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जीवन भी कभी कभी कैसे मोड़ ले लेता है कि बस अचरज होकर रह जाती है. एक खुशहाल जीवन कभी भी उजड़ जाता है और फिर नई शुरूआत करनी पड़ती है. कुछ ऐसा ही मेरे साथ हुआ. जीवन ने ऐसा खेल खेला कि पहले तो सब कुछ ले लिया और रोष या मजबूरी में जब वासना की चौखट लाँघी, तो एक अलग ही दुनिया में पहुँच गयी. फ्रेंड्स मैंने इससे कभी पहले अपनी आपबीती लिखी नहीं है, तो इखने में हुई ग़लतियों को नज़रअंदाज़ कर दीजिएगा.
मेरा नाम राशिदा है, उम्र 35 साल की है. मैं मूल रूप से लखनऊ की रहने वाली हूँ. एक मध्यम वर्गीय परिवार में पल के बढ़ी हुई, मुझसे बड़े तीन भाईजान हैं, जो खुशहाल ज़िंदगी जी रहे हैं. पढ़ाई की सदा से आज़ादी थी तो मैंने वाणिज्य में एम.ए. किया. कुछ समय मैंने एक कॉलेज में पढ़ाया.
चौबीस साल लगते ही अब्बू ने एक पुराने जानकार एक अच्छे परिवार में मेरा रिश्ता तय कर दिया. कुछ मामलों मेरे पीहर का परिवार थोड़ा पुराने विचार का था, लड़कों से दोस्ती की सख़्त मनाही थी. इसलिए निकाह के समय तक मैं एकदम अनछुई कली थी. मैंने सम्भोग और इससे जुड़ी हुई बातों के बारे में बस सुन और पढ़ा था.
मेरा निकाह भी बड़े धूमधाम से किया गया. शौहर मेरे कुँवारी योनि के बारे में जानके बहुत खुश थे. सुहागरात को शौहर ने पहली बार मुझे चूमा और मेरे अंगों को ऊपर से छुआ और उनके से थोड़ा बहुत खेला ताकि थोड़ी सहज हो पाऊं.
पर याल्लाह … उनकी एक एक छुअन मुझे मदहोश कर देती थी. मेरे अन्दर की इच्छाएं जाग चुकी थीं, दिल से एक टीस आ रही थी कि बस इनका ये हाथ रुके न. योनि में पहली बार एक हलचल थी कि आज बस उसे शौहर के होंठ चूम लें और उनका लिंग मेरी योनि के आगोश में समा जाए. लेकिन शौहर ने उस रात मुझे बस चूम कर सहला कर ही छोड़ दिया. मुझे लगा कि कुछ बात तो नहीं है. पर दूसरे ही दिन मैं उनके साथ हनीमून पर चली गई.
असली एहसास तो मुझको हमारे हनीमून पे मिला, जहां उन्होंने मेरे एक एक अंग को भरपूर रूप से तृप्त किया और मेरे हर छिद्र का भेदन किया. मुझे एक ऐसे दर्द का एहसास कराया, जो मैं अब जीवन भर लेना उनसे चाहती थी.
खैर वो भी अलग किस्सा है, जिसे शायद कभी बाद में बताऊं. वो मेरे जीवन के पहले वासना से भरपूर मीठे एहसास का किस्सा है.
इस तरह से हमारे नये जीवन की शुरूआत बढ़िया हुई और धीरे धीरे सब सही चलने लगा था. मेरे शौहर एक बहुराष्ट्रीय कंपनी में कार्यरत थे, तो उनका घर से बाहर आना जाना लगा ही रहता था, कभी कभार उन्हें विदेश भी जाना पड़ता था.
इस बीच हमारे बेटे का जन्म हुआ, जीवन में नयी खुशी आई, पर वासना को कुछ समय के लिए दूर करना पड़ा.
अभी हमारे निकाह को 5 साल हुए ही थे, उन्हें करीब 7 महीने के लिए विदेश भेजा गया. अम्मी की तबीयत सही ना होने के कारण मुझे घर ही रुकना पड़ा. ये शायद जीवन की सबसे बड़ी भूल कह लीजिए या जीवन का सबसे बड़ा धोखा साबित हुआ. संक्षेप में कहूँ तो वहां ऐसा कुछ हुआ कि आठ महीने बाद शौहर ने मुझे छोड़ने का निर्णय कर लिया और बिना कुछ समझे बेरहमी से मुझे तलाक़ दे दिया.
जो कोई भी एक रिश्ता टूटने के दौर से गुजरा है, वो इस दर्द को समझ सकता है कि तब क्या बीतती है. जो आपके लिए सब कुछ हो, वो आपको बेरहमी से छोड़ दे. मेरा हंसता खेलता जीवन उजड़ गया, एक बेटा भी था, जिससे मुझे संभालना था. दिन रात बस रोती रहती थी कि या अल्लाह ऐसी कौन सी खता हुई मुझसे कि तूने मुझसे सब कुछ छीन लिया.
इनके अब्बू और अम्मी भी शरम से बेहाल थे और मुझे मेरी हालत देखकर मुझे कुछ समय के लिए अपने घर जाने को कहा ताकि शायद वो कुछ कर सकें.
बेटे को लेके मैं वापस लखनऊ आ गयी, अब्बा हुज़ूर ने संभाल तो लिया, पर रिटायर्ड होने के कारण पेन्शन में घर चलाने में थोड़ी तकलीफ़ होने लगी. तब भाईजान ने काफ़ी मदद की.
खैर बेटे के खर्चे के लिए कुछ पैसे शौहर से भी मिलते थे. लखनऊ जाने एक बुरा नतीजा ये रहा कि मोहल्ले वाले और जानकारों ने जीना बदहाल कर दिया, ताने, दुनिया भर के सवाल और ना जाने क्या क्या.
सबसे परेशान होके मैंने किसी दूसरे शहर में नौकरी तलाश करने का फ़ैसला कर लिया. कुछ महीने बाद मुंबई से एक साक्षात्कार का प्रस्ताव आया और कुछ ही दिन बाद मुझे चुन लिया गया. शायद मुंबई के कुछ लोग जानते भी होंगे, पर ये एक ऐसी नौकरी थी, जिसमें मुझे मूल रूप से गैर भारतीयों या परदेशियों के साथ कार्य करना था. मैं, मेरे बेटे, अम्मी और अब्बू के साथ मुंबई में रहने लगी. पहले तो थोड़ी दिक्कत हुई, पर धीरे धीरे जीवन की गाड़ी पटरी पर आ गयी.
तनख़्वाह सही होने के कारण और एक नयी जगह होने से कुछ खुशियां वापस आने लगीं. ऑफिस में या तो वेस्टर्न फॉर्मल या फिर साड़ी पहन कर ही जा सकते थे. मैंने साड़ी पहन कर जाना शुरू कर दिया. मैंने वेस्टर्न तो कभी पहने ही नहीं थे, तो मन भी नहीं हुआ.
इन सबके बीच कई महीने से मेरी योनि एक आग सी लगी हुई थी. शौहर ने मुझे छोड़ने से पहले मेरे साथ कुछ समय बिताया था, तब जी भर के मुझे मज़ा दिया था. अलग अलग तरीके से भेदन किया था. यूं मान लो कि छोड़ने से पहले मेरे जिस्म के एक एक अंग पर एक छाप सी छोड़ दी और एक दर्द की भी मुहर लगा दी थी कि अब इस जिस्म को ये सब नहीं मिलेगा.
दिन तो जैसे तैसे नौकरी और घर के काम में निकल जाता था, पर एक एक रात काटना मुश्किल हो चुका था. रात भर तड़पना, करवटें बदलना और शौहर की याद में जिस्म की आग भड़की रहती थी. बस कभी कभी मन होता था कि चली जाऊं उनके पास और बिछ जाऊं उनके सामने, वो मुझे बेरहमी से अपने आगोश में लें, मेरी योनि को अपने लिंग से भेदें, अपने मर्दाना हाथों से मेरे नितंबों को मसल दें, मेरे कूल्हों को बेरहमी से निचोड़ दें, मुझे अलग अलग आसनों अच्छे में पूरी बेरहमी से चोदें और मैं बस सिसकारियां लेती रहूं, आहें भरती रहूं और झड़ जाऊं. वो मेरे अन्दर झड़के अपना गरम एहसास मेरे अन्दर छोड़ दें. फिर से मुझे नयी तरह से चोदें और ऐसे ही कुछ दिन और रात हवस की ज्वाला में जलते हुए निकल जाएं.
मेरी इस आपबीती को आप सभी पढ़ रहे हैं, मैं आपको आगे बढ़ने से पहले मेरी काया के बारे में बताना चाहूँगी. शायद आप यहां तक आकर ये जानना भी चाहते होंगे कि मेरी काया कैसी लगती है. मेरा फिगर जानने के बाद ये निर्णय मैं आप लोगों पर छोड़ देती हूँ.
मेरे परिवार में सभी ऊंचे कद के हैं, उसका नतीजा ये रहा कि मेरी लंबाई पांच फीट सात इंच की है, जिसके कारण हमेशा से मुझे प्रशंसा मिलती रही और जवानी में घर के बाहर ताकती हुई अनचाही नज़रें भी मुझे ताड़ती रहीं. मेरा रंग साफ़ है, ज़्यादा गोरा तो नहीं कह सकते, पर फिर भी ठीक है. लंबे काले घने बाल हैं, कमर तक तो नहीं, पर हां सीधे खड़े होने पे कोहनी तक पहुँच जाते हैं. नाक नक्श साधारण से बेहतर है, पर ज़्यादा अलग हट के नहीं है.
मुझे हमेशा से बैडमिंटन खेलने का शौक रहा है, तो शरीर का आकार एकदम चुस्त दुरुस्त है. थोड़ी घरेलू कसरत करके उससे बनावट भी सही है और जिन्हें अंगों के नंबर जानने में ज़्यादा रूचि है, उनके लिए बता दूं कि मेरा आकार 34-29-35 का है और सी कप के चूचे हैं मेरे.
ऑफिस जाना शुरू हो गया था, शुरूआत की कुछ दिक्कतों के बाद सब स्थिर हो गया और काम में भी मन लगने लगा. कुछ सहकर्मी अच्छे दोस्त भी बन गए, उनके दूसरे देश के होने के कारण हर रोज़ कुछ ना कुछ नया जानने को मिलता. पर सबसे ज़्यादा चौकाने वाली बात थी सेक्स संबंधी खुलापन, बस सुनके दंग रह जाती थी. मेरी हालत सुनकर मुझे सहारा देने की जगह मुझे कहा जाने लगा कि अकेली हो, जवान हो, मज़े लो सेक्स के. यही सब बातें सुनके हाल और बहाल होने लगा.
पहली बार किसी ने कहा कि इस योनि को किसी एक से ना बांधा जाए, इससे हर एक मज़ा मिलना चाहिए. मेरे जिस्म की प्यास हर तरह बुझाई जाए. अपनी कामुकता को आज़ाद छोड़ देना चाहिए.
इन सब ख्यालों ने मेरा जीना मुश्किल कर दिया. एक औरत को जब उसके निकाह के बाद भरपूर रूप से सेक्स मिलने लगता है, तो उसकी एक मदहोशी भरी आदत पड़ जाती है, हर रात या दूसरी रात अपने शौहर द्वारा ना जाने किस किस तरीके से मसल दिया जाना, उनके लिंग से देर रात तक चुदाई करवाना. जब ये सब छिन जाता है, तो एक औरत में अजीब सा उतावलापन पैदा हो जाता है.
हर दूसरी रात खुद अपनी योनि और दाने को मसलना और तब तक उंगली करना … जब तक योनि अपना पानी ना छोड़ दे. नहाते वक़्त अपने मम्मे दबाना, पानी की धारा को सीधे अपनी योनि पर मारना और झड़ना एक आदत सी हो गयी.
धीरे धीरे मेरा झुकाव पॉर्न की तरफ़ हुआ और हर रात उन औरतों को उन विशाल लिंगों के साथ खेलते देखना, उन्हें हाथों में लेना, अपने होंठों से चूमना और उन्हें चूसना और फिर उसी तने हुए मूसल से बेतहाशा रूप से मज़ेदार चुदाई करवाना. बार बार चरम सुख लेना और कभी कभी जब एक से ज़्यादा मर्द एक औरत को मज़े देते हैं, तो बस मन मचल के रह जाता था. ये लगता था कि बस कोई मेरे साथ भी ऐसा ही करे.
अपने शौहर के लिए प्यार अब भी था, इसलिए आए दिन बेटे के बहाने उनसे बात करके उन्हें वापस पाने की कोशिश करती, पर हर बार जब वो दुत्कार देते तो एक रोष सा आ जाता कि बस अब बहुत हो गया. पर किसी तरह खुद को काबू में रखती.
मेरे तलाक़शुदा होने की बात कुछ साथ काम करने वालों को पता चली, तो मौका पाने पे उन्होंने मुझमें दिलचस्पी लेना शुरू कर दिया. खाली समय में या लंच टाइम में मुझसे बात करना, आगे बढ़के काम में मदद करना, तारीफ करना और ना जाने क्या क्या. उस समय लगता था कि सब मददगार हैं. पर मर्द तो मर्द ही होते हैं. कुछ एक से अच्छी दोस्ती हो गयी. थोड़ा बहुत उनके यहां जाना और मिलना जुलना भी था, पर वैसा और लड़कियों के साथ भी था.
एक मर्द स्टीव के साथ कभी कभी ऑफिस की गाड़ी शेयर करती थी, तो उससे थोड़ा ज़्यादा समय बातचीत हो जाती थी. पर था वो भी बाकियों की तरह ही, पर कुछ ज़्यादा ही दिलचस्पी दिखता था. मौका पड़ने पर कभी यहां कभी वहां टच कर देता. मिलने पे गले लगना, कुछ ना कुछ करके थोड़ा करीब आता.
मुझे भी एक दोस्त के तौर पे सहज लगने लगा. हमारे फ्लैट से थोड़ी ही दूर उसका घर था, तो कभी कभार हम सुपरमार्केट में भी मिल जाते थे. उसका परिवार था नहीं, तो वो अकेला ही रहता था. इसलिए शनिवार को लंच वगैरह पर भी बुलाता, पर मैं मना कर देती थी.
एक बार घर चली गयी लंच पे तो उसने करीब आने की कोशिश की, पहले तो मुझे अच्छा लगा, पर अपने शौहर को वापस पाने के ख्याल ने मुझे वहां से तुरंत निकलने पर मजबूर कर दिया.
उस घटना के बाद हम लोगों के बीच थोड़ा अजीब माहौल हो गया. मैं फिर से उन तन्हा रातों को पॉर्न से काटने लगी, नौकरी, परिवार और तन्हाई में दिन काटने शुरू कर दिए. हम दोनों की ऑफिस की गाड़ी भी वही थी, पर हमारे बीच एक सन्नाटा सा रहने लगा. स्टीव ने अपनी तरफ से फिर भी सब कुछ फिर से सामान्य रखने की कोशिश की, कुछ हद तक कामयाब भी रहा.
कुछ दिन बाद शौहर के यहाँ से फोन आया, पता चला कि अब वो विदेश ही रहेंगे और उन्होंने किसी के साथ नया जीवन बसाने का इरादा कर लिया है. पहले तो मुझे भरोसा नहीं हुआ, जब शौहर ने खुद ये बात पक्का कर दी, तो मानो सारी उम्मीद खत्म हो गईं. अब किसी का इंतज़ार नहीं करना था, एक रोष सा जाग चुका था. अन्दर की कामेच्छा के सारे बाँध टूट गए, आज मुझे किसी की ज़रूरत थी, जो मुझे भोगे, मेरी योनि में अपना मूसल डालके मुझे देर तक चोदे और मेरे इस साल भर पुराने कौमार्य को भंग कर दे.
ऑफिस में ही थी, तो स्टीव को जाते हुए देखा और उसने मुझे एक स्माइल सी दी. मैं समझ चुकी थी कि अब मेरी चाहतों को ये ही पूरा कर सकता है, जो एक महीने पहले ना हो पाया, आज उसे होने देना चाहिए. बस झिझक ये थी कि मैंने एक बार मना किया था, क्या अब भी वो का मुझमें दिलचस्पी रखता है?
फ्रेंड्स स्टीव से मिलन का क्या हुआ और इस बार मैं स्टीव के साथ कितना सहज हो सकी, ये सब मैं आपको अगले भाग में एक एक बात को लिखने का प्रयास करूँगी. आपके कमेंट्स पाने की भी ख्वाहिश है. [email protected] कहानी जारी है.
कहानी का अगला भाग: शौहर के लंड के बाद चूत की नई शुरूआत-2
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