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मेरे प्यारे प्यारे दोस्तो, मेरा नाम मन्जू वर्मा है, और मैं अभी 56 साल की हूँ। मैं एक वृद्ध आश्रम में रहती हूँ। अब देखा जाए तो अभी मैं इतनी बूढ़ी भी नहीं हुई हूँ कि मैं किसी वृद्ध आश्रम में रहूँ, मगर मेरा बेटा मुझे यहाँ छोड़ गया है। यहाँ तो बहुत ही बूढ़े लोग हैं, और मैं सबसे छोटी हूँ, अभी तो मेरे बाल भी आधे से ज़्यादा काले हैं।
कल मेरी तबीयत कुछ ढीली थी, तो मैंने अपने वार्डन से कहा कि मुझे डॉक्टर के पास जाना है। उसने एक लड़के को बुलाया और मुझे डॉक्टर के पास भेजा। हमारे ओल्ड हाऊस में अपना कोई डॉक्टर नहीं है, हमने बाहर एक डॉक्टर से कांट्रैक्ट कर रखा है।
मैं उस लड़के की बाइक पर बैठ कर चली गई। रास्ते में 4-5 बार ऐसा हुआ के बाइक के एकदम ब्रेक लगाने के वजह से मेरे बूब्स उस लड़के की पीठ को छू गए, और उस लड़के ने भी शायद इस चीज़ का मज़ा लिया, मुझे भी मज़ा आया, मैं क्यों झूठ बोलूँ।
डॉक्टर से चेकअप करवा कर मैं वापिस अपने ओल्ड हाऊस आ गई। शाम को मेरी तबीयत कुछ और ढीली हो गई, तो वार्डन ने मुझसे पूछा कि अगर मुझे कोई मेरी सेवा संभाल के लिए चाहिए? मैंने कह दिया कि अगर कोई हो तो भेज देना।
थोड़ी देर बाद वही लड़का आ गया जो सुबह मुझे डॉक्टर के पास लेकर गया था। उसने मुझे दवाई दी, मुझे खाना ला कर दिया और रात को मेरे ही रूम में अपना बिस्तर लगा कर सो गया। दवाई में शायद नींद की गोली भी थी, दवाई खाने के बाद मैं भी सो गई।
आधी रात के बाद मुझे लगा जैसे कोई मुझे हिला हिला कर जगा रहा है, मैंने दवाई का नशा होने के कारण बड़ी मुश्किल से अपनी आँखें खोली तो देखा कि वो लड़का मेरे ही बिस्तर पर बिल्कुल मेरे पीछे आकर लेट गया और उसने मेरी सलवार खोल कर नीचे सरकानी शुरू करी। पहले तो मुझे बहुत गुस्सा आया, मन में आया कि शोर मचाऊँ, इसके मुँह पर एक तमाचा मारूँ। मगर बरसों बाद मिल रहे पराए मर्द के स्पर्श ने मेरा मुँह बंद कर दिया।
उसने बड़ी तसल्ली से मेरी सलवार खोली और मेरे पीछे लेटकर मेरे चूतड़ों से अपना लंड घिसाने लगा। उसका कड़क लंड मेरी गांड को छू रहा था, और मैं मस्त होकर लेटी सोने का नाटक करती रही। बड़े आराम से उसने मेरी कमीज़ के गले में हाथ डाल कर मेरे मम्मे दबाये, फिर मुझे सीधा करके लेटाया, और मेरी टाँगें खोल कर अपना लंड मेरी चूत में धकेल दिया। अब गर्म तो मैं भी हो चुकी थी, तो मेरी चूत में भी पानी आ चुका था, उसका लंड बड़े आराम से मेरी चूत में घुस गया और वो मुझे बड़े जोश और बढ़िया तरीके से चोद रहा था.
बेशक मुझे दवाई का नशा भी था मगर मुझे जितना भी होश था, उसमें मुझे मज़ा आया, तो मैं भी चुप करके सोने का बहाना करके लेटी रही। उस माँ के पूत ने भी खूब जम कर मेरी चुदाई की। बरसों बाद ऐसी मस्त चुदाई मिली, तो मैं तो खिल उठी। सुबह वो मेरे लिए नाश्ता ले कर आया, मेरी सारी दवाई और खाने पीने के उसने खूब ख्याल रखा। दिन में वो मेरे बेटे की तरह मेरी सेवा करता, और रात में मेरे यार की तरह मुझे चोदता। रात में दो या तीन बार हर रोज़ मेरी चुदाई होती।
दो तीन दिन में मैं ठीक हो गई। पता नहीं दवाई से या चुदाई से … पर ठीक हो गई, तो उस लड़के का काम ख़त्म हो गया और वार्डन ने उसको जाने को कह दिया क्योंकि वो किसी स्वयं सेवक संस्था से आया था। मगर उस रात मुझे बड़ा अजीब लगा, मैं रात में दो तीन बार नींद से जागी कि शायद वो आ जाए।
अगले दिन मैंने अपने वार्डन से कहा- मुझे अभी भी तकलीफ है, मुझे रात को उठ उठ कर दवाई लेनी पड़ती है, आप उस लड़के को बुला दो। मगर शाम को वार्डन ने कोई लड़की बुला दी, लड़की ने मेरा अच्छा ख्याल रखा, मगर जो मुझे चाहिए था, वो मुझको उस लड़की से नहीं मिला।
मगर कुछ दिन बाद वो लड़का फिर से आया और मुझे भी मिल कर गया। बाहर लान में बैठ कर हमने खूब सारी बातें करी, मैं उसे बता दिया कि मुझे पहली ही रात पता चल गया था कि उसने मेरे साथ क्या किया था। अब जब सारी बात खुल गई तो वो बोला- आंटी आपके पास मोबाइल नहीं है, अगर स्मार्ट फोन हो तो हम एक दूसरे से फोन पर भी बात कर सकते हैं।
मैंने अपने बेटे को संदेश भिजवाया कि मुझे एक स्मार्ट फोन चाहिए ताकि मैं फोन पर भजन कीर्तन देख सकूँ। मेरा बेटा मुझे फोन दे गया.
फिर वो लड़का आया और उसने मुझे फोन के सारे फंक्शन समझाये। अब मैं भी पढ़ी लिखी थी तो मैं खुद भी अपने फोन के साथ मत्था मारती रहती थी। धीरे धीरे मुझे फोन के और भी बहुत से फंक्शन समझ में आ गए।
ऐसे ही एक दिन उस लड़के के कहने पर मैंने अन्तर्वासना सेक्स स्टोरीज़ डॉट कॉम साईट खोली और फिर उस पर ढेर सारी कहानियाँ पढ़ी। मुझे उन कहानियों में इतना मज़ा आया कि मैं जब देखो तब अन्तर्वासना खोल कर अपने फोन पर सेक्सी कहानियाँ पढ़ती रहती। अब जब सेक्सी कहानी पढ़ो तो सेक्स करने का मन करता है, मगर सेक्स करूँ किससे? फिर धीरे धीरे मुझे हाथ से अपनी चूत मसलने की आदत पड़ गई। सारी उम्र में मैंने कभी हाथ से नहीं किया था, मगर इस बुढ़ापे में आकर मैं हस्तमैथुन की आदी हो गई। अब तो जब भी दिल करता, अन्तर्वासना पर स्टोरी पढ़ो, हाथ से चूत मसलो और पानी निकालो।
कभी कभी रात को उस लड़के के साथ मैं वीडियो चैट भी करती। उधर वो अपना लंड हिलाता इधर मैं अपनी फुद्दी मसल कर पानी गिराती। कभी कभी वो आ जाता, पर अब वो रात को नहीं रह पाता था, बस दिन में ही आ पाता था, तो दिन अगर मौका मिल जाता तो मैं उसका लंड चूस लिया करती, वो मेरे बदन को सहला लेता, मगर चुदाई का प्रोग्राम नहीं बन पाता।
फिर एक दिन एक कहानी पढ़ते पढ़ते मन में ख्याल आया कि इतने लोग अपनी कहानी लिख कर या लिखवा कर अन्तर्वासना पर भेजते हैं, तो क्यों न मैं अपनी कहानी लिख कर अन्तर्वासना को भेजूँ, हो सकता है, मेरी कहानी भी छप जाए, अपना नाम बदल दूँगी और शहर का नाम ही नहीं लिखूँगी, किसी को क्या पता चलेगा कि मैं कौन हूँ, कहाँ रहती हूँ। तो मैंने अपने मोबाइल पर ही पहले हिन्दी लिखने के लिए सॉफ्टवेयर उसी लड़के से डलवाया। फिर मैंने कोशिश शुरू की अपनी कहानी लिखने की। और जो कहानी पूरी हुई, वो आज आपके सामने है। लीजिये पढ़िये।
बात तक की है, जब मैं सिर्फ 18 साल की थी, गोरी चिट्टी, बहुत ही सुंदर, कद काठी रूप रंग में सारे गाँव में सबसे सुंदर। अपने गाँव के स्कूल में पढ़ती थी। स्कूल का ही एक लड़का मुझे बहुत पसंद था, मगर अब गाँव में कहाँ इतनी छूट होती है कि आप स्कूल में किसी को पसंद करो और उसके साथ इश्क लड़ाओ। वो एक दो बार मौका मिलने पर बस इतना सा हुआ कि उसने मेरे छोटे छोटे बूबू दबाये तो मैंने भी उसकी लुल्ली पकड़ कर दबाई। अगर मेरे बूबू के निपल थोड़े कड़क हुये, तो उसकी लुल्ली भी पूरी कड़क हुई।
उसने बहुत बार कहा कि चल खेत में चलते हैं, वहाँ तुझे ठोकूँगा, मेरा भी मन बहुत चाहता था, किसी से ठुकने को, पर मैं हिम्मत नहीं कर पाई। पास के गाँव के बड़े स्कूल से 12वीं क्लास भी पास कर ली। जब 12वीं हो गई तो घर वालों ने शादी की बात शुरू कर दी।
शादी भी हो गई, मगर मैंने सुहागरात से पहले तक अपने पति को नहीं देखा था, तस्वीर भी नहीं। जब सुहागरात को वो आए, और मेरा घूँघट उठा कर देखा, तो जितना खुश हुये, मैं उतना मायूस हुई। मेरे पति में कोई भी बात ऐसी नहीं थी, जो उसे मेरे मुक़ाबले का बनाती। न रंग न रूप, न अकल न शक्ल … बिल्कुल बकवास। बस बात क्या कि ‘जी लड़के की अपनी दुकान है शहर में!’ टीवी की रिपेयर करता है।
पति तो पहले ही दारू से टुन्न हो कर आए थे, बस आते ही मेरे कपड़े उतारे और मुझे बिना कोई खास बात किया, चोद डाला। उस दिन मुझे पहली बार पता चला कि ज़बरदस्ती चुदाई कैसे होती है। इसमें कोई प्रेम नहीं था, बस ज़बरदस्ती ही थी। उसके बाद तो हर रात यही होता।
शादी के तीन महीने बाद ही मेरे गर्भ ठहर गया और अगले साल मेरे बेटा पैदा हुआ। सारा घर खुश था, जो बहू ने पहला ही बेटा जन दिया। उससे अगले साल बेटी … 20-21 साल की उम्र में ही जब बहुत सी लड़कियों को सेक्स के बारे में पता तक नहीं होता, मैं दो बच्चों की माँ बन चुकी थी।
मगर गाँव के उस माहौल में मेरा दम घुटता था तो मैंने अपने पति के कान में ये बात डालना शुरू की कि ‘चलो शहर ही चलते हैं, वहीं अपना घर लेकर रहेंगे।’ धीरे धीरे मेरे पति पर मेरी बातों का असर हुआ और हम शहर में एक किराये के घर में रहने लगे। शहर में आई, तो फिर मुझे भी शहर की हवा लगी, आस पड़ोस की एक दो सहेलियाँ बन गई। अब मैं सिर्फ सलवार कमीज़ ही नहीं साड़ी लहंगा, और बाकी सब कुछ भी पहनने लगी।
पति का काम भी बढ़िया चल रहा था, तो घूमना फिरना, खाना पीना खूब होता। पति के साथ रह कर मुझे भी चिकन मटन खाने और कभी कभी पेग लगाने और सिगरेट पीने की आदत पड़ गई। अब मैं भी किसी विवाह शादी में एक आध पेग चुपके से लगा लिया करती, रात को जब कमरे में अकेले होते तो अपने पति की सिगरेट ले कर एक दो कॅश मैं भी खींच लिया करती। बच्चे स्कूल में पढ़ रहे थे और अच्छा पढ़ रहे थे।
फिर मेरी ज़िंदगी में एक बदलाव आया, जिसने मेरी सारी ज़िंदगी का रुख ही मोड़ कर रख दिया। एक बार होली पर हमारे नंदोई जी सपरिवार हमारे घर आए। अब होली थी, तो पेग शेग सब चला, सब ने एक दूसरे को खूब रंग लगाया. और मौका देख कर नंदोई जी ने मेरे रंग लगाने के बहाने मुझे पीछे से पकड़ लिया। मुझे पता था कि अगर मुझे पकड़ा है तो ये रंग लगाने का नहीं मेरे साथ बदतमीजी करने का जुगाड़ किया है।
मुझे इस से कोई परेशानी नहीं थी, अक्सर होली पर पराई औरतों के बदन को सहलाने के बहाने मर्द ढूंढते हैं। नंदोई जी मुझे पीछे से अपने आगोश में लिया और पहले मेरे चेहरे पर और फिर मेरे सीने पर रंग लगाया। मैं फालतू की मनुहार कर रही थी ‘जीजा जी छोड़ दो, जाने दो।’ मगर वो कहाँ जाने देते। बल्कि वो तो और शेर हो गए, और अबकी बार मेरी कमीज़ के गले के अंदर हाथ डाल कर मेरा मम्मा ही पकड़ लिया और दबाया।
मुझे एक दम से अपने स्कूल वाला दोस्त याद आया, वो भी मेरी कमीज़ के गले में ऊपर से हाथ डाल कर ही मेरे मम्में दबाता था। मैं चुपचाप खड़ी रही और नंदोई जी ने बड़ी तसल्ली से मेरे मम्मे, जांघें, चूतड़ सब सहला दिये और फिर मेरे गाल को चूम कर बोले- अब नहीं रहा जाता मन्जू, अब तो तुझे चोदने के बाद ही दिल को चैन आएगा। मैं चुप रही मगर मेरी चुप्पी को उन्होंने मेरी हाँ मान लिया, और शायद अगर मैं उस दिन सख्त शब्दों में उनको रोक देती तो मेरी जीवन कथा कुछ और ही होती।
वक़्त बीतता गया और एक साल गुज़र गया इस एक साल में नंदोई जब भी मुझे मिले या फोन पर उनसे बात हुई, उन्होंने मुझे खुल्लमखुल्ला अपने प्यार और सेक्स का इज़हार करना शुरू कर दिया। यही नहीं एक दो बार तो जब मिले तो मौका देख कर शरेआम ही मेरे बदन को छू लिया, कभी मेरे मम्में दबा दिये तो कभी मेरे पिछवाड़े पर … और फिर बेशर्मी से हंस देते. मैं भी उनकी इन बदतमीजियों को नज़र अंदाज़ कर देती, पर मुझे भी उनकी बदतमीज़ियाँ प्यारी लगने लगी।
अगली होली पर नंदोई ने हमें अपने घर बुलाया। हम भी होली से एक दिन पहले ही उनके घर पहुँच गए। बस हमारे जाते ही खाना पीना शुरू हो गया। मर्दों को तो बस दारू चाहिए। अगले दिन होली थी तो मैं जानती थी कि आज नंदोई जी मेरे साथ कुछ न कुछ हरकत तो ज़रूर करेंगे। तो मैंने भी उस दिन घागरा चोली पहना और घागरे के नीछे कुछ नहीं पहना। अपनी झांट भी मैंने पहले ही साफ कर ली थी। कुछ कुछ मेरे मन में भी था कि अगर नंदोई जी आगे बढ़े और मुझे चोदा तो मैं ना नहीं कहूँगी.
और वही हुआ … होली वाले दिन सुबह जब नंदोई जी मेरे रंग लगाने आए तो मैं भाग कर छत पर जा चढ़ी। दरअसल मैं खुद उन्हें खुला मौका देना चाहती थी। वो भी मेरे पीछे पीछे आए, और जब मुझे बरसाती में छुपी हुई को पकड़ा तो सीधे ही मेरे दोनों मम्में पकड़ कर दबा दिये, मैं कुछ नहीं बोली, बस अपने आप को उनसे बचाने का झूठा सा बहाना करती रही।
जब उन्होंने मेरी तरफ से कोई खास विरोध नहीं देखा तो उन्होंने अपनी पेंट की ज़िप खोली और अपना लंड निकाला, जो अभी पूरा खड़ा तो नहीं हुआ था, पर अपना आकार बढ़ा चुका था, और फिर उन्होंने मुझे सामने दीवार से लगा कर मेरा घाघरा ऊपर उठाया, और अपना लंड पहले थोड़ा सा मेरी गांड पर रगड़ा, इतने में ही उनका लंड काफी कड़क हो गया और अगले पल उन्होंने मेरी फुद्दी में अपने लंड का टोपा घुसेड़ दिया।
मस्त लंड जैसे ही मेरी फुद्दी में घुसा, मेरी फुद्दी का मुँह पानी से भर गया। अपने दोनों हाथ उन्होंने मेरी चोली में डाल मेरे दोनों मम्में पकड़े और जैसे जैसे वो मेरे मम्में दबाते गए, वैसे वैसे पीछे से घस्से मार मार कर मुझे चोदते रहे। लंड के आकार में, लंबाई में, मोटाई में और दम खम में वो हर तरह से मुझे मेरे पति से बेहतर लगे। मैं दीवार से सर लगाए खड़ी रही और वो मेरे बदन को नोच गए। कोई भी मर्द जो एक औरत से चाहता है, वो उन्हें मुझसे मिल गया।
करीब 10 मिनट चोदने के बाद उन्होंने अपना वीर्य मेरी चूत में गिरा दिया और अपने कपड़े ठीक करके चले गए। मैं वहीं नीचे फर्श पर ही बैठ गई, मेरा घाघरा अभी भी मेरी जांघों से ऊपर था, मेरी चोली की सभी हुक खुले थे, मेरे बाल बिखरे हुये थे। मैं बैठी सोच रही थी कि क्या जो मैंने किया, सही किया या गलत।
इतने में मेरी ननद ऊपर आई, पहले तो मेरी हालत देख कर वो चौंकी…
कहानी जारी रहेगी. [email protected]
कहानी का अगला भाग: मन्जू की चूतबीती-2
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