरी चुत में उनका लंड पूरा घुस गया. मैं दर्द से रोने लगी … लेकिन वे कहां रुकने वाले थे. संतोष जी लगातार बिना मेरी दर्द की परवाह किये, अपने लंड को चूत में अन्दर बाहर करने लगे.
थोड़ी देर बाद मेरा दर्द मजे में बदल गया और मैं खुल कर ‘उँह आआह आआह आ आआह..’ करने लगी. संतोष जी बोले- एक बच्चे की माँ होने पर भी तेरी चूत बहुत टाइट है. आज तुझे चोद कर मजा आ गया. अब तो तेरी चूत जब भी मिलेगी, जी भर के चोदूंगा. मैं बोली- आआह … बहुत दिन के बाद बड़ा लंड चूत में गया है. आपको जितना चोदना है, चोद लो … आज से मैं तुम्हारी हुई.
संतोष जी लगातार मुझे चोदे जा रहे थे. दस मिनट की चुदाई में मैं एक बार झड़ चुकी थी. तभी मेरी बेटी रोने लगी, वो उठ चुकी थी.
उन्होंने मुझे घोड़ी बनाया और कहा- अपनी बेटी के मुँह में अपनी एक चूची दे दो, जिससे वो चुप रहेगी.
मैंने वैसा ही किया. मैंने एक चूची को अपनी बेटी के मुँह में दे दिया, जिससे वो दूध पीने लगी. उधर पीछे से संतोष जी लंड मेरी चूत अन्दर बाहर कर रहे थे. मैं तो मानो जन्नत की सैर करने लगी. एक तरफ मम्मों की चुसाई और दूसरी तरफ चूत की बड़े लंड से चुदाई.
मैं लगातार बोले जा रही थी- आह और तेज और तेज … चोदो चोदो और चोदो. मेरी चुत का आज भोसड़ा बना दो. संतोष जी बोल रहे थे- वाह कुतिया तू बहुत मस्त चीज है … ले लंड और ले.
बीस मिनट इसी पोजिशन में चुदते चुदते में 3 बार और झड़ चुकी थी. मेरी बेटी भी अब सो चुकी थी. संतोष जी की भी स्पीड अब बढ़ चुकी थी. उन्होंने अपना लंड चूत से निकाला. मुझे घुटनों के बल बैठाया. मैं समझ गयी थी कि मुझे क्या करना है. संतोष जी का लंड बिल्कुल चूत के पानी से सराबोर था, मैं उसे चाटने लगी. उन्होंने लंड से मेरी मुँह की चुदाई शुरू कर दी. संतोष जी पूरे गले तक लंड को डालने लगे.
फिर दो मिनट बाद उन्होंने पूरा लावा मेरे मुँह में छोड़ दिया. इस बार उनका वीर्य पिछली बार से कुछ ज्यादा ही था. मैं पूरा का पूरा वीर्य गटक गयी. वो झड़ने के बाद बैठ गए.
मैं बाथरूम में आ गयी. मैं अपनी चुत देखने लगी … पूरी लाल और सूज गयी थी. फिर मैंने चूत को साफ किया.
तभी संतोष जी भी बाथरूम में आ गए. उन्होंने वहीं मुझे फिर से घोड़ी बना दिया और मेरी गांड की छेद में देखने लगे. संतोष जी बोले- तुमने तो पहले भी गांड मरवाई है … चलो अब गांड की बारी है. मैं बोली- बाद में मार लेना … पहले कुछ खा तो लेने दो. रात के 10 बज चुके हैं.
फिर हमने दो दो पैग दारू के साथ खाना खाया. इसके बाद मैंने संतोष जी के मोटे लंड से अपनी गांड भी मरवाई.
वो गांड चुदाई स्टोरी किसी और दिन बताऊंगी. मैं अभी भी उनसे अक्सर चुदवाती रहती हूँ. उनके मोटे लंड से मैंने अपनी गांड कैसे मरवाई, वो अगले भाग पूरे विस्तार से बताऊंगी. आप मुझे मेल कर सकते हैं. [email protected]
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