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आज मैं अपने जीवन की वो सच्चाई बता रही हूं, जिसे मेरे गांव के हर जेंट्स, लेडीज, हर लड़के लड़की को पता है. इसमें एक शब्द भी बनावटी नहीं है, एक बात झूठी नहीं है. जैसा हुआ ठीक वैसा का वैसा ही लिख रही हूं. जो मेरे गांव में फैला था, वह आधा अधूरा सच था, अब मैं पूरी की पूरी सच्चाई लिखने और बताने जा रही हूं. इसमें मैं इसमें कुछ भी नहीं बदल रही हूं, नाम सहित सब सच जस का तस लिख रही हूं.
मेरा नाम बंध्या है, मेरी उम्र उन्नीस वर्ष है. मेरी पहले तबियत बिगड़ी रहती थी मुझे कभी भी कहीं भी चक्कर आ जाते थे. मिर्गी नाम की बीमारी की शिकायत रही, इसलिए पापा मम्मी ने स्कूल में मेरा एडमिशन नहीं करवाया.
जब मैं कुछ बड़ी हुई, तो मेरी बहुत इलाज हुआ और झाड़-फूंक के बाद तबियत ठीक हो गई. तब पहली बार स्कूल में मम्मी पापा ने मेरा एडमिशन कराया और मुझे पढ़ने भेजा. उस समय मेरी उम्र अपेक्षाकृत काफी बड़ी हो गई थी, इसलिए सभी लड़कियां मुझसे बहुत छोटी होती थीं. मेरी कक्षा में बस मेरी तरह एक लड़की थोड़ी मुझसे छोटी, पर मेरे बराबर की थी. उसका नाम नीलू था, जिससे मेरी काफी गहरी दोस्ती हो गई थी.
यह उस समय की बात है, जब मैं स्कूल की बड़ी क्लास में पढ़ने लगी थी. मैं गवर्मेंट स्कूल से अभी नौंवी में जाने वाली थी, परन्तु मेरी उम्र उन्नीस वर्ष हो चुकी थी. उस वक्त मैं बहुत दुबली पतली सी थी, पर नैन नक्श शरीर के बहुत सुंदर थे. ऐसा मेरी सहेलियां मुझे बताती थीं. कुछ मम्मी की सहेलियां भी बोलती थीं कि बंध्या को ठीक से खाना खिलाया करो, इसका शरीर भर जाएगा, तो ये और सुंदर लगने लगेगी. इसकी लम्बाई तो बहुत अच्छी है ही और नैन नक्श के तो कहने ही क्या हैं.
मेरी हाइट पांच फिट तीन इंच की थी, पर उस समय वजन मात्र पैंतीस किलो था. मेरी कमर चौबीस से भी कम थी. मुझे जींस तो सभी के सभी ढीले होते थे. वैसे ज्यादातर मैं स्कर्ट ही पहनती थी ऊपर कोई भी टॉप या शर्ट उसके नीचे कुछ भी नहीं पहनती थी. कभी कभी सलवार सूट पहनना होता था, तो वो भी गांव का ही सिला हुआ पहनती थी. नीचे बनियान या समीज पहनती थी. वैसे हर समीज का साइज़ मुझे ढीला ही होता था … कभी फिट नहीं हुआ. उसका कारण यह था कि मेरा सीना उस समय 28 से भी कम था. सीने में छोटे-छोटे उभार होने शुरू ही हुए थे. सभी सहेली कहती थीं कि बंध्या तेरे तो गुड्डी गुड्डा और डॉल से भी छोटे दूध हैं, तू ब्लाउज कैसे पहनेगी.
मैं कुछ जानती ज्यादा नहीं थी तो बोल देती थी कि देखूंगी जो भी होगा.
मेरे पापा मुंबई में काम करने चले जाते हैं, तो मम्मी के साथ ही रहती हूं. मम्मी जहां जातीं, साथ ले जाती थीं.
यह बात फरवरी 2013 की है. मेरी बड़ी बहन भी ससुराल से आयी हुई थी. मेरे साथ पढ़ने वाली मेरे पड़ोस की ही एक लड़की, जिसका नाम सोनम है. उसकी बड़ी बहन की शादी थी. मैं अक्सर सोनम के घर जाया करती थी. कुछ कुछ खेलने या पढ़ने, साथ लिखते पढ़ते थे और वहीं उसके साथ गोटी या चंदा का खेल खेलती थी. स्कूल के बाद सारा दोपहर वहीं उसी के साथ रहती थी. हम दोनों आपस में खूब बातें करती थीं.
सोनम बोली- मेरी दीदी की शादी यहां इस घर से नहीं हो रही है, चाचा और दादा जहां रहते हैं, वहां अहरी से होगी. बंध्या तुम मेरे साथ वहीं रहना. मैंने ये सब मम्मी को बताया, तो मम्मी बोलीं- ठीक है, रह आना … कोई दिक्कत नहीं.
फिर इस तरह से वह शादी का दिन आ गया. सोनम की मम्मी ने मेरे पूरे घर का निमंत्रण किया, तो शाम को थोड़ा सा सज धज के मैं मम्मी लोगों के साथ, पड़ोस की भी लेडीज और लड़कियां सबके साथ वहां गई थीं. इस तरह से सब कुछ नॉर्मल चल रहा था, तभी बारात दरवाजे पर आई और द्वारचार शुरू हुआ.
तब एक लड़का पेप्सी बांट रहा था. उसने जब दो तीन बार मेरे सामने आकर मुझे पेप्सी दी, तब मैंने उसे नोटिस किया. वह लंबा सा दुबला पतला भूरी मंजी आंखों वाला था. थोड़े लंबे बाल थे. वो खड़ी हिंदी में मुझसे बोला- और लीजिए पेप्सी …
उसने वहां बैठी सभी लेडीज और लड़कियों में सिर्फ मुझे पेप्सी दी. मैं गरीब घर से हूं, तो इस तरह से स्पेशली मेरे लिए खाने पीने को किसी ने मुझे इसके पहले इस तरह से नहीं पूछा था. मुझे उसका ये ट्रीटमेंट बहुत अच्छा लगा. मेरे स्कूल की पड़ोस की कुछ लड़कियां मेरे पास बैठी थीं, तो वो लोग मुझसे बोलीं- बंध्या, यह तेरे को जानता है क्या? कौन है, तुझे बहुत पेप्सी पिला रहा है. वह भी अकेले सिर्फ तुझे. हम लोग बगल से बैठी हैं तो कमीना दे नहीं रहा? मैं बोली- मैं नहीं जानती कि कौन है. अभी पहली बार ही उसे देखा है, पता नहीं क्यों मुझे दे रहा है … और तुम लोगों को नहीं भगवान जाने क्या बात है.
उसके बाद वह लड़का अब थोड़ी देर बाद ठीक मेरे सामने थोड़ी दूर में खड़ा हो गया और मेरी तरफ देखे जा रहा था. मैंने पहले कोई ध्यान नहीं दिया, पर जब भी मेरी नजर उधर जाए, तो वह सिर्फ मुझे ही देखता मिले. हर बार मेरी नजरें उसकी नजरों से टकरा जातीं. मैं खुद अब सोचने लगी कि आखिर यह मुझे इस तरह से क्यों घूर रहा है.
करीब एक से डेढ़ घंटे तक वह मुझे ही घूरता रहा, पर मुझे कोई फर्क नहीं पड़ा. मैं बस यही सोच रही थी कि आखिर यह मुझे इस तरह से एकटक घूर क्यों रहा है?
थोड़ी देर बाद जब मैं अन्दर गई, तो वह लड़का मेरे आगे पीछे होने लगा, नाश्ता की ट्रे लेकर आया और मुझे दो प्लेट नाश्ता दे गया. मेरे मना करने पर भी उसने नाश्ता रख दिया. मैं बोली भी कि मुझे एक प्लेट ही चाहिए. पर उसके दो प्लेट देने पर मैं अन्दर ही अन्दर बहुत खुश हो गई थी. एक प्लेट मैंने मम्मी को नाश्ता दे दिया कि इसे घर ले चलना. इस तरह अब मेरी आवभगत और स्वागत में वह लड़का आगे पीछे होने लगा. मैं कुछ समझ नहीं पा रही थी, फिर भी अब मुझे उसका स्वागत पसंद आया. मुझे अब तक पहली बार किसी ने इस तरह से मेरे लिए किया था.
उसके बाद जब लड़की का चढ़ाव होने लगा, तो मैं मम्मी लोगों के पास ही बैठ गई, जहां सब लेडीज बैठी थीं. उस समय मेरे पास मेरी फ्रैंड सोनम भी बैठी थी. उसी के बड़ी बहन की शादी हो रही थी. फिर से उसी लड़के ने मेरे पास आकर मुझे और सबको चाय दी.
दो मिनट बाद फिर से चाय लेकर आया और बोला- एक कप और पीजिए … अच्छी चाय है. मैंने ले ली, फिर 5 मिनट बाद आया और एक कप चाय पीने को बोला. मैं बोली- अब नहीं पियूंगी. तो बोला- थोड़ी थोड़ी ठंड है, चाय पी लीजिए. मैंने फिर से चाय ले ली.
जब वह चला गया, तो सोनम बोली- ये मेरा भाई है और साला खातिरदारी तेरी कर रहा है. वैसे यह अच्छा लड़का है. मैंने पूछा- तेरा भाई कैसे है सोनम? मुझे तो कभी दिखा नहीं. तब वह बोली- मेरी बीच वाली बुआ का लड़का है, पॉलिटेक्निक कर रहा है. पढ़ने में बहुत अच्छा है. शहर से पॉलिटेक्निक कर रहा है, आगे चलकर इंजीनियर बनेगा.
सोनम की बात से मैं उसके लिए इंप्रेस हुई कि कोई गांव का ऐसा वैसा ठुर्रा नहीं है, शहर में पढ़ने वाला लड़का है. पर मैं सोनम से उसका नाम नहीं पूछ पाई.
थोड़ी देर बाद वह सामने फिर बैठ गया और मुझे फिर से एकटक देखने लगा. मैं जब भी उसकी तरफ देखती, तो मेरी आंखें उसकी आंखों से लड़ जातीं. मैंने भी बचपना कर ही डाला. मैंने सोची कि बहुत घूर रहा है मुझे, अब मैं भी देखती हूं इसकी तरफ … और नजरें नहीं हटाऊंगी, कैसे नहीं मानेगा.
मैंने तुरंत उस लड़के की तरफ देखा और अपनी आंखें उसकी आंखों में डाल दीं. मैं बिना पलक झपकाये उसकी तरफ देखने लगी. करीब तीन मिनट हो गए, वह एकटक बिना पलक झपकाए, मुझे देखता रहा. मैं भी बिना पलक झपकाए उसकी आंखों में आंखें डाले रही. मैं भी जिद में थी. मुझे करीब पांच मिनट से ज्यादा हो गए बिना पलक झपकाये, मेरी आंखें भर आईं, पर उस लड़के ने पलक नहीं झपकाईं. अंत में मुझे ही पलक झपकानी पड़ी और मैं उससे हार गई.
उसके बाद जाने मुझे क्या हुआ कि मैं भी उसे बार बार देखने लगी … और वह तो मेरी तरफ बस देखे ही जा रहा था. पहली बार बाली उमर में मुझे एक अलग सी फीलिंग होनी शुरू हो गई. इस फीलिंग के बारे में मुझे कुछ नहीं पता. वह लड़का उठ कर वहां से चला गया, तो करीब एक घंटे तक नहीं आया.
उसके न आने से पता नहीं मुझे अजीब सा लगा. मेरा उसको देखने का मन किया. क्योंकि मुझे अपने आप बेचैनी सी लगी. फिर मैं अपने आप उठी और जैसे चलने को हुई, तो मम्मी बोलीं- कहां जा रही है? मैं बोली- यहीं आस-पास हूं. मम्मी थोड़ा टहल लूं, पैर दर्द करने लगे हैं. मम्मी बोलीं- ठीक है, घूम आ.
तभी मैं बाहर की तरफ निकली. काफी भीड़ थी, सब जगह बाराती घराती भरे थे. गांव की शादी थी, तो अलग ही माहौल था. तभी अचानक पीछे से आवाज आई- हैलो! मैंने सर घुमाया तो फिर से बोल गूँजे- हैलो! मैंने पीछे मुड़कर देखा, तो वही लड़का था.
वो बोला- तुम कहां जा रही हो? मैं पहली बार उसे सामने पाकर देख कर घबरा गई. मैं बोली- कहीं नहीं … बस ऐसे ही टहल रही हूं. मुझे उसने अपना नाम बताया. वो बोला- मेरा नाम आशीष है, यहां जिसकी शादी हो रही है, वह मेरी मामा की बेटी है. उसने मुझसे मेरा नाम पूछा- तुम अपना नाम बताओ … क्या नाम है तुम्हारा? मैंने उससे बोला कि मैं क्यों बताऊं तुम्हें अपना नाम … नहीं बताऊंगी. उसने बोला- प्लीज बता दो!
मैं चुप रही तो उसने आगे कहा- मैं सागर से पॉलिटेक्निक कर रहा हूं. अभी दो-चार दिन यहीं मामा के यहां रहूंगा. मैं बोली- ठीक है … अब मैं जाती हूं. मैं चली आई, आकर बैठ गई.
कुछ पल बाद वो फिर से आ गया. इस बार वो मेरे सहित सभी को खाने के लिए बोलने आया था. सभी लेडीज उधर खाने को बैठ गईं. यह गांव हैं. यहां बैठकर खाने की व्यवस्था थी, तो जहां मैं बैठी थी, आशीष हर सामान मीठा खीर सब मेरी थाली पर ज्यादा ज्यादा डाल रहा था.
उसके इस तरह से मेरा ख्याल रखने से मुझे वह अब अपने आप अच्छा लगने लगा. थोड़ी देर बाद जब मैं सीढ़ियों के पास खड़ी हुई तो फिर से आया, वो बोला- प्लीज अपना नाम बता दो, नहीं तो मैं खाना नहीं खाऊंगा. मैं बोली- मत खाओ, मुझे क्या … मेरा कोई नाम नहीं है. तो बोला- प्लीज बता दो. मैंने नहीं बताया और फिर वहीं जाकर बैठ गई.
अब करीब रात के 2:00 बज रहे थे. शादी होनी शुरू हो गई. मम्मी बोलीं- हम लोग जा रहे हैं, चलो तुम्हें भी चलना हो तो चलो. मेरी सहेली सोनम मेरी मम्मी से बोली- चाची बंध्या यहीं रहेगी मेरे साथ. ये विदा के बाद आएगी, आप चली जाओ. मम्मी लोग घर चली गईं.
अब मैं वहां रुक गई, तो फिर से आशीष मेरे सामने बैठ गया और मुझे उसी तरह से एकटक देखने लगा. मैं भी बीच बीच में चुपके से देखती और उससे निगाहें मिल जातीं. अब फिर से एक बार मैंने सोची कि देखती हूं … इस बार इसे ही पलक झपकाना पड़ेगा. मैं तो ना झपकाऊंगी.
अब मैंने उस लड़के आशीष की आंखों में आंखें मिला दीं और एकटक देखने लगी. वह भी उसी तरह बिना पलक झपकाये देखे जा रहा था. करीब तीन चार मिनट बाद जाने मुझे क्या होने लगा, मुझे खुद नहीं पता, पर उसकी आंखों में आंखें डालने से मेरे बदन में गर्मी आ गयी और हल्की ठंडी के बावजूद पसीना-पसीना होने लगी. इस बार करीब दस मिनट आंखें लड़ी रहीं और उसको किसी ने बुलाया तब उसने पलक झपका कर पीछे देखा और उठकर चला गया.
मेरे पहले प्यार की सच्ची कहानी को अपना प्यार जरूर दीजियेगा. मुझे आपकी मेल का इन्तजार रहेगा. [email protected] कहानी जारी है.
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