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नमस्कार, मैं आपकी अपनी सारिका कंवल फिर से आप सबके समक्ष एक नई कहानी लेकर आई हूं. मैं आशा करती हूं कि मेरी इस कहानी को पढ़ कर मजा आप सभी को आएगा, क्योंकि ये कहानी भी पहले के जैसी आम जीवन की है मगर सबसे छुपी थी. आज इसे मैं आप सबसे साझा करने जा रही हूँ.
कहते हैं कि लोग जिस प्रवृति के होते हैं, उन्हें उन्हीं के जैसे लोग मिलते हैं या दोस्ती होती है. ये बात माइक, तारा और मुनीर के मिलन के बाद की है. इनके बारे में आपने मेरी पिछली कहानी ग्रुप सेक्स का ऑनलाइन मजा में पढ़ा होगा.
मेरी जेठानी अड़ियल तरह से मुझसे व्यवहार करने लगी थी और मैं भी कुछ नहीं कर सकती थी. क्योंकि न तो मुझे पता था कि वो ऐसा किस वजह से कर रही थी, न ही हमारे घर में कोई बड़ों से बहस करता था. मुझे अपनी गलती का एहसास था, उस वजह से मैं चुपचाप उनकी जली कटी बातें सुन लेती थी.
अब मुझे उस घर में रहना बिल्कुल पसंद नहीं था. तो इसी वजह से मैंने अपने पति से बात की कि कब तक सब साथ रहेंगे? हमारे बच्चे बड़े हो रहे हैं और हम सबके तरह साथ रहें, ये जरूरी नहीं है. अब जमाना बदल रहा है और बच्चों को अपनी अपनी एकांतता की आवश्यकता पड़ेगी.
पर बंटवारे की बात पति को हजम नहीं हुई और वे उल्टा मुझ पर क्रोध जताने लगे.
अब तक मेरे पति ने बहुत तरक्की कर ली थी, उन्होंने धनबाद में ही अपना व्यापार शुरू कर लिया था. खुद का ठेका ले लिया था, इस वजह से वो वहीं रहने लगे थे और 3-4 हफ्ते में आते और राशन पानी की व्यवस्था करके चले जाते. बड़े लड़के ने रोज दिन कालेज आने के झंझट से शहर में ही किराए पे कमरा लेकर रहना शुरू कर दिया और हर हफ्ते में आ जाता था. छोटे ने भी एक दिन तय कर लिया कि वो भी शहर में रहेगा. आखिर आज के बच्चों को कहां गाँव में रहने की इच्छा होती है. फिर पति ने उसकी भी व्यवस्था शहर में करा दी.
इस सबके बाद अब मैं अकेली रह गयी. दिन भर बहुत बेकार सा लगने लगा था. मैं ज्यादातर उस वयस्क साइट पर समय बिताने लगी. अब रात तो रात, दिन में भी कई दंपति मित्र मुझे अपनी संभोग क्रिया कैमरे पर दिखाने लगे. इस तरह मेरा मन व्याकुल होने लगा, पर दुविधा ये थी कि मैं अब यहां और जोखिम नहीं उठा सकती थी. पति कभी आते भी, तो संभोग में उनकी रूचि नकारात्मक थी. कभी मन भी हुआ तो न किसी तरह का खेल, न आलिंगन, न कुछ.. बस मेरी साड़ी उठायी, धक्के दिए और बस सो गए. मैं अधूरी प्यास अपनी समेटे सोने का प्रयास करती रह जाती. मेरी वासना की आग दिन ब दिन बढ़ती जाती और मेरे पास उपाय के नाम पर केवल हस्तमैथुन ही रह जाता.
एक रात मैंने पति से आखिरकार कह दिया- क्यों न आप अपनी कमजोरी के बारे में किसी डॉक्टर को दिखा लेते? इस बात पर पति इतने क्रोधित हो गए और कहने लगे- इतने साल में इस उम्र में तुम्हें अब कमी दिख रही है, दो बच्चे क्या ऐसे ही हो गए? उन्होंने मुझे उल्टा पुल्टा बहुत सुनाया.
फिर उस रात मेरी हर तरह की इच्छा ही खत्म हो गयी. अकेले मन नहीं लगता था और शारीरिक इच्छाएं परेशान करने लग गयी थी. इसी वजह से मैंने ठानी कि अब अपना मन कहीं और लगाना है. मैंने पति से बात की कि मुझे भी अपने साथ धनबाद में रख लो. पति शुरू में तैयार नहीं हुए, फिर बहुत जिद करने पर वो राजी हो गए.
अपने कमरे में ताला लगा कर एक दिन मैं अपने पति के साथ नई जगह चली आयी. नया मकान देख दिल खुश हो गया. पति ने घर की लगभग सारी व्यवस्था कर ली थी. दो कमरे, दो शौचालय, एक हॉल, एक रसोईघर एक बालकनी.. सब था. गाँव से भी बहुत सारा सामान साथ ले आए थे, सब जमा लिया.
एक रात पतिदेव खाने के समय बताने लगे कि उन्होंने बच्चों के लिए सब व्यवस्था कर दी है. बाकी अगर सब सही रहा, तो पास के कॉलोनी में एक घर भी खरीद लेंगे. तब तक इस किराए के घर में रह लेते हैं.
मुझे उनकी योजना बहुत अच्छी लगी कि कुछ भी है, घर और परिवार के लिए इतना सोचते तो हैं. मेरे दिन अच्छे गुजरने लगे थे. पहले की भांति पति अब मेरी बात सुनते थे. केवल कमी शारीरिक संबंधों की थी, जो पति नहीं देते थे और न उन्हें कुछ ज्यादा रूचि थी. मैं दोबारा उनसे कुछ नहीं पूछना चाहती थी.
चूंकि हमारा समाज रूढ़िवादी है और एक समय के बाद कामक्रीड़ा को अपराध की तरह देखता है. मेरे पति भी उन्हीं में से एक थे, हालांकि उनकी कभी इच्छा हुई, तो मर्द होने के नाते संभोग करना अपना अधिकार समझते थे. यह समाज की दोगली मनोवृत्ति है और मेरे पति में भी ये स्वाभाविक रूप से होना तय थी. पर मैं कुछ अलग हूँ.
पति के साथ इधर रहते हुए महीना भर होने को आया, तो अगल बगल एक दो औरतों के साथ जान पहचान भी हो गयी. पर वो सभी सामाजिक बंधनों में जीने वाली महिलाएं थीं. हाथ में महंगा समार्टफोन तो था, मगर गूगल, वॉट्सएप्प और यूट्यूब से आगे कोई बढ़ा ही नहीं. मैं भी उनसे ज्यादा नहीं बातें करती थी क्योंकि जब कोई बात छिड़े, तो किसी न किसी की बुराई या बढ़ाई के अलावा कुछ नहीं था.
पति के होने की वजह से मैं ज्यादा वयस्क साइट पर नहीं जा पाती थी. मगर जब कभी मौका मिलता, तो खोल लेती. तो पुराने और नए मित्रों से ढेरों संदेश मिलते. किसी को उत्तर देती, किसी को नहीं.
अब मैंने सोच लिया था कि अब और कुछ नहीं करना है. इसी बीच पतिदेव ने रामगढ़ के पास भी कुछ ठेका ले लिया और हफ्ते में एक दो बार वहां जाने लगे. समय बीतने के साथ उनका काम बढ़ता गया, तो हफ्ते के 2 से 3 दिन उधर ही बिताने लगे. जब वो नहीं होते, तो फिर मेरा मन उस साइट की ओर खिंच जाता. फिर क्या था मेरी जिज्ञासाएं फिर से बढ़ने लगीं.
इसी बीच एक दिन मैं नीचे दूध लाने गयी, तो देखा कि जिस दुकान से दूध लाती थी, वो बन्द थी. दूध तो लेना ही था, तो मैं बगल की दुकान में चली गयी. सामने देखा तो बहुत ही आकर्षक मर्द दुकान में बैठा था. लंबा, चौड़ा, गोरा सिर पर पगड़ी और चेहरे पर दाड़ी मूंछें थीं. ये एक सरदार था, जिसकी उम्र मेरे ख्याल से 50 साल की होगी, पर वो हट्टा कट्टा और बहुत आकर्षक था.
मैंने उनसे दूध की थैली मांगी, तो शुरू में बिना मुझे देखे सरदारजी थैली लाने चले गए. पर जब वापस आए और मैंने पैसे दिए, तो उनकी नजर मेरी नजर से टकराई. तो वे मुझे देखते रह गए. एकटक मुझे देखने के बाद उन्होंने पैसे लौटाए और मैं वापस चली आयी. मेरे दिमाग में तो उस वक़्त कुछ नहीं था, पर वो इंसान मुझे केवल आकर्षक लगा था.
उस दिन तो कुछ खास अनुभव नहीं लगा, कुछ भी पर अगले दिन पता नहीं क्यों, मैं उसी की दुकान में चली गयी. पर आज भी मन में सब कुछ सामान्य था. पहले दिन की तरह कुछ नहीं लगा. उसने दूध दिया, मैंने लिया और चली आयी.
ऐसा ही लगभग 10-12 रोज हुआ. मैं रोज वहीं से दूध लेने लगी थी.
फिर एक दिन देखा कि दुकान पर वो आदमी नहीं था, उसकी जगह पर एक 38-40 साल की हष्ट-पुष्ट महिला बैठी थी. वो सलवार कमीज में एकदम चट-चट गोरी, सुडौल स्तन, गोल मांसल मोटे मोटे चूतड़, चूड़ीदार पाजामे में मोटी-मोटी जांघें थीं. वो बहुत आकर्षक लग रही थी. उसका गोल चेहरा, लंबी नाक, गुलाबी होंठ, ऐसा लग रहा था मानो कोई पहाड़ी कश्मीरी महिला हो, जिसे देख किसी भी मर्द का मन मचल उठे. आसानी से कोई उसकी उम्र का अंदाजा नहीं लगा सकता था.
मैंने उनसे दूध मांगा, फिर जब पैसे दिए तो मैंने 2000 का नोट दिया. उस महिला ने मुझे खुले पैसे देने को कहा, मैंने कहा कि खुके नहीं हैं. फिर उसने मुझसे कहा कि आज उनके पति नहीं हैं और उनके पास भी 2000 के खुले नहीं हैं. मैं बिना दूध लिए वापस जाने लगी.
तभी उसने मुझे आवाज दी और पूछा कि क्या आप यहीं रहती हैं? मैंने उत्तर दिया- हां सामने वाली इमारत के तीसरे माले में रहती हूं. उसने फिर मुझसे कहा- आप लगता है नई आयी हो यहां? मैंने कहा- हां अभी कुछ ही दिन हुए यहां आए.. और अब यही रहेंगे. उसने मुझसे कहा- अगर आप रोज दूध लेती हैं, तो ले जाइए बाद में पैसे दे देना.
इस प्रकार हमारी जान पहचान शुरू हुई और उसी शाम सब्जी लेने बाहर निकली तो लौटते समय उससे दोबारा बातचीत हुई. मैंने उससे बात करते हुए देखा कि ज्यादातर वो मोबाइल में ही व्यस्त रहती थी. खैर जो भी हो वो मुझे मोहल्ले की बाकी औरतों से थोड़ी अलग लगी. इसलिये उससे मेरी अच्छी बन रही थी.
अगले दिन फिर दूध लाने गयी, तो सरदार जी सामने थे. दूध के पैसे देते समय मैंने पिछला उधार भी ले लेने को कहा, तो हंसते हुए मुझसे मेरा परिचय लेने लग गए. इसी तरह रोज दिन में दोनों दंपत्ती से हल्की फुल्की बातें होने लगीं. उस महिला का काल्पनिक नाम प्रीति है, जबकी उसके पति का नाम सुखबीर है. प्रीति का मायका जम्मू है और सुखबीर यहीं झारखंड से है. मगर उसके पूर्वज पंजाब से थे. वो सिख रेजिमेंट रामगढ़ जिले में सिपाही था और अब रिटायर्ड होकर यहीं अपनी दुकान से जीवन यापन कर रहा था. दुकान छोटी मोटी नहीं थी बल्कि उसकी दुकान से और भी बड़े व्यापार जुड़े थे.
प्रीति से बात करते हुए पता चला कि वो 45 साल की है और उसकी 2 बेटियां हैं, उन दोनों का विवाह हो चुका था और अपने अपने ससुराल में हैं.
प्रीति की बात से यकीन नहीं हुआ कि वो इतनी उम्र की है. उसने आगे बताया कि उसकी शादी 19 साल में ही हो गयी थी और एक साल के बाद पहली लड़की हुई, फिर डेढ़ साल के बाद दूसरी लड़की हुई. उनकी इच्छा तो थी कि उन्हें कोई पुत्र प्राप्त हो, पर कम उम्र में माँ बनने से उसकी तबियत बिगड़ चुकी थी और वो कमजोर हो गयी थी. इसी वजह से निरंतर उसका गर्भपात होता रहा. पति वैसे भी फौज में था, तो मिलना भी कम होता था. फिर कुछ सालों के बाद उसे गर्भ ठहरा मगर उसकी तबियत इतनी बिगड़ गयी कि उसे गर्भपात करवाना पड़ा. डॉक्टर ने साफ कह दिया था कि अब प्रीति का शरीर अतिरिक्त गर्भ धारण के लिए सक्षम नहीं है. तब दोनों ने किसी भी बच्चे के लिए प्रयास करना छोड़ दिया और दोनों बेटियों पर ध्यान केंद्रित करने लगे. शुरूआती जीवन दोनों का संघर्षपूर्ण रहा.
मैंने ऊपर भी लिखा था कि कहा जाता है कि दो समान विचारों वाले लोग जल्दी घुल मिल जाते हैं. प्रीति के साथ मैं भी बहुत जल्द घुल मिल गयी थी. अब तो वो मेरे घर भी आने जाने लगी और हम दोनों घंटों बातें करते. उसने अपने जीवन के सारे उतार चढ़ाव मुझे बताने शुरू किए, तो मैंने भी अपने जीवन के सुख दुख उससे बांटने शुरू कर दिए.
महीने भर के बाद तो हम दोनों इतने ज्यादा खुल गए कि वो मुझे अपने फ़ोन के वाट्सअप पर दोहरे मतलब वाले चुटकुले, मजाकिया अश्लील तस्वीरें व अन्य कई वयस्क सामग्री दिखाने और साझा करने लगी. वो मुझे ये सब दिख खूब हंसती और तरह तरह से व्यंग्य करती.
एक दिन प्रीति ने मुझसे पूछा- क्या मैं बूढ़ी हो गयी हूँ? मैंने उत्तर दिया- स्त्री और मर्द 50-50 साल तक बूढ़े नहीं होते, तुम अभी से क्यों खुद को बूढ़ी समझने लगी हो. वो मेरी इस बात से खुश सी हुई.
मैंने उसकी प्रसंसा करते हुए कहा कि भले ही तुम्हारी उम्र 45 साल की है, पर अब भी तुम किसी 25-30 साल की महिला से अधिक सुंदर और आकर्षक दिखती हो. अपनी प्रसंसा सुनकर वो एक तरफ तो खुश हुई, मगर उसके मन में कोई और भी बात थी, जो मुझे नहीं बता रही थी. उसका मन उदास लग रहा था. मैंने उसे अपनी छोटी बहन सहेली बना करके उससे कहा- मन कोई बात है तो बात दे, शायद मैं कुछ सहायता कर सकूं. और यदि सहायता न भी कर सकी, तो वो अपने मन की बात मुझसे कह कर खुद को हल्का महसूस कर सकती थी.
काफी देर सोच विचार करके उसने मुझसे पहले तो मुझसे सवाल करने शुरू कर दिए. उसने मुझसे मेरे और पति की शारीरिक संबंधों के बारे में पूछा. मैं उसे कोई अपनी निजी जानकारी नहीं देना चाहती थी, सो मैंने कह दिया कि सब सही है. मगर उम्र के हिसाब से हम घर गृहस्थी और बच्चों पर ज्यादा ध्यान देते हैं. तब उसने मुझसे पूछा कि क्या हम कभी रतिक्रिया नहीं करते? मैंने कहा- हां करते हैं, पर बहुत कम करते हैं. क्योंकि न मुझे अब ज्यादा रूचि है और न पतिदेव को.
उसे कोई शंका न हो, इसलिए मैंने उससे कहा कि हमने अपने जीवन में बच्चे पैदा करने से लेकर आनन्द लेने तक सब कुछ कर लिया, हम दोनों को किसी भी चीज की कमी नहीं रही. वो मेरी बातें सुनकर गहरी सोच में पड़ गयी.
तब मैंने उससे पूछा- क्या हुआ? उसने मुझसे पूछा- क्या इस उम्र में संभोग, रतिक्रिया की कामना करना गलत है? मैंने उसे उत्तर दिया- अगर कोई स्त्री पुरुष स्वेच्छा से शारीरिक आनन्द उठाना चाहते हैं, तो इसमें गलत क्या है. और ये गलत तब तक नहीं है, जब तक किसी की निजी जीवन में किसी प्रकार से कष्ट न पहुंचे.
मेरी बात सुनकर उसके भीतर एक आत्मविश्वास सा जागृत हो गया और वो भीतर से प्रसन्न हो गयी. उसने मुझसे फिर पूछा कि क्या स्त्री पुरुष इस उम्र में भी संभोग के आनन्द लेते हैं? मैंने उससे कहा- जो अपनी इच्छा से जीवन का आनन्द लेना चाहते हैं, वो किसी भी तरह से जीवन का आनन्द उठाते हैं. वो मुझसे अब ऐसे व्यवहार करने लगी, जैसे मैं उसकी शिक्षिका हूँ और वो मेरी शिष्या है.
अब मैंने उससे उसकी और उसके पति के बीच के संबंधों के बारे में पूछा. तब उसने खुल कर अपनी व्यथा बतानी शुरू कर दी. उसने बताया कि उनके शारीरिक संबंध तो अच्छे नहीं हैं. मैंने उसका कारण पूछा, तो उसने कहा कि पता नहीं, क्या कारण है.
मैंने सोचा कि इतनी सुंदर और सभी को आकर्षित करने वाली महिला के साथ आखिर क्या वजह हो सकती है कि रिश्ते अच्छे नहीं हैं. मैं अपने अनुभव से कहूँ, तो जब कोई मर्द मुझे देख उत्साहित हो सकता है, उत्तेजित हो सकता है, कामुक हो सकता है और किसी भी हद को पार कर सकता है, तो फिर प्रीति जैसी महिला के लिए तो कोई भी मर्द मर तक सकता है.
मैंने उससे पूछा कि तुम्हारे वो कितने अंतराल में संभोग करते हैं? उसने मुझे बताया कि जब पति की इच्छा होती है तब.. और जब मेरी इच्छा होती है, तब वो बहाना बना कर सो जाते हैं. मैं बस उसे सुन रही थी.
उसने फिर बताया कि उसे पहले की भांति अब आनन्द नहीं आता. वो केवल अपनी पति की इच्छा पूर्ति करती है. मैंने थोड़ा सोचा और उससे आगे पूछा कि दोनों संभोग में क्या क्या और कैसे कैसे करते हैं.
इस पर पहले तो बहुत शरमाई, पर उसे लगा कि मैं कोई समाधान निकाल सकती हूं. उसने बताया कि जब पति की इच्छा होती है, तो उससे कहता है, फिर वो अपना पजामा उतार कर लेट जाती है और उसका पति संभोग कर शांत हो जाता है.
उसकी कहानी बिल्कुल मेरी तरह ही थी. पहले मैंने सोचा कि उसे भी सलाह दे दूँ कि किसी दूसरे मर्द से ये सुख प्राप्त करने का प्रयास कर ले. मगर मुझे फिर लगा कि कहीं उसे मेरा चरित्र अच्छा न लगे.
अब मैंने सोचा कि इसे कुछ ऐसा बताऊं कि दोनों पति पत्नी के संबंध अच्छे हो जाएं. वो मेरी तरफ किसी समाधान की आशा की नजरों से देख रही थी.
मैंने उससे पूछा- क्या पहले भी ऐसे ही संभोग करते थे? मैंने प्रीति की दुखती रग तो समझ ली थी, पर वो मुझसे इसका समाधान पाना चाहती थी.
उसके साथ इस विषय पर हुई चर्चा को मैं अपने अगले भाग में लिखूंगी. आप मुझे मेल भेज सकते हैं. [email protected] कहानी जारी है.
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