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इस सेक्स कहानी के पहले भाग मन्जू की चूतबीती-1 में आपने मेरी चुदाई की शुरुआत, मेरी सुहागरात और मेरे ननदोई से मेरी चुदाई के बारे में पढ़ा. अब आगे:
इतने में मेरी ननद ऊपर आई, पहले तो मेरी हालत देख कर वो चौंकी, मैंने भी उठ कर अपने कपड़े सही किए। वो भी समझ गई कि उसके पति ने मुझे जम कर मसला है। मैं भी नकली से हंसी हंस कर बोली- जीजाजी भी बहुत शरारती हैं, रंग लगा कर मुझे धक्का दे कर भाग गए, पूछा भी नहीं गिर गई, चोट तो नहीं लगी। चाहे मेरी ननद समझ गई कि मैं अपनी इज्ज़त अपने नंदोई से लुटवा चुकी हूँ, पर वो कुछ नहीं बोली और मुझे अपने साथ नीचे ले गई।
उस दिन में फिर कुछ खास नहीं हुआ। रात को सब हाल में सोये। नंदोई जी ने मेरे पति को खूब शराब पिलाई और आधी रात के बाद वो उठकर मेरे पास आ गए, उस रात हम दोनों ने बिल्कुल नंगे हो कर सेक्स किया। इधर हम ननदोई-सलहज दोनों वासना का नंगा खेल खेल रहे थे, उधर मेरे पति और उनसे कुछ ही दूर मेरी ननद दोनों सारी दुनिया से बेखबर सो रहे थे। उस सारी रात नंदोई जी ना खुद सोये, न मुझे सोने दिया। रात को हमने सेक्स तो सिर्फ दो बार ही किया, मगर उन्होंने मेरे सारे बदन को बहुत प्यार किया, सारा बदन ही वो अपनी जीभ से चाट गए। मेरा चेहरा, गला, सीना, पेट, पीठ, बाहें, हाथ जांघें, लात पैर, तलवे, चूत, गांड हर जगह को उन्होंने अपनी जीभ से चाटा। मैंने भी अपने मुँह से उनके सारे बदन को चूमा, पहली बार उनके कहने पर मैंने किसी मर्द आँड चूसे और उनकी गांड भी चाट गई। सेक्स के कुछ बिल्कुल नए अनुभव उन्होंने मुझे करवाए।
ज़िंदगी अपनी रफ्तार से चलती रही, मगर मेरे नंदोई जी ने जो आग मेरी चूत में जला दी थी, वो अब बुझने का नाम नहीं ले रही थी। फिर तो मुझे जैसे लंड की हर वक़्त ज़रूरत महसूस होने लगी। कभी कभी दिल करता कि काश मेरे ही लंड लगा होता तो अपनी चूत को जब चाहे ठंडा कर लेती। मगर मैं तो एक औरत हूँ, मुझे लंड कहाँ?
तो इस कमी को पूरा करने के लिए मैंने अपने ही एक दो पड़ोसियों से संबंध बनाए। जब उनसे बात नहीं बनी तो मैंने और आगे भी अपने संबंध बनाने शुरू किए। धीरे धीरे मैं अपने ही मोहल्ले में मर्दों की चहेती बन गई तो मोहल्ले की औरतों की दुश्मन बन गई।
फिर मैंने सोचा कि चलो मोहल्ले में नहीं बाहर कहीं कोई चक्कर चलाते हैं। मगर शायद मेरे पति को भी मेरी इन करतूतों का पता चल गया था। सीधा तो नहीं मगर घुमा फिरा कर उन्होंने मुझे बहुत बार समझाया भी, झगड़ा भी किया, डांटा भी, मारा पीटा भी। मगर मैं नहीं सुधरी … सुधरती कैसे, मैं सुधरना चाहती ही नहीं थी।
इसी वजह से पति ने बेहिसाब शराब पीने शुरू कर दी। बच्चे भी अब बड़े हो गए थे, मगर पति तो रोज़ रात को बाहर से दारू में धुत्त हो कर आते। फिर एक बार उनका एक दोस्त उन्हें घर छोड़ने आया। बिस्तर पर लेटाते वक़्त वो मुझसे ज़रा सा छू गया। मैं कुछ नहीं बोली तो उसने मेरा हाथ पकड़ लिया। मैंने उसको देखा, उसने मुझे देखा। आँखों आँखों में बात हुई और उसने मुझे वहीं मेरे शराबी पति के साथ ही बिस्तर पर गिरा दिया।
मैं चुपचाप लेट गई। उसने मेरी नाईटी ऊपर उठाई और मुझे पेल दिया। अपने पति के बिल्कुल साथ सट लेटी हुई मैं किसी गैर मर्द से चुदवा रही थी। उसके बाद तो यह रोज़ की ही बात हो गई। पहले एक था, फिर दो तीन हो गए। मेरा पति दारू में धुत्त सो रहा होता और मैं अपने यारों के साथ उसी बिस्तर पर अपनी महफिल जमाती। हम बिल्कुल नंगे होकर बैठते, दारू पीते, सिगरेट पीते, चोदा चोदी खेलते। मतलब यह कि ‘किसी गश्ती से कम नहीं थी मैं!’ मगर मैं कभी इस काम के पैसे नहीं लिए, बस प्यार मोहब्बत में ही मैंने अपनी अस्मत दूसरे लुटवाई।
बेटा अब इंजीनेयरिंग कर रहा था, बेटी वकालत पढ़ रही थी। मगर मेरी हवस अभी भी जवान थी, मेरे बच्चों को भी पता चल चुका था कि मैं क्या क्या करती हूँ। बहुत से लोग अब मेरे जानकार थे, कई तो ऐसे थे जो मेरे पति से अपना टीवी ठीक करवाने आते और रात मेरे पास ही रुक कर जाते।
अब बेटे बेटी को शर्म आने लगी थी कि उनकी माँ के बारे में मोहल्ले वाले क्या क्या बातें करते हैं। तो हमें अपना घर बदल लिया। फिर कुछ लोन लेकर और चार पैसे अपने जोड़ कर हमने अपना घर खरीद लिया।
बेटे ने इंजीनियरिंग करने के बाद अपनी मोबाइल शॉप खोल ली। पति ने भी अब उसके साथ ही काम करना शुरू कर दिया। अब टीवी का काम बंद तो घर पर आने वाले भी बंद हो गए। मेरे लिए और मुश्किल हो गई, अब पता नहीं क्यों पर मुझे सिर्फ बाहर के लोगों से, गैर मर्दों से ही सेक्स करके मज़ा आता था।
पति जब भी कहते, बेशक मेरा मन होता, मगर मैं उन्हें हमेशा मना ही कर देती। पिछले 20 साल से वो बंदा मुझे एक ही स्टाइल से चोद रहा था, और मैं उसके इस सीधे साधे सेक्स से बोर हो चुकी थी। मुझे तो सेक्स में नई नई चीज़ें, नए नए आसान, नए नए मर्द, नए नए लंड चाहिए थे। अब मुझे लगने लगा जैसे मैं घर में कैद हो गई हूँ। पति और बेटा तो सुबह ही दुकान पर चले जाते, बेटी कॉलेज, और मैं घर पर अकेली, उनकी रोटी बनाने को।
फिर मैंने एक और स्कीम सोची। अपनी एक सहेली से दोस्ती और बढ़ाई, मुझे पता था कि वो खुद तो चलती है, साथ में और भी लड़कियों को आगे काम पर भेजती है। मैंने उससे दोस्ती करके अपने मन की इच्छा उसे बताई तो वो बोली- अरे यार, अब इस उम्र में तुझे कौन सा ग्राहक लगेगा? ठीक है, तू सुंदर, बदन भी अच्छा है, मगर अपनी उम्र भी तो देख, हर कोई 18-20 साल की लड़की चाहता है, उसे 40 साल की औरत में क्या मिलेगा। फिर कुछ सोच कर बोली- अगर तू कहे तो तेरी बेटी के लिए मेरे पास बहुत ग्राहक हैं। उसकी बात मुझे बहुत बुरी लगी कि साली हरामज़ादी मेरी बेटी को गश्ती बनाना चाहती है। मगर मैं फिर भी उसको कह दिया कि देख लेना, अगर कोई मिल जाए, मुझे पैसे नहीं चाहिए, मुझे तो बस मज़ा चाहिए।
फिर एक दिन उसका फोन आया, 4-5 कॉलेज के लड़के थे, उनको सिर्फ मौज मस्ती के लिए कोई आंटी चाहिए थे। बस मेरा काम बन गया। मैं तो पूरी तरह से सजधज कर गई, 5 लड़के थे। सालों ने माँ चोद कर रख दी मेरी, सुबह 10 बजे से लेकर दोपहर के 3 बजे तक, मैं बिना एक मिनट भी रुके, लगातार चुदी। उन लड़कों को कोई आंटी चाहिए थी। 5 में से 2 दो बिल्कुल नए थे, जिन्होंने पहले कभी नंगी औरत ही नहीं देखी थी।
मगर थे सब मस्त, शानदार … नए नए लंड … मेरे कमरे में घुसते ही सब मुझ पर टूट पड़े, एक मिनट में मुझे नंगी करके अपने बीच लेटा लिया और सब के सब मेरे मम्में दबा कर, मेरी चूत गांड खोल खोल कर देख रहे थे। उसके बाद वो सब भी नंगे हो गए और फिर तो किसी का लंड मेरी चूत में किसी का मुँह में। वो सब मुझे कम से कम समय में ज़्यादा से ज़्यादा चोद लेना चाहते थे, इसीलिए जैसे ही कोई झड़ता, दूसरा पहले ही तैयार होता। एक लंड मेरी चूत से निकलता और दूसरा अंदर घुस जाता। चढ़ती उम्र थी सबकी … जिसका भी माल गिरता, 5-10 मिनट में फिर से लंड अकड़ा कर आ जाता।
10 मिनट पहले मैं सबकी आंटी जी थी, हर कोई मुझे प्यार से सम्मान से बुला रहा था। मगर मेरी चुदाई शुरू होने के बाद वही सब लड़के मुझे ‘कुतिया, हरामज़ादी, मादरचोद, गश्ती, रंडी …’ और बाकी सभी नामों से बुलाने लगे। अब मैं उनके लिए सिर्फ एक जिस्म थी जिसे वो नोच नोच कर खा रहे थे। मैं भी हंस हंस कर उन सबका माल पी रही थी, कोई मुँह के ऊपर गिराता, कोई मुँह के अंदर- पी मादरचोद रंडी, पी अपने यार का माल पी साली कुतिया! मगर मुझे इस सब की आदत थी, तो मैंने किसी का बुरा आ नहीं माना।
5 घंटे लगातार जोशीले नौजवानों ने मुझे चोद चोद कर बुरी तरह थका दिया। अपने बच्चों जैसे लड़कों से चुदवा कर जब मैं घर पहुंची तो बहुत बरसों बाद मुझे ऐसा अहसास हुआ, जैसे मैं आज अपना सब कुछ लुटवा कर घर वापिस आई हूँ। बस घर आते ही सो गई और शाम को 6 बजे सो कर उठी।
मगर अपनी सहेली से मुझे कोई ज़्यादा फायदा नहीं हुआ, बहुत कम कोई ग्राहक ऐसा होता, जो मेरे लिए कहता। फिर मुझे अपनी काम पिपासा को शांत करने के लिए अपने हाथों का सहारा लेना पड़ा। अपनी सहेली से मैं एक प्लास्टिक का नकली लंड ले आई और फिर जब दिल करता, मैं उस लंड से अपनी चूत को ठंडा कर लेती. मगर लंड सिर्फ चूत को ठंडा करता, मेरे मम्में कौन दबाता, मेरे होंठ कौन चूसता। जब एक लंड चूत को पेल रहा हो, तब दूसरा लंड मुँह में कहाँ से आता। मगर मैं क्या करती!
फिर एक दिन पति देव ने कहा कि उन्होंने हमारी बेटी के लिए एक रिश्ता देखा है। चलो जी, अब मैं सास बनने जा रही थी। बात आगे बढ़ी, लड़के वाले हमारे घर आए। बेटी का रिश्ता पक्का हो गया। लड़के की माँ नहीं थी, इस लिए उसने मेरे पाँव छूये, मगर जब मैंने उसे अपने गले लगाया, मेरे मन में आया कि बेटा, अगर कभी दिल चाहे तो तेरी सास भी फ्री है, दिल करे तो सास को लेटा लेना अपने बिस्तर पर!
जिस दिन सगाई थी, उस दिन समधी जी ने मुझे शगुन की थाली, जिसमें मेरे लिए कपड़े गहने और भी बहुत सा समान था, तो थाली मुझे पकड़ाते हुये, थाली के नीचे से उन्होंने मेरे मम्में को अपनी उंगली से छुआ। बेशक उन्होंने ऐसे जताया, जैसे गलती से छुआ गया हो, मगर मैंने बुरा नहीं माना, बल्कि उनको एक हल्की सी स्माइल पास कर दी। जब वो दोबारा मुझे और सामान देने लगे तो उन्होंने फिर अपने हाथ से मेरे मम्में को छुआ, इस बार थोड़ा अधिकार, थोड़ी बदतमीजी से। मैंने भी अपने हाव भाव से उनको जता दिया कि आपके छूने का मुझे कोई बुरा नहीं लगा।
फिर जिस दिन हम उनके घर गए, तो उस दिन तो उन्होंने मुझे गले ही लगा लिया। शाम का वक़्त था, उन्होंने सब के लिए एक छोटी सी पार्टी रखी थी। पार्टी में जब शराब का दौर चला तो दारू के नशे का बहाना करके मेरे समधी ने मौका देख कर मुझे एक तरफ बुलाया, और जैसे ही मैं उनके पास गई, उन्होंने मुझे अपनी बांहों में जकड़ लिया। एक दो चुंबन भी मेरे चेहरे पर जड़ दिये। मैं बेवजह की छूटने की कोशिश करती रही, मगर उस बिगड़े हुये मर्द ने मेरे सारे जिस्म को सहला दिया।
बस इतना बहुत था उसके लिए कि मैं उससे चुदवाने के लिए तैयार हूँ।
शादी हो गई, शादी के बाद एक दिन मेरे समधी ने मुझे फोन करके बुलाया और मैं भी गई। उस दिन वो और उसका एक दोस्त दो लोग थे उसके दोस्त के ही घर। वहाँ पर दोनों दोस्तों ने मुझे खूब चोदा। जब मेरे समधी मुझे चोद रहे थे, तब उन्होंने बताया कि एक बार उन्होंने मुझे बहुत पहले भी चोदा था। मुझे याद नहीं था कि वो कब की बात कर रहे थे, मगर मैं भी बहुत से अलग अलग मर्दों से चुदी थी, क्या पता कब चोदा हो।
दो चार बार तो मैंने अपने समधी और उसके दोस्त से मज़े किए, पर अब रोज़ रोज़ तो मैं अपने समधी के घर भी नहीं जा सकती थी।
फिर बेटे की शादी हो गई, बेटे की शादी में मेरी बहू के एक कज़िन ने दारू के नशे में मेरे चूतड़ पर हाथ मार दिया। मैंने बुरा नहीं माना, तो वो पीछे ही पड़ गया, अब मैं शादी की रस्में करूँ या उसकी बात मान कर उसके बिस्तर की रानी बनूँ! बड़ी मुश्किल से उसे समझाया.
मगर शादी के करीब एक हफ्ते बाद वो मुझे अपने साथ एक होटल में ले ही गया। उसने मुझे दो बार चोदा, उसने क्या चोदा, मैंने ही उसे चोदा। अच्छी तरह से सब समझाया कि कैसे करते हैं। अब मैं भी खुश थी कि चलो एक नया लौंडा मिल गया है, कभी कभी पानी निकलता हो गया।
मगर इस बात का पता मेरे बेटे को चल गया। हमारे घर में खूब झगड़ा हुआ और उसके बाद मेरे बेटे और पति ने मिल कर मुझे यहाँ वृद्ध आश्रम में छोड़ दिया। मैं अब यहाँ कैद की ज़िंदगी जी रही हूँ। बीच में एक लड़का आया था, जिसकी बात मैंने ऊपर बताई है, मगर वो भी रोज़ कहाँ आता है। आज भी मैं उसको याद करके हाथ से अपनी चूत मसल कर हटी थी कि मुझे याद आया, और मैंने अपने मोबाइल पर अन्तर्वासना की साइट खोली और कहानी लिखने के लिए किसी से संपर्क किया।
बेशक यह मेरी आपबीती है, या यूं कह लो के सारी कहानी मेरी चूत के इर्द गिर्द घूमती है तो मेरी चूत बीती है। अभी मैं 60 साल की नहीं हुई हूँ, इस हिसाब से मैं अभी किसी भी वृद्ध आश्रम में नहीं रह सकती, मगर मेरे पति ने कोई सिफ़ारिश लगवा कर और आश्रम को काफी चंदा देकर मुझे ज़बरदस्ती यहाँ दाखिल करवा दिया है। अब मैं यहाँ रहती हूँ, तरसती हूँ। बाहर जा नहीं सकती, अंदर कोई आता नहीं है। क्या करूँ।
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